Story Of PACL India Limited Scam

वो कभी साइकिल (Cycle) पर दूध (Milk) बेचा करता था | फिर उसने लोगों को सपने (Dream) दिखाए और सपने भी ऐसे वैसे नहीं बल्कि आसमान चूमते | लोग उसके साथ जुड़ते गये | देखते ही देखते ये संख्या (Number) करोड़ों में जा पहुंची | और फिर वो हुआ जिसके बारे में लोगों ने कल्पना (Imagine) भी नहीं की होगी | पलक झपकते ही लोगों की जिन्दगी भर की गाढ़ी कमाई लुट गई | और उसे लूटा उसी शख्स ने जो कभी दूध बेचा करता था | ये कहानी फ़िल्मी लग सकती है लेकिन है बिलकुल हकीकत (Reality) | द ग्रेट (Great) इंडियन (Indian) स्कैम (Scam) सिरीज (Series) के तहत आज हम बात करेंगे पीएसीएल (PACL) स्कैम (Scam) की जिसे पर्ल्स घोटाला (Scam) भी कहा जाता है | तो इस घोटाले से जुडी हर बात जानने के लिए बने रहिये हमारे साथ इस पोस्ट आखिर तक |

PACL इंडिया लिमिटेड यानी Pearl Agrotech Corporation Limited की शुरुआत (Start) हुई थी 13 फरवरी 1996 को राजस्थान के जयपुर में | इससे पहले कि PACL कम्पनी (Company) की और बात हो इस कम्पनी के संस्थापक (Founder) के बारे में जान लेना ज्यादा जरूरी है | इस कम्पनी का मालिक है निर्मल सिंह भंगू | भंगू पंजाब के बरनाला जिले का रहने वाला है | खबरों की मानें तो जवानी के दिनों में वो साइकिल से दूध बेचा करता था | पढाई में भी वो पीछे नहीं था | उसने बकायदे पॉलिटिकल (Political) साइंस (Science) से पोस्ट (Post) ग्रेजुएट (Graduate) किया | और फिर नौकरी की तलाश उसे कोलकाता ले गई | ये सत्तर के दशक (Decade) की बात है | वहां उसने जानी मानी फाइनेंस (Finance) और इन्वेस्टमेंट (Investment) कम्पनी (Company) पियरलेस में कुछ साल तक काम किया | इसके बाद निर्मल सिंह हरियाणा की कम्पनी (Company) गोल्डन फारेस्ट (Forest) इंडिया में काम करने लगा | ये कम्पनी (Company) लोगों से पैसे इन्वेस्ट (Invest) करवाती थी और बदले में रकम दुगुना करने का झांसा देती थी | जल्दी ही भंगू ने ये कम्पनी भी छोड़ दी |
इसके बाद साल 1983 में उसने पर्ल्स गोल्डन फारेस्ट PGF नाम की कम्पनी बनाई | ये कम्पनी लोगों से सागौन के पेड़ों में इन्वेस्टमेंट (Investment) करके कुछ समय बाद मोटा मुनाफा (Profits) देने का दावा (Claim) करती थी | शुरुआत में लोगों को इससे अच्छा खासा रिटर्न (Return) मिला भी और साल 1996 तक कम्पनी ने इससे अच्छी खासी रकम भी जुटा ली | लेकिन इसके बाद इनकम टैक्स और कई अन्य जांचों के चलते इस कम्पनी को बंद करना पड़ा | इसके बाद फरवरी 1996 में निर्मल सिंह ने नींव डाली PACL की | इस बार भंगू ने लोगों की नब्ज पकड़ने की कोशिश की | PGF में जहाँ मोटे इन्वेस्टमेंट की जरूरत हुआ करती थी जिसके चलते केवल वही लोग कम्पनी की स्कीम में पैसा लगा पाते थे जो पैसे वाले हैं | आम लोग इस कम्पनी से कभी जुड़ ही नहीं सके | इस बार PACL के जरिये भंगू ने उन्ही आम लोगों की नस पकड़ने की कोशिश की |
