The Kashmir Files Review: द कश्मीर फाइल्स के असली किरदार।
कश्मीर…… धरती का स्वर्ग। कश्मीर एक ऐसा नाम, जिसे सुनकर हमारे जहन में इस धरती की कुदरती खूबसूरती का नजारा अपने आप ही उभरने लगता है। असल में कश्मीर शब्द अपने आप में कई मायने समेटे हुए है। कश्मीर वो है, जिसकी वादिया झीलों और बर्फ की चादरों से ढकी है।
लेकिन कुदरत की बनाई इस कारीगरी के अंदर ऐसे बहुत से कड़वे सच हैं, जो आज भी एक राज़ बनकर इस घाटी में दफन है। प्राचीन समय से ही बहुत से राजा महाराजाओ ने कुदरत की इस खूबसूरती को हासिल करना चाहा और न जाने कितने ही जंग इस घाटी को पाने के लिये हो गए। और फिर आया वो काला दिन जिसने वहां रह रहे कश्मीरी हिंदुओं की जिंदगी एकदम से बदल कर रख दी।
आतंकी संगठन: हिज्ब-उल-मुजाहिदीन
4 जनवरी 1990 को कश्मीर के उर्दू अखबारों के जरिये आतंकी संगठन हिज्ब-उल-मुजाहिदीन ने एक ऐलान किया, जिसमे साफ तौर पर लिखा था कि कश्मीर घाटी में जितने भी हिन्दू या कश्मीरी पण्डित रह रहे हैं वो तुरंत ही घाटी को छोड़कर चले जाएं, या फिर धर्म बदल लें नहीं तो मरने के लिए तैयार रहे।
मस्जिदों के लाउडस्पीकर से आवाजें आने लगी कि काफिरो तुम सबको यहां से जाना होगा। कश्मीरी हिन्दुओ के घर के बाहर पोस्टर लगने लगे- जिसमे साफ साफ लिखा था INDIAN DOGS GET OUT और फिर शुरू हुआ आतंक का वो नँगा नाच जिसने मानव सभ्यता को तार-तार करके रख दिया।
कश्मीरी पंडितों को सरे आम काटा जाने लगा, हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियों को तोड़ा जाने लगा और उनकी तस्वीरें जलाई जाने लगीं। औरतों के साथ खुले आम बलात्कार होने लगे और बच्चे बूढे सभी को मौत के अघोष में सुला दिया गया।
असल मे इस साजिश की नींव 90 के दशक से और पहले ही रखी जा चुकी थी, इतिहासकारों और तत्कालीन पत्रकारों के रिपोर्ट के मुताबिक 1980 के दश्क में घाटी पर JKLF यानी कि जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट और पाकिस्तान के समर्थक वाले कई इस्लामवादी समूह मजबूत होने लगे थे और इन समूह ने यहां की मुस्लिम जनता के बीच भारत के लिए नफरत फैलाने का काम तेज कर दिया था, जिसका असर यहां के कश्मीरी पंडितों पर पड़ने लगा।
साल 1988 के आस पास JKLF ने कश्मीर से हिंदुओं को भगाने के लिए अलगाववादी विद्रोह करना शुरू कर दिया, जिसका विरोध टीका लाल तपलू नाम के एक कश्मीरी हिन्दू ने किया, लेकिन 14 सितम्बर 1989 में उसे मौत के घाट उतार दिया गया।
इसके कुछ समय बाद ही जज नीलकंठ गंजू की हत्या कर दी गई क्योंकि उन्हीने जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के नेता मकबूल भट्ट को मौत की सजा सुनाई थी।
जुलाई से नवंबर 1989 के बीच लगभग 70 अपराधियों को रिहा कर दिया गया और फिर घाटी में “हमें कश्मीर चाहिए, पंडितों के बगैर, पर उनकी औरतों के साथ जैसे बेहूदा नारे लगने लगे।“
माहौल इस कदर बिगड़ा की धीरे धीरे कश्मीरी हिंदुओं में असुरक्षा और डर का माहौल पैर पसारने लगा।ये कहना गलत न होगा कि उस समय ये सारे नरसंहार की जड़ें पाकिस्तान से ही निकलीं थी क्योकि उस समय पाकिस्तान की तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने कश्मीर में हो रहे इस नरसंहार को खुलेआम शह दिया था।
