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Hrishikesh Kanitkar: अपना करियर कुर्बान करके चुकाई ऐतिहासिक जीत दिलाने की सजा

Hrishikesh Kanitkar Biography In Hindi ऋषिकेश कानितकर जीवनी

भारत में क्रिकेट को किसी धर्म से कम नही समझा जाता है, एक समय था, जब भारत में हॉकी की तूती बोलती थी, फिर भारतीय क्रिकेट में सुनील गावस्कर और कपिल देव जैसे खिलाड़ी आये और भारतीय क्रिकेट की तस्वीर बदलने लगी, कौन भूल सकता है 25 जून १९83 का वो दिन जब भारत कपिल की कप्तानी में विश्व चैंपियन बना,और हर शहर हर गाँव और हर गली में क्रिकेट खेलते बच्चे के मन में भारत के लिए क्रिकेट खेलने का सपना हिलोरें मारने लगा, ऐसा ही सपना पल रहा था एक 9 साल के Hrishikesh Kanitkar के मन में,

जिसने बाद में भारत के लिए क्रिकेट खेला भी, उसके पिता भी भारत के लिए 2 टेस्ट खेले थे, लेकिन के करियर का ऐसा अंत होगा ये उसने सपने में भी नही सोचा होगा।

दोस्तों क्रिकेट में बहुत से ऐसे खिलाड़ी हुए हैं, जिनमे योग्यता तो थी लेकिन वो उस मुकाम को हासिल नही कर पाए, जिसके वो हक़दार थे, ऐसे ही क्रिकेटर थे ऋषिकेश कानिटकर, कानिटकर का नाम सुनते ही जेहन में उभरने लगती है वो तस्वीर जिसने पाकिस्तान के खिलाफ सिल्वर जुबली कप के फाइनल में चौका लगाकर भारत को अविश्नीय जीत दिलाई थी, दोस्तों अगर आप नब्बे के दशक में क्रिकेट देखते होंगे तो आपको सब कुछ याद जरुर आ गया होगा।

Hrishikesh Kanitkar का प्रारंभिक जीवन

खैर चलिए पहले ऋषिकेश कानिटकर के प्राम्भिक जीवन के बारे में जान लेते हैं, ऋषिकेश का जन्म 14 नवम्बर १९७४ को पुणे में हुआ था, कानिटकर शुरुआती दिनों से बेहद होनहार क्रिकेटर थे, ऑलराउंड प्रतिभा के धनी कानिटकर बाएं हाथ से आक्रामक बल्लेबाजी करते थे, तो दायें हाथ से ऑफ ब्रेक बॉलिंग, घरेलू क्रिकेट में कानिटकर ने खूब धूम मचाई और रणजी ट्रॉफी में वो 5वें सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज बने।

Hrishikesh Kanitkar

अब बात करते हैं उस दौर की जब भारतीय टीम को उन इनों एक ऑलराउंडर खिलाड़ी की बहुत जरूरत थी, क्योंकि कपिल देव सन्यास ले चुके थे, और मनोज प्रभाकर टीम से अंदर बाहर हो रहे थे, ऐसे में विश्वकप 1996 के बाद एकऑलराउंडर की खोज तेज हुई, और लगभग डेढ़ साल बाद कानिटकर को भारतीय टीम में मौका मिला,

तारीख थी 25 दिसम्बर साल १९९७, सामने थी श्रीलंका की टीम, लेकिन मैच सिर्फ 3 ओवरों का ही हो सका, क्योंकि इंदौर के नेहरू स्टेडियम की पिच में अनियमित उछाल था और गेंद बल्लेबाज को हिट कर रही थी, खैर कानिटकर को उस मैच में कुछ खास करने का मौका नही मिला।

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फिर आया वो दिन जिसने कानिटकर को रांतोंरात स्टार बना दिया और कानिटकर पूरे देश की आँखों का तारा बन गये, चलिए पहले इस मैच की कहानी जान लेते हैं, फिर जानेंगे वो घटना जिसका जिक्र हमने टाइटल में किया है, तो ये बात है साल १९९८ की जब बांग्लादेश की आजादी के 25 साल पूरे हो चुके थे, इसीलिए ढाका में सिल्वर जुबली कप खेला जा रहा था,

जिसमे भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश की टीमें थी, ये वो समय था जब पाकिस्तान बेहद मजबूत टीम थी, भारत और पाकिस्तान इस टूर्नामेंट के फाइनल में पंहुच चुकी थी, यहाँ बेस्ट ऑफ़ थ्री फाइनल्स का कांसेप्ट रखा गया था और भारत तथा पाकिस्तान की टीमें 1-1 फाइनल जीत चुकी थी, और अब बारी थी तीसरे फाइनल की।