उसने ऐसी स्कीमें लांच की जिसमें बहुत कम इन्वेस्टमेंट करना पड़ता था | दरअसल कम्पनी इसमें लोगों को जमीन देने की बात करती थी | और स्कीम पूरी हो जाने पर उसे साढ़े बारह परसेंट (percent) की ब्याज (interest) दर से रकम वापस करने या प्लाट देने के दावे किये जाते थे | इन्वेस्टमेंट (investment) के बदले इन्वेस्टर को पकड़ा दिया जाता था कागज का महज एक टुकड़ा | एक ऐसा टुकड़ा जो कानून के आगे कहीं नहीं ठहरता | लेकिन लोगों को तो सपने दिखाए जाते थे | और निवेशक (investor) इन सपनों में इस कदर डूब जाया करता था कि कुछ समझ ही नहीं आता था या यूँ कहें वो कुछ समझना ही नहीं चाहता था | खास बात तो ये है कि उस कागज के टुकड़े पर जमीन का कोई जिक्र (mention) तक नहीं होता था | न उस पर ये लिखा होता था कि ये प्लाट कहाँ खरीदा (brought) गया, न उसकी कोई रजिस्ट्री होती थी न ही दाखिल ख़ारिज | (rejected) लेकिन भंगू (bhangu) ने लोगों को सपनों के आगोश (lap) में ऐसा जकड (grip) रखा था कि उन्होंने कुछ मांगने की जरूरत ही नहीं समझी |
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PACL हर महीने इन्वेस्टर से एक निश्चित (fixed) रकम लेती थी और उसे अलग अलग जगह इन्वेस्ट करती थी | कम्पनी ने शुरू शुरू में अपने इन्वेस्टर्स को अच्छा खासा मुनाफा भी दिया जिसके चलते कम्पनी (company) पर लोगों का भरोसा भी बढ़ता गया | कम्पनी पिरामिड (pyramid) स्ट्रक्चर (structure) पर काम करती थी | इसमें जुड़े लोगों को अपने अंडर में जोड़न होता था | जिसके अंडर में जितने ज्यादा लोग जुड़े होते थे उसे उतना ही ज्यादा कमीशन (commission) मिलता था | लोगों को कम्पनी से जोड़ने के लिए कम्पनी तमाम तरकीबें (tricks) अपनाती रहती थी | सेमिनार (seminar) उसमें से एक था | अक्सर बड़े बड़े होटलों में इनके सेमिनार आयोजित (held) किये जाते थे | इसमें मौजूद लोगों को बड़े बड़े सब्जबाग(vegetable garden) दिखाए जाते थे | लोगों को बताया जाता कि कम्पनी 1983 से काम कर रही है जबकि हकीकत में 83 में PACL नहीं बल्कि (rather) PGF लिमिटेड बनी थी | वहां समझाया जाता था कि इस कम्पनी को ज्वाइन (join) करके कोई कैसे महंगी गाड़ियों (trains) और बंगलों(bungalows) का मालिक बन गया |
लोगों को इस कम्पनी के बारे में पता चला तो हजारों कीद तादा (tada) में लोगों ने इसमें इन्वेस्ट करना शुरू कर दिया | और देखते ही देखते ये संख्या (number) एक करोड़ के पार निकल गई | PACL ने निवेश किये गये इन्ही पैसों से देश और विदेश के तमाम (all) शहरों में प्रॉपर्टी (property) खरीदी |
नब्बे (ninety) के दशक के आखिरी (the last) दौर में देश में कई ऐसी फर्जी स्कीम (scheme) चल रही थीं | सेबी के पास कई शिकायतें(complaints) भी पहुँच रही थीं | लेकिन तब तक सेबी के पास इन स्कीमों को नियंत्रित (controlled) करने के लिए कोई नियम कानून नहीं था | ऐसे में सेबी साल 1999 में CIS रेगुलेशन (regulation)लेकर आया | CIS यानी Collective Investment Scheme | इस स्कीम में कई निवेशकों से पैसा लिया जाता है और बदले में उन्हें रकम ब्याज (Intrest) सहित रिटर्न करने का दावा किया जाता है | CIS रेगुलेशन में सेबी ने ऐसी कम्पनियों के लिए नियम तय कर दिए | अब वो ही कम्पनियां इस स्कीम के तहत काम कर सकती थीं जो CIS रेगुलेशन को मानने को तैयार हों बाकी पर बंदी की तलवार लटकने लगी |
