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कौन हैं विराट कोहली के गुरु?

 

समय बदला.. युग बदले.. सभ्यताएं बदली.. लोगों के जीने के ढंग बदले.. न बदली तो वह थी हमारी आस्था और हमारी भक्ति। चाहे वह ईश्वर के प्रति हो या फिर प्राचीन समय से चली आ रही ऋषि- मुनि परंपरा के प्रति, जिन्हें समाज में केवल साधू सन्यासी ही नहीं बल्कि गुरु का स्थान भी दिया जाता रहा है। वह गुरु जो जीवन में हमारा मार्गदर्शन कराने के साथ-साथ हमें ईश्वर को पाने का मार्ग भी बताते हैं। हमारे पवित्र ग्रन्थों- पुराणों में लिखित और वर्णित महान ॠषि- मुनि हों या आज के समय के साधु-संत, समाज में उन्हें ईश्वर तुल्य ही माना जाता है। हालांकि ऐसे संतों और बाबाओं की संख्या भारत जैसे विशाल जनसंख्या (Population) वाले देश में कम ही हैं और उन्हीं में से एक हैं ‘श्री ह‍ित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज’।

Premanad Maharaj Ji

प्रेमानंद जी महाराज को मानने वाले उनके अनुयायियों की संख्या (Number) लाखों में है, और जो लोग उनके नाम से अपरिचित (Unknown) थे वह भी अचानक कुछ माह पहले उनके बारे में जानने के लिए उत्सुक हो उठे थे, जब भारतीय क्रिकेटर विराट कोहली अपनी पत्‍नी अनुष्‍का और बेटी वामिका के साथ महाराज के दर्शन हेतु वृंदावन पहुँचे थे। विशेष बात कि सांसारिक (worldly) मोह-माया से दूर प्रेमानंद जी महाराज उन्हें न तो पहचानते थे और न ही उन्हें नाम से ही जानते थे। उन्होंने विराट कोहली और उनके परिवार को साधारण जनमानस के जैसे ही दर्शन और आशीर्वाद दिया। देखते ही देखते यह ख़बर और महाराज के दर्शन के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गये, जिसके बाद से हर कोई यह जानना चाहता है कि आख़िर यह संत कौन हैं और कब से वृंदावन में वास कर रहे हैं? प्रेमानंद जी महाराज से जुड़ी ऐसी कई जानकारियों को हम आज के वीडियो में लेकर आये हैं साथ ही लेकर आये हैं उनके जीवन से जुड़ी बहुत सी ऐसी चमत्कारिक बातें, जिनसे बहुत से लोग आज तक अपरिचित हैं।

नमस्कार…..

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि संत ‘श्री ह‍ित प्रेमानंद गोविंद शरण महाराज’ जी एक कथा वाचक हैं जो वृंदावन में रहते हैं और सत्संग के माध्यम से लाखों लोगों का मार्गदर्शन (Guidance) करते हैं। महाराज को सुनने व मानने वालों में हर धर्म के लोग हैं जिसका उदाहरण कुछ दिनों पहले ही देखने को मिला था जब एक कांग्रेसी नेता ने ट्विटर (Twitter) पर महाराज की तस्वीर पोस्ट (Post) कर उनकी खिल्ली उड़ायी तो उस ट्विट के विरोध में बहुत सारे मुस्लिम यूजर्स ने भी इसका विरोध किया और कहा कि प्रेमानंद जी महाराज को वह भी सुनते हैं और वह हमेशा शांति की बात करते हैं। महाराज जी भगवान श्रीकृष्ण की सबसे प्रिय राधा रानी को अपनी ईष्ट मानते हैं। प्रेमानंद जी महाराज के अंदर भक्ति-भाव का जन्म कब और कैसे हुआ और वे वृंदावन कैसे पहुँचे? यह कहानी बहुत ही रोचक है जिसके बारे में चर्चा करने से पहले हमें उनकी परिवारिक पृष्ठभूमि (background) और उनके बचपन (Childhood) के बारे में जानना बहुत ही ज़रूरी है।