गौरतलब है कि कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री फ़ारूक़ अब्दुल्ला थे और केंद्र में बी पी सिंह की सरकार थी, और वो सभी अपने आप को अपाहिज बनाकर गूँगे, बहरों की तरह इस तांडव का तमाशा देखते रहे और इस तरह कश्मीर फाइल्स को बंद करके किसी कोने में दबा दिया गया।
फिल्म: द कश्मीर फाइल्स
32 साल बाद उन कश्मीरी हिंदुओं के बलिदान की दास्तां को पर्दे पर लेकर आये मशहूर निर्माता-निर्देशक विवेक अग्निहोत्री। फिल्म का नाम द कश्मीर फाइल्स, 11 मार्च 2022 को काफी जद्दोजहद के बाद आखिरकार बड़े पर्दे पर रिलीज हो ही गयी।
जिसमे मुख्य भूमिका में अनुपम खेर, दर्शन कुमार, मिथुन चक्रवर्ती, पल्लवी जोशी, भाषा सुंबली, चिन्मय मांडलेकर, पुनीत इस्सर, प्रकाश बेलावड़ी, और अतुल श्रीवास्तव शामिल हैं, जिन्होंने अपने बेहतरीन अभिनय से इस फ़िल्म को पूरी तरह से जीवन्त कर दिया। मानो ये कोई फ़िल्म में एक्टिंग या ड्रामा नही कर रहे हों बल्कि अपने किरदारों को बखूबी जी रहे हों।
मशहूर निर्माता-निर्देशक विवेक अग्निहोत्री
फ़िल्म के बनाने के लिए डायरेक्टर विवेक और उनकी टीम ने इस पर काफी समय तक रिसर्च किया। निर्माता-निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने अपने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में फ़िल्म के बनने को लेकर अपने अनुभव साझा करते हुए बताते हैं कि द कश्मीर फाइल्स को बनाने में लगभग 4 साल लगे। 2018 से इस फ़िल्म पर काम करना शुरू किया गया, लगभग 4 साल के कड़े रिसर्च और फिल्म को शूट करने के बाद इस फ़िल्म को पूरा किया गया।
डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री का कहना है कि इस फ़िल्म को बनाने मे केवल 10% शूटिंग को दूंगा क्योंकि 90% रिसर्च के बदौलत ही फ़िल्म को इस मुकाम तक पहुचाया गया है।
अब अगर बात करें फ़िल्म द कश्मीर फाइल्स की पटकथा के बारे में तो फ़िल्म में दिखाई गई घटनाएं वास्तविक चित्रो को दिखाती है, क्योंकि कश्मीर में हुए इस नरसंहार को एक फ़िल्म में पिरोकर दिखाना था इसलिए पात्रों को काल्पनिक रखकर उसे स्क्रिप्ट में बदलकर कहानी की शुरुआत की गई है।
कहानी main character कृष्णा पण्डित के इर्द गिर्द घूमती दिखाई देती है, जिसका किरदार जाने माने अभिनेता दर्शन कुमार ने निभाया है। कृष्णा जब छोटा रहता है तो उसी समय उसके मां बाप और भाई की हत्या कर दी जाती है, और केवल उसके दादा ही जिंदा रहते हैं।
स्क्रिप्ट को थोड़ा सा रोचक बनाने के लिए पहले कृष्णा के बचपन में हुई घटनाओ को दिखाया जाता है और फिर बीच बीच मे उसकी प्रेजेंट लाइफ स्टोरी को भी दिखाया गया है।
तो फ़िल्म की शुरुवात कुछ इस तरह से की गई है कि वादियों के बीच कुछ कश्मीरी बच्चे क्रिकेट खेलते हुए दिखते है, जिनमे एक कश्मीरी हिन्दू लड़का भी होता है, जिसका नाम शिवा पंडित है, उसके साथ उसका दोस्त अब्दुल है, शिवा की उम्र लगभग 10 साल है और जो कृष्णा का बड़ा भाई है। इस किरदार को बेहतरीन चाइल्ड आर्टिस्ट पृथ्वीराज सरनाईक ने निभाया है।
उसी वादी में एक रेडियो रखा होता है जिसमे मैच commentry सुनाई देती है जो इंडिया और पाकिस्तान के बीच हो रहा होता है।
शिवा अचानक से सचिन सचिन चिल्लाने लगता है और तभी वहां के बाशिंदे उस पर भड़क जाते हैं और मारने के लिए दौड़ पड़ते हैं। अब्दुल, शिवा को लेकर घर की तरफ भागता है। असल मे अब्दुल शिवा का पड़ोसी रहता है।
