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आशुतोष राणा कहानी बॉलीवुड के सबसे डरावने विलने की।

 आशुतोष राणा (एक ऐसा दुश्मन जो सभी का चहेता हैं)

एक वक़्त था जब परदे पर अभिनय करने वाले कलाकारों की अपने किरदार के अनुरूप ही छवि बन जाया करती थी जिसे अगर वो बदलना भी चाहे तो बहुत मुश्किल होती थी और कभी-कभी तो इस प्रयोग में हमेशा उन्हें असफलता ही हाथ लगती थी। सकारात्मक भूमिकाएं निभाने वाले कलाकार जहाँँ सबके दिलों में अपनी एक जगह बना लेते थे तो वहीं नकारात्मक भूमिकाओं को अभिनीत करने वाले कलाकारों को दर्शकों की नफरत का सामना करना पड़ता था।

के एन सिंह, जीवन, प्राण, प्रेम चोपड़ा, रंजीत, डैनी, अमरीश पूरी, शक्ति कपूर, गुलशन ग्रोवर, सदाशिव अमरापुरकर और मोहन जोशी जैसे हिंदी सिनेमा में ढेरों ऐसे उदाहरण हैं कालांतर में जिन्हें दर्शकों से गालियाँ ही नसीब हुआ करती थीं और दर्शकों की नज़र में अपनी उस छवि को बदलने के लिये उन्हें कई सकारात्मक भूमिकाएं निभानी पड़ी।

इस प्रयास में प्राण और अमरीश पूरी जैसे कुछ अभिनेता तो अपनी दमदार अदायगी के चलते आसानी से सफल भी हो गये लेकिन बहुतों को अपने किरदारों के साथ ढेरों प्रयोग करने पड़े तब जा कर दर्शकों ने उन्हें स्वीकार किया। 

ऐसा नहीं है कि फिल्मों में नकारात्मक भूमिकाओं को निभाने वाले हर एक अभिनेता को शुरुआत में गालियाँ नसीब हुई हैं कुछ अपवाद भी हैं जिन्हें नकारात्मक किरदार अभिनीत करने के बावज़ूद दर्शकों का प्यार किसी नायक की तरह ही मिला बल्कि नायक से भी बढ़कर मिला।

ऐसे अभिनेताओं में एक्टर अमजद ख़ान के बाद जो एक नाम जेहन में आता है वो है 90 के दशक में आये दमदार अभिनेता आशुतोष राणा का। लेजेंडरी एक्टर अमजद ख़ान जी की तरह ही आशुतोष राणा को भी एक विलेन की नकारात्मक भूमिका निभाने के बावज़ूद दर्शकों से भरपूर प्यार मिला। एक बात हम यहाँ साफ कर दें कि किसी एक्टर का नाम लेने का हमारा मकसद यहाँ किसी एक की दूसरे से तुलना करने का बिल्कुल नहीं है।

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अभिनेता आशुतोष राणा का निजी जीवन

अभिनेता आशुतोष राणा का निजी जीवन-

अभिनेता आशुतोष राणा का जन्म 10 नवंबर, 1967 को गाडरवारा में हुआ था जो कि मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर ज़िला में स्थित है। उनका पूरा नाम आशुतोष रामनारायण नीखरा है। आशुतोष के माता पिता प्यार से उन्हें राणा कह के बुलाते थे।  उनका बचपन गाडरवारा में ही बीता और उनकी शुरुआती शिक्षा वहीं के विद्यालय में हुई. बाद में  डॉ॰ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय से उन्होंने  स्नातक किया जो कि मध्यप्रदेश के सागर ज़िला में स्थित है।

आशुतोष की पढ़ाई सेे जुड़ा एक बहुत दिलचस्प क़िस्सा है जिसके बारे में जानकर यक़ीनन आपको बहुत गर्व महसूस होगा। इस घटना  का ज़िक्र आशुतोष ने ख़ुद कई बार किया है उन्होंने बताया कि उनके पिताजी ने बेहतर शिक्षा के लिए आशुतोष और उनके भाई का दाखिला गाडरवारा से जबलपुर के क्राइस्ट चर्च स्कूल में करवा दिया।

