दोस्तों! आज वर्ल्डकप (world cup) इन आ ग्लान्स (glans) के इस एपीसोड (episode) की शुरुआत किसी बहुत भारी स्टेटमेंट (statement) या अट्रैक्टिव (attractive) वर्ड के साथ नहीं करेंगे। आज की कहानी की शुरुआत (beginning) को उतना ही सादा और सिंपल (Simple) रखेंगे कि जितना सादा और सिंपल मगर इम्पैक्टफुल (impactful) इस एपिसोड (episode) में कवर होने वाला वर्ल्डकप यानी 1999 वर्ल्डकप (world cup) था। हालाँकि(however) जिस जगह पूरी दुनिया (World) की टीमें इखट्टा (collected) हों, वो जगह भला सादा (simple) कैसे हो सकती है। मगर, यहां सादा से हमारा मतलब डिग्रेडेशन (Degradation) से नहीं है। बल्कि(Rathe) पिछले और इसके बाद हुए वर्ल्डकप्स (world cups) में जितनी कॉन्ट्रोवर्सी (Controversy) हो-हल्ला खेल से इतर चीज़ों को लेकर ज़्यादा (more) हुआ था, वो इस वर्ल्डकप में नहीं था। ये वर्ल्डकप अपनी ही तरह का एक टूर्नामेंट (Tournament) बनकर रह गया है। जिसकी मिसाल (precedent) आज बहुत कम दी जाती है, मगर हर ऑर्गेनाइज़र (Organizer) की चाहत ऐसे ही इवेंट (event) की रहती है। क्योंकि, 1996 के सिर्फ़ (only) 3 साल बाद ही ये वर्ल्डकप होना था, तो खबरें उड़ रही थीं कि इंग्लैंड (England) इतना तैयार नहीं है। मगर, जब वर्ल्डकप (world cup) को लेकर शेड्यूल्स (Schedules) और डेट्स वगैराह (etc) आयीं तो पता चला कि इंग्लैंड (England) कुछ ज़्यादा ही तैयार है। असल मे हुआ ये था कि क़रीब 16 साल बाद इंग्लैंड वर्ल्डकप होस्ट करने जा रहा था, फिर भी वो कुछ एक्सपेरिमेंट्स (experiments) करने को तैयार थे, ये एक्सपेरिमेंट्स ही इंग्लिश (English) बोर्ड को बहादुरी (bravery) की मिसाल (precedent) थे, जोकि फेल होते तो इतिहास (History) में बेवकूफ़ी (stupidity) बनाकर लिखे जाते। मगर, इंग्लिश बोर्ड ने बिना डरे कुछ नए नए काम किये, जिनमे उन्हें अभी अभी मजबूती (strength) के साथ अस्तित्व (Existence) में आया इंटरनेशनल (International) क्रिकेट (Cricket) काउंसिल (council) यानी आईसीसी (ICC) का पूरा साथ मिला। इसलिए, नारद टी वी की वर्ल्डकप बेस्ड टॉप-5 मूमेंट्स (moments) की ख़ास सीरिज़ के 1999 वर्ल्ड कप की कहानी (Story) का पहला बड़ा लम्हा भी, कुछ नई शुरुआँतों (beginnings) की इर्द-गिर्द ही है |
1) 4 होस्ट, नई बॉल, नई ट्रॉफी और लोगो पर इंडियन:
तो! हुआ ये था कि साल 1999 में 14 मई से शुरू होने वाला सातवां (Seventh) वनडे वर्ल्ड कप एडिशन (edition) यूँ तो किसी खास चर्चा के लिए किसी खास रीज़न (Reason) का मोहताज (needy) नही था। मगर, इंग्लैंड (England) में हो रहे 12 टीमो के 42 मैचो वाले इस त्योहार (Festival) को लाइमलाइट (Limelight) तब मिली जब पता चला कि ये वर्ल्डकप (world cup)इंग्लैंड नहीं बल्कि इंग्लैंड (England) एंड वेल्स (wales) होस्ट करेगा। यानी इंग्लैंड के आस पास के देश आयरलैंड(Ireland) स्कोटलैंड (scotland) और नीदरलैंड्स (Netherlands) को भी मौके मिलेंगे। सबको प्रॉपर चांस देने की कोशिश (Effort) में ही 1999 वर्ल्ड कप में 42 मैच 21 स्टेडियमो (stadiums) में होने थे। यानी प्लेयर्स (players) के लिए ट्रेवल (travel) बढ़ने वाला