ध्यान देने की बात ये भी है की कश्मीरी हिन्दुओ को लेकर इतनी ज्यादा नफरत वहां के लोगो मे भर चुकी थी कि 10 से 16 साल के बच्चे भी हाथ मे रायफल लेकर सड़को पर निकला करते थे… इस सीन को भी फ़िल्म में जगह दी गयी है।
फ़िल्म के दूसरे सीन में करण पण्डित के किरदार में अमन इक़बाल ने रोल किया है।
जिसकी पत्नी का नाम शारदा पण्डित, और इस भूमिका को भाषा सुम्बली ने दिल से निभाया है। करण पंडित के घर अचानक से आतंकवादियों का हमला होता है, जिनके सरदार का नाम फ़ारूक़ अहमद बिट्टा है और इस रोल को जाने माने अभिनेता चिन्मय मण्डलेकर ने बखूबी निभाया है।
आपको बता दें , ये किरदार उस खूंखार आतंकवादी फ़ारूक़ अहमद दर उर्फ बिट्टा कराटे से प्रेरित है। जिसने अपने लाइव इंटरव्यू में कबूला था कि उसने लगभग 20 से 25 कश्मीरी हिंदुओं को बेदर्दी से मारा।
फ़िल्म में जब करण के घर फ़ारूक़ यानी बिट्टा का हमला होता है तो उस समय करण अपने घर मे रखे चावल के एक कंटेनर में छिप जाता है लेकिन पता नही कैसे उसके पड़ोसी यानी अब्दुल के पिता को ये बात मालूम हो जाती है और वो बिट्टा को बता देता है।
बिट्टा बेखौफ करण के घर मे घुस जाता है और सीधा उस कंटेनर पर अपनी AK47 से फायरिंग शुरू कर देता है। उसकी पत्नी शारदा , शिवा और उसके पिता पुष्करनाथ भी वहीं आ जाते हैं।
कर्टनी वोल्श: सत्येन कप्पू: हिंदी फिल्मों का मजबूर बाप और ईमानदार पुलिस वाला।
अभिनेता: अनुपम खेर
बॉलीवुड के सबसे पुराने अभिनेता अनुपम खेर ने पुष्करनाथ की भूमिका को केवल निभाया ही नही बल्कि उस किरदार को जिया है।
बिट्टा के कंटेनर के फायरिंग करने से करण पण्डित मर जाता है और चारों तरफ खून से सने चावल बिखर जाते हैं। इस पर भी उसे रहम नही आता और उसने उस खून से सने चावल शारदा को इस शर्त पर खिलता है कि इसको खाने के बाद मैं तुम्हे और तुम्हारे बच्चो को छोड़ दूंगा।
बेबस शारदा को वो चावल खाने पड़ते हैं। जैसा कि हमने पहले ही आपको बताया कि इस फ़िल्म में दिखाई गयी घटनाओं की स्क्रिप्ट को रियल इंसिडेंट से लिया गया है। फ़िल्म के इस सीन को सच्ची घटना से उठाया गया है।
कश्मीरी हिन्दू लेखिका: सुनन्दा वशिष्ठ
जानी मानी कश्मीरी हिन्दू लेखिका सुनन्दा वशिष्ठ ने अमेरिका में हुए एक प्रेस-कांफ्रेंस में इंडिया को represent करते हुए एक घटना का जिक्र किया था, जिसमे ये बताया गया था कि 22 मार्च 1990 को बीके गंजू नाम के एक कश्मीरी पंडित के घर मे, आतंकी उनके पड़ोसी के मदद से घुस गए और इस बात का पता चलते ही बीके गंजू चावल के कंटेनर में जा छिपे लेकिन आतंकियों ने उन्हें उसी कंटेनर में मार दिया और खून से सने चावल जबरन उनकी पत्नी को खिलाया।
फिल्म की अगली सीन को बत्तीस साल बाद से शुरू किया जाता है, जहां से बॉलीवुड के दादा मिथुन दा की एंट्री होती है, जिनका नाम ब्रम्ह्दत्त है और वो IAS रह चुके हैं, इन्ही के साथ इनकी पत्नी लक्ष्मी दत्त जिसका किरदार मृणाल कुलकर्णी ने निभाया है।
इन्ही किरदारों के साथ-साथ प्रकाश बलावादी, डॉ महेश कुमार की भूमिका में. पुनीत इस्सर, DGP हरिनारायण की भूमिका में. और अतुल श्रीवास्तव, एक वरिष्ठ पत्रकार विष्णुराम की भूमिका में दिखाई देते हैं।
ये तीनों किरदार ब्रम्ह्दत्त के घर पहुचते हैं और इसी बीच यंग कृष्णा यानी की दर्शन कुमार की एंट्री होती है,जो दिल्ली से अपने दादा यानि पुष्करनाथ की अस्थियों को लेकर वहा पहुचता है।