जहाँ आशुतोष के ऊपर अंग्रेजी शिक्षा का प्रभाव इतना ज़्यादा पड़ा कि एक दिन जब उनके माता-पिता उनसे मिलने उनके स्कूल पहुंचे तो आशुतोष ने उनको प्रभावित करने के लिये उनके पैर छूने की बजाय गुड ईवनिंग कह कर उनका अभिवादन किया और जिस माँ से वो हर वक़्त लिपटे रहते थे उनके पास भी नहीं गये और माँ कि मुस्कुराहट से उन्हें लगा कि सबलोग उनके इस आत्मविश्वास से बहुत प्रभावित हो गये हैं लेकिन हुआ बिल्कुल उल्टा थोड़ी ही देर बाद उनके पिता ने कहा कि अपना सामान पैक करो तुम लोगों को गाडरवारा वापस चलना है आगे की पढ़ाई अब वहीं होगी।

बड़ी ही हैरानी के साथ जब उन्होंने अपने पिता से इसका कारण पूछा तो उनके पिता ने जवाब दिया कि “राणाजी मैं तुम्हें मात्र अच्छा विद्यार्थी नहीं एक अच्छा व्यक्ति बनाना चाहता हूँ। तुम लोगों को यहाँ नया सीखने भेजा था पुराना भूलने नहीं। कोई नया यदि पुराने को भुला दे तो उस नए की शुभता संदेह के दायरे में आ जाती है।

हमारे घर में हर छोटा अपने से बड़े परिजन, परिचित,अपरिचित जो भी उसके सम्पर्क में आता है उसके चरण स्पर्श कर अपना सम्मान निवेदित करता है लेकिन देखा कि इस नए वातावरण ने मात्र सात दिनों में ही मेरे बच्चों को परिचित छोड़ो अपने माता पिता से ही चरण स्पर्श की जगह गुड ईवनिंग कहना सिखा दिया।

मैं नहीं कहता की इस अभिवादन में सम्मान नहीं है, किंतु चरण स्पर्श करने में सम्मान होता है यह मैं विश्वास से कह सकता हूँ। विद्या व्यक्ति को संवेदनशील बनाने के लिए होती है संवेदनहीन बनाने के लिए नहीं होती। मैंने देखा तुम अपनी माँ से लिपटना चाहते थे लेकिन तुम दूर ही खड़े रहे, विद्या दूर खड़े व्यक्ति के पास जाने का हुनर देती है ना कि अपने से जुड़े हुए से दूर करने का काम करती है।”

उन्होंने कहा “आज मुझे विद्यालय और स्कूल का अंतर समझ आया, व्यक्ति को जो शिक्षा दे वह विद्यालय जो उसे सिर्फ साक्षर बनाए वह स्कूल, मैं नहीं चाहता कि मेरे बच्चे सिर्फ  साक्षर हो के डिग्रियोंं के बोझ से दब जाएँ मैं अपने बच्चों को शिक्षित कर दर्द को समझने उसके बोझ को हल्का करने की महारत देना चाहता हूँ। मैंने तुम्हें अंग्रेज़ी भाषा सीखने के लिए भेजा था आत्मीय भाव भूलने के लिए नहीं। संवेदनहीन साक्षर होने से कहीं अच्छा संवेदनशील निरक्षर होना है। इसलिए बिस्तर बाँधो और घर चलो।”

 आशुतोष और उनके भाई तुरंत अपने माता पिता के चरणों में गिर गए उनके पिता ने उन्हें उठा कर गले से लगा लिया और कहा कि किसी और के जैसे नहीं स्वयं के जैसे बनो। पिता की ये बातें आशुतोष ने उनके आशीर्वाद की तरह गाँठ बाँधकर रख ली और उन बातों को यादकर वो आज भी आत्मविश्वास से भर जाते हैं।

आशुतोष का अभिनय में विशेष रुचि-

दोस्तों बचपन से ही आशुतोष को अभिनय में विशेष रुचि थी और पढ़ाई के साथ साथ वो अपने शहर में होने वाली रामलीला में भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया करते थे, वो राम लीला में रावण की भूमिका निभाया करते थे। उनकी अभिनय प्रतिभा और लगन को देखते हुये उनके आध्यात्मिक गुरु पंडित श्री देव प्रभाकर शास्त्री जी ने उन्हें दिल्ली के राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से अभिनय प्रशिक्षण लेने की सलाह दी जहाँ उन्हें थोड़े से प्रयास में ही दाखिला भी मिल गया।

राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से ट्रेनिंग पूरी होने के बाद आशुतोष ने नाटकों में काम के साथ बाॅलीवुड की ओर रुख़ किया और उन्हें काम पाने में जल्द ही सफलता भी मिल गयी। 

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आशुतोष राणा के अभिनय कॅरियर की शुरुआत

