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आर. पी सिंह क्या धोनी की दोस्ती ने ख़त्म किया करियर।

क्रिकेट एक ऐसा खेल है जिसमें हर खिलाड़ी को कभी ना कभी अपने करियर में एक बुरे दौर से गुजरना ही पड़ता है। यह इस खेल की एक कड़वी सच्चाई है।

कुछ खिलाड़ी ऐसे समय को मात देकर आगे बढ़ जाते हैं तो कुछ ऐसे भी खिलाड़ी हैं जिनका करियर ऐसे समय में आकर दम तोड देता है। लम्बे बाल और लम्बी कद काठी वाले एक ऐसे ही बांये हाथ के तेज गेंदबाज की बात आज हम करेंगे जो वर्ल्ड चैंपियन रहा और जिसे शोहरत भी नसीब हुई, लेकिन उसका बुरा दौर उन पर कुछ इस तरह हावी हुआ कि आज व़ो चैंपियन कहीं खो सा  गया । आज उसका चेहरा बहुत सोचने के बाद जेहन  में आता है।

हंसमुख चेहरे वाले इस खिलाड़ी का नाम रुद्र प्रताप सिंह है जिन्हें हम आरपी सिंह के नाम से जानते हैं।आरपी सिंह भारत की उस टीम का हिस्सा रहे जो मैच फिक्सिंग के सदमें से उभर रही थी .ये वो टीम थी जिसे सौरव गांगुली ने गांवों और कस्बों की  प्रतिभाओं को इकट्ठा कर बनाया था।भारतीय क्रिकेट का ये वो समय था जब भारत के पास युवराज सिंह, धोनी और सहवाग जैसे बल्लेबाज तो थे ही साथ ही ये टीम  जहीर खान, आशीष नेहरा जैसे तेज गेंदबाजों से भी सजी हुई थी।

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आरपी के शुरुआती जीवन-

आरपी के शुरुआती जीवन की बात करें तो इनका जन्म 6 दिसम्बर 1985 को उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में हुआ।इनके पिता का नाम शिव प्रताप सिंह और मां का नाम गिरीजा देवी है। आरपी के पिता भारतीय तकनीक संस्थान में तकनीक शाखा के ओपरेटर पद पर कार्यरत थे।आरपी के पिता ने इनकी क्रिकेटर बनने की इच्छा को देखते हुए इनका दाखिला सन् 2000 में लखनऊ की गुरु गोविंद सिंह स्पोर्टस कोलेज में करवा दिया। आरपी की दो बहनें भी है जिनका नाम आकांक्षा और दीपा है।

आरपी जब लखनऊ होस्टल में थे तब उनके साथ वहां सुरैश रैना भी थे, इन्होंने साथ में क्रिकेट की बारीकियां सिखी‌ और साथ में भारतीय टीम के लिए खेला भी ।आरपी सिंह लखनऊ यूनिवर्सिटी से बेचलर इन आर्टस डिग्री होल्डर भी रहे हैं। एक इत्तफाक की बात यह रही कि आरपी से पहले भी सन् 1986 में रुद्र प्रताप सिंह नाम के एक और खिलाड़ी भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा रह चुके थे, वो भी बांये हाथ के तेज गेंदबाज थे और उनका सम्बन्ध भी उत्तरप्रदेश से ही रहा। इन्हें रुद्र प्रताप सिंह सिनियर के नाम से भी जाना जाता है। खैर अब आते हैं अपने मुख्य विषय पर .

