क्या भगवान राम मांसाहारी थे ?
जहां एक ओर पूरा भारत, अयोध्या (Ayodhya) में होने वाले राम (Ram) मन्दिर के कार्यक्रम को लेके उत्साहित (Excited) है, वहीँ कुछ तथाकथित लोग अभी भी हिन्दुओ की धार्मिक (Religious) भावनाओं को भड़काने से बाज नहीं आ रहे हैं| जिसके जो मन में आ रहा वो उसी तरह की टिप्पड़ी (Comment) हिन्दू देवी-देवताओ के उपर कर देता है. अभी कुछ दिन पहले NCP नेता जितेन्द्र (Jitendra) अवहड़ ने श्रीराम के ऊपर बेहद आपत्तिजनक (OBjectionable) टिप्पड़ी की. खुलेआम मीडिया के सामने जितेन्द्र (Jitendra) कहते हैं की राम मांसाहारी (Carnivores) थे, जो इन्सान 14 साल तक जंगल (Forest) में रहा वो शाकाहारी भोजन (Food) खोजने कहाँ जायेगा? इस बयान के बाद से काफी बवाल हुआ, अनेकों धर्म गुरुओ ने जितेन्द्र अवहड़ की काफी आलोचना (Criticism) की. सोशल मीडिया पर भी लोगों की मिली जुली प्रतिक्रिया आने लगी. काफी लोगों का यही मानना है की श्रीराम ने कभी भी मांसाहारी भोजन नही खाया, लेकिन वहीँ कुछ ऐसे भी लोग हैं जो ये कहते नहीं थक रहे की राम तो क्षत्रिय थे, वो वनों में शिकार किआ करते थे, तो मांस खाए बिना कैसे रह सकते थे?
नमस्कार मित्रों! मैं हूँ अनुराग सूर्यवंशी और आप पढ़ रहे हैं नारद वाणी
अगर आप समय निकालके वाल्मीकि रामायण (Ramayan) का थोडा सा भी अध्ययन करें, तो आपको पता चल जाएगा की क्या वास्तव (Really) में श्रीराम मांसाहारी थे? वाल्मीकि (Valmiki) रामायण के उन तथ्यों पर हम अपनी पिछली पोस्ट पर पहले ही बात कर चुके हैं लेकिन आज हम थोडा और पीछे चलेंगे, मतलब राम (Ram) काल से भी कई साल पहले जब वैदिक (Vedic) काल की शुरुवात हुई थी.
वेदों में इस बात का उल्लेख (Mention) मिलता है की अगर कोई प्राणी अपनी सीमा भूलकर किसी को सताए, आतंक करे या कुछ ऐसा करे जिससे आस पास रह रहे लोगों को कष्ट (Suffering) हो तो उसका वध कर देने या दंड (Penality) देने में कोई पाप नहीं है. लेकिन किसी जीव की ह्त्या उसे भोजन के रूप में करने के लिए कर दी जाए, तो ये महापाप की श्रेणी (Category) में आता है.
वर्तमान (Present) में जैसा दौर चल रहा है वैसा राम काल या उससे पहले बिलकुल नहीं था. विद्वानों के अनुसार (According)- उस समय सबसे ज्यादा क्षेत्र में जंगल फैला था और ज़ाहिर सी बात है की अगर जंगल है तो पशु (Animal) पक्षी तो जरुर ही होंगे और बहुत से खतरनाक जानवर भी होंगे, जो वहाँ के आस पास की आबादी में उत्पात (Mischief) भी मचाते थे. जिनसे निपटने का काम उस समय के राजा-महराजा या युवराज किया करते थे. और ठीक यही हुआ था श्रीराम काल में भी, जब राम को चौदह वर्ष का वनवास हुआ था तो उस समय उन्होंने कसम खाई थी की वहाँ के दुष्टों (Winked) का वो नाश करेंगे और उन्होंने किया भी वही, लेकिन इस बात का कहीं प्रमाण नहीं मिलता की उन्होंने मांस भक्षण (Devouring) के लिए हिरन या किसी जीव को मारा.
अब आते हैं दूसरी बात पर- कुछ लोगों का ये भी कहना है की वाल्मीकि रामायण में मांस शब्द आया है, तो इसका सीधा सा मतलब है की राम मांस खाते थे, तो आइये आज इस मांस शब्द को ठीक से समझ ही लिया जाये. पिछली विडियो में हमने इस बात को वाल्मीकि रामायण के अनुसार स्पष्ट (Clear) किया था की मांस का अर्थ फल का गुदा या कंदमूल (root vegetable) से है क्योकि मांस एक संस्कृत शब्द है, जिसका प्रमाण हमें रामायण से बहुत पहले लिखे वेदों में भी मिलता है. एक शब्द के अनेक (Many) अर्थ (Meaning) होते हैं, ये तो आप जानते ही हैं. आइये इसे कुछ और उदाहरण (Example) से समझते हैं. प्राचीन संस्कृत आयुर्वेद (Ayurvedic) में दवा बनाने की विधि (Method) में संस्कृत में प्रस्थम कुमारिकामासं (Kumarikamasam) जैसा शब्द लिखा आता है, अब कुछ मोटी बुद्धि के लोग ये समझेंगे की यहाँ कुवारी कन्या का एक सेर मांस की बात चल रही है लेकिन अर्थ तो कुछ और ही है. यहाँ बात हो रही है एक सेर घ्रित्कुमारी के गुदे की, जिसे आज कल इंग्लिश में अलोविरा (aloe vera) बोलते है.
