देशभक्ति और रुमानियत में जान डाल देने वाली आवाज

*मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे-मोती मेरे देश की धरती।*
दोस्तों इस गीत को गाने वाले गायक भी वास्तव में अपने भारत देश के लिए किसी हीरे से कम नहीं थे। *महेंद्र कपूर* जिन्होंने ब्लैक एंड व्हाइट *35mm* फिल्मों के दौर से लेकर *ईस्टमैन कलर की 70mm* फिल्मों तक का सफर देखा और हर दौर में अपने सुमधुर मखमली आवाज का जादू बिखेरा।
वैसे तो उनके संगीत की यात्रा इतनी लम्बी है कि जिसको किसी एक वीडियो में दिखा पाना संभव नहीं है लेकिन फिर भी नारद टी.वी. दर्शकों के अनुरोध पर हम उनके बचपन से लेकर दुनिया को अलविदा कहने तक के सफर को संक्षिप्त रूप में समेटकर आप को बताने की कोशिश करेंगे । उम्मीद है नारद टी.वी. का यह प्रयास आपको पसंद आएगा। *महेंद्र कपूर* जी के प्रति रसिक श्रोताओं का प्यार आज भी कम नहीं हुआ है। आज भी लाखों संगीत प्रेमी उनके सुमधुर गीतों को दुनिया के कोने-कोने में सुनते हैं। उनके गाए हुए हजारों गीत आज भी हमारे बीच हैं। तो आइए इस महान गायक की जीवनी पर एक नज़र डालते हैं।

*महेंद्र कपूर* का जन्म पंजाब के अमृतसर जिले में 9 जनवरी 1934 को हुआ था। जब महेंद्र कपूर महज़ एक साल के थे। तभी उनके पिता को कारोबार के सिलसिले में सपरिवार अमृतसर से बंबई यानी मुंबई आना पड़ा। महेंद्र कपूर जी की शिक्षा दीक्षा मुंबई मे ही हुई। पढ़ाई के साथ साथ गायन के क्षेत्र में भी उनकी भरपूर रुची थी। बहुत कम उम्र में ही वो रफ़ी साहब के बहुत बड़े फैन हो गए, और रफी साहब को अपना आदर्श मानने लगे थे। महेंद्र कपूर रफ़ी साहब को इतना चाहते थे कि अपनी किताबों के उपर *उनका नाम लिखा करते थे। उनकी इस चाहत को देेेख उनके एक दोस्त ने महेंद्र कपूरजी से कहा *महेंद्र तू रफी साहब से मिलना चाहता है ? मुझे पता है वह कहां रहते हैं।* इस पर महेंद्र कपूरजी ने बड़ी ही उत्सुकता से अपने दोस्त से पूछा, *क्या वाकई में तुम्हें पता है कि रफ़ी साहब कहां रहते हैं ?* इस पर उनके दोस्त ने कहा *हां, मुझे पता है वह कहां रहते हैं ?* तब महेंद्र कपूरजी ने सवाल किया *कहां रहते हैं ?* इस पर उनके दोस्त ने कहा, *भिंडी बाजार* में *किताब मंजिल* नाम की एक बिल्डिंग है, उस बिल्डिंग के दूसरे मंजिल पर वह रहते हैं, उनके मकान के सामने एक मस्जिद भी है।* उनका ड्राइवर जब उन्हें लेने के लिए स्कूल आया तब मात्र तेरह साल के महेंद्र ने उनसे रफ़ी साहब के मकान पर जाने की गुहार लगाई।
