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बॉलीवुड में भगत सिंह 

“वक़्त आने दे दिखा देंगे तुझे ऐ आसमाँ, 

हम अभी से क्यूँ बताएँ क्या हमारे दिल में है,

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, 

देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है।”

आज़ादी के इस गीत को गाते और ‘इंकलाब ज़िन्दाबाद’ का नारा लगाते हुए महज़ 23 साल की उम्र में अपने साथियों के साथ हँसते हँसते सूली पर चढ़ जाने वाले शहीद सरदार भगत सिंह की दिलेरी की कहानियाँ आज भी हमारे अंदर देशभक्ति की भावना को जगा देती है। 

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भगत सिंह

भगत सिंह-

23 मार्च 1931 को लाहौर जेल में भगत सिंह को उनके साथियों सुखदेव और राजगुरु के साथ फांसी दे दी गयी थी। तब से लेकर अब तक शहीद-ए-आज़म भगतसिंह न सिर्फ़ भारत के युवाओं बल्कि फ़िल्मकारों के लिये भी एक प्रेरणा की तरह हैं। जिसका प्रमाण है

समय-समय पर भगतसिंह के जीवन पर आधारित फ़िल्मों का बनना। यहाँ तक कि हिंदी सहित अन्य भाषाओं में भी भगतसिंह पर फ़िल्में बनती रही हैं। आज हम आपके लिये उन ख़ास फ़िल्मों की जानकारी लेकर आये हैं जो शहीद भगत सिंह जी पर आधारित हैं, जिनकी संख्या वाकई में चौकाने वाली है,

 हर निर्माता निर्देशक का सपना होता है कि वह अपने जीवन में आज़ादी की कहानी पर कोई फ़िल्म ज़रूर बनाये। आज़ादी की कहानी किसी भी क्रांतिकारी के नज़रिये से लिखी जाये वह भगतसिंह के ज़िक्र के बिना कभी पूरी हो ही नहीं सकती।

अन्य क्रांतिकारियों पर आधारित फ़िल्मों की बात छोड़ भी दी जाये तो अकेले भगतसिंह जी पर आधारित बनी फ़िल्मों की संख्या ही आधा दर्जन से ज़्यादा है, जो सिर्फ हिंदी भाषा में बनी फ़िल्मों की है। शायद आपको याद हो कि अकेले वर्ष 2002 में ही भगतसिंह पर कुल 3 फ़िल्में रिलीज़ हुईं थीं।

अगर अन्य भाषाओं की फ़िल्मों को इसमें जोड़ दें तो भगतसिंह पर बनी फिल्मों की संख्या दर्जन भर से कम नहीं होगी। बहरहाल आज के वीडियो में हम भगतसिंह पर आधारित हिंदी फ़िल्मों की ही बात करने वाले हैं जिसकी शुरुआत आज से 7 दशक पहले यानि 50s के दौर से ही हो गयी थी।

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शहीद-ए-आज़म भगत सिंह

शहीद-ए-आज़म भगत सिंह-

वर्ष 1954 में रिलीज़ हुई ‘शहीद-ए-आज़म भगत सिंह’ भगत सिंह के जीवन पर आधारित पहली फिल्म कही जाती है। पूनम प्रोडक्शन के बैनर तले बनी इस फिल्म का डायरेक्शन जगदीश गौतम ने किया था। ऐक्टर्स की बात की जाये तो इस फ़िल्म में प्रेम आबिद, जयराज, स्मृति विश्वास, कुक्कू, अमीरबाई कर्नाटकी, जॉनी वाकर और आशिता मजूमदार जैसे उस दौर के दिग्गज़ ऐक्टर मुख्य भूमिकाओं में थे।

फ़िल्म में महान क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल द्वारा लिखित अमर गीत ‘सरफ़रोशी की तमन्ना’ को महान गायक मोहम्मद रफ़ी ने गाया था और लच्छीराम तामर जी के संगीत निर्देशन में अन्य गीतों को लेजेंडरी गायिका शमशाद बेगम और मोहम्मद रफ़ी ने आवाज़ें दी थीं जिन्हें लिखा था साहिर चाँदपुरी और शौक़त परदेशी ने।

दोस्तों यह फ़िल्म उस दौर में कितनी चली थी इसके आंकड़े तो उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन एक बात तो तय है कि इस फ़िल्म ने तब के निर्माताओं व निर्देशकों को देशभक्ति पर आधारित फ़िल्मों को बनाने के लिये एक नयी दिशा ज़रूर दे दी थी।

