भारतीय सिनेमा हास्य के बिना अधूरा है। ये वाक्य भारतीय सिनेमा में हास्य और हास्य कलाकारों के महत्व को पुरी तरह से परिभाषित करता है, जिसका सबसे बड़ा उदाहरण है भारतीय सिनेमा की पड़ोसन और गोलमाल जैसी वो फिल्में जिनमें से अगर हास्य को हटा दिया जाए तो सितारों और चकाचौंध से भरी यह दुनिया नीरस नजर आने लगती है।
महमूद और जोनी वाकर जैसे कलाकारों से शुरू हुआ हास्य का यह सफर आज भी बदस्तूर जारी है जिसमें समय समय पर कई अभिनेताओं ने अपने आपको स्थापित किया है।आज के इस एपिसोड में हम बोलीवुड के एक ऐसे ही हास्य अभिनेता की बात करने वाले है जिसने अपनी अदाकारी से कई पीढ़ियो के चेहरों को रोशन करने का काम किया था, नाम है देवेन्दु वर्मा जिन्हें हम देवेन वर्मा के नाम से जानते हैं।
23 अक्टूबर 1936 में चांदी के व्यापारी और बाद में फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर बने बलदेव सिंह वर्मा के घर मुम्बई में एक बच्चे का जन्म हुआ नाम रखा गया देवेन वर्मा।देवेन वर्मा के पिता राजस्थान के रहने वाले थे और इनकी मां सरला देवी का जन्म गुजरात के कच्छ में हुआ था।देवेन वर्मा अपने पिता की पांच संतानों में इकलौते बेटे थे, जिनकी दो बड़ी बहनों के नाम निरुपमा और तुषार वर्मा है।
इसके अलावा देवेन वर्मा की दो जुड़वां छोटी बहनें भी है जिनके नाम अमिता और पारुल है।देवेन वर्मा ने अपनी पढ़ाई पूना के नवरोज वाडिया कोलेज से पुरी की थी, जहां पढ़ाई करते समय देवेन स्टेज शोज में हिस्सा लेने लगे थे जो उनका अपने फिल्मी करियर की तरफ बढ़ाया गया पहला कदम था।देवेन के मन को थिएटर की दुनिया में सुकून मिल रहा था
और मंचन को ही वो अपनी जिंदगी मान चुके थे लेकिन उनके माता-पिता अपने बेटे को कानून का रखवाला बनाना चाहते थे।अपने माता-पिता की बात मानकर देवेन वर्मा ने लो की पढ़ाई शुरू कर तो दी लेकिन एक कलाकार सिर्फ कीताबों में फंसकर कब तक रह सकता था, देवेन का मन उचटने लगा और उन्होंने कोलेज छोड़ दिया।
इसके बाद देवेन वर्मा एक ड्रामा ग्रुप से जुड़े गए जहां एक्टर जोनी विस्की भी इनके साथ थे, यहां देवेन वर्मा कई बड़े अभिनेताओं की मिमिक्री भी किया करते थे।एक ऐसे ही नाटक के दौरान जब देवेन वर्मा परफोर्म कर रहे थे उस समय दर्शकों की भीड़ में बैठे हुए थे
भारतीय सिनेमा के मशहूर डायरेक्टर बी आर चोपड़ा जो उस समय अपनी फिल्म धर्म पुत्र पर काम कर रहे थे।बी आर चोपड़ा ने देवेन को देखा और उनकी अदाकारी से प्रभावित होकर फिल्म धर्म पुत्र में उन्हें 600 रुपए में साइन कर लियासाल 1961 में रिलीज हुई फिल्म धर्म पुत्र को पार्टीशन पर बनी पहली फिल्म का दर्जा दिया जाता है
जिसमें शशि कपूर ने भी अपने फिल्मी करियर का आगाज किया था।धर्म पुत्र फिल्म के फ्लोप होने के बाद देवेन वर्मा अपने स्टेज शोज की तरफ मुड़ गए और विदेशों में मंचन करने लगे थे और जब वापस आए तो AVM स्टुडियो ने इन्हें 1500 रुपए की सैलरी में नौकरी पर रख लिया।AVM स्टुडियो में काम करते समय देवेन वर्मा मद्रास गए
