Tiranga फिल्म के बनाने की दिलचस्प कहानी, वो फिल्म जिसे देखते वक़्त गयी कई लोगों की जान
देशभक्ति एक ऐसा अहसास जिससे दुनिया का कोई भी आम इंसान अछूता नहीं रह सकता है, यही कारण है कि लोग इस शब्द से जुड़ी हर चीज को एक अलग सम्मान और भावना से जोड़कर देखते हैं फिर वो चाहे कोई दिन हो, प्रतीक हो, गीत हो या फिर कोई फिल्म, लोगों का प्यार और सम्मान इन सभी चीजों को बराबर मिलता है।हिंदी सिनेमा में समय समय पर लोगों की इसी सोच को देखते हुए कई देशभक्ति आधारित फिल्मों का निर्माण किया गया, जिनमें से कई फिल्मों को बोलीवुड की कल्ट फिल्मों में गिना जाता है।आज हम फिल्म Tiranga के बारे में बात करने वाले है
जो हिन्दी सिनेमा की देशभक्ति फिल्मों में अपना अलग स्थान रखती है।
गुजराती सिनेमा में 18 सुपरहिट फिल्में बनाने के बाद निर्देशक मेहुल कुमार ने बोलीवुड का रुख किया और मरते दम तक के अलावा जंगबाज नाम से दो फिल्मों का निर्माण किया।अपने करियर में लगातार सफलता प्राप्त करने वाले मेहुल कुमार बोलीवुड में भी यह सिलसिला बरकरार रखना चाहते थे और इसीलिए उन्होंने देशभक्ति जैसे हिट प्लोट पर आधारित अपनी नई फिल्म तिरंगा का निर्माण शुरू कर दिया।
Tiranga Movie Casting-
भारी भरकम स्टार कास्ट और सब्जेक्ट के लिए मशहूर मेहुल कुमार ने इस फिल्म में अपने फेवरेट अभिनेता राजकुमार साहब को कास्ट किया जिनके साथ वो पहले भी काम कर चुके थे।ब्रिगेडियर सुर्य देव सिंह के बाद अब बारी थी फिल्म के दुसरे लीड एक्टर की जिसके लिए कई ओप्शन खंगालने के बाद उन्होंने नाना पाटेकर को अपनी फिल्म में कास्ट करने का मन बनाया
जो उस समय प्रहार और परिंदा जैसी शानदार फिल्मों में काम कर चुके थे जिसमें से प्रहार फिल्म में नाना का काम मेहुल को बहुत पसंद आया था।मेहुल कुमार ने नाना पाटेकर को फोन किया और अपनी फिल्म के बारे में बताया जिसे सुनकर नाना ने उनसे कहा कि वो सिर्फ आर्ट फिल्मों में काम करना पसंद करते हैं, इसलिए वो इस फिल्म का हिस्सा नहीं बन सकते हैं।
लेकिन आखिरकार मेहुल कुमार ने नाना पाटेकर को एक बार उनकी फिल्म का नरेशन सुनने के लिए मना लिया और उनके घर चले गए।नरेशन सुनने के बाद नाना को फिल्म की कहानी और अपना किरदार पसंद आया लेकिन हां कहने से पहले उन्होंने मेहुल कुमार के सामने दो शर्तें रखी जिनके अनुसार फिल्म में उनके खाते के 14 दृश्यों में से एक पर भी कैंची नहीं चलनी चाहिए
Read this also-Mahesh Babu: तेलगु सिनेमा का वो सुपरस्टार जिसे अपने डायलॉग रटकर बोलने पड़ते थे
और दुसरी ये कि फिल्म में राजकुमार साहब की किसी भी दखलअंदाजी को वो बर्दाश्त नहीं करेंगे।
नाना पाटेकर ने मेहुल से कहा कि अगर राज साहब ने उनके काम में अड़चन डाली तो वो उसी समय फिल्म छोड़कर चले जाएंगे। मेहुल कुमार ने नाना को आश्वस्त किया और कहा कि उनको एडिटिंग और राज साहब के चलते कोई भी परेशानी नहीं होगी।इसके बाद मेहुल ने राज साहब को फोन कर पुरी बात बताई
जिसे सुनकर राजा साहब ने उन्हें भरोसा दिलाया कि उनकी वजह से मेहुल कुमार की फिल्म में कोई अड़चन नहीं आएगी।नाना पाटेकर और राजकुमार साहब को एक फिल्म में कास्ट करने की बात जब सिनेमाई लोगों के बीच फैलने लगी तो बहुत से लोगों ने मेहुल कुमार के लिए कहा था कि उन्होंने अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने का काम किया है