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शहीद भगत सिंह

शहीद भगत सिंह-

सरदार भगत सिंह पर आधारित बनी पहली फ़िल्म के लगभग एक दशक बाद आयी थी ‘शहीद भगत सिंह’। के एन प्रोडक्शन के बैनर तले बनी वर्ष 1963 में रिलीज़ हुई इस फिल्म का डायरेक्शन के एन बंसल ने किया था। फ़िल्म में सदाबहार रोमांटिक ऐक्टर शम्मी कपूर ‘शहीद भगत सिंह’ के रूप में दिखाई दिए थे जो कि अपने आप में एक दिलचस्प बात थी।

शम्मी कपूर के अलावा फिल्म में शकीला, प्रेमनाथ, डी के सप्रू, उल्हास और अचला सचदेव जैसे उस दौर के नामी ऐक्टर्स ने प्रमुख भूमिकायें निभाईं थीं। इस फ़िल्म में भी अमर गीत सरफ़रोशी की तमन्ना और मेरा रंग दे बसंती चोला को महान गायक मोहम्मद रफ़ी ने ही गाया था। हिंदी फिल्मों में पहली संगीतकार जोड़ी का दर्जा पाने वाले हुस्न लाल-भगत राम के संगीत निर्देशन में अन्य गीतों को लिखा था गीतकार क़मर जलालाबादी ने जो उस दौर में बहुत मशहूर हुए थे।

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शहीद

शहीद-

ठीक 2 वर्षों के बाद भगतसिंह की कहानी पर एक और फ़िल्म का निर्माण हुआ। दोस्तों सरदार भगत सिंह पर आधारित सबसे कामयाब फ़िल्म की अगर बात की जाये तो वह थी वर्ष 1965 में रिलीज़ हुई मनोज कुमार की फिल्म ‘शहीद’। इस फ़िल्म की प्रसिद्धी का आलम यह था कि इसे उस वक़्त के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने भी देखा था और मनोज कुमार से प्रभावित होकर अपने नारे जय जवान जय किसान पर फ़िल्म बनाने को कहा था, जिसके बाद मनोज कुमार ने उपकार फ़िल्म बनायी थी।

शहीद फ़िल्म में भगतसिंह की भूमिका मनोज कुमार ने निभाई थी जिसे लोगों ने ख़ूब पसंद किया था। मनोज कुमार के अलावा फ़िल्म में प्राण, प्रेम चोपड़ा, अनन्त पुरुषोत्तम मराठे और कामिनी कौशल जैसे दिग्गज ऐक्टर्स भी शामिल थे। फ़िल्म का डायरेक्शन किया था एस राम शर्मा ने और प्रोड्यूसर थे केवल कश्यप।

फ़िल्म शहीद की सबसे बड़ी ख़ासियत ये थी कि इसकी पटकथा भगत सिंह के साथी बटुकेश्वर दत्त द्वारा लिखी कहानी पर आधारित थी, जिसके लिये राइटर दीनदयाल शर्मा को पुरस्कृत भी किया गया था। दोस्तों जिस वर्ष यह फ़िल्म रिलीज़ हुई थी, संयोग से उसी वर्ष बटुकेश्वर दत्त जी का निधन भी हो गया था।

फ़िल्म में अमर शहीद राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ के गीत “सरफ़रोशी की तमन्ना’ को एक बार फिर गायक मोहम्मद रफ़ी ने आवाज़ दी थी, जिसमें उनका साथ दिया था लेजेंडरी गायक मन्ना डे और राजेंद्र मेहता ने। वहीं बिस्मिल जी के लिखे दूसरे गीत ‘मेरा रंग दे बसंती चोला’ को गायक महेंद्र कपूर के साथ महान गायक मुकेश, स्वर कोकिला लता मंगेशकर एवं राजेन्द्र मेहता ने आवाज़ें दी थीं। फ़िल्म के अन्य गीतों को फ़िल्म के संगीतकार प्रेम धवन ने ख़ुद ही लिखा था।

इस फ़िल्म के कई गीत आज भी उतने ही लोकप्रिय हैं। तमाम पुरस्कार प्राप्त इस फिल्म ने 13वें राष्ट्रीय पुरस्कारों में, हिंदी में बनी सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का अवॉर्ड भी हासिल किया था और इस फिल्म को सर्वश्रेष्ठ कहानी व फीचर फिल्म के लिए नरगिस दत्त अवाॅर्ड से भी सम्मानित किया गया था। इस फ़िल्म के बाद मनोज कुमार ने ख़ुद को देशभक्ति की फ़िल्मों के लिये समर्पित कर दिया और भारत कुमार के रूप में मशहूर हुए। आगे चलकर उन्होंने  एक से बढ़कर एक देशभक्ति पर आधारित फ़िल्में बनायीं।