जहां इन्होंने अपनी एक्टिंग की प्रतिभा को तराशना भी जारी रखा।साल 1963 में इनकी फिल्म गुमराह ने पर्दे पर दस्तक दी जिसमें इनके साथ अशोक कुमार भी काम कर रहे थे।फिल्म गुमराह के बाद देवेन वर्मा को दो में से किसी एक रास्ते को चुनना था जिसमें से पहला रास्ता मद्रास की ओर जा रहा था जहां वो अपने हुनर को अधिक निखार सकते थे
और दुसरा रास्ता उन्हें मुम्बई ला रहा था जहां कई फिल्में उनका इंतजार कर रही थी।देवेन वर्मा ने मुम्बई को चुना और 1964 में मुमताज के साथ फिल्म कव्वाली की रात में काम किया।इसके बाद साल 1966 में देवर और अनुपमा जैसी फिल्मों में काम करने के बाद देवेन वर्मा ने एक अच्छे अभिनेता के रूप में खुद को साबित कर दिया था।
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1961 में शुरू हुआ यह फिल्मी सफर साल 1975 में नए आयाम स्थापित करने वाला था जहां इन्हें फिल्म चोरी मेरा काम के लिए पहली बार बेस्ट कोमेडियन का फिल्मफेयर अवार्ड दिया गया था।इसके बाद फिल्मों और फिल्म वालों की एक भीड़ इनके घर के बाहर अपनी बारी का इंतजार करने लगी।
किसी को भी मना न कर पाने के अपने स्वभाव के चलते इन्होंने एक साथ 16 फिल्में साइन की और उन पर काम करना शुरू कर दिया था।देवेन वर्मा ने अपने करियर के इस समय का जिक्र करते हुए कहा था कि उन दिनों मैं रात के समय में फिल्म आहिस्ता आहिस्ता की शूटिंग मुंबई में करता था,
फिर सुबह फ्लाईट पकड़ कर हैदराबाद जाकर प्यासा सावन की शूटिंग करता और फिर वहां से निकलकर 4 बजे दिल्ली जाता जहां यश चोपड़ा की सिलसिला का काम चल रहा था और रात को फिर से आहिस्ता आहिस्ता की शूटिंग के लिए मुम्बई जाना पड़ता था।
देवेन वर्मा 1969 में आई फिल्म यकीन से एक प्रोड्यूसर के तौर पर भी सामने आए जिसके बाद नवीन निश्चल और आशा पारेख के साथ फिल्म नादान में देवेन वर्मा प्रोड्यूसर के अलावा डायरेक्टर के तौर पर भी नजर आए थे।देवेन वर्मा ने अपने करियर में भारतीय सिनेमा के कई बड़े अभिनेताओं के साथ काम किया है
जिसमें अशोक कुमार के अलावा अमिताभ बच्चन के साथ फिल्म बेशर्म और मिथुन चक्रवर्ती के साथ 1979 में आई फिल्म दाना पानी भी शामिल है।अशोक कुमार के साथ काम करने के दौरान देवेन वर्मा कई बार उनके घर भी जाया करते थे जहां उनकी मुलाकात अशोक कुमार की बेटी रुपा गांगुली से हुई और धीरे धीरे दोनों में नजदिकियां बढ़ने लगी थी।
जब बात शादी करने की आई तो अशोक कुमार ने मना कर दिया जिसका सबसे बड़ा कारण यह था कि अशोक कुमार की बड़ी बेटी भारती ने भी एक गुजराती डोक्टर से शादी की थी।दो साल बाद भी जब अशोक कुमार ने देवेन और रुपा गांगुली के रिश्ते को हां नहीं कहा तो किशोर कुमार ने इन दोनों को एक करने का जिम्मा अपने सिर ले लिया और उन्होंने दोनों की सगाई करा दी।