क्योंकि नाना पाटेकर और राजकुमार साहब अलग अलग शख्सियतें है जिन्हें साथ लेकर कोई भी फिल्म पुरी नहीं हो सकती है।
कैसे मिला दीपक शिर्के को गुंडास्वामी का किरदार
तिरंगा फिल्म में राजकुमार साहब और नाना पाटेकर के अलावा दीपक शिर्के ने भी काम किया था जो विलेन प्रलयनाथ गुंडास्वामी के किरदार में हमें नजर आए थे।एक टिपीकल बोलीवुड विलेन वाली सभी खासियतों को समेटे रखने वाले इस किरदार को लोग आज भी पसंद करते हैं, एक ह्रष्ट पुष्ट शरीर, भयानक शक्ल और दमदार आवाज वाले इस विलेन की गिनती
हिंदी सिनेमा के मशहूर खलनायकों में होती है।तिरंगा फिल्म की अन्य भूमिकाओं में सुरेश ओबेरॉय, वर्षा उसगांवकर, फिरोज खान, आलोकनाथ, सत्येन कप्पू, डब्बू मलिक, बोब क्रिस्टो और हरीश कुमार भी नजर आए थे।साथ ही इस फिल्म में म्यूनिसिपल कमिश्नर एम के तिवारी की भूमिका में निर्देशक मेहुल कुमार ने भी काम किया था।
Read this also-Sanjay Narvekar:मराठी फिल्मों का वो अभिनेता जिसे बॉलीवुड ने हल्के में लिया
बात करें इस फिल्म की लीड हीरोइन की तो फरहीन की जगह इस फिल्म में ममता कुलकर्णी को कास्ट किया गया था।
[2] Tiranga movie behind the camera
शूटिंग के पहले दिन जब मेहुल कुमार पहले शोट की तैयारी कर रहे थे तभी उन्होंने देखा कि लोगों के एक समूह ने किसी गाड़ी को घेर रखा है, थोड़ी देर बाद भीड़ में से उन्होंने देखा कि राजकुमार साहब एक टैक्सी में से निकलकर आ रहे हैं, पास आने पर जब मेहुल कुमार ने उनसे टैक्सी में आने का कारण पूछा तो
उन्होंने बताया कि उनकी गाड़ी खराब हो गई थी और वो नहीं चाहते थे कि उनके देर से आने के कारण उनके दोस्त को पहले ही दिन लोगों की बातें सुननी पड़े इसलिए वो टैक्सी में आ गए।शूटिंग के दौरान नाना पाटेकर और राजकुमार साहब अपने अपने काम को पुरा करने के बाद अलग अलग बैठ जाते थे और उनमें किसी भी प्रकार की अतिरिक्त बातचीत नहीं होती थी।
लेकिन फिल्म के आखिरी दिनों में राजकुमार साहब के मनमौजी स्वभाव ने नाना पाटेकर के मन में राजकुमार साहब को लेकर हर तरह की भ्रांतियों को दूर कर दिया था, राजकुमार साहब नाना पाटेकर के लिए टिफीन लेकर आते और दोनों अभिनेता साथ में बैठकर खाना खाते थे।इस तरह हिंदी सिनेमा के ये दो मकबूल व्यक्तित्व एक दुसरे के दोस्त बन गए थे।
[3] म्यूजिक –
बात करें फिल्म के शानदार म्यूजिक की तो संतोष आनंद के शब्दों को लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की जोड़ी ने संगीतबद्ध किया था, मोहम्मद अजीज, सुदेश भोंसले, कविता कृष्णमूर्ति और साधना सरगम जैसे दिग्गज गायकों ने इन गानों को अपनी आवाज दी थी।
[4] रिलीज –
29 जनवरी 1993 को फिल्म इंडस्ट्री के लगभग सभी लोगों की आशाओं के विपरित यह फिल्म 6 महीनों में बनकर रीलीज हो गई थी जहां राजकुमार साहब और नाना पाटेकर की जोड़ी को दर्शकों ने बेसुमार प्यार दिया था।लेकिन उसी दौरान मुम्बई पर आंतकवादियो का साया भी मंडरा रहा था, 12 मार्च 1993 के दिन मुम्बई की तेरह अलग अलग जगहों पर बम ब्लास्ट हुए
जिनमें से एक दादर में स्थित प्लाजा स्टुडियो भी था जहां लगभग 881 लोग तिरंगा फिल्म देख रहे थे।इन 881 लोगों में से दस लोगों का निधन हो गया तो वहीं 35 लोग घायल हो गए थे, 14 मार्च 1993 को इस घटना के मुख्य आरोपी अजगर मुकादम और शहनवाज कुरैशी को गिरफ्तार कर लिया गया और साल 2007 में इन्हें फांसी दे दी गई थी।