बचपन और आध्यात्म की ओर झुकाव-

प्रेमानंद जी महाराज का असल नाम अनिरुद्ध कुमार पांडेय है और बचपन में इन्हें इसी नाम से जाना जाता था। महाराज मूलत: कानपुर, उत्तर प्रदेश के सरसौल ब्‍लॉक में स्थित अखरी गांव के रहने वाले हैं। उनके पिता का नाम श्री शंभू पांडेय है और माता का नाम है श्रीमती रामा देवी।  प्रेमानंद जी महाराज के पिताजी ने भी बाद के वर्षों में सन्यास स्वीकार कर लिया था, तो वहीं माँ के मन में भी साधुओं-संतों को लेकर बहुत सम्मान था। महाराज के बड़े भाई भी नियमित श्रीमद्भागवत् (Shrimad Bhagwat) का पाठ किया करते जिसका असर महाराज के मन पर उनके बचपन में ही पड़ना शुरू हो गया था। बचपन से ही घर में पूजा-पाठ और भक्ति का वातावरण देखते हुए महाराज का झुकाव भी आध्यात्म की ओर बढ़ता चला गया। महाराज जी ने बहुत कम उम्र में ही ढेरों चालीसा याद कर लिये थे जिनका वो नियमित पाठ भी किया करते थे। कहा जाता है कि जब वे 5वीं कक्षा में थे तब से ही उन्होंने गीता (Gita) और श्री सुखसागर (Sukh Sagar) पढ़ना शुरू कर दिया था। महाराज अपने स्कूल जाने से पहले मंदिर जाते और विधिवत् (Formal) पूजा-पाठ कर टीका लगाकर ही पढ़ने जाया करते थे। महाराज का आध्यात्म की ओर झुकाव तब और बढ़ा जब उनके मन में स्कूल में पढ़ाये जाने वाले भौतिकवादी (Materialism) ज्ञान को लेकर प्रश्न (Question) उठने लगे। महाराज के मन में यह बात बैठ गयी कि जिस दिन मेरे माता-पिता इस संसार में नहीं रहेंगे तब मेरा कौन होगा? उनके बिना मेरा क्या होगा? ऐसे प्रश्नों का महाराज जी के मन में केवल एक ही उत्तर मिलता कि, जो हैं सब ईश्वर हैं और उन्हीं की शरण में जाना होगा। इसके बाद से ही उन्होंने अपने मन को शांत करने के लिए नियमित ईश्वर का जाप करना शुरू कर दिया। महाराज जब 9वीं कक्षा में थे तब से ही उन्होंने यह निश्चय कर लिया कि वे एक आध्यात्मिक (Spritiual) जीवन शैली ही अपनायेंगे और एक दिन उन्होंने अपना यह निर्णय (Decision) अपनी मां को भी बता दिया। हालांकि माँ ने उनकी इस बात पर बहुत अधिक ध्यान नहीं दिया क्योंकि उन्हें लगा कि बच्चों के मन में ऐसे विचार तो आते-जाते ही रहते हैं। कुछ दिन यूँ ही बीत गये और एक रात अचानक महाराज ने विचार किया कि अब उन्हें काशी (Kashi) जाकर गंगा किनारे ही जीवन व्यतीत करना चाहिए और अगली सुबह 13 वर्ष की छोटी उम्र में महाराज जी अपना घर छोड़ वाराणसी जा पहुँचे।