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अमर शहीद भगत सिंह
अमर शहीद भगत सिंह-

भगतसिंह पर आधारित अगली फ़िल्म थी वर्ष 1974 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘अमर शहीद भगत सिंह’। इस फ़िल्म की सबसे बडी ख़ासियत थी कि यह पंजाबी और हिंदी दोनों ही भाषाओं में रिलीज़ की गयी थी।

इस फ़िल्म में भगतसिंह की भुमिका में थे ऐक्टर सोम दत्त जो कि लेजेंडरी ऐक्टर सुनील दत्त जी के भाई थे। अन्य भूमिकाओं में अचला सचदेव, कमल कपूर, और रजनी बाला जैसे उस वक़्त के मशहूर ऐक्टर्स के अलावा मेहमान कलाकार के रूप में लेजेंडरी दारा सिंह, देव कुमार और प्रताप सिंह जैसे ऐक्टर भी ख़ास भूमिकाओं में नज़र आये थे। फ़िल्म के पंजाबी वर्ज़न को डायरेक्ट किया था ओमी बेदी ने और प्रोड्यूसर थे राम किशन गुप्ता।

इसके हिंदी वर्जन की बात करें तो डायरेक्टर के रूप में राजेश अग्रवाल और प्रोड्यूसर के रूप में राम गोपाल गुप्ता को क्रेडिट दिया गया था। दोस्तों आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि इस फ़िल्म में भी अमर गीत ‘सरफरोशी की तमन्ना’ को एक बार फिर रफ़ी साहब ने ही आवाज़ दी थी।

फिल्म के पंजाबी वर्ज़न में जहाँ बाक़ी के गीत भी ज़्यादातर रफ़ी साहब की ही आवाज़ में हैं, वहीं इसके हिंदी वर्जन में इस एक गीत को छोड़कर फ़िल्म के ज़्यादातर अन्य गीतों को बाद में गायक मोहम्मद अजीज़ की आवाज़ में गवाकर फिल्म को दोबारा रिलीज़ किया गया। इस फ़िल्म का संगीत तैयार किया था संगीतकार सुरिंदर कोहली ने और गीत राजेश अग्रवाल, अजय अंजुम और मोहिन्दर देहलवी ने लिखे थे। दोस्तों यह फ़िल्म उस दौर में तो बहुत चर्चित नहीं हो सकी थी लेकिन ख़ुशी की बात यह है कि इसके दोनों ही वर्ज़न यूट्यूब पर उपलब्ध हैं।

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शहीद-ए-आज़म
शहीद-ए-आज़म-

एक लम्बे अंतराल के बाद जब आज़ादी की पचासवीं वर्षगाँठ मनायी गयी तो एक बार फिर फ़िल्मकारों का ध्यान देशभक्ति पर आधारित फ़िल्में बनाने की ओर आकर्षित हुआ और सबसे दिलचस्प बात ये कि ज़्यादातर ने भगतसिंह की कहानी को ही चुना जिसका नतीज़ा यह हुआ कि वर्ष 2002 में कुल तीन फ़िल्में भगतसिंह पर बनकर रिलीज़ हुईं।

जिनमें से सबसे पहले रिलीज़ हुई ‘शहीद ए आज़म’। हालांकि यह फ़िल्म शायद और पहले रिलीज़ हो जाती लेकिन कुछ विवाद पैदा होने से पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने इस फिल्म पर प्रतिबंध लगाने के लिए नोटिस जारी किया। बाद में इस फिल्म को 31 मई 2002 को रिलीज़ किया गया।

इस फ़िल्म में भगतसिंह की भुमिका में थे आज के चहेते ऐक्टर और समाज सेवी सोनू सूद। अन्य प्रमुख भूमिकाओं में मानव विज, राज जुत्शी, देव गिल, रजिंदर गुप्ता और समा सिकंदर जैसे ऐक्टर शामिल थे। इस फिल्म में एक ख़ास भूमिका में नदिया के पार फिल्म से मशहूर हुई ऐक्ट्रेस साधना सिंह भी नज़र आयीं थीं।