था। हालाँकि(however) इस सवाल का जवाब इंग्लिश ज़मीन पर शानदार (Fabulous) तैयारी से मिला। लेकिन, एक चीज़ की तैयारी कोई प्लेयर (player) कर के नहीं आया था और वो थी एक नए ब्रैंड की बॉल। दरअसल 1999 वर्ल्डकप ही पहला ऐसा मौका था जब ड्यूक (Duke) की बॉल यूज़ हुई थी। इसलिये,(Therefore) किसी को बहुत ज़्यादा इस बॉल के बर्ताव के बारे में पता नहीं था। हालाँकि,(however) आगे चलकर समझ आया कि हार्ड ड्यूक्स (Dukes) बॉल बौलर्स को ज़्यादा (more) स्विंग और सीम प्रोवाइड (provide) करती है, जिसको ही 1999 वर्ल्डकप के लो स्कोरिंग (scoring) मैचो का जिम्मेदार (Responsible) माना गया था। वैसे! बॉल और होस्ट्स (hosts) के अलावा इस बार ट्रॉफी (trophy) भी काफ़ी नई थी। क्योंकि, 1999 ही पहला ऐसा मौका था जब आईसीसी (ICC) ने वो स्टम्प्स (Stumps) पर रखी बॉल वाली आइकोनिक (Iconic) ट्रॉफी इंट्रोड्यूस (Introduce) करी, जो अब वनडे वर्ल्डकप (World Cup) की पहचान बन गई है। पहचान से याद आया कि हर टूर्नामेंट (Tournament) की छाप उसका लोगो छोड़ता है, जोकि यूनिक (Unique) होना बहुत ज़रूरी है। इस वर्ल्डकप का लोगो जितना यूनिक (Unique) था, उतना ही इंडियन्स के प्राउड (Proud) करने वाला भी था। दरअसल इस वर्ल्डकप के लोगो मे बौलिंग (Bowling) कराते प्लेयर की इंस्पिरेशन (Inspiration) इंडियन बौलर देबाशीष मोहंती से ही गई थी। इन सब खास और नई बातों के अलावा 1999 वर्ल्डकप को बीबीसी (BCC) की इंग्लिश क्रिकेट की आख़िरी कवरेज (Coverage) के तौर पर भी याद किया जाता है। क्योंकि, इस टूर्नामेंट के बाद से ही चैनल 4 और स्काई ने इंग्लिश क्रिकेट ब्रॉडकास्ट करने के लिए अपना दबदबा बना लिया।
इस तरह काफ़ी नई बातों और यादों (Memories) के पोडियम (Podium) पर 14 मई 1999 को लंडन (London) में होस्ट इंग्लैंड बनाम (Vs) रनिंग (Running) चैंपियन (Champion) न्यूज़ीलैंड के मैच से वर्ल्डकप का आग़ाज़ हुआ। वो मैच इंग्लैंड ने लंका से 8 विकेटों से जीतकर थोड़ी सी चौंकाने वाली शुरुआत की जिसे अगले ही दिन भारत की साउथ अफ़्रीका (Africa) पर मिली हार ने और भी हाइलाइट (Highlight) कर दिया। इसके बाद अगले कुछ मैचों में ज़िम्बाब्वे, पाकिस्तान, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड की पहले से तय एकतरफा जीतो ने वर्ल्डकप (WorldCup) की सधी हुई शुरुआत की। मगर, इस वर्ल्डकप को असली पेस या कहें चर्चा मिली 19 मई को। वो तारीख (Date) जो आज भी वर्ल्डकप की हिस्ट्री में इंडियन (Indian) क्रिकेट के पेज (Page) पर एक काला निशान है। वो तारीख़, जिसने हमारे आख़िरी मूमेंट (Moment) पर पैनिक (Panic) करने की आदत को जग ज़ाहिर कर दिया था। इसलिए, यही है हमारे इस एपिसोड का दूसरा बिग मूमेंट;
2) ….और ज़िम्बाब्वे ने इंडिया को 3 रनो से हरा दिया:
हो सकता है, इस टाइटल को सुनकर आआपके दिल मे जो चिंगारी लगी है वो आगे आने वाली स्टोरी सुनकर आग बन जाये। लेकिन, इस कहानी के घटने के पीछे की क्या कहानी है, वो ही 1999 वर्ल्डकप (World Cup) या कहें पूरे इंडियन क्रिकेट हिस्ट्री (History) की समरी (Summary) है। वो समरी जिसे अक्सर इम्पोर्टेंस (Importance) नहीं दी जाती। मगर, हर बार एक बड़े सेटबैक (Setback) के बाद वापसी करना ही क्रिकेट और उससे जुड़े नेशन्स (National) की पहचान है। बिल्कुल, ऐसा ही एक सेटबैक (Setback) था वो मैच। जिसकी शुरुआत से ही श्रीनाथ, अगरकर और वेंकी के स्पेल्स (Spells) के चलते ज़िम्बाब्वे की इनिंग हमेशा लड़खड़ाती रही। हालाँकि, ग्रांट फ्लावर के 45 और एंडी फ्लावर के 68 रनो ने ज़िम्बाब्वे को बीच बीच मे वो पुश ज़रूर दिया, जिसके दमपर 50 ओवरों में ज़िम्बाब्वे ने 252 रन बना लिए थे। वैसे तो गांगुली, द्रविड़, अज़हर और जडेजा से लैस उस बैटिंग लाइनअप (Lineup) के सामने 253 रन कुछ बहुत बड़ा स्कोर (Score) नहीं था। मगर, जब 56 के स्कोर तक अज़हर, गांगुली और राहुल तीनो ही आउट (Out) हो गए तो हालात काफ़ी ख़राब थे।
यहीं, से ओपनिंग (Opening) पर आए रमेश ने अजय जडेजा के साथ इनिंग को स्टेब्लिटी (Stability) दी और एक समय जीत के लिए 3 विकेट हाथ मे होते हुए सिर्फ़ 7 रनों की दरकार थी। जबकि, बॉल्स का प्रेशर बिल्कुल था नहीं। ऐसे में इंडिया की जीत महज़ औपचारिकता (Formality) लग रही थी। लेकिन, यहीं पर ओलंगा ने वो हिस्टोरिकल (Historical) ओवर किया जिसमें एक के बाद एक बचे हुए तीनो इंडिया विकेट गिर गए और सिर्फ़ 7 रन ढूंढ रही फ़ैन्स (Fans) की आंखें 3 रन की कमी की गवाह (Witness) बनकर रह गई। वैसे उन दिनों फ़ैन्स की ये आँखें ग़म कुछ ज़्यादा ही झेल रही थी। क्योंकि, देश (Country) मे बॉर्डर पर हालत तनावपूर्ण थे, तो क्रिकेट ग्राउंड से बुरी खबरें आ रही थी। वैसे! यहाँ बुरी ख़बर से हमारा मतलब सिर्फ़ इंडिया की हार से नहीं है। यहाँ हमारा मतलब है क्रिकेट के भगवान के ग़म से। जी दोस्तों! आपने सही समझा हम यहां सचिन तेंदुलकर की बात कर रहे है। जिनका नाम आपने ज़िम्बाब्वे के ख़िलाफ़ इंडियन बैटिंग (Batting) लाइनअप में नहीं पड़ा होगा। क्योंकि, सचिन उस मैच में खेले ही नहीं थे। असल मे सचिन तो उस दिन इंग्लैंड में भी नहीं थे। क्योंकि, मैच से ठीक पहले सचिन को पता चला था कि वो शख़्स (Person) जिन्होंने उनके सचिन होने में अहम भूमिका निभाई थी, वो दुनिया छोड़कर जा चुके हैं। इसलिए, सचिन वर्ल्ड कप बीच मे छोड़कर इंडिया लौट आए। ये वो लम्हा था, जब सचिन की और इंडियन टीम दोनों की वापसी की ख़बर किसी को नहीं थी। मगर, हमने कहा था ना कि 1999 वर्ल्डकप सेटबैक और उसके बाद हुए कमबैक के लिए याद रखा जाएगा।
पिता के गुज़र जाने के बाद सचिन ने उनके सपने के लिए अगले मैच से पहले वापस आना ज़रूरी समझा और उसके बाद जो उन्होंने और इंडियन टीम ने किया वो ही इस लिस्ट का तीसरा बड़ा मूमेंट है;
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3) सचिन का शतक और इंडिया की वापसी;
ज़िम्बाब्वे के मैच (Match) के बाद इंडिया अपने वर्ल्डकप के पहले दोनों मैच (Match) हार चुका था। उधर, साउथ अफ़्रीका अपने सभी, इंग्लैंड 2 और श्रीलंका भी 1 मैच जीतकर बेहतर स्थिति में था। क्योंकि, 6 टीमो (Teams) के ग्रुप में से अगले राउंड (Round) में सिर्फ़ 3 टीमें जा सकती थी। ऐसे में इंडिया के लिए अगले सब मैच करो या मरो वाले थे और ऐसे में उनके सामने पड़ गई केन्याई टीम। फ़ॉर्म से जूझ रही इंडियन बैटिंग कमज़ोर (Weak) केन्याई लाइनअप पर टूट पड़ी और जमकर कुटाई करते हुए 329 रन बनाए। इस इनिंग (Innings) में द्रविड़ के 104 के अलावा सचिन के 140 भी थे। वो सचिन जो जस्ट (Just) एल बड़े सदमे से लौटे थे। वो सचिन जिन्होंने उस मैच में बनाया हर एक रन अपने पिता के नाम किया। वो सचिन जिन्होंने शतक के बाद उस रोज आसमान को ऐसे देखा, मानो उनके पिता वहीं मौजूद हैं। ये कुछ वो लम्हें हैं, जिन्होंने सचिन को क्रिकेट का भगवान बनाया।
