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किसके अवतार थे महाभारत के सारे पात्र – Mahabharat Story

किसके अवतार थे महाभारत के सारे पात्र
महाभारत के ये योद्धा थे देवताओं के अवतार

मित्रों, जैसा की हम सभी इस बात को जानते हैं की इस विश्व में अब तक का सबसे भयंकर और विशाल युद्ध महाभारत का था| जिसमे मरने वालों की संख्या का अनुमान अगर लगाया जाये तो शायद गिनती ही कम पड़ जाये, इस युद्ध में बड़े-बड़े देश के राजाओं ने हिस्सा लिया था जिनके पास लाखों की संख्या में सेनायें थीं| इस बात का अंदाज़ा आप ऐसे भी लगा सकते हैं की कौरवों की संख्या सौ थी और पांडवों की संख्या मात्र पांच लेकिन प्रत्येक कौरवों और पांडवों में सेनाओं की एक अलग ही टुकड़ी थी जिनकी संख्या लाखों में थीं तो आप सोच ही सकते हैं की किस स्तर पर और कितना भयंकर युद्ध हुआ होगा| महाभारत काल के बहुत सारे योद्धाओं से सम्बंधित बहुत सारी रोचक कथाएं आपको सुनने के लिए अक्सर मिल ही जाती होंगी, जिनमे से कुछ कथाएं प्रमुख हैं जैसे की- पांडवों और कौरवों के जन्म की कथा, कर्ण के जीवन का परिचय, पितामह भीष्म के जीवन से जुड़ी कथाएं| लेकिन इन सब कथाओं के अलावा एक बहुत ही रोचक तथ्य जिसका उल्लेख महाभारत में बड़े ही विस्तार से किया गया है, शायद आप उस रहस्य से परिचित न हों| वास्तव में, महाभारत के जितने भी योद्धाओं के विषय में आप अब तक सुनते आ रहे हैं, चाहे वो कौरव पक्ष के हों या पांडव पक्ष के, ये सभी किसी न किसी देवता, दानव, यक्ष और गंधर्व के अवतार थे| तो आइये आज के इस अंक में हम इस रोचक जानकारी को और विस्तार से जानें|

नमस्कार मित्रों,

तो मित्रों, इस रोचक जानकारी को जानने से पहले हमें ये जानना होगा की आखिर किन कारणों के चलते देव, दानव, यक्ष और गन्धर्वों को पृथ्वी पर अवतार लेना पडा, और महाभारत का ये भीषण युद्ध हुआ| क्योकि ये सब होने के पीछे की जो भूमिका बनायीं गयी थी, उसकी जानकारी होना भी बहुत आवश्यक है|

महाभारत के आदिपर्व के अनुसार जब भगवान् परशुराम इक्कीस बार पृथ्वी को क्षत्रियों से खाली करके महेंद्र पर्वत पर तपस्या करने चले गए,तो उसके बाद पृथ्वी पर से लगभग क्षत्रियों का साम्राज्य बिलकुल ख़त्म सा हो गया था| लेकिन समय के साथ साथ फिर से क्षत्रियों का वंश आगे बढ़ने लगा, धीरे-धीरे पृथ्वी पर सभी सुख से रहने लगे| एक युग बीतने के बाद द्वापर युग में एक ऐसा समय आगया जिसमें बहुत सारे दुष्ट राक्षसों का उत्पात शुरू हो गया| क्षत्रिय वंश में कुछ ऐसे राजा भी हुए जिनका सम्बन्ध राक्षस कुल से भी था और इसी कारण धरती पर पाप और तेजी से बढ़ने लगा| धरती की ऐसी दशा देखकर माता पृथ्वी ब्रम्हा जी के पास गयीं और उन्होंने इस समस्या को जल्द ही समाप्त करने की प्रार्थना की| इस पर ब्रम्हा जी बोले की- “हे पृथ्वी! तुम बिलकुल भी चिंता मत करो, धरती पर बहुत ही जल्द भगवान् विष्णु, श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लेने वाले हैं, उन्ही के साथ ही कुछ देवता, दानव, यक्ष और गंधर्व भी अपने अंश से मनुष्य के रूप में अवतार लेंगे ताकि इन्ही के जरिये धरती में राज कर रहे दुष्ट राजाओं का भी अंत हो सकेगा|”