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Preamanand Ji Maharaj

गंगा माँ को माना अपनी दूसरी माँ-

वाराणसी पहुँच कर उन्होंने तुलसी घाट को अपनी साधना स्थली (Terristial) के रूप में चुना और पवित्र गंगा को अपनी दूसरी माँ मान लिया। महाराज एक पीपल के पेड़ के नीचे नियमित ध्यान लगाते और 10-15 मिनट के लिये भिखारियों के साथ बैठ जाते। महाराज का वहाँ बैठने का समय निश्चित (Fixed) था और अगर उतने देर में कुछ मिला तो ठीक नहीं तो वे गंगा जल पीकर ही अपनी भूख मिटा लिया करते थे। महाराज जितनी देर के लिए भिक्षा लेने के लिए बैठते केवल उतनी ही देर के लिये लोगों के बीच रहते थे, इसके अलावा अपना सारा समय वे एकांतवास में ही बिताया करते थे। महाराज जी को जानने वाले बताते हैं कि उन्होंने गंगा में तीन बार स्नान करने की अपनी दिनचर्या को कभी नहीं छोड़ा भले ही कड़ाके की सर्दी ही क्यों न पड़ रही हो। वह कई दिनों तक बिना भोजन किये रहते और शरीर ठंड से कांपता लेकिन उनका नियम कभी भी नहीं बदलता। महाराज के अनुसार सन्यास के कुछ वर्षों के भीतर ही उन्हें भगवान शिव का विधिवत आशीर्वाद मिल गया था। इस आशीर्वाद से ही एक दिन बनारस में ध्यान करते हुए वे वृंदावन की महिमा के प्रति आकर्षित (Attract)  हुए। उनके मन में यह विचार आने लगा कि वृंदावन कैसा होगा? वहाँ उन्हें जाना ही चाहिए।

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Premanand Maharaj ji old Photo

शायद यह ईश्वर की ही शक्ति थी जो उनके मन में यह विचार जन्मा था और ठीक अगले ही दिन एक अपरिचित (Unknown) संत ने उन्हें समीप (Near) में हो रहे भगवान कृष्ण की रासलीला के बारे में बताया। हालांकि महाराज ने तो पहले वहाँ जाने से साफ-साफ मना कर दिया लेकिन जब संत ने कहा कि वृंदावन की मण्डली है, एक बार देख लो अगर अच्छा न लगे तो फिर वहाँ मत जाना। महाराज जी के मन में यह विचार भी आया कि हो न हो इसमें भी ईश्वर की कोई लीला हो, इसलिए वे संत की बात को शिवजी का आदेश मानकर रासलीला देखने चले गये। रासलीला का यह कार्यक्रम दिन- रात दोनों ही समय नियमित चलना था और दिन के समय में हुई श्री चैतन्य महाप्रभु की लीला महाराज जी को इतनी भा गयी कि रात में बिना कहे ही वे समय से श्रीकृष्ण भगवान की रासलीला देखने पहुँच गये। महाराज को इसमें इतना आनंद (Happiness) मिलने लगा कि देखते ही देखते एक महीने कब बीत गये पता ही नहीं चला  हालांकि महाराज को यह चिंता भी सताती कि यह मण्डली (Congrigetion) जब यहाँ से चली जायेगी तब वे इस आनंद से वंचित हो जायेंगे। इसी बीच एक दिन उन्होंने रासलीला मण्डली के मालिक (Owner) से विनती करते हुए कहा कि मुझे भी अपने साथ रख लीजिये, मैं भगवान की लीला देखूँगा और बदले में आपलोग की सेवा करता रहूँगा। मण्डली के संयोजक ने उन्हें इसके लिए तो मना कर दिया लेकिन उनके मन में यह विश्वास जगा दिया कि ‘एक बार वृंदावन चले आओ बिहारी जी तुम्हें स्वयं ही नहीं छोड़ेंगे।”