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सेबी को लगा कि PGF और PACL दोनों ही इन नियमों को कर अपना काम कर रही हैं ऐसे में उसने दोनों ही कम्पनियों को अपना काम बंद करने और इन्वेस्टर्स (Investors) का पैसा रिटर्न करने को कहा | लेकिन PGF और PACL आसानी से हथियार डालने वालों में नहीं थी | दोनों ही कम्पनियों ने सेबी के इस आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट में अर्जी (Appliction) दाखिल कर दी | PGF लिमिटेड ने पंजाब हाई कोर्ट में अर्जी (Application) लगाई वहीँ PACL ने राजस्थान हाई (High) कोर्ट में | ये दोनों ही कम्पनियां भले ही एक जैसे धंधे में लिप्त थीं लेकिन दोनों ही मामलो में फैसले अलग अलग थे | जहाँ पंजाब हाई कोर्ट ने PGF लिमिटेड के ऑपरेशन (Operation) को CIS माना वहीं राजस्थान हाई कोर्ट ने PACL के ऑपरेशन को CIS मानने से इंकार कर दिया | जिसके चलते PACL के हौसले और बुलंद हो गये |

इसके बाद सेबी तो चुपचाप बैठ गई लेकिन कम्पनी ने और तेजी और आक्रामकता (Aggression) के साथ अपना काम करना शुरू कर दिया | कम्पनी (Company) तमाम क्षेत्रों (Areas) में अपना विस्तार (Expansion) करती रही | साल 2009 में ही कम्पनी ने पी 7 नाम का एक न्यूज़ (News) चैनल भी खोल लिया था | इस चैनल के जरिये कम्पनी अपने प्रोडक्ट्स (Products) का प्रचार (Promotion) किया करती थी | यही नहीं उसने चार बार कबड्डी वर्ल्ड (World) कप भी स्पोंसर (Sponsser) किया | पर्ल infrastucture प्रोजेक्ट्स ने आईपीएल के एक एडिशन (Addition) में किंग्स इलेवन पंजाब को भी स्पोंसर किया था | उसने दिग्गज आस्ट्रेलियन बॉलर (Bowler) ब्रेट ली को अपना ब्रांड (Brand) अम्बेसडर (Ambassador) भी बना रखा था | इन्हीं सब वजहों के चलते निवेशकों (Investors) का भरोसा भी अब बढ़ चुका था | आखिर कम्पनी ने हाई कोर्ट में केस जीता था वो भी सेबी जैसी संस्था (Institution) के खिलाफ | अगले दस सालों में कम्पनी ने लाखों लोगों को अपने नेटवर्क (Newtork) का हिस्सा बना लिया | कम्पनी चुपचाप देश (Country) के तमाम शहरों में अपने पाँव पसारती (Spreading) जा रही थी | लेकिन ये तूफ़ान के आने के पहले का सन्नाटा (Silence) था | एक ऐसा तूफ़ान वाला था जो न सिर्फ PACL कम्पनी को बल्कि इसके मालिक निर्मल सिंह भंगू और कम्पनी के करोड़ों निवेशकों की दुनिया को झकझोर देने वाला था |
साल 2013 में मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा | इस बार हालात एकदम अलहदा (Sepratly) थे | सेबी पूरी तैयारी के मैदान में थी वहीं सुप्रीम कोर्ट भी किसी रियायत के मूड (Mood) में नहीं था | उसने हाई कोर्ट और सेबी की पुरानी कार्यवाई (Action) और रिपोर्ट (Reports) को किनारे कर दिया | 2014 में कोर्ट ने मामले की जाँच के लिए सेबी और सीबीआई दोनों की नियुक्ति (Appoint) कर दी | सुप्रीम कोर्ट ने PACL के बिजनेस को कलेक्टिव इन्वेस्टमेंट (Investment) स्कीम माना और कम्पनी पर कार्यवाई के आदेश सेबी और सीबीआई के दिए |
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इधर इन्वेस्टर भी कुछ जागरूक (Vigiliant) हो गये थे | उन्होंने कम्पनी से कहा कि वो बताये कि उनके नाम पर खरीदे गई जमीन कहाँ है | पहले तो कम्पनी न नुकुर करती रही लेकिन जब दबाव बढ़ने लगा तो उसने लोगों को राजस्थान के बाड़मेर में वो जमीन दिखाई जो पूरी तरह बंजर थी | ये वो जमीन थी जिस पर कम्पनी ने कोई डेवलपमेंट (Development) नहीं किया था | इस जमीन के भाव बढ़ने की कोई उम्मीद भी दूर दूर तक नहीं थी | हाँ कम्पनी ने निवेश किये गये पैसों से दुनिया के तमाम देशों में जमीन जरूर खरीद ली | धीमी सुनवाई प्रक्रिया का भी कम्पनी ने खूब फायदा उठाया और अपने साथ साढ़े पांच करोड़ निवेशक और इनसे लगभग 60 हजार करोड़ रूपये जुटा लिए थे | कम्पनी ने अपना शिकार खास तौर पर नार्थ इंडिया के लोगों क बनाया |