सगाई के बाद अशोक कुमार ने भी हां कह दिया और इस तरह देवेन वर्मा को साल 1967 में रुपा गांगुली के रूप में अपना हमसफर मिल गया।देवेन वर्मा ने अपने लगभग 45 सालों के करियर में बहुत सी फिल्मों में काम किया है जिसमें गोलमाल, खट्टा मीठा, अंगूर ख़ामोशी, चोर के घर चोर, अंदाज अपना अपना और दिल तो पागल है जैसी फिल्में शामिल है।
इनमें से अंदाज अपना अपना, अंगूर और गोलमाल जैसी फिल्मों को आज भी भारतीय सिनेमा की बेहतरीन हास्य फिल्मों में गिना जाता है।1982 में गीतकार गुलजार साहब के निर्देशन में बनी फिल्म अंगूर में देवेन वर्मा ने संजीव कुमार के जुड़वां नौकरों का किरदार निभाया था जिसमें देवेन की मासूमियत ने सबको इनका मुरीद बना दिया था।
यह फिल्म 1968 में आई दो दूनी चार का रिमेक थी जिसमें किशोर कुमार और असित सेन ने मुख्य भूमिका निभाई थी।बिमल राय के प्रोडेक्शन में बनी इस फिल्म में गुलज़ार साहब स्क्रिप्ट राइटर के तौर पर जुड़े हुए।देवेन वर्मा को अपने करियर में तीन बार फिल्मफेयर अवार्ड से नवाजा गया था जिसमें चोरी मेरा काम के अलावा चोर के घर चोर और अंगूर फिल्म भी शामिल थी।
लेकिन एक बार जब इनकी पत्नी को फेफड़ों की बीमारी लगी तो डाक्टर ने रुपा गांगुली को मुम्बई की हवा से दूर ले जाने की सलाह दी जिसके बाद देवेन वर्मा चेन्नई आ गए।कुछ समय बाद जब देवेन वर्मा वापस मुंबई आ रहे थे तो उस दौरान इनका वो बैग खो गया जिसमें इनके तीन अवार्ड रखें हुए थे।
देवेन वर्मा ने बोलीवुड के अलावा भोजपुरी जैसी कई रिजनल भाषाओं की फिल्मों में भी काम किया है साल 2001 में देवेन वर्मा ने हिंदी सिनेमा को अलविदा कह दिया जिसका कारण बताते हुए उन्होंने कहा था कि मैं नई पीढ़ी के अभिनेताओ के साथ काम करने में खुद को असहज महसूस करता हूं और नए लोगों के काम करने का तरीका मुझे रास नहीं आता है।
इससे जुड़ा एक किस्सा बताते हुए देवेन वर्मा ने कहा था कि एक बार जब वो किसी फिल्म की शूटिंग कर रहे थे उस दौरान एक महिला असिस्टेंट सिगरेट पीते हुए इनके पास आई और चुटकी बजाते हुए कहा कि चलिए सर आपका शोट रेडी यह बात देवेन वर्मा को नागवार गुजरी और उन्होंने मेरे यार की शादी है और कलकत्ता मेल जैसी फिल्मों के बाद खुद को इस दुनिया से अलग कर लिया।
2 दिसंबर 2012 को अशोक कुमार की बेटी और इनकी साली प्रीति गांगुली का निधन हो गया था जिसकी खबर मिडिया में आते ही लोगों ने देवेन वर्मा को शोक संदेश भेजने शुरू कर दिए।लोग प्रीति गांगुली को देवेन वर्मा की पत्नी मानने लगे थे जिसके बाद देवेन को खुद सामने आकर यह यकीन दिलाना पड़ा कि उनकी शादी रुपा गांगुली से हुई है
जिन्होंने कभी भी फिल्मों में काम नहीं किया है।इस घटना के ठीक दो साल बाद 2 दिसंबर 2014 को इस महान अभिनेता ने दुनिया को अलविदा कह दिया।