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Commonwealth घोटाला कैसे अंजाम दिया गया था ?

कॉमनवेल्थ (Commonwealth) गेम्स यानी राष्ट्रमंडल खेल की मेजबानी करना किसी भी देश के लिए गौरव की बात हो सकती है | ये ने केवल उस देश (Country) के लिए बल्कि उसके हर एक नागरिक (Citizen) के लिए सीना चौड़ा करने वाली उपलब्धि (Achievement) है | लेकिन आज हम जिस खेल की बात करने जा रहे हैं उससे किसी देश का गौरव तो नहीं बढ़ा हाँ पूरी दुनिया (World) में भद्द जरूर पिटी | और देश के हर एक नागरिक का सिर शर्म से झुक गया | वो देश कोई और नहीं बल्कि अपना भारत था | कॉमनवेल्थ गेम्स 2010 हमारे देश के खेलों के इतिहास (History) में दर्ज वो काला धब्बा है जिसे कभी मिटाया नहीं जा सकता | उन खेलों में किस तरह देश के हर नागरिक के भरोसे का चीर हरण किया गया ये उसका प्रतीक (Sign) है | इन खेलों की तैयारियों से लेकर खेल होने तक जिस तरह बेख़ौफ़, बेधड़क नियमों की धज्जियाँ उड़ाई गईं इसकी मिसाल पूरी दुनिया में मिलना नामुमकिन (Impossible) है | आज के पोस्ट में हम पूरी डिटेल में बात करेंगे दुनिया के सबसे बड़े घोटालों (Scams) में से एक कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले (Scam) और उसके जिम्मेदारों की | तो बने रहिये इस (Post) में हमारे साथ आखिर तक |

आगे बढ़ने से पहले जरूरी है कि हम राष्ट्रमंडल को समझ लें | राष्ट्रमंडल ऐसे देशों का संगठन है जो कभी ब्रिटिश साम्राज्य (Empire) के अधीन (Under) थे | इसी तरह राष्ट्रमंडल खेलों में वो ही देश हिस्सा लेते हैं जो कभी ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन हुआ करते थे | इन खेलों का आयोजन (Events) पहली बार साल 1930 में हुआ था और तब से ये हर चार साल में आयोजित होता आ रहा है हाँ शुरुआत में इसे ब्रिटिश एम्पायर गेम्स के नाम से जाना जाता था जिसे फ़िलहाल राष्ट्र मंडल खेल या कॉमनवेल्थ गेम्स कहा जाता है | हालाँकि भारत ने चार बार इन गेम्स (Games) में हिस्सा नहीं लिया था जिसमें पहले यानी 1930 गेम्स भी शामिल हैं |

साल 2003 में कॉमनवेल्थ गेम्स फेडरेशन (Federation) प्रेसिडेंट (President) माइक फेनेल ने घोषणा (Announce) की कि साल 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्सभारत की राजधानी (Capital) नई दिल्ली में आयोजित किये जायेंगे | ये भारत के लिए गर्व (Proud) का विषय (Subject) था | एक तो कॉमनवेल्थ गेम्स के इतिहास (History) में भारत को इसकी मेजबानी (Hosting) करने का गौरव पहली बार मिला था | साथ ही 2010 में भारत कॉमनवेल्थ गेम्स की मेजबानी करने वाला मलेशिया के बाद दूसरा एशियाई देश और केवल तीसरा विकासशील (Developing) देश बनने वाला था | भारत के पास खेलों की तैयारियों के लिए सात साल का समय था | लेकिन तैयारियां बहुत करनी थीं क्योंकि भारत के पास इस तरह के बड़े खेलों के आयोजन के लिए न ही तो पर्याप्त संसाधन (Resources) उपलब्ध थे न ही अनुभव | भारत ने कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन की तैयारियों के लिए पूरी जान झोंक दी |