तब ड्राइवर ने कहा *घर जाने में देरी होगी, आपके पापा गुस्सा करेंगे।* इस पर छोटे महेंद्र ने कहा *मैं उन्हें संभाल लूंगा आप बस रफी साहब के घर चलीये।* उनकी जिद को देखते हुए ड्राइवर उन्हें लेकर रफ़ी साहब के घर गए और दरवाजे पर दस्तक दी। दरवाजा खुला और रफ़ी साहब के बड़े भाई मोहम्मद हमीद ने छोटे महेंद्र और उनके साथ आए हुए ड्राइवर से घर आने की वजह पूछी। ड्राइवर ने कहा *महेंद्र की बहुत इच्छाा थी रफी साहब से मिलने की इसलिए आए हैं।* हमीद जी ने रफी साहब को यह बात बताई तो रफी साहब भी छोटे महेंद्र को देखकर आश्चर्यचकित हो गए कि इतना छोटा लड़का मुझसे मिलने के लिए आया है ? इस मुलाकात मे छोटे महेंद्र ने रफ़ी साहब से ये कहा कि मेरे बड़े भाई आपसे संगीत सीखना चाहते हैं।* इस पर रफी साहब बोले *ठीक है, अपने भाई को अपने पापा के साथ लेकर आना। तभी मैं आपके पापा से बात करके सिखाऊंगा।* इसके बाद छोटे महेंद्र अपने ड्राइवर के साथ बड़ी ख़ुशी ख़ुशी रफी साहब के घर से रवाना हुए और अगले इतवार को छुट्टी के दिन अपने पापा और बड़े भाई के साथ रफी साहब के घर दोबारा पहुंचे। उनसे बातचीत करते हुए रफी साहब के भाई मोहम्मद हमीद ने यह भांप लिया की छोटा महेंद्र भले ही जुबान से कह रहा हो की, संगीत बड़े ने सीखना है लेकिन असल में संगीत उसे ही सीखना है। यह समझते हुए उन्होंने छोटे महेंद्र के पापा से पूछा कि, *संगीत बड़े को सीखना है या छोटे को ?* तब उनके पापा ने कहा कि, *जी छोटे महेंद्र को ही संगीत सीखना है* और फिर हमीद ने रफ़ी साहब से महेंद्र को संगीत की शिक्षा देने की बात कही । इस तरह से महेंद्र कपूर के संगीत की शिक्षा की शुुुरुआत हुुई महान गायक मोहम्मद रफ़ी साहब से । स्कूल की पढ़ाई खत्म होने के बाद उन्होंने सेंट जेवियर्स कॉलेज में आगे की पढ़ाई के लिए प्रवेश लिया और कॉलेज की पढ़ाई के साथ भी उन्होंने संगीत को ज़ारी रखा। रफ़ी साहब के आलावा उन्होंने पं॰ हुस्नलाल, पं॰ जगन्नाथ बुआ, उस्ताद नियाज़ अहमद खां, उस्ताद अब्दुल रहमान खान और पंडित तुलसीदास शर्मा जी से भी से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली थी।
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कालेज के दौरान महेंद्र कपूर ने *मेट्रो मर्फी* के पहले काॅम्पिटीशन में हिस्सा लिया जिसमें जजेस के तौर पर संगीतकार नौशाद, मदन मोहन, सी. रामचंद्र, अनिल विश्वास और वसंत देसाई जैसे मंजे हुए दिग्गज संगीतकार शामिल थे। इस प्रतियोगिता के फाइनल विजेता को चुनने के लिए पांचों संगीतकारों में काफी घमासान हुआ। लेकिन अंततः महेंद्र कपूर को बेस्ट गायक के रूप में चुना गया। इसके बाद इन पांचों संगीतकारों में से सबसे पहले संगीतकार सी. रामचंद्र जी ने महेंद्र कपूर साहब को मशहूर फिल्म निर्माता-निर्देशक वी. शांताराम की फिल्म *नवरंग* में गाने का मौका दिया। गाना था ”आधा है चंद्रमा रात आधी, रहे न जाए तेरी मेरी बात आधी” ये गाना कई दशकों बाद आज भी संगीत प्रेमियों के दिलों पर छाया हुआ है। महेंद्र कपूर जी अक्सर मोहम्मद रफी साहब की तरह गाने गाया करते थे। उनके करियर के शुरुआती कुछ गानों में तो पूरी झलक रफ़ी साहब की ही आती है। जब मोहम्मद रफ़ी साहब ने भी इस बात पर ध्यान दिया तो उन्होंने महेन्द्र जी को समझाया कि *कब तक तुम मेरी नक़ल करोगे?