किस मैच ने बदल Hrishikesh Kanitkar दी जिंदगी-

ये मैच 18 जनवरी १९९८ को ढाका के नेशनल स्टेडियम में खेला गया, पाकिस्तान ने पहले बैटिंग करते हुए भारत के सामने 48 ओवर में 314 रनों का टारगेट रख दिया, उस जमाने में इतना स्कोर एक तरह से जीत की गारंटी था, लेकिन भारत सौरव गांगुली के शतक और रॉबिन सिह की शानदार बल्लेबाजी से टारगेट के करीब पंहुच रहा था,

तभी अचानक भारत का मिडल आर्डर बुरी तरह लड़खड़ा गया, और अचानक स्थति ऐसी बन गयी कि भारत ये मैच हार भी सकता था।

Hrishikesh Kanitkar
Hrishikesh Kanitkar

फिर मैदान में कदम रखा ऋषिकेश कानिटकर ने, इस साँसे रोक देने वाले मैच में ऐसी स्थिति बनी कि भारत को जीत के 2 गेंदों पर 3 रन की जरूरत थी और सिर्फ 2 ही विकेट बचे थे, और गेंद सक़लैन मुश्ताक के हाथ में थी, और करोड़ों भारतीय क्रिकेट प्रेमियों की जान हलक में थी, लेकिन कानिटकर के मन में कुछ और ही चल रहा था, और उन्होंने ऐसा बल्ला घुमाया कि गेंद सीधे बाउंड्री के पार चली गयी, करोड़ों भारतीय का दिल झूम उठा, लेकिन शायद ये कानिटकर के करियर के अंत की शुरुआत थी ।

क्यों किया टीम से बाहर

इस जीत के नायक बनने के बावजूद कुछ ही मैचों के बाद उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया, उन्हें टीम से बाहर करने का फैसला हर किसी की समझ से परे था, लेकिन जब इसका खुलासा हुआ तो सभी के पैरों तले से जमीन खिसक गयी, दरअसल इस राज को फाश किया भारत के पूर्व ऑलराउंडर मनोज प्रभाकर ने।

साल 2000 में इस राज की गुत्थी तब सुलझी जब एक स्टिंग ऑपरेशन के दौरान प्रभाकर ने कई राज खोले, इसी स्टिंग ऑपरेशन के दौरान ये राज खुला कि ढाका में खेला गया ये मैच फिक्स था, जिसमे पकिस्तान की जीत तय थी, लेकिन कानिटकर ने चौका लगाकर इसका उल्टा ही कर दिया, और उन्हें टीम से हाथ धोना पड़ा, इस एक मैच से रातोंरात स्टार बने कानिटकर का करियर धीरे धीरे ढल गया, 30 जनवरी 2000 को कानिटकर ने अपना आखिरी मैच खेला।

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और आखिरकार मात्र 34 वनडे और 2 टेस्ट खेलकर एक बेहतरीन प्रतिभावान ऑलराउंडर का करियर खत्म हो गया, कानिटकर ने कभी नही सोचा होगा कि भारत को ऐतिहासिक जीत दिलाने की सजा उन्हें अपना करियर कुर्बान करके चुकानी पड़ेगी।

इसके बाद कानिटकर लगातार घरेलू क्रिकेट खेलते रहे, पर भारतीय टीम में दोबारा जगह नही बना पाए और आखिरकर उन्होंने जुलाई २०१५ में क्रिकेट के सभी प्रारूपों से पूरी तरह सन्यास ले लिया, कहते हैं कि उगते सूरज को सभी सलाम करते हैं पर ढलते सूरज को कोई नही, यही हुआ ऋषिकेश के साथ, उन्हें भी समय बीतने के साथ सबने भुला दिया, क्रिकेट से सन्यास के बाद उन्होंने क्रिकेट में कोचिंग देना शुरू कर दिया है, साल २०१५ में वो गोवा रणजी टीम के हेड कोच बने, वर्तमान में कानिटकर अंडर 19 भारतीय टीम के बल्लेबाजी कोच हैं।

Hrishikesh Kanitkar
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Anurag Suryavanshi

Anurag Suryavanshi is a famous and social personality. The founder of the popular YouTube channel Naarad TV, he is a famous YouTube influencer and has millions of fan followers.

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