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सरकार द्वारा कॉमनवेल्थ गेम्स कमेटी (Community) का गठन (Built) किया गया | जिसमें सुरेश कलमाड़ी चेयरमैन, रनधीर सिंह वाईस चेयरमैन, ललित भनोट सेक्रेट्री जनरल और अनिल कुमार खन्ना ट्रेजरर बनाये गये | बस इसी के साथ आधारशिला (Cornerstone) रखी गई खेलों के इतिहास के सबसे बड़े घोटाले की | इधर खेलों की तैयारियां चलती रहीं उधर तैयारियों की आड़ में दूसरे खेल चलते रहे | खेल भ्रष्टाचार (Corruption) का, खेल कमीशनखोरी का खेल देश की प्रतिष्ठा (Prestige) दांव पर लगाने का, खेल देश के माथे पर कलंक लगाने का | क्योंकि ये देश की इज्जत का सवाल था और मौका था दुनिया की सबसे बड़ी खेल प्रतियोगिता (Competition) में से एक कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन का इसलिए सरकार ने भी खजाने का मुँह खोल दिया | स्टेडियम तैयार करने के लिए एक हजार करोड़ रूपये का बजट (Budget) जारी किया गया | आयोजन के लिए पांच एकदम नये स्टेडियम (Stadium) तैयार किये गये थे | वहीं सात को रेनोवेट (Renovote) किया गया था | इनमें से सबसे बड़ा था जवाहर लाल स्टेडियम जिसकी कैपेसिटी (Capacity) थी 60 हजार दर्शकों (Audience) की और इसी में ओपनिंग और क्लोजिंग (Closing) सेरेमनी (Ceremony) भी होनी थी | इन स्टेडियम के लिए भले ही हजार करोड़ का बजट रखा गया था लेकिन बढ़ते बढ़ते ये लगभग ढाई हजार करोड़ तक जा पहुंचा था |

इन सात सालों के दौरान केवल स्टेडियम ही नहीं बने बल्कि राजधानी के इंफ्रास्ट्रक्चर (Infrastructure) को सुधारने पर भी पैसा पानी की तरह बहाया गया | इस दौरान मेट्रो (Metro) का काम हुआ, ब्रिज बने, सड़कें बनीं, डीटीसी (DTC) बसें खरीदी गईं | खेलों को लेकर खूब माहौल बनाया गया | खेल 3 अक्टूबर 2010 से खेल शुरू होने थे और इन इसमें महज कुछ ही दिन का समय बचा था | पूरी दुनिया साँसे थामे दिल्ली की ओर निहार रही थी | दुनिया को इंतजार था ये देखने का का ‘अतिथि देवो भवः’ में विश्वास (Trust) करने वाला भारत आखिर दुनिया भर के खिलाडियों का स्वागत कैसे करेंगे | और तभी खेलों से कुछ ही दिन पहले कुछ ऐसा हुआ जिसे देखकर हंगामा मच गया | हर एक भारतवासी की साँसे अटक गईं |

असल में खेल शुरू होने से तीन हफ्ते पहले बीबीसी (BBC) ने खेल गाँव की कुछ तस्वीरें छाप दीं | जिसने भारत की तैयारियों की पोल खोल कर दी | बाथरूम में गंदगी का अम्बार लगा था तो वाशबेसिन (Wash Basin) पान की पीकों से रंगा पड़ा था | कमरे में मौजूद बेड की तकियों पर कुत्तों ने केक बना डाला था | वहीं खिलाडियों के क्वार्टर (Quarter) अभी तक अधूरे पड़े थे | तमाम जगह पानी भरा हुआ था | ये फोटोज मीडिया में आते ही भूचाल आ गया | ग्लोबल मीडिया के साथ ही भारतीय मीडिया ने दिल्ली सरकार के साथ ही आयोजन समिति को आड़े हाथों ले लिया और पूरी दुनिया में भारत की छीछालेदर होने लगी | लेकिन आयोजन समिति के सदस्य (Member) इससे पूरी तरह बेपरवाह रहे | समिति के पदाधिकारियों में से एक ललित भनोट खेल गाँव में गंदगी पर सफाई देते हुए बोले कि ‘ये तो बस संस्कृति का अंतर है | भारत और पश्चिम (West) में सफाई का मतलब अलग लगा है |’ उनकी ये सफाई लोगों की समझ में तो नहीं आई हाँ जग हंसाई जरूर हो गई | यहाँ तक कि दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को भी कहना पड़ा कि अब बारात दरवाजे पर खड़ी है ऐसे में बेहतर है कि अगवानी पर ध्यान दिया जाये |