अगर लम्बे समय तक टिकना है तो तुम्हें अपना एक ख़ुद का अंदाज़ बनाना होगा और एक अलग पहचान बनानी होगी।* महेन्द्र जी को भी यह बात समझ में आयी और उन्होंने उसपे अमल भी किया। उन्होंने रियाज़ और लगन से अपना एक ख़ास अंदाज़ विकसित किया जिसका जादू आज भी हम सबके दिलों पे बरकरार है। मोहम्मद रफी साहब ने अपने इस शागिर्द को फिल्मी दुनिया में कामयाब होने के लिए 3 गुर और बताएं जिनमें पहला था, फिल्मी दुनिया में रहना है तो अपनी निगाहें हमेशा नीची रखना, कभी उठाना नहीं। दूसरा किसी के साथ झगड़ा मत करना और तीसरा अपना आचरण और व्यक्तित्व हमेशा साफ़ सुथरा रखना, किसी गलत संगत में ना पड़ना। मोहम्मद रफी साहब ने महेंद्र कपूर जी को जब-जब भी कोई हिदायतें दी तो उन्होंने उस पर पूरी शिद्दत से अमल किया। उस्ताद और शागिर्द की इस जोड़ी ने अपने पूरे गायकी के जीवन में मात्र एक गीत ही साथ मे गाया। गीत के बोल थे, *कैसी हसीन आज बहारों की रात है, एक चांँद आसमांँ पे है, एक मेरे साथ है।* फिल्म *आदमी* के इस गीत में दिलीप कुमार साहब को रफी साहब ने और मनोज कुमार साहब को महेंद्र कपूरजी ने अपनी आवाज दी । इस गीत की एक ख़ास बात यह भी थी कि पहले इसको रफ़ी साहब के साथ तलत महमूद जी की आवाज़ में रिकाॅर्ड किया गया था। अगर इस एक गीत को छोड़ दिया जाए तो उस्ताद और शागिर्द की इस जोड़ी ने उसके बाद फिर कभी भी किसी फिल्म में कोई गीत एक साथ नहीं गाया।

सन 1979 की बात है, जब लंदन में महेंद्र कपूर जी एक शो कर रहे थे। वहां उस वक्त रफी साहब के बेटे जो लंदन में रहते थे वह उनसे मिलना चाहते थे। महेंद्र कपूरजी को जब यह बताया गया तो उन्होंने फौरन रफी साहब के बेटे को स्टेज पर बुलाकर फूल माला पहनाते हुए उनकी पहचान श्रोताओं से करवाई और रफी साहब के बेटों के पैर भी छुए। यह वाकया देख सभी हैरान रह गए। तब महेंद्र कपूरजी ने कहा कि, वह उनके नहीं अपने गुरु रफी साहब के पैर छू रहे हैं। जब महेंद्र कपूरजी लंदन से मुंबई वापस आए तब रफी साहब ने उनके बेटों को लंदन में दिए गए सम्मान के लिए महेंद्र कपूरजी का शुक्रिया अदा किया। ऐसा रिश्ता था रफी साहब और महेंद्र कपूरजी का। महेंद्र कपूर जी को बलदेव राज चोपड़ा यानी बी.आर.चोपड़ा साहब ने अपनी फिल्मों में खूब गवाया।
या यूंँ कहें की, महेंद्र कपूरजी की उस दौर में बड़ी पहचान और मकबूलीयत *बी.आर. फिल्म्स* के जरिए ही बनी । बी.आर. फिल्म्स की *गुमराह, हमराज, निकाह* आदि फिल्मों में लगभग सभी गीत महेंद्र कपूरजी के ही है। इन फिल्मों के अलावा भी बी.आर. बैनर की कई फिल्मों में महेंद्र कपूरजी ने अपनी मखमली आवाज़ देकर अनगिनत गीतों को यादगार बनाया है। इसके अलावा बी.आर. फिल्म्स का ही दूरदर्शन पर प्रसारित किया गया कालजयी धारावाहिक *महाभारत* में भी लगभग सभी गीत महेंद्र कपूरजी ने ही गाए थे। बल्कि यह कहा जाए कि महेंद्र कपूर जी की आवाज़ के बिना धारावाहिक महाभारत अधूरा सा लगता।