और फिर इस तरह दानवराज विप्रचित्ति को अपने इस जन्म में जरासंघ और हिरन्यकश्यप को शिशुपाल के रूप में शरीर प्राप्त हुआ| विधाता की इच्छा के अनुसार महान दैत्य कालनेमि का अगला जन्म कंस के रूप में हुआ| देवगुरु बृहस्पति ने, भरद्वाज मुनि के आश्रम में द्रोणाचार्य के रूप मे जन्म लिया, जो आगे चलकर सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर तो बने ही साथ ही साथ पांडवों और कौरवों के भी आचार्य बने| उन्हीं द्रोणाचार्य के पुत्र के रूप में महादेव शिव शंकर ने अपने अंश से अश्वत्थामा के रूप में अवतार लिया| महादेव शिव की आज्ञा से उनके एक गण ने भी कृपाचार्य के रूप में अवतार लिया|  महर्षि वशिष्ठ के शाप और इंद्र की आज्ञा के कारण महाराज शांतनु और देवी गंगा के संयोग से आठों वसुओं का जन्म हुआ, जिनमे से आठवें वसु पितामह भीष्म हुए| महाभारत के अनुसार- द्वापर युग के अंश से शकुनी, मरुद्गण के अंश से सात्यकी, राजा द्रुपद, कृतवर्मा और राजा विराट का जन्म हुआ| इसके अलावा हंस नाम के गंधर्व का जन्म धृतराष्ट्र के रूप में हुआ और उसके छोटे भाई ने पांडू के रूप में जन्म लिया| सूर्य के अंश धर्म ने महात्मा विदुर के रूप में अवतार लिया और वहीँ कलियुग के अंश से धृतराष्ट्र के बड़े पुत्र दुर्योधन का जन्म हुआ|

आपको जानकार आश्चर्य होगा की पुलत्स्य वंश के अन्य राक्षसों का जन्म दुर्योधन के निन्यानबे भाइयों के रूप में हुआ| इसके साथ ही युधिष्ठिर धर्म के, भीम वायु के, अर्जुन इंद्र के, और नकुल-सहदेव अश्विनीकुमारों के अंश से उत्पन्न महाबली थे| चंद्रमा के पुत्र वर्चा का जन्म अभिमन्यु के रूप में हुआ था, जिसके पीछे भी एक रोचक कथा है| असल में चन्द्र देव अपने पुत्र मोह के कारण वर्चा को  धरती पर नही भेजना चाहते थे, और इसलिए उन्होंने देवताओं से कहा की मै लम्बे समय तक अपने पुत्र से दूर नही रह सकता इसलिए, मेरे पुत्र का जन्म अर्जुन और सुभद्रा के संयोग से होगा और वो बहुत ही पराक्रमी योद्धा होगा, अकेले ही उसमे दस-दस योद्धाओं से लड़ने की क्षमता होगी लेकिन जब वो कौरवों के चक्रव्यूह में फस जाएगा उसी दिन वो अपनी कम आयु में मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा और उसी समय मेरा पुत्र वर्चा चंद्रलोक में वापस आ जायेगा|

धृष्टदुम्न जो की राजा द्रुपद का पुत्र था, इसका जन्म अग्नि देव के अंश से हुआ था और द्रुपद की पुत्री द्रौपदी का जन्म इंद्र की पत्नी इन्द्राणी के अंश से हुआ| और जैसा की आप सभी जानते ही हैं की सूर्य देवता ने अपने अंश से कर्ण को जन्म दिया था जिसकी माता कुंती थीं| भगवान् विष्णु के कृष्ण रूप में अवतार लेने के साथ-साथ शेषनाग ने उनके बड़े भाई बलराम के रूप में अवतार तो लिया ही साथ ही साथ यादव वंश में बहुत सारे देवताओं ने मनुष्य रूप में अवतार लेकर दुष्टों का नाश करने में श्रीकृष्ण की सहायता की| वहीँ दूसरी ओर माता लक्ष्मी ने, राजा भीष्मक की पुत्री रुकमनी के रूप में पृथ्वी पर अवतार धारण किआ| श्रीकृष्ण की सोलह हजार स्त्रियों के बारे में तो आपने सुन ही रखा होगा, वो सभी देवराज इंद्र की अप्सराओं के अंश से उत्पन्न थीं| इनके अलावा देव कन्या सिद्धिं और धृति ने कुंती और माद्री के रूप में जन्म लिया जो की आगे चलकर पांडवों की माता हुई और कौरवों की माता गांधारी, देव कन्या मति के अंश से उत्पन्न हुई थीं| इस तरह लगभग सभी देवों, अप्सराओं, राक्षस और गन्धर्वों ने धरती पर ब्रम्हा जी के आदेश से अवतार धारण किया और फिर विधाता ने भूमिका कुछ इस तरह से बनायी की अंत में चलकर महाभारत जैसा युद्ध हुआ जिसमे अनगिनत संख्या में दुष्टों का संहार हुआ|

उम्मीद है आज की ये रोचक जानकारी आपको पसंद आयी होगी,

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