Sanju Samson : ऐ BCCI ऐ ज़ुल्म न कर
Will Sanju Samson Career Be Ruined ? क्या संजू की किस्मत में इंतजार ही है ?
साल था 2011, वेस्टइंडीज़ की टीम वनडे सीरीज खेलने इंडिया आई हुई थी। 5 मैचो की सीरीज़ भारत तीसरे वनडे तक ही जीत चुका था। इसलिए, आख़िरी दो मैचों में नये प्लेयर्स को मौके दिये गये। ऐसे ही नये मौके हासिल करने वाले एक प्लेयर का नाम था, मनोज तिवारी। कई महीनों से चांस का वेट कर रहे मनोज तिवारी ने सीरीज़ के आख़िरी मैच में मुसीबत में फँसी इंडिया को निकाला और मिडिल ऑर्डर में आकर शानदार नाबाद 104 रनो की पारी खेली। तब वर्ल्ड क्रिकेट ने पहली बार नए-नवेले मनोज तिवारी की फाइटिंग स्पिरिट को सराहा और उम्मीद बाँध ली कि, अब तिवारी को लगातार मौके मिलेंगे, युवराज पर ओवर डिपेंडेंट इंडियन मिडिल ऑर्डर को एक मज़बूत पहलू मिलेगा और वर्ल्ड क्रिकेट में एक नये स्टार का उदय होगा।
मगर, ऐसा कुछ नही हुआ। क्योंकि, 11 दिसम्बर 2011 को खेले गये उस मैच के बाद मनोज तिवारी को अगला चांस 31 अगस्त 2012 को मिला। जबकि, इस दौरान भारत मे क़रीब डेढ़ दर्जन वनडे खेले, बुरी तरह मिडिल ऑर्डर फ़्लॉप रहा और सबसे ज़रूरी बात इस दौरान फ़िट मनोज तिवारी स्क्वाड में भी थे। मगर, उन्हें मौका नहीं मिला। फिर भी उन्होंने ये सब भुला दिया और 4 अगस्त 2012 को शानदार 65 रन बनाए। मगर, इसके बाद उन्हें फिर अगला चांस 2014 में मिला और फिर लगातार 3 बार 2015 मे वो नीली जर्सी में नज़र आये। जहाँ वो फ़्लॉप रहे और उन्हें आउट ऑफ़ फ़ॉर्म फ़्लॉप प्लेयर का टैग देकर इंडियन टीम से निकाल दिया गया। इस तरह दूसरे प्लेयर्स को मौका देने के चक्कर मे एक प्रूवन टैलेंटेड प्लेयर के कैरियर का नाश हो गया।
दोस्तों! आप सोच रहे होंगे कि क्रिक माइंड ये कहानी आज क्यों सुना रहा है? जबकि, थम्बनेल पर तो मनोज तिवारी का कोई ज़िक्र भी नहीं है। तो इस सवाल का जवाब है कि क्या आपको ये कहानी अपनी आँखों के सामने दोबारा घटती हुई नज़र नहीं आ रही है ? बस बदलाव ये है कि उस दौरान के बस एक कप्तान धोनी थे, इस दौर के चार-पाँच हैं। वो प्लेयर एक मिडिल ऑर्डर ऑल राउंडर स्टाईल का प्लेयर था, ये प्लेयर कीपर प्लस कप्तान प्लस अच्छा फ़ील्डर प्लस शानदार अटैक्किंग बैटर भी है और सबसे ज़्यादा ज़रूरी बात, उस प्लेयर का नाम है संजू Samson।
वो संजू सैमसन जो कई सालों से हर रोल में, हर नम्बर पर आईपीएल में ख़ुद को साबित करते आ-रहे हैं। मगर, इंटरनेशनल लेवल पर उन्हें कोई इम्पॉर्टेंस नहीं दी जा रही है। कहने को तो उन्हें इंटरनेशनल क्रिकेट में मौके मिले हैं। मगर, वो स्कोर नहीं कर पाए। जिसकी वजह उनकी खराब बैटिंग से ज़्यादा टीम की नीड थी। वो जब बैटिंग करने आये, तब बड़े रनो से ज़्यादा तेज़ रनो की ज़रूरत थी। इसलिये, अगले कुछ सालों तक सैमसन के शुरुआती कैरियर के कमज़ोर आँकड़ों को ही गिना गया और अंकनसिस्टेंट बैटर बोलकर चांस ही नहीं दिए गए। हालाँकि, अब तो उन्होंने इंटरनेशनल क्रिकेट में रन भी बनाना शुरू कर दिए हैं।