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आरपी सिंह क्रिकेट करियर-

आरपी ने अपने रणजी करियर की शुरुआत 2003 में 18 साल की उम्र में ही कर दी थी। इसके बाद आरपी ने 2004 में बांग्लादेश में हुए U19 वर्ल्डकप में खेलते हुए 24.75 की औसत से 8 विकेट लिए। आरपी के इस प्रदर्शन के कारण भारतीय टीम ने इस वर्ल्डकप में सेमीफाइनल तक का सफर तय किया ।

इसी साल आरपी ने रणजी के 6 मैचों में सबसे ज्यादा 34 विकेट लिये। रणजी और अंडर19 में अपनी धाक जमाने के बाद आरपी ने 4 सितंबर2005 को अपना वनडे डेब्यू जिम्बाब्वे के खिलाफ हरारे में किया जहां इन्होंने 2 विकेट लिए। आरपी अपने वनडे डेब्यू का बहुत बड़ा कारण मदनलाल और पुर्व भारतीय क्रिकेट कोच ग्रेग चैपल को मानते हैं क्योंकि इन्होंने ने ही सबसे पहले आरपी की काबिलियत को पहचाना और इन्हें इंडिया के लिए खेलने का मौका दिया। 

आरपी ने इनके इस भरोसे को सही साबित करते हुए अपने तीसरे वनडे मैच में श्रीलंका के खिलाफ 35 रन देकर 4 विकेट लिये। इस प्रदर्शन के लिए इन्हें मैन ऑफ द मैच भी चुना गया। ये सिलसिला यहीं नहीं रुका इन्होने अपने पहले ग्यारह मैचों में तीन बार यह अवार्ड अपने नाम किया।आरपी की इसी धार को देखते हुए इन्हें 11 जनवरी 2006 को फैसलाबाद में पाकिस्तान के खिलाफ टेस्ट डेब्यू करने  का मौका मिला। फैसलाबाद वही मैदान है जहां भारत के महान ओलरांउडर कपिल देव ने भी अपने करियर का आगाज किया था।

आरपी ने वहां भी अपना  जौहर दिखाते हुए 5 विकेट लेकर सबको चौंका दिया। इस मैच में भी आरपी मैन ऑफ द मैच रहे।इसके बाद आरपी को 2006 में होने वाली चैंपियन ट्रॉफी के लिए श्रीसंत की जगह लेने पर विचार चल रहा था लेकिन उसी साल वेस्टइंडीज के खिलाफ वनडे सीरीज में उनके खराब प्रदर्शन ने उनसे यह मौका छीन लिया।

आरपी टेस्ट में लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे जिसको जारी रखते हुए इन्होने  इंग्लैंड के खिलाफ 2007 में लार्डस टेस्ट की एक पारी में 59 रन देकर पांच विकेट लिए और अपना नाम लार्डस ओनर बोर्ड पर दर्ज करवा लिया।यह एक ऐसा सम्मान है जो क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर को भी उनके करियर में नसीब नहीं हुआ।

आरपी सिंह लार्डस मैदान पर किसी टेस्ट की एक पारी में पांच विकेट लेने वाले भारत के 10 वें गेंदबाज बने। उनके इस प्रर्दशन से भारतीय टीम 21 साल बाद इंग्लैंड की जमीन पर कोई टेस्ट सीरीज जीतने में सफल हुई थी। इस प्रदर्शन के लिए इन्हें मैन ऑफ द मैच चुना गया।

फिर इनको 2007 टी20 विश्वकप के लिए भी चुना गया जहां आरपी ने अपना टी20 डेब्यू स्कोटलैंड के खिलाफ डरबन में 13 सितंबर 2007 को किया। इस टुर्नामेंट में इन्होने  भारत की तरफ से सबसे ज्यादा 12 विकेट लिये। जहां इनका बेस्ट साउथ अफ्रीका के खिलाफ 13 रन देकर चार विकेट रहा। उनके इस प्रर्दशन की बदौलत भारत की टीम यह वर्ल्डकप जीतने में सफल हुई।

अफ्रीका के खिलाफ उनके शानदार प्रदर्शन को देखते हुए आरपी को पहले क्रिकइन्फो अवार्डस से भी सम्मानित किया गया। 2008 में आस्ट्रेलिया के खिलाफ सिडनी में हुए controversial टेस्ट मैच की हार के बाद पर्थ की जीत में आरपी ने अहम भूमिका निभाई थी। इस टेस्ट में आरपी ने VVS लक्ष्मण के साथ एक यादगार पार्टनरशिप की थी। भारत की ये जीत आज भी यादगार है।

