
बॉलीवुड में अक्सर कई ऐसी फिल्में बन जाती हैं जिनसे जुड़े मुख्य कलाकारों के अलावा उनसे जुड़े अन्य कलाकार भी दर्शकों के जेहन में अपनी एक छाप छोड़ जाते हैं। और उन फिल्मों को दर्शक जब भी याद करते हैं तो उन ख़ास कलाकारों के चेहरे बरबस ही उनकी आँखों के आगे आ जाते हैं।
90 के दशक के आख़िर में ऐसी ही एक कामयाब फिल्म प्रदर्शित हुई जिसका नाम था ‘वास्तव’ और इस फिल्म में डेढ़ फुटिया नामक एक किरदार में एक ऐक्टर भी नज़र आये थे जिनका नाम है संजय नार्वेकर जिन्होंने अपने दमदार अभिनय से उस किरदार को और ख़ास बना दिया। इस किरदार में संजय नार्वेकर ने ऐसा काम किया कि बगैर उनका नाम लिये अब इस फिल्म के बारे में बात करना भी अधूरा सा लगता है।
अभिनेता संजय नार्वेकर जी का जन्म वर्ष 1962 में महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग ज़िले के एक महाराष्ट्रीयन परिवार में हुआ था। सिंधुदुर्ग से ही शुरूआती शिक्षा पूरी करने के बाद संजय नार्वेकर ने मुंबई के रुइया कॉलेज में दाखिला लिया जहाँ वे अपने कॉलेज में क्रिकेट और फुटबॉल के अच्छे खिलाड़ियों में गिने जाते थे।
दोस्तों आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि अभिनय करने में न तो संजय की कोई ख़ास रुचि थी और न ही वे इसे कभी करियर के रूप में ही देखते थे फिर भी उन्हें नाटकों में अभिनय करना पड़ा। दोस्तों संजय का अभिनय के क्षेत्र में आने का किस्सा बहुत ही दिलचस्प है। हुआ ये कि एक दिन उनका एक ख़ास दोस्त जो कि नाटकों में काम करता था, उसने संजय से बताया कि उसके ग्रुप के एक ऐक्टर को नाटक से बाहर कर दिया गया है|

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और ग्रुप के लोग कई घंटों से उसकी जगह भरने के लिये किसी और ऐक्टर की तलाश कर रहे थे। दरअसल उनके ग्रुप को इंटर कॉलेजिएट ड्रामा प्रतियोगिता में हर हाल में प्रदर्शन करना ही था। इसलिए वो लोग बहुत परेशान थे।ऐसे में संजय के दोस्त ने संजय को उस लड़के की जगह ऐक्टिंग करने के लिये रिक्वेस्ट किया जिसे संजय ने एक अच्छे दोस्त के फ़र्ज़ की तरह स्वीकार कर लिया।
तत्काल उन्हें नाटक के डायरेक्टर के सामने पेश भी कर दिया गया, डायरेक्टर मिस्टर पाटिल ने संजय से पूछा कि क्या वह बिना अभ्यास के नाटक के संवाद बोल पाएंगे। संजय ने पूरे आत्मविश्वास से कहा, “जी हाँ बोल लूँगा।” संजय के आत्मविश्वास को देखते हुए उन्हें उस नाटक में शामिल कर लिया गया।
मज़े की बात तो ये हुई कि संजय द्वारा अभिनीत उनके इस पहले नाटक ‘कोलिया राजा’ को उस प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्ठ नाटक के लिए पुरस्कृत भी किया गया। हालांकि संजय को इस नाटक में कोई व्यक्तिगत पुरस्कार नहीं मिला, लेकिन बग़ैर किसी अभ्यास के उनके बेहतरीन प्रदर्शन को हर किसी ने ख़ूब सराहा और वहीं से बतौर अभिनेता, नाटकों में अभिनय करने की उनकी दिलचस्पी भी बढ़ गयी।
इन मराठी नाटकों में किया है काम
उसके बाद उन्होंने ढेरों मराठी नाटकों में हिस्सा लिया जो आज तक बदस्तूर ज़ारी है। संजय द्वारा अभिनीत कुछ मराठी नाटकों में रंगीला रंगीला रे, ऑल द बेस्ट, खेमेली, बाजीराव मस्त एम आई और अमहीलो रे जैसे न जाने कितने ही नाम शामिल हैं।
