दोस्तों नब्बे के दशक की बात करते ही कई सारी यादें जेहन में ताज़ा हो जाती हैं. जैसे रामायण , महाभारत ,शक्तिमान इत्यादि . इन्ही सब के बीच एक और याद जेहन में गूंजती है और वो हैं अल्ताफ राजा के गाने जो उस दौर के टैक्सी और ऑटो ड्राइवरों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ करते थे .
घर से निकलकर ऑटो से सफर करना और तुम तो ठहरे परदेसी गाना ना सुनाई दे तो सब कुछ अधूरा सा लगता था. अल्ताफ राजा के गाने उस दौर के युवाओं के टूटे दिल पर मरहम का काम किया करते थे .खैर उस समय हमारी उम्र तो छोटी थी ज्यादा कुछ समझ में नहीं आता था लेकिन जब बड़े हुए तो अल्ताफ राजा के गानों से हमारा भी खासा लगाव हो गया .
जब तुम से इत्तेफाकन मेरी नज़र लड़ी थी अब याद आ रहा है शायद वो जनवरी थी से लेकर लेकिन ये क्या बताऊँ अब हाल दूसरा है वो साल दूसरा था ये साल दूसरा है . एक साल के बारह महीनो में एक प्रेमी के मनोदशा का मार्मिक चित्रण आपको अल्ताफ राजा के गानों में ही मिल सकता है . अमूमन इनके गाने दस से पंद्रह मिनट के हुआ करते थे लेकिन बिना स्किप किये हुए लोग उसे पूरा का पूरा सुनते थे .
समय बीतता गया कैसेट इंडस्ट्री ख़त्म हुई . डीवीडी का जमाना आया .डीवीडी खत्म हुई यू ट्यूब का जमाना आया और इन सबके बीच अल्ताफ राजा के गाने भी कहीं गुम हो गए .उस दौर के युवा अब प्रौढ़ हो चुके हैं और बच्चे अब युवा .शायद यही दो पीढ़ी है जो अल्ताफ राजा के गानों की भावना को भली भांति समझती है .
अल्ताफ राजा ने फिल्मों के लिए बहुत कम गाया बॉलीवुड में जो उनके इक्का दुक्का गाने आये भी वो अधिकतर मिथुन दा की फिल्मों के लिए हुआ करते थे . बॉलीवुड में उनके जितने भी गाने आये वो सब के सब हिट रहे फिर भी बॉलीवुड में इनको ज्यादा मौका नहीं मिला ये बात आश्चर्य चकित करती है .
अल्ताफ राजा का जन्म पंद्रह अक्टूबर 1967 को महाराष्ट्र के नागपुर में हुआ था . वैसे तो इनका पूरा नाम अलताफ इब्राहिम मुल्ला है लेकिन गायकी में ये मशहूर हुए अल्ताफ राजा के नाम से . इनकी प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा नागपुर से ही संपन्न हुई . बाद में ये अपने अपने माता पिता के साथ मुंबई चले आये . बचपन से ही इनके घर में संगीत का माहौल था .इनके माता पिता दोनों ही कौवाली गायक थे
. बचपन में रफ़ी साब गुलाम अली किशोर डा इनके प्रेरणा श्रोत थे और उन्ही के गाने सुनकर इनके मन में संगीत का बीज पनपा . इसके बाद मन में प्लेबैक सिंगर बनने का सपना लेकर इन्होने संगीत की साधना शुरू कर दी . 20 साल की उम्र में इन्हे अपने पिता जी के साथ पहली बार मंच पर आने का मौका मिला और इनके आवाज की काफी तारीफ हुई .
इसके बाद से इन्होने मंच पर गाना शुरू कर दिया . 80 के दशक का अंत हुआ और 90 के दशक की शुरुआत हुई 1990 में अल्ताफ साब के कवर वर्ज़न के कुछ एल्बम भी रिलीज़ हुए जिसे कोई खाश पर्तिक्रिया नहीं मिली . उसी साल इनके खुद के कम्पोज़िशन की धार्मिक एल्बम सजदा रब को कर ले रिलीज़ हुई .
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1990 से 1995 के बीच इनके कई और एल्बम आये लेकिन इन्हे वो सफलता नहीं मिल पायी जिसकी इन्हे दरकार थी . फिर कुछ ऐसा हुआ जिसने अल्ताफ राजा की किस्मत बदलकर रख दी. वीनस कप्म्पनी से रिलीज़ हुए एल्बम तुम तो ठहरे परदेसी ने तहलका मचा दिया . आप को बता दें की उस दौर में इस एल्बम की करीब चालीस लाख प्रतियां बिकी .
जिसके लिए इसका नाम गिनीज बुक में भी दर्ज किया गया .इस गाने की सफलता ने अल्ताफ राजा को उस दौर के नामी सिंगरों के बीच लेकर खड़ा कर दिया . इसी एल्बम के लिए इन्हे वि चैनल की तरफ से बेस्ट इंडियन एल्बम का अवार्ड भी मिला . तुम तो ठहरे परदेसी की सफलता से प्रभावित होकर राजीव बब्बर ने इन्हे अपनी फिल्म शपथ में गाने का मौका दिया .
फिल्म में इन्हे गाने के साथ अभिनय करने का भी मौका मिला .इसके बाद इनके सफलता का कारवां चलता गया इन्होने कौवाली का अलग ही ट्रेंड सेट किया .गायकी के अलावां इन्होने कुछ बॉलीवुड फिल्मों में म्यूजिक भी दिए .
धीरे धीरे समय बीतता गया और जैस की मने पहले भी कहा है की स्टारडम की समय सीमा ज्यादा लम्बी नहीं होती हर कलाकार के जीवन में ऐसा दौर आता है जब उसकी लोकप्रियता घटती है और उसकी जगह नए लोग आते हैं .2015 में बम गोला नाम से इनकी एक एल्बम आयी थी और फिल्म तमाशा में एक गाना भी आया था .अब आगे अल्ताफ साब अपने चाहने वालों के लिए क्या लेकर आएंगे ये तो वही जाने लेकिन उनके चाहने वाले आज भी उनके पुराने गीतों को उसी चाव से सुनते हैं .