फिल्म की अगली सीन दिल्ली की मशहूर यूनिवर्सिटी JNU के कैंपस से शुरू होती है, जहां पर प्रोफेसर राधिका मेनन जिसकी भूमिका पल्लवी जोशी ने बड़ी बेबाकी के साथ किया है।
प्रोफेसर राधिका, भरे कैंपस में खुले आम इंडिया और इंडियन आर्मी की लाखों बुराइयाँ करते नजर आ रही हैं या यूं कहें की वो वहाँ बैठे स्टूडेंट्स का ब्रेन वाश कर रही हैं।
राधिका मेनन का ये किरदार JNU की प्रोफेसर निवेदिता मेनन से प्रेरित है, जिनकी स्पीच अक्सर आपने सुना ही होगा और एक समय उनकी एक विडियो बहुत ज्यादा वायरल हुई थी जिसमे वो खुले आम ये कह रही हैं की हिन्दू-समाज इस दुनिया का सबसे हिंसक समाज है, और उनका ये भी मानना है की कश्मीर किसी भी तरह से भारत का नही बल्कि पकिस्तान का ही एक अंग है।
इस फिल्म में दिखाए गए JNU कैंपस में आजादी-आजादी जैसे नारों की आवाज से आपको बहुत कुछ याद आ जायेगा, जो शायद हमे बताने की जरुरत नही है।
वायु सेनाधिकार: रवि खन्ना
25.जनवरी.1990 को कश्मीरी-पहाड़ी के पास वायु सेनाधिकार रवि खन्ना और उनके साथ चार और जवानों को आतंकवादियों ने सरेआम दिन-दहाड़े मौत के घाट उतार दिया था।
इस बात का ब्योरा उन्ही की पत्नी मिसेस निर्मल खन्ना ने हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में बताया। लेकिन साथ ही साथ उनका ये भी कहना था की विवेक अग्निहोत्री द्वारा फिल्म में दिखाए गये वायुसेना अधिकारी शहीद रवि खन्ना की हत्या को लेकर जो तथ्य हैं, रियल इंसिडेंट से बिलकुल अलग है, क्योकि फिल्म में शहीद रवि खन्ना जी की हत्या को बहुत ही अलग ढंग से पेश किया और इसलिए श्रीमती खन्ना को इस बात पर ऐतराज है की विवेक जी ने उनसे इस तथ्य के बारे में बिलकुल भी जानकारी नही ली।
इसके बावजूद श्रीमती खन्ना ने, डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री के काम की प्रशंसा की और उन्हें बधाई भी दी। फिल्म में नेताओं के अन्दर की उस सोच का बड़ी बेबाकी के साथ पर्दाफाश किया गया है जब 32 साल पहले ये नरसंहार कश्मीर में हो रहा था।
अभिनेता अमित बहल ने उस समय के तत्कालीन मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला का किरदार निभाया है। जिसमे उन्हें ये कहते हुए दिखाया गया है की, ये कश्मीर हमारा है, यहाँ का संविधान हमारा है इसलिए हम केवल वही करेंगे जो हमारे लोग चाहते हैं।
अगर आप फिल्म देखेंगे तो उसमे एक बात आप जरुर गौर करेंगे की कश्मीरी हिन्दुओ ने 32 साल पहले से ही आर्टिकल 370 को हटाने के लिए सरकार से बहुत गुहार लगाई थी।
Article 370
फिल्म में अनुपम खेर जी, अपने पुष्करनाथ की भूमिका में एक बैनर लिए घूमते दिखते हैं, जिसमे Remove article 370 लिखा होता है। इस फिल्म को देखने के बाद आप ये तो मान जायंगे ही की article 370 का हटना कितना ज्यादा जरुरी था। और हाँ, ये फिल्म तमाचा है उनके लिए जो article 370 के सपोर्ट में थे।
हो सकता है फिल्म के शुरुवाती कुछ सीन्स को देखकर आप उतने भावुक न हों, लेकिन आखिरी सीन में ये फिल्म सौ प्रतिशत आपकी आँखें नम कर देगी। जिसमें ये दिखाया गया है की,कैसे बिट्टा कराटे ने कश्मीरी हिन्दुओ को एक लाइन में खड़ा करके मौत के घात उतर दिया, कैसे कृष्णा पंडित की माँ शारदा पंडित को सरे आम आतंकवादी निर्वस्त्र कर देते हैं और फिर उसे जिन्दा ही आरा-मशीन के निचे रखकर 2 हिस्से में काट देते हैं।