लेकिन इन तस्वीरों ने ये तो साफ़ कर दिया कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ (Mess) जरूर है | असल में ये कॉमनवेल्थ गेम्स रिश्वत (Bribe) खोरी और कमीशन (Commission) खोरी से बना ऐसा खोखला जहाज था जिसमें समुद्र की तेज लहरों के चलते कभी भी पानी भर सकता था और वो समुद्र की अथाह गहराइयों में टूट सकता था | 14 अक्टूबर तक खेल चले और इन खेलों में भारत ने अपना बेस्ट परफॉरमेंस देते हुए पहली बार पदकों का सैकड़ा पार करते हुए पूरे 101 मेडल्स जीते | लेकिन अब सामने आने वाला था दुनिया का वो घोटाला (Scam) जिसने भारत का नाम पूरी दुनिया में डुबो दिया | असल में इस महाघोटाले (Mega Scandal) की नींव तभी रख दी गई थी जब औपचारिक (Formal) रूप से इस गेम की शुरुआत हुई थी |

29 अक्टूबर 2009 को ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ ने भारत की तत्कालीन राष्ट्रपति (President) प्रतिभा पाटिल को बेटन सौंपा | इस बेटन को सभी राष्ट्रमंडल देशों से गुजरते हुए सबसे आखिर में दिल्ली पहुंचना था | इसे ही बेटन रिले (Riley) कहा जाता है | इस रिले की वीडियोग्राफी (Videography) का जिम्मा सौंपा गया AM Films नाम की फर्म को | इसके लिए फर्म (Company) को बकायदे चार करोड़ की रकम भी अदा की गई | लेकिन हैरानी तो तब हुई जब खुलासा हुआ कि इस फर्म के साथ किसी तरह का कोई कॉन्ट्रैक्ट (Contract) हुआ ही नहीं | सबकी नजरें घूमीं आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी की तरफ | लेकिन कलमाड़ी ने भी मंझे हुए खिलाड़ी की तरह मैदान संभाल लिया | उन्होंने एक ई मेल का हवाला देते हुआ कहा कि उन्हें इस फर्म के लिए लंदन स्थित इंडियन हाई कमीशन से सिफारिश (Recommendation) मिली थी | लेकिन कलमाड़ी तब बुरे फँसे जब इंडियन हाई कमीशन ने ऐसी किसी भी सिफारिश से साफ़ इंकार कर दिया | इस महाघोटाले की बू यहीं से आनी शुरू हो गई थी |

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गेम्स के लिए पहले 1600 करोड़ का बजट (Budget) रखा गया था | लेकिन बढ़ते बढ़ते ये 11 हजार करोड़ तक जा पहुंचा था | इसके बावजूद समिति ने 900 करोड़ रूपये और मांगे थे | इन खेलों में जमकर खुलेआम बेधडक, बेख़ौफ़ धांधली हुई | पैसे को पानी की तरह बहाया गया | खूब बन्दर बाँट हुई और जमकर पैसा लूटा गया | तमाम फर्म्स (Farms) को दिए गये कॉन्ट्रैक्ट्स (Contracts) में नियमों की जमकर धज्जियां (Scraps) उड़ाई गईं | इन खेलों के सफल आयोजन के लिए जिम्मेदारों ने ही इसे सोने का अंडा देने वाली चिड़िया समझ लिया | इस घोटाले को ऐसे समझिये कि टीआरएस (TRS) सिस्टम यानी रेस के दौरान टाइम दिखाने वाला डिस्प्ले (Display) बोर्ड जिसकी कीमत उस वक्त लगभग 40 करोड़ थी उसे तीन गुने से भी ज्यादा लगभग 140 करोड़ में खरीदा गया | वहीं टॉयलेट (Toilet) पेपर रोल जो 100-200 रूपये में आता था उसे तीन से चार हजार रूपये में खरीदा गया | 300 रूपये के सोप डिस्पेंसर को हजारों में और लाखों की प्रैक्टिस (Practice) मशीन करोड़ों में खरीदी गई | यानी खेलों के दौरान सैकड़ों का माल हजारों में, हजारों का माल लाखों में और लाखों का माल करोड़ों में खरीदा गया | ये तो बात हुई खेलों के दौरान इस्तेमाल होने वाली चीजों की | बाकी तमाम स्टेडियम और बाकी कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट्स (Projects) में क्या गुल खिलाये गये होंगे सोचना भी मुश्किल है |