क्योंकि, हर मुश्किल लम्हे के बाद सचिन उठ खड़े होते थे और उनके साथ खड़ी हो जाती थी टीम इंडिया। जैसे ज़िम्बाब्वे से मिले झटके के बाद 1999 वर्ल्डकप में भी खड़ी हुई थी। कहां तो हम 4 दिन पहले ज़िम्बाब्वे से हारे थे और कहां फिर केन्या के बाद श्रीलंका और इंग्लैंड को धो डाला। खासकर श्रीलंका के सामने गांगुली के 183 और द्रविड़ के 145 की मदद (Help) से 373 रन जिस बेदर्दी से बनाए थे, उसकी बहुत कम मिसालें इंडियन क्रिकेट में हैं। उस मैच से ग्राउंड के बाहर लंबे-लंबे छक्के मारने का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ था जो आगे भी चला। जहाँ उस मैच में गांगुली ने बॉल स्टेडियम (Stadium) पार करके नदी में फेंक दी थी। वहीं अगले मैचो में सचिन ने वो कारनामा किया। इस तरह लो कॉन्फिडेंस (confidence) वाली इंडियन एक दम से टीम उठ खड़ी हुई और लगातार तीन जीतो (Victory) के साथ अगले राउंड (Round) तक पहुंच गई। इंडिया के साथ ग्रुप ए से साउथ अफ़्रीका और ज़िम्बाब्वे भी सुपर सिक्स में पहुंचे। जहाँ दूसरे ग्रुप से ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान और न्यूज़ीलैंड उनका इंतज़ार (Wait) कर रही थी। वैसे तो इंडियन टीम ने फॉर्म (Form) पकड़ ली थी और तीनों मैच जीते थे। लेकिन, 1999 वर्ल्ड कप का फॉर्मेट (Format) इतना निराला था कि इंडिया को कोई फ़ायदा न (Advantage) हीं हुआ। अब ये फॉर्मेट क्या था और इंडिया का पाकिस्तान से होने वाला अगला हिस्टोरिकल (Historical) मैच ही हमारी इस लिस्ट का 4 बिग मूमेंट (Moment) है;
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4) कारगिल में जीत, ग्राउंड में जीत, फिर भी वर्ल्डकप से बाहर:
तो दोस्तों! इंडिया बड़ी ही तेज़ एनर्जी के साथ ग्रुप सिक्स (Six) में आया था। लेकिन, 1999 फॉर्मेट के वजह से इंडिया (India) सभी 6 टीमो के मुकाबले सबसे खराब हालत में था। दरअसल बात ये थी कि उस फॉर्मेंट के हिसाब से ग्रुप सिक्स में आपके साथ आपके ग्रुप और जो अन्य टीमें आई हैं। उनसे ग्रुप स्टेज (Stage) में जीते हुए मैचो के पॉइंट कैरी फारवर्ड (Forward) होंगे। अब इंडिया के केस में ये उल्टा पड़ गया। क्योंकि, जिन टीमो को इंडिया ने हराया, वो बाहर हो गई और जिन्होंने इंडिया को हराया वो अगले राउंड में थी। सुपर 6 जब शुरू हुआ तो पाकिस्तान और ज़िम्बाब्वे सबसे अच्छी हालत में थीं, जबकि इंडिया और ऑस्ट्रेलिया सबसे ख़राब हालत में थी। यानी यहां से दोनों को सब मैच जीतने थे और ऐसे में पहला ही मैच था इंडिया वर्सेज़ ऑस्ट्रेलिया। जहाँ इंडिया दबाव में बिखर गया और वर्ल्डकप (Worldcup) से बाहर हो गया। लेकिन, वर्ल्डकप यहीं ख़त्म नहीं हुआ।