Read this also-Tiku Talsania: वो चेहरा जिसे देखते ही हंसी आ जाती है
साल 2004 में 1993 बोम्ब ब्लास्ट पर बनी अनुराग कश्यप की फिल्म ब्लैक फ्राइडे में इस घटना का जिक्र किया गया था जिसमें नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने अजगर का किरदार निभाया था।सभी मुश्किलों के बावजूद इस फिल्म ने उस साल रीलीज हुई बाजीगर सहित कई फिल्मों को टक्कर देते हुए 12 करोड़ रुपए का बीजनेस किया था और सुपरहिट साबित हुई थी।
[5] अननोन फैक्टस
फिल्म तिरंगा में एक सीन है जिसमें गुंडास्वामी सुरेश ओबेरॉय के किरदार को मार देता है, यह सीन देखने में बहुत ही अजीब लगता है, क्योंकि इसमें फिल्म के विलेन गुंडास्वामी को घोड़े पर हेल्मेट पहने दिखाया गया है।दीपक शिर्के से जब इसका कारण पूछा गया तो उन्होंने बताया कि उस सीन में उनकी जगह उनके बोडी डबल को घोड़े पर बिठाया गया था
क्योंकि वो घोड़े पर बैठने को लेकर झिझक रहे थे और बोडी डबल के चेहरे को ढकने के लिए उसे हेल्मेट पहनाया गया था।तिरंगा में गुंडा स्वामी को कई जगह गेंडा स्वामी कहकर भी पुकारा जाता है जिसका कारण बताया जाता है कि राजकुमार साहब ने दीपक शिर्के की आवाज और शक्ल को देखकर मज़ाक मज़ाक में उन्हें यह नाम दिया था।
इस फिल्म के एक गीत पीले पीले ओ मोरे राजा की शूटिंग के दौरान नाना पाटेकर बहुत बैचेन थे क्योंकि इस गाने में उन्हें नशे की हालत में डांस करना था जो उनके लिए बहुत मुश्किल था,
क्या राज कुमार ने गाया है फिल्म का ये गाना
लेकिन आज इस गाने को देखकर शायद कोई यह मानने को तैयार नहीं होगा कि नाना पाटेकर ने इस गाने को बिना शराब पिये शूट किया था।बहुत से लोगों की तरह आपको भी यह गाना सुनकर महसूस हुआ होगा कि इस गाने का अपना पोर्शन राजकुमार साहब ने खुद गाया है लेकिन ऐसा नहीं, यह जादु है सुदेश भोंसले की आवाज का जिन्हें अमिताभ बच्चन की आवाज के रूप में जाना जाता है,
लेकिन इस फिल्म में उन्होंने राजकुमार की आवाज़ में गाना गाकर सबको चौंका दिया था।दोस्तों अगर आपने यह फिल्म देखी है तो आपने यही जरूर नोटिस किया होगा कि राजकुमार साहब अपने अधिकतर दृश्यों में गले के एक हिस्से को छुपाए हुए नजर आते हैं, दरअसल वो उस समय थ्रोट कैंसर से जूझ रहे थे जो फिल्म के दौरान साफ नजर आने लगा था और इसीलिए वो फिल्म में उसे ढककर रखते थे।
इसी थ्रोट कैंसर के कारण साल 1995 में इस महान अभिनेता का निधन हो गया था और साथ ही मेहुल कुमार और राजकुमार साहब की हिट जोड़ी टुट गई थी।राजकुमार साहब के निधन के बाद मेहुल कुमार ने नाना पाटेकर के साथ अपनी सफलता को जारी रखा और फिल्म क्रांतिवीर बनाई जिसके लिए नाना पाटेकर को बेस्ट एक्टर का नेशनल अवार्ड दिया गया था,
Read this Also-Anand Raaj Anand: बिल्लो रानी और ओय राजू जैसी गानों से सबको नाचने वाले संगीतकार की कहानी
इस जोड़ी की सक्सेस को देखते हुए उस समय अपने बुरे दौर से गुजर रहे अमिताभ बच्चन ने मेहुल कुमार के साथ मृत्युदाता में काम किया लेकिन यह फिल्म फ्लॉप साबित हुई और फिर अमिताभ बच्चन के साथ फिल्म कोहराम की नाकामयाबी मेहुल कुमार के शानदार करियर को ढलान पर ले आई थी
जिसके बाद इन्होंने अपने करियर में सिर्फ तीन फिल्मों पर काम किया है लेकिन कोई भी फिल्म इनको फिर से बोलीवुड में स्थापित नहीं कर पाई।