महाराज की वृंदावन यात्रा-

कुछ ही दिनों बाद महाराज की मुलाक़ात वाराणसी के प्रसिद्ध संकट मोचन मंदिर के बाबा युगल किशोर जी से हुई, महाराज ने उन्हें भी अपने वृंदावन जाने की इच्छा बतायी जिसके बाद उन्होंने महाराज को अपने घर ले जाकर उनकी ख़ूब सेवा की और महाराज की इच्छा के अनुसार उन्हें अपने साथ चित्रकूट ले जाकर वहाँ से मथुरा की ट्रेन (Train) में बिठा दिया। महाराज के पास तब न रुपये पैसे थे और न ही वे वृंदावन में किसी को जानते थे, ऐसे में ट्रेन में कुछ लोगों ने उनकी इस यात्रा के बारे में जानकर उन्हें रुपये देकर मदद करनी चाही, लेकिन महाराज जी ने इसके लिये मना कर दिया। ट्रेन में ही कुछ लोगों ने उनसे कहा कि, आप हमलोगों के साथ वृंदावन चलिये, हमलोग रात में मथुरा में रुकेंगे और सवेरे वृंदावन के लिये चलेंगे। हालांकि यह उनकी शरारत थी या अनजाने में ऐसा कुछ हो गया कि उन लोगों ने महाराज जी को एक होटल के बाहर बिठा दिया और फिर उन्हें लेने वापस ही नहीं आये। लेकिन कहते हैं न कि ईश्वर (God) जो चाहते हैं होता वही है, महाराज जी को परेशान देख उनके पास एक सज्जन (Gentelman) आये और उन्हें अपने घर लेकर चले आये और उनके भोजन व सोने की व्यवस्था कर दी। अगली सुबह एकादशी का दिन था तो महाराज जी ने सोचा कि मथुरा आ ही गये हैं तो यमुना जी में स्नान कर भगवान श्री द्वारिकाधीश के दर्शन का सौभाग्य क्यों छोड़ा जाय। महाराज यमुना में स्नान कर द्वारिकाधीश मंदिर पहुँचे तभी उनके मन में न जाने कैसे भाव उपजे कि भगवान की छवि देख वे फूट-फूटकर रोने लगे। महाराज जी की इतनी भक्ति देख वहाँ उपस्थित लोगों ने उनका ख़ूब अभिनंदन किया और उनमें से ही एक व्यक्ति को जब महाराज की इस यात्रा की पूरी कहानी पता चली तो उसने उनकी इच्छानुसार उन्हें वृंदावन के ‘रमणरेती’ पहुँचाने की व्यवस्था कर दी। महाराज जी एकादशी के दिन वृंदावन पहुँचकर ख़ुद को सौभाग्यशाली समझने लगे हालांकि वृंदावन वे पहुँच तो गये थे लेकिन उन्होंने उस समय जैसा सोचा था वैसा वातावरण उन्हें नहीं मिल पा रहा था और वहाँ उन्हें कोई जानने वाला भी नहीं था। जिसके बाद महाराज एकांत के अभाव में कुछ दिनों में ही वापस वाराणसी लौट आये और अपनी पुरानी दिनचर्या में व्यस्त हो गये। हालांकि इस बार गंगा तट का एकांतवास में भी उन्हें वह शांति नहीं मिल पा रही थी और मन बार-बार वृंदावन की ओर ही भागने लगता था। महाराज जी को जल्द ही समझ आ गया कि अब उन्हें वृंदावन में ही शांति मिलेगी। महाराज जी वापस वृंदावन आ गये और बांके बिहारीजी के मंदिर में पूजा पाठ और ध्यान करने लगे। धीरे-धीरे वहाँ के पुजारी व संत उन्हें जानने पहचानने लगे, इसी बीच मंदिर में उन्हें एक महिला संत मिलीं जिन्होंने उन्हें श्री राधावल्लभ संप्रदाय के बारे में बताया, जिसके बाद महाराज जी उनके गुरु ‘श्री हित मोहित मराल जी गोस्वामी जी’ की शरण में चले गये जहाँ उन्हें ‘श्री हित गौरंगी शरण जी महाराज’ जी का सानिध्य मिला। गुरु से दीक्षा मिलने के बाद महाराज जी वृंदावन में ही रुक गए और तब से लेकर अब तक वे वहीं आश्रम में रहते हैं। आगे चलकर महाराज जी को नैष्ठिक ब्रह्मचर्य में दीक्षित करने के बाद उनका नाम आनंदस्वरूप ब्रह्मचारी रखा गया था और बाद में स्वामी आनंदाश्रम के नाम से भी सम्मानित किया गया। प्रेमानंद जी महाराज 10 साल तक अपने सद्गुरु देव की सेवा करने के बाद उन्हीं के मार्गदर्शन में श्री राधा रानी जी की भक्ति में लीन हो गये।

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दोनों किडनियाँ ख़राब फिर भी स्वस्थ-