फ़िल्म का डायरेक्शन किया था सुकुमार नायर ने और फिल्म के प्रोड्यूसर थे इक़बाल ढिल्लो। फिल्म में संगीत दिया था सबर अली, मक़बूल ख़ान और सरदुल सिकंदर ने। कविता कृष्णमुर्ति, उदित नारायण, साधना सरगम, सोनू निगम, जसपिंदर नरूला और रूप कुमार राठौर जैसे नामी गायकों के अलावा फिल्म में सरदुल सिकंदर और नसीबो लाल जैसी नयी आवाज़ भी सुनने को मिली थी।

फिल्म में बाबा बुल्ले शाह का गीत, ” तेरे इश्क नाचया ” को भी शामिल किया गया था, जिसे गायिका जसपिंदर नरूला ने गाया था। इस फिल्म के ज़रिये तमिल और तेलुगु फिल्मों से आये ऐक्टर सोनू सूद ने हिंदी फिल्म में शुरुआत की थी, जिसके लिये उन्हें स्क्रीन अवाॅर्ड की ओर से नॉमिनेट भी किया गया था।

यह फ़िल्म चर्चित तो ज़रूर हुई थी लेकिन सफल नहीं हो सकी, जिसकी सबसे बड़ी वज़ह बनी इसके कुछ ही हफ्तों बाद इसी विषय पर एक साथ आने वाली दो फ़िल्में, जिसमें सोनू सूद जैसे उस वक़्त के नये चेहरे की बजाय बड़े-बड़े नाम शामिल थे। दर्शकों ने उन फ़िल्मों का इंतज़ार करना शायद ज़्यादा बेहतर समझा और एक अच्छी फ़िल्म होते हुए भी यह फ़िल्म उतनी सफल न हो सकी जितनी कि इसे होनी चाहिए थी।

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23 मार्च 1931- शहीद

 ’23 मार्च 1931- शहीद’-

वर्ष 2002 में ही भगतसिंह पर आधारित फिल्म ’23 मार्च 1931- शहीद’ का नाम भगतसिंह और उनके साथियों के शहादत की तारीख़ को लेकर रखा गया था साथ ही मनोज कुमार की फ़िल्म शहीद की कामयाबी को देखकर इसमें शहीद शब्द को भी जोड़ दिया गया था। फ़िल्म में ऐक्टर बॉबी देओल भगतसिंह की भूमिका में थे तो वहीं सनी देओल ने चंद्र शेखर आज़ाद की भूमिका निभाई थी। अन्य भूमिकाओं में शक्ति कपूर, सुरेश ओबेराय, दिव्या दत्ता, राहुल देव और अमृता सिंह जैसे कई जाने माने ऐक्टर्स भी शामिल थे।

इसके अलावा फिल्म में ऐक्ट्रेस ऐश्वर्या राय भी बतौर मेहमान कलाकार नज़र आयीं थीं। देओल परिवार के ही प्रोडक्शन ‘विजेता फिल्म्स’ के बैनर तले बनी इस फिल्म का डायरेक्शन किया था गुड्डु धनोवा ने और इस फ़िल्म का संगीत दिया था आनंद राज आनंद ने।

एक ही वर्ष में, एक ही विषय पर, एक साथ तीन फ़िल्मों का बनाकर जल्दी रिलीज़ करने के दबाव इन फ़िल्मों पर साफ़ नज़र आया जिसका नतीज़ा यह हुआ कि यह फ़िल्म भी बुरी तरह असफल हो गयी। सबसे बड़ी बात कि यह फ़िल्म ठीक उसी दिन रिलीज़ की गई, जिस दिन इसी विषय पर एक और बड़ी फ़िल्म रिलीज़ होने वाली थी, जिससे इस फ़िल्म की सीधी टक्कर हुई थी। और वह फ़िल्म थी-

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द लीजेंड ऑफ भगत सिंह

द लीजेंड ऑफ भगत सिंह-

ठीक उसी तारीख़ 7 जून 2002 को रिलीज़ ‘द लीजेंड ऑफ़ भगतसिंह’ में ऐक्टर अजय देवगन भगतसिंह की मुख्य भूमिका में थे। दोस्तों इस फ़िल्म में पहले ऐक्टर सनी देओल को भगत सिंह की भुमिका के लिये चुना गया था, बताया जाता है कि अपने पारिश्रमिक को लेकर राजकुमार संतोषी के साथ हुए मतभेदों के कारण उन्होंने यह फ़िल्म छोड़ दी थी और बाद में ख़ुद अपने भाई बॉबी देओल को लेकर भगतसिंह पर फ़िल्म बनाने की घोषणा कर दी थी।