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यज्ञ करने की विधि के दौरान श्लोक में अजेन यष्टव्यम (Yashtavyam) का उल्लेख आता है, यहाँ अज का अर्थ अन्न से है, लेकिन आमतौर पर लोग इसका अर्थ बकरे से लगायेंगे और कहेंगे की यज्ञ में बकरे की बलि देनी है. देखिये! संस्कृत एक देवनागरी भाषा (Language) है, जिसके अर्थ को इतनी आसानी से समझ पाना आज के AI टेक्नोलॉजी (Technology) के बस का भी नहीं है. इसलिए इसे समझने के लिए और भी उदाहरण (Example) समझने पड़ेंगे.
प्राचीन काल के महान वैदिक ऋषि याज्ञवल्क्य (Yajnavalkya) द्वारा लिखित शतपथ ब्राम्हण, जो की यजुर्वेद का ही एक छोटा सा अंश है, जिसमे ख़ास तौर से यज्ञ और उससे सम्बंधित (related) विधि-विधान को विस्तार से समझाया गया है. एक प्रसंग के दौरान प्रश्न पूछा गया है की कतमः प्रजापतिः? अर्थात प्रजा का पालन करने वाला कौन है?
तो उत्तर है पशुरिति अर्थात (In other words) जो शक्तियां, पदार्थ का पोषण करने वाली होती हैं उन्हें पशु कहा गया है, इनमे अग्नि, वायु और सूर्य को भी पशु (Animal) कहा गया है क्योकि ये तीनों संसार (World) के प्राणियों के मूलभूत पोषक हैं. इनका अर्थ उन साधारण पशुओ से बिलकुल भी नहीं है जो जंगलो (Frost) में रहते हैं. शपथ ब्राम्हण (shatpath brahmin) के अनुसार अन्न की व्याख्या कुछ इस तरह से की गयी है की पिसा हुआ सुखा आटा लोम यानी बाल है, इसी को पानी मिलाने पर ये चर्म यानी चमडा और गुन्थ्ने पर मांस हो जाता है. तपाने पर अस्थि और घी डालने पर मज्जा कहलाता है और इस तरह पकाकर जो पदार्थ (Substance) बनता है उसे पाक्त्पशु कहा जाता है. आयुर्वेद और शल्यचिकित्सा (Surgery) की सबसे प्राचीन ग्रन्थ सुश्रुतसंहिता (Sushruta Samhita) में आम के लिए कहा गया है की आम के कच्चे फल में स्नायु(Muscle), हड्डी (Bones) और मज्जा नहीं दिखाई देती, लेकिन पक जाने के बाद सब प्रकट हो जाती है.
प्राचीन वैदिक संस्कृत (Sanskrit) का एक और उदाहरण (Example) हम आपको बताते हैं- पहले के समय में बड़े बड़े यज्ञों के समापन (ending) के बाद अन्न का दान दिया जाता था, जिसमे उड़द की दाल और दही खास तौर से होती थी, वैदिक संस्कृत (Sanskrit) के हिसाब से उड़द को माष और दही को दधि कहा जाता है और इन दोनों का मिश्रण (mixture) मांस कहलाता था. इसका मतलब बलि अन्न से होता था, इसका अर्थ ये कतई नहीं है की किसी मांस या जानवर की बली.
वृहदरणयक उपनिषद जैसे अन्य उपनिषदों में भी मांस शब्द का जिक्र आया है, जिसके अंतर्गत कंदमूल (root vegetable) फल आते है जैसे-गज्कंद, ऋषभकंद, अश्वगंधा, सर्पगंधा, महिष यानी गुग्गुल, मयूरी, काकमाची. अब अगर किसी संस्कृत श्लोक में लिखा जाए ऋषभ मांस तो इसका ये बिलकुल मतलब नहीं होगा की ये किसी बैल का मांस है बल्कि यहाँ इसका मतलब ऋषभ के गूदे से है जिसकी जड़ (Root) लहसुन से मिलती जुलती है.
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इतने सारे उदाहरण देने के बाद हम तो आपसे बस यही कहेंगे की वैदिक संस्कृत में एक एक अक्षर, मात्रा और संधि से पूरा अर्थ बदल जाता है, केवल उपरी शब्दों को पढ़कर वैदिक संस्कृत के श्लोको का अर्थ नहीं निकला जा सकता है. और यही सबसे बड़ा कारण भी था की महाकवि तुलसीदास (Tulsidas) ने संस्कृत के बजाय सामान्य भाषा में ही रामचरितमानस (Ramcharitmanas) की रचना की ताकि आम जनता राम कथा को समझ पाए. लेकिन फिर भी कुछ मुर्ख बिना किसी ज्ञान के बेतुके तर्क देने में लग जाते हैं और अर्थ का अनर्थ कर देते हैं.
देखिये अगर आप खा रहे हैं नहीं छोड़ पा रहे हैं तो इसके लिए भगवान (God) को बीच में लेन की क्या ज़रूरत। आप खाइये। कुतर्क (sophistry) क्यों करते हैं। परन्तु ऐसे लोग अपनी कृत्यों को धर्म से जोड़कर अपनी बात मनवाना कहते हैं। जैसे अगर कोई धूम्रपान (smoking) करता है तो भगवान शिव को बीच में ले आएगा। तो ऐसे लोगों सत्बुद्धि दे।
उम्मीद है आज की इस पोस्ट से आपको बहुत सारी बातों का ज्ञान हो गया होगा जो श्रीराम के विषय में अनावश्यक रूप से फैलाई जा रही हैं, बाकी पोस्ट कैसी लगी हमें कमेंट के माध्यम से जरुर बताइयेगा ।
धन्यवाद ।
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