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बी.आर. फिल्म्स के आलावा महेंद्र कपूरजी की आवाज का इस्तेमाल मनोज कुमार जी ने अपनी फिल्मों में फिल्मों में बखूबी किया। मनोज कुमार जी की ही फिल्म *उपकार* में महेंद्र कपूर जी का गाया हुआ गीत ”मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे-मोती” आज भी अपने भारत देश में काफी सुना जाता है। भला कौन भूल सकता है *क्रांति* फिल्म के गीत को . किन्ही भी राष्ट्रीय पर्व को इन गानों के बिना मनाना कोई भी भारतीय सपने में भी नहीं सोच सकता और जब तक दुनिया रहेगी तब तक ये गीत हमारे देश में राष्ट्रीय पर्व पर बजते ही रहेंगे। इन गीतों को सुनने मात्र से हम सबके रोम-रोम में देशभक्ति का जज़्बा जाग उठता है। इसके बाद से ही महेंद्र कपूर साहब की आवाज देश्बह्क्ती गीतों की पर्याय बन गयी . इसके अलावा भी मनोज कुमार जी ने अपनी कई फिल्मों में पार्श्वगायक के तौर पर महेंद्र कपूरजी से ढेरों गाने गवाएं हैं। जो आज भी सुपरहिट हैं।

जिस तरह से हिंदी फिल्मों में पार्श्वगायक मोहम्मद रफ़ी साहब को दिलीप कुमार और शम्मी कपूरजी की आवाज, मुकेशजी को राजकपूर साहब और किशोर डा को राजेश खन्ना जी की आवाज कहकर याद किया जाता है उसी तरह महेंद्र कपूरजी को मनोज कुमार जी की आवाज़ के आलावा मराठी फिल्मों के सुपरस्टार दादा कोंडके साहब की आवाज के रूप में भी जाना जाता है। वह जब मराठी फिल्मों में दादा कोंडके के लिए गीत गाते थे, तो पर्दे पर ऐसा लगता ही था कि, वह गीत दादा कोंडके ही गा रहे हैं। दादा कोंडके के अलावा मराठी फिल्मों के कई और अभिनेताओं के लिए भी उन्होंने अपनी आवाज दी है। महेंद्र कपूर जी ने हिंदी, मराठी, पंजाबी, गुजराती और भोजपुरी के साथ-साथ देश की लगभग हर भाषा में गीत गाए हैं। खास बात यह है कि वह अंग्रेजी भाषा में गीत गाने वाले पहले भारतीय पार्श्वगायक थे उनहोंने जिन -जिन अंग्रेजी गीतों में अपनी आवाज़़ दी वो हैं *ओ सेली प्लीज़ हेल्प मी* और *आय एम फीलिंग ब्लू* उनके गाये हुए सभी भाषाओं के गीतों की संख्या कुल मिलाकर लगभग 25000 है।
उन्होंने सी. रामचंद्र, नौशाद, रवि, मदन मोहन, ओ.पी. नैय्यर, एन. दत्ता, कल्याणजी आनंदजी, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जैसे सभी पुराने दिग्गज संगीतकारों के साथ-साथ राम कदम, राम लक्ष्मण आदि जैसे नये दौर के कई संगीतकारों के संगीत निर्देशन में भी गीत गाए हैं। महेंद्र कपूरजी को पहला फिल्मफेयर अवार्ड गुमराह फिल्म के ”चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाए हम दोनों” गीत के लिए मिला था। दूसरा फिल्म फेयर अवार्ड हमराज फिल्म के ”नीले गगन के तले धरती का प्यार पले” इस गीत के लिए मिला था। तीसरा फिल्म फेयर अवार्ड फिल्म रोटी कपड़ा और मकान के ”और नहीं बस और नहीं, गम के प्याले और नहीं” इस गीत के लिए मिला था। उपकार फिल्म के ”मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे-मोती” इस गीत के लिए उन्हें नेशनल फिल्म अवार्ड दिया गया ।पद्मश्री अवार्ड से भी उन्हें सम्मानित किया गया। महाराष्ट्र सरकार द्वारा लता मंगेशकर अवार्ड देकर भी नवाजा गया। इसके अलावा भी उन्हें और भी कई अवार्ड से सम्मानित किया गया