आशुतोष राणा के अभिनय कॅरियर की शुरुआत-

आशुतोष राणा के अभिनय कॅरियर की शुरुआत वर्ष 1995 में दूरदर्शन पर प्रसारित महेश भट्ट के बेहद चर्चित धारावाहिक ‘स्वाभिमान’ से हुई थी जिसमें उन्होंने ‘त्यागी’ नाम के गुंडे का रोल किया था जो कि एक प्रेमी भी था इस धारावाहिक से वो हर घर के पसंदीदा ऐक्टर बन गये थे आलम यह था कि हर एपीसोड में लोग उनके द्वारा निभाये किरदार त्यागी का इंतज़ार किया करते थे और दर्शकों ने जब अपने इस चहेते अभिनेता को बड़े पर्दे पर देखा तो वहाँ भी इन्हें हाथों हाथ लिया।

वर्ष 1998 में आई फिल्म ‘दुश्मन’ में उनके द्वारा निभाये उस ख़तरनाक ‘साइको किलर’ को भला कौन भूल सकता है, और कौन भूल सकता है  फिल्म ‘संघर्ष’ के ‘लज्जा शंकर’ के उस ख़ौफनाक किरदार को जिसे आशुतोष ने अपने बेहतरीन अभिनय से यादगार बना दिया। आज भी इन फिल्मों में आशुतोष राणा के अभिनय को देखकर दर्शकों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं।  ‘संघर्ष’ और ‘दुश्मन’ के लिए आशुतोष  को फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला।

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आशुतोष राणा के हिंदी फिल्म का सफर
आशुतोष राणा के हिंदी फिल्म का सफर-

हालांकि आशुतोष ने अपने हिंदी फिल्म के सफ़र की शुरुआत वर्ष 1996 में आयी फिल्म ‘संशोधन’ से किया था और फिल्म ‘दुश्मन’ से पहले वर्ष 1998 में ही प्रदर्शित फिल्म ‘ज़ख़्म’ और ‘ग़ुलाम’ जैसी कुछ फिल्मों के ज़रिये अपनी छाप छोड़ चुके थे।

आशुतोष.. भट्ट कैंप के एक बेहद ख़ास और चहेते कलाकार रह चुके हैं। बाॅलीवुड में शुरुआत से लेकर अब तक भट्ट कैंप ने उन्हें बहुत मौक़े दिये और वो हर मौक़ों पर खरे भी उतरे हैं। लेकिन आपको यह बात जानकर बहुत ताज्जुब होगा कि आज जिस भट्ट कैंप के वो इतने लाडले हैं, कभी उसी भट्ट कैंप से उनको डाँटकर बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। हुआ ये था कि जब आशुतोष पहली बार निर्माता निर्देशक महेश भट्ट से मिले थे तो उन्होंने अपने सीनियर होने के नाते महेश भट्ट के पांव छू लिये लेकिन महेश इस बात से बहा भड़क गये क्योंकि उन्हें पैर छूने वालों से सख़्त नफरत है।

दरअसल तब फिल्मी दुनिया में लोग काम पाने के लिये अक्सर पैर पकड़ लिया करते थे और महेश भट्ट जैसे उस वक़्त के व्यस्त निर्देशकों को ऐसे में बहुत उलझन होती थी। हालांकि बाद में जब महेश भट्ट को आशुतोष की प्रतिभा और ट्रेनिंग के बारे में पता चला तो उन्होंने आशुतोष से ना सिर्फ मुलाक़ात की बल्कि आगे आने वाली लगभग हर फ़िल्म में ही उन्हें एक विशेष रोल भी दिया।

हासिल, दुश्मन, जख्म, संघर्ष, कुसूर, गुनाह, राज़, कलयुग, कर्ज, एलओसी कारगिल, हम्पटी शर्मा की दुल्हनिया, डर्टी पॉलिटिक्स, ब्रदर्स, धड़क और मुल्क आदि बाॅलीवुड की ढेरों फ़िल्मों के अलावा आशुतोष मराठी, कन्नड, तेलुगू और तमिल फ़िल्मों में भी सक्रिय हैं और सफल भी।

आशुतोष अभिनय के हर माध्यम को बराबर सम्मान देते हैं और शायद इसीलिये उन्होंने फ़िल्मों के साथ साथ टेलिविज़न के “काली – एक अग्निपरीक्षा” नामक धारावाहिक में अभिनय के साथ-साथ कई शोज़ में नज़र आ चुके हैं। 

दोस्तों आशुतोष को अभिनय के अलावा लेखन का भी शौक़ है। आशुतोष कवितायें, लेख और कहानियां भी लिखते हैं। विभिन्न मंचो पर अक्सर उनके कलम का जादू उन्हीं के ज़रिये हमें सुनने को मिल ही जाता है। 