अगस्त 2014 PACL के निवेशकों की लिए बुरी खबर लेकर आया | सेबी ने कम्पनी को आदेश दिया कि PACL तत्काल (Immediatly) प्रभाव से अपना कारोबार (Business) बंद करे और अपने निवेशकों को उसका पूरा पैसा लौटाए | लेकिन कम्पनी ने ऐसा नहीं किया | इसके बाद ED यानी प्रवर्तन (Enforement) निदेशालय ने कम्पनी पर कड़ी कार्यवाई करते हुए pacl, निर्मल सिंह भंगू और कम्पनी से जुड़े कई और लोगों के खिलाफ चार्ज (Charge) शीट (Sheet) फ़ाइल की | साथ ही कम्पनी की सम्पत्तियों (Properties) को अटैच (Attach) करना भी शुरू कर दिया | लेकिन कम्पनी में लोगों के निवेश की गई रकम की आगे अटैच की गई रकम बहुत कम पड़ गई | जनवरी 2016 में कम्पनी के मालिक भंगू को अरेस्ट कर लिया |

कम्पनी की हालत देखकर सबसे ज्यादा परेशान वो लोग हुए जिन्होंने मोटे मुनाफे (Profit) के चक्कर में अपनी खून पसीने की गाढ़ी कमाई इस फर्जी कम्पनी के हाथों में रख दी थी | वो बेचारे खून के आंसू रोने को मजबूर थे | तिनका तिनका जोडकर उन्होंने अपना आशियाना बनाने की सोची थी यहाँ तो पैरों से जमीन भी खिसकी चुकी थी | हजारों निवेशकों की भीड़ pacl के आफिसों के बाहर जमा हो गई | जमकर नारेबाजी हुई हंगामा हुआ | लेकिन बाहर से ताला पड़े दरवाजों के बाहर बवाल काटने से भी कभी कुछ हुआ है भला | हालाँकि सेबी ने पर्ल्स के निवेशकों को रिफंड दिलाने के लिए प्रयास भी किये | सेबी ने निवेशकों को पैसा लौटाने के लिए sebipaclrefund.co.in नाम की एक वेबसाइट भी लांच की | जस्टिस आर एम् लोढ़ा कमेटी (Commuty) निवेशकों को पैसा लौटाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश की खुद निगरानी कर रही है | सेबी ने 8 मई 2023 को एक रिपोर्ट में दावा किया कि अब तक 19 लाख से भी ज्यादा निवेशकों के 900 करोड़ से भी ज्यादा की रकम लौटाई जा चुकी है | लेकिन जब हम साढ़े पांच करोड़ निवेशक और साठ हजार करोड़ के निवेश पर नजर डालते हैं तो अब तक लौटाई गई रकम बहुत मामूली रकम मालूम पड़ती है |
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लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या इस घोटाले के लिए सिर्फ निर्मल सिंह भंगू और pacl कम्पनी ही जिम्मेदार हैं | क्या वो लोग जिम्मेदार नहीं जिन्होंने बिना सोचे समझे अपने जीवन भर की कमाई एक फर्जी कम्पनी पर लगा दी | जब इस कम्पनी पर कोर्ट (Court) में मुकदमा चला इसके बावजूद लोग क्या सोचकर कम्पनी के साथ जुड़ते रहे | सही बात तो ये है कि हम जैसे लोग ही इस तरह की कम्पनियों को बढ़ावा देते हैं | इसमें कोई दोराय नहीं कि निवेशकों को उनके डूबी रकम जल्द से जल्द वापस मिलनी ही चाहिए लेकिन लोगों को भी जागरूक होने की जरूरत है ताकि कोई और निर्मल सिंह भंगू जैसा आदमी या pacl जैसी कम्पनी लोगों के खून पसीने की कमाई पर डाका न डाल पाए |
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