आरपी के पास बुरी से बुरी पिच पर बोल को स्विंग कराने की खास काबीलियत थी, आरपी को इनस्विंग और बाउंसर गेंदबाजी में महारत हासिल थी। जिस कारण आरपी का नाम जहीर खान, आशीष नेहरा और इरफान पठान के साथ टीम के मुख्य गेंदबाजों में शुमार होने लगा था। लेकिन उनका प्रर्दशन भारतीय पीचों पर उतना खास कभी नहीं रहा जितना विदेशी पीचों पर रहा।

आरपी ने अपने पुरे करियर में भारतीय जमीन पर केवल दो टेस्ट मैच ही खेले है। इन्होने  ये मैच दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ खेले जिनके 53 ओवरों में भी उनको कोई विकेट नहीं मिला।यही कारण था कि आरपी को 2008 के बाद अधिकतर समय टीम से बाहर रहना पड़ा। और ये बात उनके बुरे दौर की शुरुआती झलक थी।

इसी साल आरपी एक विवाद का भी हिस्सा रहे जो एक मिडिया रिपोर्ट के कारण शुरू हुआ, इस रिपोर्ट में कहा गया कि महेन्द्र सिंह धोनी इंग्लैंड के खिलाफ भारत में होने वाली वनडे सीरीज के लिए इरफान पठान की जगह आरपी सिंह को लेना चाहते हैं। यह भारतीय टीम के नजरिए से बहुत बड़ी लीक खबर थी।

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आईपीएल-

इसी बीच 2009 आईपीएल सीजन के 16 मैचों में आरपी ने सबसे ज्यादा 23 विकेट लिए जिसकी वजह से उनकी टीम डेक्कन चार्जर्स खिताब जीतने में सफल हुई। इस प्रदर्शन की बदौलत आरपी 2009 टी20 विश्वकप खेलते नजर आए।लेकिन इतने शानदार प्रदर्शन के बाद भी आरपी को 2009 के बाद कभी T20 अंर्तराष्ट्रीय खेलने का मौका नहीं मिला।

आरपी ने अपना आखिरी टी20 मैच 16 जून 2009 को अफ्रीका के खिलाफ खेला था। आरपी को 2011 में इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज के आखिरी मैच में जहीर खान की जगह बुलाया गया लेकिन 3 साल टेस्ट क्रिकेट से दूर रहने का प्रभाव आरपी पर साफ दिख रहा था। इस मैच में आरपी ने बहुत खराब गेंदबाजी की। उनके पहले ओवर में डाली गई चार खराब गेंदों को देखकर इंग्लिश क्रिकेटर इयान बॉथम ने कहा था कि ये ओवर उनके लिए टेस्ट क्रिकेट का सबसे खराब ओवर है।

इस आलोचना का नतीजा यह रहा कि ओवल में हुआ यह मैच इस गेंदबाज का आखिरी टेस्ट मैच साबित हुआ। और इसी साल  16 सितंबर2011 को इंग्लैंड के खिलाफ आरपी सिंह आखिरी बार भारतीय टीम की वनडे जर्सी में खेलते नजर आये।बात करें उनके आइपीएल करियर की तो आरपी डेक्कन चार्जर्स, मुम्बई इंडियंस, कोच्चि टस्कस और रोयल चैलेंजर बैंगलोर जैसी टीमों का हिस्सा रहे।

आरपी ने कुल 82 आईपीएल मैच खेले जिनमें उनकी विकेटों का आंकड़ा 90 रहा। लेकिन 2016 के बाद यह दरवाजा भी उनके लिए बन्द हो गया। 2013 में इनका  नाम आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग मामले में भी उछाला गया लेकिन अंत में ये  निर्दोष साबित हुए। 2017 में आरपी ने अपने शानदार लिस्ट ए करियर को भी अलविदा कह दिया जहां इन्होंने 94 मैचों में 301 विकेट लिए, जिसमें 12 बार 5wicket  शामिल हैं। इन्होंने अपना आखिरी लिस्ट ए मैच मुंबई के खिलाफ खेला था।