क्योंकि, अगला मैच पाकिस्तान से था। वो देश जिसके साथ कारगिल वॉर (War) चल रही थी। ऐसे हालातों में हद से दबाव के बीच इंडियन टीम ने क्रिकेट फैंस (Fans) का सर झुकने नहीं दिया और पहले सचिन, द्रविड़ के कंट्रीब्यूशन (Contribution) से 227 का सम्मान (Respect) जनक स्कोर (Score) बनाया। फिर, श्रीनाथ ने 3 और वेंकी में 5 विकेट लेकर पाकिस्तान की कमर तोड़ दी। इस तरह वर्ल्डकप में पाकिस्तान को हराने के सिलसिला कायम (To Last) रखते हुए इंडिया ने 1999 वर्ल्डकप में भारतीयों (Indians) को आख़िरी सुनहरी याद दी। क्योंकि, इसके बाद अगला मैच न्यूज़ीलैंड से हारकर इंडिया वतन वापस लौट (Return) आया। तो दोस्तों! इस तरह इंडिया का सफ़र तो सुपर सिक्स (Six) तक ही था। मगर, 1999 वर्ल्डकप में अभी काफ़ी कुछ होना बाकी था, वो काफ़ी कुछ जिसकी नींव सुपर सिक्स के आख़िरी मैच में रखी गई जब गिब्स ने स्टीव वॉ की कैच (Catch) छोड़ी और वो ही है हमारे आज के पोस्ट का आखिरी बड़ा लम्हा;
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5) गिब्स ने कैच छोड़ी और ऑस्ट्रेलिया ने वर्ल्डकप छीन लिया:
इंडिया की ज़िम्बाब्वे से हार, साउथ अफ्रीका की ज़िम्बाब्वे से हार और पाकिस्तान की बांग्लादेश से हार। इस तरह के बड़े बड़े अपसेट्स (Updates) के साये में ऑस्ट्रेलिया का लगातार पहले मैचेज़ (Matches) हारकर फिर सारे ज़रूरी मैच जीतने का अभियान (Champaign) शुरू हो गया था। उन्होने इंडिया, ज़िम्बाब्वे को हराकर सेमीफ़ाइनल में पहुंचने के लिए कदम आगे बढ़ा दिए थे। मगर, 1999 वर्ल्डकप की टॉप टीम साउथ अफ़्रीका सुपर सिक्स के आख़िरी मैच में ऑस्ट्रेलिया के सामने खड़ी थी और जिस अंदाज में साउथ अफ्रीका ने पहले 271 रन बनाए, फिर ऑस्ट्रेलिया की बैटिंग (Batting) को हिलाकर रख दिया, कंगारूओं की जान हलक में थी। यहीं, एक मौके पर गिब्स ने लप्पू सी कैच छोड़ी और स्टीव (Steve) वॉ चढ़कर खेले। उन्होंने अकेले दम पर ना सिर्फ़ मैच जितवाया, बल्कि वर्ल्डकप जीत तक भी ले गए। क्योंकि, उस जीत के बाद ही सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया ने साउथ अफ्रीका को उस ऐतिहासिक टाई मैच में लीग मैच की जीत के दमपर हराया। जिसके बाद साउथ अफ्रीका को चोकर्स का टैग मिला। अफ्रीकी ऑल राउंडर लांस क्लूज़नर भले ही उस वर्ल्डकप के बेस्ट प्लेयर थे। बट, सेमीफाइनल (Semi Final) में उनकी जल्दबाजी ने साउथ अफ़्रीका क्रिकेट की हिस्ट्री (History) ही बदल दी। उधर, दूसरे सेमीफाइनल में पाकिस्तान ने न्यूज़ीलैंड को हराकर फ़ाइनल में ज़रूर क्वलिफ़ाय (Qualify) किया। मगर, पाकिस्तान फ़ाइनल में तो एक दम फुस हो गया और इस तरह 8 विकेट से वर्ल्डकप इतिहास के अभी तक के सबसे एकतरफ़ा फ़ाइनल (Final) को ऑस्ट्रेलिया जीतकर 1999 वर्ल्डकप चैंपियन (Champion) बना। 1983 के बाद लगातार पांचवा ऐसा वर्ल्डकप था, जब कोई अंडरडॉग (Underdog) पीछे से आकर जीता हो। लेकिन, अब वर्ल्ड क्रिकेट गवाह होने वाला था लीथल ऑस्ट्रेलिया का। वो ऑस्ट्रेलिया जिसके जलवों से भरी पड़ी हैं किताबें और उस किताब का ही एक हिस्सा लेकर आयेंगे हम अगले एपिसोड में। तब तक के लिए….
धन्यवाद!
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