मगर, मैनेजमेंट का ध्यान उनकी तरफ़ है ही नही। संजू के बाद आये बहुत से प्लेयर्स को दिल खोलकर मौके दिए जा रहे हैं। जैसे ईशान किशन को ही ले लीजिए, वो पिछले 1 साल से आईपीएल और इंटरनेशनल क्रिकेट दोनों जगह ही फ़्लॉप है, मगर टीम इंडिया में संजू से आगे हैं। किशन के बाद दीपक हुड्डा भी इस लिस्ट में ही हैं। हालांकि, उनका रोल और स्टाइल संजू से अलग है। मगर, कम से कम वो टीम में तो हैं ना। उन्हें गिना तो जा रहा है। इनके अलावा श्रेयड अय्यर भी वाइट बॉल क्रिकेट में नम्बर 4 पर कुंडली मारकर बैठे हैं, कई ज़रूरी मौकों पर ऑलरेडी फ़्लॉप हो चुके हैं। मगर, बीच-बीच मे एक-आध अच्छी पारी खेल लेते हैं और ख़ुद को बचा जाते हैं।
बिल्कुल वैसे ही ऋषभ पंत का केस है। ऋषभ वनडे और टेस्ट के अच्छे प्लेयर हैं, इसमें कोई शक नहीं। मगर, वो टी-ट्वेंटी का कोड अभी तक क्रैक नहीं कर पाये हैं। जोकि, उनके आंकड़ों में नज़र आता भी है। मगर, ऋषभ को मौके पर मौके दिए जा रहे हैं। मिडिल ऑर्डर में नहीं चल रहे हैं, तो ओपनिंग करवाई जा रही है, नम्बर तीन स्पॉट ढूंढा जा रहा है और कोफीडेंट देने के लिए एक टीम एक कीपर पॉलिसी पर अमल किया जा रहा है।
जबकि, संजू सैमसन बाहर से ये तमाशा बैठे-बैठे देख रहे हैं और बस दुआ कर रहे हैं टीम मैनेजमेंट के उन पर भी ऐसे ही महरबान होने की। वैसे हम एक बात साफ़ कर दें कि यहाँ क्रिक माइंड किसी दूसरे प्लेयर को डाउन ग्रेड या बेकार नहीं बोल रहा है। हम तो बस ये बता रहे हैं कि कैसे संजू सैमसन को फ़िलहाल साइड लाइन किया जा रहा है।
उनकी जगह सूर्यकुमार यादव को लाया गया, मौके दिए गए और आज वो कहां हैं आप देख सकते हैं। कोहली का बुरा पैच था, उनको मौके मिलते गये और आज वो क्या कोहराम मचा रहे हैं आप देख रहे हैं। बिल्कुल ऐसे ही हार्दिक पांड्या का कैरियर भी ख़त्म था। मगर, उन्हें मौके मिले और आज वो इंडियन टीम के कप्तान हैं। मगर, संजू के साथ ऐसा नहीं है। उन्हें बस स्क्वाड में शामिल करके एक दो मौके कहीं भी, बिना किसी स्पेसिफिकेशन के दिए जाते हैं और एक भी पारी में फ़्लॉप होते ही बेंच का रास्ता दिखा दिया जाता है।
लेकिन, संजू के आंकड़े चीख़-चीख़ कर कहते हैं कि संजू फ़िलहाल मिडिल ऑर्डर में होना डिज़र्व करते हैं। संजू ने अभी तक खेले 11 वनडे मैचों की 10 इनिंग्स में 66 की औसत से 330 रन बनाए हैं। संजू की ये औसत कई उन बड़े प्लेयर्स से भी बेहतर है, जो बस टैलेंट के नाम पर मौके हासिल किए जा रहे हैं। जबकि टी-ट्वेंटी के उनके आँकड़े यादव और कोहली के मुकाबले के हैं। अब सवाल ये है कि संजू के साथ ये व्यवहार ख़त्म कब होगा। कब संजू को मेन स्ट्रीम प्लेयर्स में काउंट किया जाएगा और कम से कम 5 लगातार मौके बेफिक्री के साथ दिए जायेंगे। क्योंकि, अब अगर मौके नहीं हुए तो वर्ल्ड कप के बर्फ फिर हम वीडियो बनायेंगे और कहते जायेंगे कि
संजू के साथ जो हो रहा है, पता नहीं क्यो हो रहा है। मगर, इतना तय है कि ये गलत है, बहुत ही ज़्यादा गलत।