आशुतोष बहुत ही धार्मिक प्रवृति के इन्सान हैं साथ ही वो राजनीतिक और सामजिक मुद्दों पर भी समय समय पर अपनी बेबाक राय रखा करते हैं।

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आशुतोष राणा जी का पारिवारिक  जीवन के बारे में
 आशुतोष राणा जी का पारिवारिक  जीवन के बारे में-

दोस्तों आशुतोष राणा की शादी टीवी और फ़िल्म जगत की मशहूर अभिनेत्री रेणुका शहाणे से हुयी थी। दूरदर्शन पर प्रसारित शाहरुख खान के दूसरे धारावाहिक ‘सर्कस’ से चर्चा में आयी रेणुका जी को असल प्रसिद्धि मिली थी दूरदर्शन के ही बेहद चर्चित शो ‘सुरभि’ से जिसमें उन्होंने सिद्धार्थ काक जी के साथ एक होस्ट की भूमिका निभायी थी।

सुरभि में उनके बेहतरीन काम को देखते हुये राजश्री प्रोडक्शन वालों ने अपनी एक भव्य फ़िल्म ‘हम आपके हैं कौन’ में रेणुका को एक बेहद खूबसूरत किरदार निभाने का मौक़ा दिया जिसे रेणुका ने अपनी मासूमियत से भरी अदाकारी से जीवन्त कर दिया। एक ओर जहाँ फ़िल्म को ज़बर्दस्त कामयाबी मिली वहीं दूसरी ओर रेणुका भी पूरे देश की चहेती बन गयी। रेणुका और आशुतोष के प्रेम व शादी से जुड़ा बड़ा दिलचस्प क़िस्सा है जिसे ख़ुद आशुतोष ने अपने एक साक्षात्कार में बताया था। 

आशुतोष और रेणुका की पहली मुलाकात 90 के दशक के आख़िर में निर्देशक हंसल मेहता की एक फिल्म की शूटिंग के दौरान हुई थी। हालांकि वह फिल्म तो अधूरी ही रह गयी लेकिन आशुतोष ने अपनी ज़िन्दगी पूरी तरह से  रेणुका के नाम लिख दी। हालांकि ये मामला अभी एक तरफा ही था और आशुतोष को अपने दिल की बात बताने के लिये बहुत मशक्कत करनी पड़ी। किसी तरह से उन्हें एक कॉमन फ्रेंड से रेणुका का नंबर तो मिल गया लेकिन रेणुका को कॉल करके बात करना भी इतना आसान नहीं थी।

दरअसल रेणुका किसी अंजान नंबर की कॉल नहीं उठाती थीं और रात 10 बजे के बाद किसी की भी कॉल क्यों ना हो वो रिसीव नहीं करती थीं। आशुतोष ने उन्हें कॉल करने की बजाय एक मैसेज लिख कर भेजा जिसका रेणूका ने रिप्लाई भी किया।

करीब तीन महीने तक फोन पर ही उनकी बातें होती रहीं लेकिन बस काम की या इधर उधर की ही, अभी भी आशुतोष अपने दिल की बात नहीं कर सके थे। दरअसल आशुतोष को इस बात का भी डर था कि कहीं मोहब्बत के इज़हार के चक्कर में रेणुका उनसे दोस्ती ही न तोड़ दें।

आशुतोष ने बहुत सोच समझकर अपनी लेखनी का इस्तेमाल किया. उन्होंने रेणुका से अपने प्यार का इज़हार एक कविता के ज़रिये किया। उन्होंने वो कविता कुछ इस अंदाज़ से लिखा कि उनकी बात भी रेणुका तक पहुँच जाये और उनको बुरा भी न लगे। हुआ भी कुछ ऐसा ही रेणुका को वो कविता तो पसंद आई ही साथ ही आशुतोष के इज़हार करने के उस अंदाज़ की भी कायल हो गयीं।

वर्ष 2001 में दोनों ने शादी कर ली। कम लोगों को यह बात पता होगी कि रेणुका की आशुतोष से यह दूसरी शादी थी। रेणुका की पहली शादी विजय केंकरे से हुई थी जो कि मराठी थियेटर के एक लेखक और निर्देशक हैं। शादी के कुछ ही दिनों के बाद दोनों में तलाक हो गया था।

आशुतोष अपनी सफलता की वज़ह रेणुका को ही बताते हैं और दोनों का आपसी तालमेल बाॅलीवुड में एक मिसाल भी है।आशुतोष और रेणुका के दो बेटे हैं शौर्यमान राणा और सत्येन्द्र राणा। दोनों ही अभी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।

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