फिल्मों में संजय की एक शुरुआत 80 के दशक में ही उनके नाटकों में काम करने के दौरान ही हो गयी थी। राज बब्बर नाना पाटेकर अभिनीत फिल्म अंधा युद्ध में काम करने के साथ-साथ उन्होंने रंगमंच पर काम करना ज़ारी रखा। उसके बाद वे नज़र आये वर्ष 1998 में प्रदर्शित मराठी फिल्म ‘नवासाचे पोर’ में।
बाद में उन्होंने टेलीविज़न पर काम करने का मन बनाया और वर्ष 1999 में अलग अलग कहानियों पर आधारित टी वी शो ‘गुब्बारे’ की एक कहानी में किया। टी वी पर शुरुआत अभी हुई ही थी कि उनके ऐक्टिंग जीवन का वह टर्निंग प्वाइंट आया जिसका कि हर ऐक्टर इंतज़ार करता है। वर्ष 1999 में ही प्रदर्शित हुई सुपरहिट फिल्म ‘वास्तव’ ने बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचा दिया।

कैसे मिला फिल्म वास्तव में रोल
मुंबई के अंडरवर्ल्ड स्टोरी पर आधारित महेश मांजरेकर द्वारा निर्देशित इस फिल्म में संजय दत्त, नम्रता शिरोडकर, मोहनीश बहल, परेश रावल, रीमा लागू और शिवाजी साटम जैसे ढेरों ऐक्टर्स के साथ संजय नार्वेकर भी शामिल थे। फिल्म वास्तव में संजय नार्वेकर को ‘डेढ़फुटिया’ की भूमिका के लिए ख़ूब सराहना मिली थी।
इस फिल्म में नायक के दोस्त की भूमिका में शानदार अभिनय के लिये उन्हें फिल्म फेयर अवार्ड की ओर से सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता की श्रेणी में नामांकित भी किया गया था। इस फिल्म के लिए अभिनेता संजय दत्त को बेस्ट एक्टर का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला था।
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फिल्म वास्तव के बाद तो संजय नार्वेकर ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। एक के बाद एक ढेरों फिल्मों ‘बागी’, ‘दीवार’, ‘एक और एक ग्यारह, फ़िज़ा, हंगामा, जोड़ी नंबर 1, बस इतना सा ख्वाब है, अहसास- द फीलिंग, प्यासा, किस्मत और चांद के पार चलो सहित लगभग 30 फिल्मों में विभिन्न भूमिकाएं निभाई।
हिंदी फिल्मों के साथ-साथ संजय ने अपनी मातृभाषा यानि मराठी भाषा की फिल्मों में भी काम करना शुरू कर दिया। एक ओर हिंदी फिल्मों में जहाँ संजय को सहायक और चरित्र भुमिकायें मिलती थीं तो वहीं दूसरी तरफ़ मराठी फिल्मों में उन्हें मुख्य भूमिका वाली फिल्में मिलने लगी। उनके द्वारा अभिनीत मराठी फिल्में सफल होने से वे इतने व्यस्त होते गये कि हिंदी फिल्मों से उनकी दूरी बढ़ती ही चली गयी।
उन्होंने नौ महीने नौ दिवस, ख़बरदार, सरिवर सारी, ज़बरदस्त, अगा बाई आरेच्चा, चेकमेट, कैपचीनो, आता पिटा, ये रे ये रे पईसा, खारी बिस्किट और गंभीर पुरुष आदि जैसी ढेरों सफल मराठी फ़िल्मों में मुख्य भूमिकायें निभाईं। हिंदी और मराठी फिल्मों के अलावा संजय वर्ष 2013 में प्रदर्शित तेलुगु फिल्म लॉटरी में भी नज़र आये।
फिल्मों में सफल होने के बाद एक संजय ने एक बार फिर टेलीविज़न की ओर रुख़ किया और साथ ही कई वेब शोज़ में भी काम किया, जो अभी भी बदस्तूर ज़ारी है।

टेलीविज़न पर उनके द्वारा अभिनीत धारावाहिकों में माइ नेम इज़ लखन, पार्टनर्स, गुम है किसी के प्यार में आदि प्रमुख हैं।