फिल्म की ये सीन आपको अंदर से झकझोर कर रख देगी, लेकिन आपको बता दें की ऐसी सच्ची घटना कश्मीरी हिन्दू महिला के साथ हो चुकी है।
सुनंदा वशिष्ठ की रिपोर्ट के मुताबिक- गिरजा टिकू नाम की एक कश्मीरी महिला थीं, जो की सरकारी स्कूल में लैब असिस्टेंट थीं। जब कश्मीरी हिन्दू, कश्मीर छोड़कर जम्मू जाने लगे तो गिरजा भी जम्मू चली गयीं। लेकिन अचानक जून-1990 को उनके पास एक फ़ोन आता है, जिसमे ये कहा जाता है की कश्मीर के हालात अब सुधर गए हैं, आप स्कूल आकर ड्यूटी join कीजिये और अपना बचा हुआ वेतन भी ले लीजिये। इसके बाद गिरिजा जी स्कूल से वेतन लेकर अपने मुस्लिम दोस्त के घर जाकर रुकीं लेकिन वहीँ से उन्हें किडनैप कर लिया गया।
लगभग एक महीने बाद उनकी बॉडी 2 हिस्से में सडक के किनारे मिली। postmortam की रिपोर्ट में आया की उनका काफी दिनों तक सामूहिक बलात्कार किया गया और जिन्दा ही उनके शरीर के 2 टुकड़े कर दिए गए।
फिल्म की पूरी पृष्ठभूमि ऐसी सच्चाई पर टिकी है, जिसे देख या सुनकर ही आपके रोंगटे खड़े हो सकते हैं। अक्सर आप सुनते होंगे की सच्चाई को हमेशा अग्नि परीक्षा से होकर गुजरना पड़ता है, ठीक वैसे ही हुआ इस फिल्म के रिलीज होने को लेकर।
एक उत्तर प्रदेश निवासी ने एक जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसने इस आधार पर फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने की मांग की थी कि, यह फिल्म मुसलमानों को कश्मीरी पंडितों के हत्यारों के रूप में चित्रित कर सकती है, इसे एक तरफा दृष्टिकोण के रूप में वर्णित किया गया है। इससे मुसलमानों की भावनाओं को ठेस पहुंचेगी और मुसलमानों के खिलाफ हिंसा भड़क सकती है। जनहित याचिका को बॉम्बे हाई कोर्ट ने तकनीकी आधार पर खारिज कर दिया था।
11 मार्च 2022 को 630 स्क्रीनों के साथ रिलीज़ किया गया-
यह फिल्म पहले 26 जनवरी 2022 को रिलीज़ होने वाली थी लेकिन कोरोना वायरस और ओमिक्रोन की वजह से इस दिन भी नही रिलीज़ हो पाई, और फिर आखिरी में इतनी उठापटक के बाद फिल्म को 11.मार्च.2022 को 630 स्क्रीनों के साथ रिलीज़ किया गया।
फिल्म 100-करोड़ आंकड़े को पार-
पहले दिन 3.55 करोड़ की कमाई इस फिल्म ने की और तब से दर्शकों के दिल में इसकदर उतर गयी की आज की तारीख में इसकी कमाई लगभग 24 करोड़ के ऊपर हो चुकी है, और हम चाहेंगे की आप भी ये फिल्म जरुर देखने जाएँ ताकि ये फिल्म 100-करोड़ के आंकड़े को भी पार कर सके।
कुछ लोगों ने फिल्म को लेकर बहुत से नेगेटिव रिव्यु भी दिए हैं, जिसकी वजह वो इस फिल्म की सादगी को मानते हैं, उनका मन्ना है की जिस फिल्म में रोमांस, एक्शन और गाने न हो, वो दर्शको को कैसे पसंद आ सकती है।
बहुत से लोग इसे राजनितिक प्रोपगंडा के तौर पर देखते हैं और ये कहते हैं की ये फिल्म हिन्दूओ और मुस्लिमो के बीच के आपसी सदभाव को बिगाड़ सकती है।
उन सबके लिए केवल एक ही सन्देश है, की अक्सर लोग सच्चाई से आँख चुराते हैं क्योकि वो कडवी होती है। आप इस नजरिये से मत देखिये की कश्मीर में हिन्दू मरा या मुस्लिम, वहाँ पर तो इंसानियत की हत्या सरेआम हुई है, और इस नरसंहार के वो सब जिम्मेदार और दोषी हैं, जिन्होंने चुप रहकर केवल तमाशा देखा है। और हाँ आतंकवादियो की गोली किसी का मजहब पूछ कर नही चलती, ध्यान रहे…………….
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