आरपी 2003 से 2015 तक उत्तर प्रदेश की ओर से खेले और बाद में आरपी गुजरात टीम का भी हिस्सा रहे। आरपी जब गुजरात टीम में आए तो बुमराह भी उस टीम का हिस्सा थे। आरपी ने उन दिनों बुमराह को बहुत कुछ सिखाया। बुमराह भी अपने रणजी करियर की सफलता का श्रेय आरपी को देते हैं।आखिरकार 2018  में जब कोई उम्मीद नहीं रही तो आरपी सिंह  ने अंर्तराष्ट्रीय करियर को भी अलविदा कह दिया।आख़िरकार  एक विश्व चैंपियन का करियर एक इंतजार पर आकर खत्म हो गया।

आरपी ने कुल 82 अंर्तराष्ट्रीय मैच खेले। जिसमें इन्होने  14 टेस्ट मैचों में 40 विकेट लिये  इनका  बेस्ट 59 रन देकर 5 विकेट रहा, बात करे इनके वन डे करिएर की तो  आरपी ने अपने 58 वनडे मैचों में 69 विकेट लिये। वहीँ  10 टी20 मैचों में विकेटों का आंकड़ा 15 रहा। इनके  इस छोटे से करियर में कुछ ऐसे पल रहे जो आज भी भारतीय क्रिकेट के लिए किसी सपने से कम नहीं है। मगर ऐसे करियर का यूं खत्म हो जाना कहीं ना कहीं क्रिकेट प्रेमियों के मन में एक टीस जरुर छोड़ जाता है।

आरपी ने कभी भी स्टारडम को खुद पर हावी नहीं होने दिया, और उनकी यही विशेषता उन्हें सबसे अलग और एक अच्छा इंसान बनाती है।अपने संन्यास के बाद स्पोर्ट्स तक को दिये एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि 2011 विश्वकप खेलना उनका सपना था। साथ ही उन्होंने कहा कि टीम से बाहर होने के बाद कभी भी उन्हें टीम के साथ नेट्स प्रेक्टिस करने का मौका नहीं मिला, उन्हें सीधा रणजी के लिए भेज दिया जाता था जिससे उनकी फिटनेस और बोलिंग स्पीड पर गहरा प्रभाव पड़ा जो उनके करियर के खत्म होने की सबसे बड़ी वजह बनी।

आरपी सिंह का करियर जहां एक ओर मौकों की तलाश में गुजरा वहीं इनका  करियर injuries से भी भरा रहा। 2008 के बाद इनको कम मौके मिलने का एक कारण इनकी injuries भी रही।

फिलहाल आरपी सिंह BCCI की एडवाइजरी कमेटी के सदस्य होने के साथ साथ हिंदी कोमेंटरी भी करते हैं। आरपी सिंह की सदस्यता वाली एडवाइजरी कमेटी ने हाल ही में भारत के पुर्व स्पीन गेंदबाज सुनील जोशी को भारतीय क्रिकेट टीम के नये सलेक्टर के रुप में चुना है। एडवाइजरी कमेटी में आरपी के साथी सदस्य मदनलाल और सुलक्ष्णा नायक हैं।

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आरपी सिंह का परिवार-

इनके  निजी जिंदगी की बात करें तो आरपी का विवाह  देवांसी पोपट से 1 दिसम्बर 2012 को हुआ था। इनकी बेटी का नाम इरा आर्या सिंह है। देवांसी  की  भारत के मशहूर एडवोकेट मनोज पोपट की बेटी है। देवांसी और आरपी की मुलाकात एक रणजी मैच के दौरान हुई थी, जहां से ये अच्छे दोस्त बन गये और फिर इन्होंने शादी का फैसला लिया। आरपी ने हाल ही में ग्रेटर नोएडा में अपनी एक क्रिकेट एकेडमी शुरू की है जिसमें वो U14 के बच्चों को गेंदबाजी की टेक्निकस सिखाते हैं।

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