बहरहाल सनी देओल के फ़िल्म छोड़ने के बाद ऐक्टर अजय देवगन को भगतसिंह की भूमिका के लिये चुना गया। फिल्म के अन्य ऐक्टर्स में सुशांत सिंह, अखिलेंद्र मिश्रा, राज बब्बर, सुनील ग्रोवर और फरीदा जलाल जैसे ढेरों मशहूर नाम शामिल थे। टिप्स फिल्म्स के बैनर तले बनी इस भव्य फिल्म का डायरेक्शन किया था दिग्गज़ डायरेक्टर राजकुमार संतोषी ने।

कांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल जी द्वारा लिखे गीतों के अलावा फ़िल्म के अन्य गीतों को लिखा था गीतकार समीर ने और संगीत तैयार किया था मशहूर संगीतकार ए आर रहमान ने, जिसे लोगों ने ख़ूब पसंद किया। हालांकि बहुत ही इत्मीनान और पूरी रिसर्च के साथ फ़िल्म बनाने में माहिर राजकुमार संतोषी जी की यह फ़िल्म उस वर्ष रिलीज़ हुई बाक़ी दोनों फ़िल्मों से तो ज़्यादा पसंद की गयी लेकिन उतनी सफल साबित न हो सकी जितनी की इससे अपेक्षा की गयी थी और लगभग 20 से 25 करोड़ की लागत से बनी यह फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर महज 13 करोड़ के आस-पास की ही कमाई कर सकी थी।

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रंग दे बसंती

 रंग दे बसंती-

वर्ष 2006 में रिलीज़ हुई आमिर ख़ान की यह फ़िल्म बेशक़ भगतसिंह पर आधारित थी लेकिन इस फ़िल्म की कहानी को बहुत ही अलग ढंग से पेश किया गया था जो फिल्म को रोचक बनाने का करता है। दरअसल भगतसिंह पर आधारित पिछली कुछ फ़िल्मों का हश्र देखते हुये यह नया प्रयोग आवश्यक भी था जिसका नतीज़ा भी अच्छा ही साबित हुआ।

इस फ़िल्म में ऐक्टर सिद्धार्थ ने भगतसिंह को भूमिका निभाई थी तो वहीं आमिर ख़ान चंद्रशेखर आज़ाद की भूमिका में नज़र आये थे। अन्य किरदारों में ओम पुरी, अनुपम खेर, आर माधवन, शर्मन जोशी, कुणाल कपूर, अतुल कुलकर्णी, किरण खेर और सोहा अली जैसे ढेरों ऐक्टर्स शामिल थे।

इस फ़िल्म में हॉलीवुड के भी कई ऐक्टर्स शामिल थे साथ ही लेजेंडरी ऐक्ट्रेस वहीदा रहमान जी और मशहूर डायरेक्टर व ऐक्टर लेख टंडन जी भी विशेष भूमिकाओं में नज़र आये थे।राकेश ओमप्रकाश मेहरा के डायरेक्शन में बनी इस फिल्म का निर्माण राकेश ओमप्रकाश मेहरा और रॉनी स्क्रूवाला ने मिलकर किया था ।

फिल्म का संगीत एक बार फिर ए आर रहमान ने दिया था जो बहुत ही सफल साबित हुआ था। महानगरों के दर्शकों को ध्यान में रखकर बनायी गयी इस फ़िल्म ने बॉक्स ऑफिस पर लगभग 970 मिलियन की कमाई की थी और तब तक की पहले सप्ताह में देश की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बनी थी साथ ही यह बॉलीवुड में सबसे ज्यादा ओपनिंग-डे कलेक्शन करने वाली फ़िल्म भी साबित हुई थी। इस फ़िल्म को ढेरों अन्य अवाॅर्ड्स के अलावा बेस्ट पॉपुलर फ़िल्म के लिए नेशनल फिल्म अवाॅर्ड से भी सम्मानित किया गया था।

इन तमाम फ़िल्मों के अलावा भी सरदार भगत सिंह के जीवन पर ढेरों टीवी शोज़ बनने के साथ-साथ अन्य भाषाओं में भी फिल्में बन चुकी हैं और शायद आगे भी बनती रहेंगी। बॉलीवुड में जब तक फ़िल्मों का निर्माण होता रहेगा, तब तक आज़ादी की कहानी पर भी फ़िल्में बनती ही रहेंगी और जब भी कोई ऐसी फ़िल्म बनेगी तो उसमें शहीद भगत सिंह की भूमिका ज़रूर लिखी जायेगी, क्योंकि उनका ज़िक्र किये बिना देश की आज़ादी की कहानी अधूरी ही मानी जायेगी।

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