‘श्री हित प्रेमानंद जी महाराज’ भगवान श्रीकृष्ण की सबसे प्रिय श्री राधा रानी जी के अनन्य भक्त हैं और दिन रात राधारानी के ही नाम का जप करते रहते हैं। प्रेमानंद जी महाराज बताते हैं कि उन पर राधारानी की विशेष कृपा है राधा रानी की कृपा से ही वह जीवित हैं क्योंकि महाराज की दोनों किडनी (Kidney) खराब हैं उसके बाद भी महाराज जी 8 -10 घंटे बैठकर लोगों को सद मार्ग की शिक्षा देते हैं पूरे दिन लोगों से मिलते हैं।
महाराज बहुत ही लंबे समय से इस बीमारी से जूझ रहे हैं, इसके बावजूद भी उन्हें देखकर किसी को यह नहीं लगा कि वह बीमार हैं। महाराज बताते हैं कि जब वे 35 वर्ष की अवस्था में थे तब उन्हें शरीर में दर्द का अनुभव हुआ था और डॉक्टर (Doctor) से जांच (cheak-up) कराने पर यह पता चला कि उनकी दोनों किडनी खराब होने की तरफ बढ़ रही है। महाराज जी का कहना है कि उन्हें उस समय यह भी मालूम नहीं था कि किडनी होती क्या है क्योंकि उन्होंने अपना जीवन संत महात्माओं तथा यमुना नदी के किनारे रहकर ही बिताया है डॉक्टर से पूछने पर पता चला कि यह वह अंग (Organ) होते हैं जिनके खराब होने से व्यक्ति की मृत्यु (Death) हो जाती है। इस हालत में भी पिछले 15 सालों से महाराज जी नियमित अपना कार्य करते चले आ रहे हैं। इलाज ना मिल पाने के कारण उन्होंने अपनी एक किडनी का नाम राधा और दूसरे का नाम कृष्ण रख लिया था। उनका मानना है कि यह सब राधारानी जी की कृपा है और उनकी मुस्कुराहट की वजह से ही वे जिंदा है और उनकी खराब किडनी कार्य कर रही है।

Premanand ji Maharaj

हालांकि महाराज जी के प्रति आस्था रखने वाले बहुत सारे लोगों ने महाराज जी को अपनी किडनी डोनेट करने की बात भी कही, लेकिन महाराज जी का कहना है कि जब तक राधा रानी चाहेंगी अपनी सेवा करवाएंगी। महाराज जी का मानना है कि दूसरे के शरीर को कष्ट पहुंचा कर अपने इस शरीर का पोषण करना सही नहीं है। यदि राधा रानी जी को जगत मंगल का कार्य करवाना होगा तो मेरी दोनों खराब किडनी भी कार्य करेंगी।

प्रेमानंद जी महाराज वर्तमान (Present) समय में वृंदावन में ही रह रहे हैं और अपना समय ध्यान, आध्यात्मिक गतिविधियों में बिता रहे हैं। औरों की तरह विराट कोहली भी अक्सर महाराज जी के बारे में लोगों से सुना करते थे और उनसे काफी प्रभावित थे, इसलिए वे उनके दर्शन करने वृंदावन धाम अपने परिवार के साथ गए थे। ‘प्रेमानंद जी वृंदावन वाले’ के नाम से भारत के वृंदावन में स्थित एक आध्यात्मिक संगठन है। इस संगठन की स्थापना प्रेमानंद जी महाराज द्वारा की गई थी जिसका मुख्य उद्देश्य शांति और प्रेम का संदेश फैलाना है। इस संगठन के तहत योग, ध्यान और अन्य आध्यात्मिक अभ्यासों पर निःशुल्क शिक्षा प्रदान करता है। प्रेमानंद महाराज जी का एक यूट्यूब चैनल भी है, जिस पर बाबा जी के प्रवचन चलते हैं। इस चैनल के लाखों सब्सक्राइबर्स (Subscriber) हैं।

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 Premanad maharaj ji – Youtube Channel

हमें आशा है कि आपको ‘श्री ह‍ित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज’ जी पर आधारित हमारा यह आर्टिकल ज़रूर पसंद आया होगा। आर्टिकल के बारे में अपनी राय कमेंट्स के माध्यम से अवश्य बतायें जिससे हम आगे भी ऐसे संतों पर आर्टिकल लाते रहें।

नमस्कार –

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