वर्ष 2020 में संजय नेटफ्लिक्स द्वारा निर्मित और उसी के प्लेटफार्म पर प्रदर्शित फिल्म ‘सीरियस मैन’ में भी नज़र आये। इस फिल्म में अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी मुख्य भूमिका में दिखे तो वहीं संजय एक ताकतवर मराठी नेता की सशक्त भूमिका में दिखाई दिये। इस भूमिका के लिए उन्हें बहुत सराहना मिली। इसके बाद वे वेब सीरीज ‘एस्केप लाइव’ सहित कुछ अन्य शोज़ से भी जुड़ेे।
क्यों नहीं छोड़ना चाहते हैं रंगमंच
दोस्तों नाटकों से अपने अभिनय जीवन की शुरुआत करने वाले संजय ने कभी भी रंगमंच को नहीं छोड़ा वे कहते हैं कि नाटक उनका जुनून है और वे नाटकों से आज भी बहुत कुछ सीखते हैं। रंगमंच से जुड़े रहने के लिए संजय साल में कम से कम एक नाटक से ज़रूर जुड़ते हैं ।
उनका मानना है कि “रंगमंच आपको अपने अभिनय कौशल को बढ़ाने और अपनी क्षमताओं को सुधारने का मौका देता है।” संजय का कहना है कि “नाटकों में अभिनय करना एक प्रयोग की तरह होता है। कारण कि, आप हर शो में चरित्र के साथ खोज और प्रयोग कर सकते हैं और दर्शकों की त्वरित प्रतिक्रिया आपको अपने प्रदर्शन के साथ- साथ मनोबल बढ़ाने में भी सहायता प्रदान करती है”
दोस्तों तीन दशकों में इतनी सारी फिल्मों का हिस्सा रह चुके संजय आज भी अपनी हर फिल्म को अपनी पहली फिल्म जैसा ही समझकर कड़ी मेहनत करते हैं। वो कहते हैं कि “एक फिल्म के पूरा होने के बाद, मैं फिर से एक संघर्षरत व्यक्ति की तरह महसूस करता हूं।”
अपने सधे हुये अभिनय को लेकर संजय यह बताते हैं कि “मैं हमेशा देखता हूं कि एक निर्देशक मुझसे क्या उम्मीद करता है, और मैं एक चरित्र को क्या दे सकता हूं। मैं, फिर, दोनों को मिला देता हूं और एक कोलाज पेश करता हूं।”
दोस्तों संजय का झुकाव निर्देशन की तरफ भी है उनका कहना है कि फिल्म निर्माण की भाषा अब बदल रही है। और इन नई चीजों को वे पहले सीखेंगे। उसके बाद उन्हें लगा कि वे अब इसे समझ गये हैं तो वे निश्चित रूप से निर्देशन करने की कोशिश करेंगे।
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क्यों रहते है सोशल मीडिया से दूर
दोस्तों सोशल मीडिया से दूरी बना के रखने की बात पर संजय का कहना है कि वे थोड़ा अलग रहना पसंद है और केवल व्हाट्सएप का उपयोग करते हैं और किसी चीज़ का नहीं। उनका कहना है कि सोशल मीडिया एक बेहतरीन माध्यम है लेकिन हमें लगातार लोगों के सामने रहने से बचना चाहिए क्योंकि मेरा निजी जीवन मेरा होना चाहिए। उनका मानना है कि इसके बजाय उन्हें अपने परिवार को समय देना चाहिए।
दोस्तों संजय के परिवारिक जीवन की बात करें तो उनकी पत्नी असिता नार्वेकर जी भी रंगमंच की एक कलाकार रह चुकी हैं और वे भी फिल्म के क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं। असिता मराठी फिल्मों की एक कार्यकारी निर्माता हैं साथ ही उन्होंने कई मराठी फिल्मों में बतौर कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर भी काम किया है ।
संजय नार्वेकर के एक बेटे भी हैं जिनका नाम है आर्यन एस नारवेकर जो अपनी पढ़ाई के साथ साथ बतौर बाल कलाकार मराठी फिल्म ‘बोकासतबंद’ से अभिनय की शुरुआत कर चुके हैं।
दोस्तों संजय बताते हैं कि उनकी पत्नी असिता और बेटा आर्यन ही उनके सबसे बड़े आलोचक हैं और वे उन्हें ग्राउंडेड रखते हैं। वे संजय के काम की आलोचना करने से नहीं कतराते हैं। संजय कहते हैं कि उन्हें इस बात की खुशी है कि उनके पास आलोचना का व्यक्तिगत स्पर्श है।