यह बातें तो हुई उनके गायकी के क्षेत्र की। लेकिन क्या आप जानते हैं महेंद्र कपूरजी अभिनेता भी बड़े उम्दा थे?जा हाँ यह बात उन दिनों की है, जब महेंद्र कपूरजी कॉलेज में शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। उन्हीं दिनों गोल्डी नाम से फिल्मी दुनिया में मशहूर रहे अभिनेता-निर्माता-निर्देशक विजय आनंद *जो कि अभिनेता देव आनंद जी के भाई थे* वो कॉलेज में एक नाटक प्ले करना चाहते थे। और उसमें काम करने के लिए उन्हें एक ऐसा लड़का चाहिए था जिसकी उर्दू और हिंदी भाषा पर अच्छी पकड़ हो .जो उन्हें महेंद्र कपूर जी में नज़र आया। उन्होंने महेंद्र कपूरजी से मुलाकात कर प्ले में काम करने को कहा, लेकिन महेन्द्र जी ने अभिनय के लिये मना कर दिया और कहा उनकी रुचि सिर्फ गाने में ही है। बहुत मनाने के बाद महेंद्र कपूर साहब मान गए । वह प्ले हिट रहा जिसके बाद महेंद्र कपूर जी ने एक के बाद एक दो-तीन प्ले और किए वह सभी हिट हुए और उनके अभिनय की भी सराहना हुई। दिल्ली में प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु जी के हाथों उन्हें बेस्ट एक्टर और उनके नाटक को बेस्ट प्ले का अवॉर्ड भी मिला। आप को यह जानकर ताज्जुब होगा कि वी. शांताराम जैसे नामी-गिरामी निर्माता-निर्देशक ने भी उन्हें अपनी फिल्म नवरंग में मुख्य नायक की भूमिका करने का प्रस्ताव दिया था जिसे महेंद्र कपूर जी ने मना कर दिया। इसी फिल्म से एक गायक के तौर पर महेंद्र कपूर जी का फिल्मी दुनिया में पदार्पण हुआ। इस फिल्म के बाद वी. शांताराम जी फिल्म गीत गाया पत्थरों ने , बनाने की तैयारी में शरू कर दी और उन्होंने एक बार फिर महेंद्र कपूर जी को इस फिल्म में मुख्य नायक की भूमिका निभाने के लिए कहा। पर इस वक्त भी महेंद्र कपूर जी ने उनसे बड़ी ही विनम्रता पूर्वक कहा कि, उनके माता-पिता उन्हें अच्छा गायक बना हुआ देखना चाहते हैं, ना की फिल्मों में नायक। माता-पिता के इसी इच्छा का हवाला देते हुए उन्होंने अभिनय करने से मना कर दिया। इस तरह महेंद्र कपूरजी फिल्मों में नायक बनते-बनते रह गए। बात करें इनकी निजी ज़िंदगी की तो महेंद्र कपूर की शादी हुई थी प्रवीनलता जी से . जिनसे उनकी तीन बेटियां और एक बेटा है। उनके बेटे रोहन कपूर ने 80 के दशक में फिल्मी दुनिया में नायक के रूप में कदम रखा था। उनकी पहली ही फिल्म *फासले* यशराज जैसे बड़े बैनर की थी।

लेकिन यह फिल्म कुछ खास कमाल नहीं कर पाई। इसके बाद रोहन कपूर लव 86, ईमानदार के अलावा कुछ और फिल्मों में नजर आए, पर हिंदी फिल्मों में नायक के तौर पर वह कुछ खास नहीं कर पाए। उनकी नायक की पारी फिल्मों से खत्म होने पर उन्होंने अपने पिता महेंद्र कपूरजी के साथ मिलकर स्टेज शो में गीत गाना शुरू किया था। इसके अलावा *आवाज की दुनिया* नामक टी.वी. पर प्रसारित होने वाले एक कार्यक्रम में एंकरिंग भी की और कुछ अन्य शोज़ में भी नज़र आये। रोहन कपूर का बेटा सिद्धांत कपूर भी अब बड़ा हो चुका है। और महेंद्र कपूरजी की तीसरी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व कर रहा है।
फिल्मी दुनिया के महान गायकों में से एक रहे महेंद्र कपूर जी 27 सितंबर 2008 को मुंबई में दुनिया को अलविदा कह कर चले गए। उन्होंने 74 साल 8 महीने और 18 दिन की जिंदगी इस दुनिया में गुजारी। ऐसे महान गायक को नारद टी.वी.भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
लेखक : S.M Yusuf