दिल्ली सरकार ने भी खेलों के लिए एक डीटीसी (DTC) बस को 60 लाख में खरीदा जबकि उसकी कीमत थी महज 40 लाख रूपये | वहीं मेट्रो एक्सटेंशन (Extension) में मेट्रो के एक पिलर पर 10 लाख खर्चे जबकि उसकी असल लागत थी महज 7 लाख रूपये | वहीं ओपनिंग सेरेमनी का मुख्य आकर्षण (Attraction) बताये जा रहे बलून के लिए 70 करोड़ की भारी भरकम रकम चुकाई गई जबकि उसकी असल कीमत थी महज 40 करोड़ रूपये | हैरानी की बात तो ये है कि टेंडर प्रक्रिया और उससे जुड़े नियमों को कभी फॉलो (Follow) ही नहीं किया गया | टेंडर हमेशा उसे मिला जिसने सबसे महंगे दामों में सेवाएँ दीं बाकी उससे बहुत कम में वही सेवाएँ देने वाली कम्पनियों को सिरे से नकार दिया गया | ये घोटाला नहीं बल्कि महाघोटाला (Mega scam) था | क्योंकि इस घोटाले की रकम 70000 करोड़ तक पहुँच गई थी |

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वहीं इन खेलों के दौरान एक बार अजीब हालात पैदा हो गये थे | हुआ यूँ कि खिलाडियों और सपोर्ट (Support) स्टाफ के रुकने के लिए बनाये गये खेल गाँव में अचानक सारी नालियां चोक होने लगीं | लोग परेशान हो उठे | पहले से ही तमाम आरोपों से घिरे आयोजन से जुड़े जिम्मेदारों के माथे पर पसीने की बूँदें छलकने लगीं | जब सफाई कर्मी चोक नालियों की सफाई के लिए उतरे तो पता चला कि नालियां यूज़ किये हुए कंडोम (Condom) से अटी पड़ी है | पूरे खेल गाँव की नालियों से इस्तेमाल (Use) किये गये लगभग 4000 कंडोम्स बरामद (Found) हुए थे | मीडिया में जहाँ इसे शर्मनाक बताया गया वहीं कॉमनवेल्थ गेम्स फेडरेशन के अध्यक्ष (Chairman) माइक फेनेल ने इसे अच्छी बात बताते हुए कहा कि इसका मतलब है कि खिलाड़ी सेफ सेक्स को प्रमोट (Promote) कर रहे हैं | असल में खेलों की शुरुआत में ही सेफ सेक्स के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए कंडोम्स बांटे जाते हैं | लेकिन खेल और सेक्स के बीच का रिश्ता समझना भी बड़ा कठिन काम है |

खेल समाप्त होने के बाद ही कलमाड़ी सहित आयोजन समिति से जुड़े अन्य लोगों पर गिरफ्तारी (Arrest) की तलवार लटकने लगी थी | मामले की जाँच सीबीआई (CBI) को सौंप दी गईं थी | 25 अक्टूबर 2011 को सुबह सुबह ही कलमाड़ी को सीबीआई के नये नवेले ऑफिस (Office) में पूछताछ के लिए बुलवा लिया गया और शाम होते होते सीबीआई उन्हें अरेस्ट कर चुकी थी | हालाँकि दस महीने बाद ही उन्हें जमानत (Bail) भी मिल गई | लेकिन साल 2016 में एक बार फिर अजीब स्थिति बन गई जब भारतीय ओलम्पिक (Olympics) संघ ने उन्हें आजीवन (Lifelong) अध्यक्ष चुन लिया | इसके बाद मीडिया और जनता में हुई छीछालेदर के बाद खुद कलमाड़ी ने ये पड़ लेने से मना कर दिया |

हालाँकि इस घोटाले के 13 साल गुजर जाने के बाद भी जांच किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पाई है | दुनिया भर में भारत का सिर शर्म से झुका देने वाले जिम्मेदार आज भी बेपरवाह (Nonchalant) घूम रहे हैं | जनता का हजारों करोड़ रुपया पानी में डुबो देने वाले जिम्मेदार आज भी बेफिक्री (Carefree) की जिन्दगी जी रहे हैं | ये घोटाला किसी एक के साथ नहीं बल्कि पूरे देश (Country) के साथ किया गया था | लेकिन फिर भी क्यों जांच अंजाम तक नहीं पहुँच पा रही | ऐसा लगता है कि हमें इंतजार है कुछ नये और इससे भी बड़े घोटालों का ताकि हम पुराने को भूल नये की चर्चा में जुट जाएँ |


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