शौहरत, कामयाबी के आसमान का एक ऐसा सितारा जिसे हासिल करने की चाहत लगभग हर इंसान को होती है। हमारे देश में क्रिकेट और बॉलीवुड दोनों शौहरत पाने के सबसे मशहूर रास्ते हैं। लेकिन, मैदान हो या पर्दा दोनों कई कुर्बानियों के बाद ही इनाम देते हैं। आसान लफ़्ज़ों में कहें तो क्रिकेट और बॉलीवुड दोनों जगह कामयाब होने के लिये कड़ी मेहनत के साथ संयम भी चाहिये होता है। इसलिये, क्रिकेट और सिनेमा जगत दोनों में एक ही समय पर कामयाब हो पाना नामुमकिन कहा जा-सकता है। लेकिन, एक ऐसे ही खिलाड़ी का नाम है Salil Ankola हैं जिन्होंने ये नामुमकिन काम भी कर के दिखाया है।
वो सलिल अंकोला जो 90 के दशक में भारतीय पेस बैट्री का हिस्सा थे। तो, 21वीं सदी में पर्दे और टी.वी. दोनों पर छाये रहे।
कभी विक्राल बनकर तो कभी सूर्य देव बनकर सलिल अंकोला ने हमारे दिलों में घर कर लिया।
स्कूल के दिनों से हुई क्रिकेट की शुरुआत-
दोस्तों, 1 मार्च 1968 के दिन महाराष्ट्र के सोलापुर में एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे सलिल अंकोला को बचपन से ही क्रिकेट पसन्द था। सलिल स्कूली दिनों से ही तेज़ गेंदबाज़ी पर काम कर रहे थे।
वक़्त के साथ सलिल का प्रदर्शन बेहतर होता गया और उनका नाम महाराष्ट्र क्रिकेट गलियारों में गूँजने लगा।
जिसका नतीजा ये रहा कि 1988-89 सत्र में सलिल अंकोला ने महराष्ट्र रणजी टीम में जगह बना ली। मात्र 20 साल के सलिल ने अपने पहले ही रणजी मैच में गुजरात के विरुद्ध हैटट्रिक ली और कुल 6 विकेट प्राप्त किये।
Salil Ankola कैसे हुए भारतीय टीम में शामिल?
सलिल ने आगे भी बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए, उस सत्र के 5 मैचों में 27 विकेट प्राप्त किये। सलिल अपने पहले सीज़न में ही सनसनी बनकर उभरे।
उस समय भारतीय क्रिकेट में एक अच्छे तेज़ गेंदबाज़ का होना रेगिस्तान में पानी मिलने के बराबर माना जाता था। चयनकर्ताओं ने सलिल को फ़ास्ट ट्रैक करते हुए साल 1989-90 में पाकिस्तान जाने वाली भारतीय टीम में शामिल कर लिया।
फिर आया 15 नवम्बर 1989 का वो दिन जब सलिल का अपने देश के लिए खेलने का सपना पूरा हुआ।
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सलिल ने कराची टेस्ट में पहली और आख़िरी बार भारतीय टेस्ट कैप पहनी। उस टेस्ट में सलिल के अलावा सचिन तेंदुलकर और वक़ार यूनुस ने भी डेब्यू किया था।
क्रिकेट इतिहास में जब भी 15 नवम्बर 1989 की बात होती है तो सचिन और वकार को ही याद किया जाता है। सलिल अंकोला का ज़िक्र आपको शायद ही क्रिकेट की किसी कहानी में मिले।
दोस्तों, क़रीब 6 फ़ुट के सलिल अंकोला तेज़ गेंदबाज़ी के दौरान अपनी लंबाई का पूरा फ़ायदा उठाते थे। सलिल के पिटारे में तेज़ बाउंसर और सटीक यॉर्कर थी। उसके ऊपर से सलिल के पास लगातार गेंदबाज़ी करते रहने का स्टैमिना भी था।
अपने पहले टेस्ट मैच में सलिल ने 130 रन देकर सिर्फ़ 2 विकेट प्राप्त किये। इस साधारण प्रदर्शन के चलते सलिल को भारतीय टीम से ड्रॉप कर दिया गया।
साल 1990-91 से सलिल पराक्रमी मुम्बई रणजी टीम का हिस्सा बन गए। घरेलू क्रिकेट में सलिल ने कई मौकों पर अच्छे प्रदर्शन किये और भारतीय वनडे टीम में आते-जाते रहे।
इस दौरान सलिल 1996 विश्व कप का भी हिस्सा रहे। साल 1997 में साउथ अफ़्रीका के विरुद्ध मैच के बाद सलिल को एक बार फिर भारतीय टीम से ड्रॉप कर दिया गया और इसके बाद सलिल फिर कभी अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में वापसी नहीं कर पाये।
क्यों लेना पड़ा क्रिकेट से संन्यास?
दरअसल, एक घरेलू मैच के दौरान सलिल ज़बरदस्त गेंदबाज़ी कर रहे थे। लेकिन, कुछ देर बाद वो एक दम से मैदान पर गिर पड़े और दर्द से करहाने लगे। सलिल को अस्पताल ले जाया गया।
वहाँ पता चला कि उनकी बायें पाँव की शिन बॉन यानी पिंडली की हड्डी में ट्यूमर है। सलिल ने वक़्त बर्बाद किये बिना भारत मे ही ऑपेरशन करवा लिया। सलिल का ट्यूमर तो ठीक हो गया।
लेकिन, सलिल अगले कई सालों तक दौड़ भी नहीं सकते थे।
उस दौर को याद करते हुए सलिल ने कहा था “वो एक भयानक ऑपेरशन था। जो सही ढंग से नहीं किया गया। काश! मैं लोगों की बात सुन लेता और विदेश में ऑपेरशन करवा लेता। मेरे अंदर तब भी 6-7 साल की क्रिकेट और बची थी। जो एक ग़लती के चलते बर्बाद हो गयी।”
उस ऑपेरशन की वजह से महज़ 30 साल की उम्र में ही सलिल क्रिकेट से संन्यास लेने को मजबूर हो गए। संन्यास के वक़्त सलिल ने भारत के लिये सिर्फ़ 1 टेस्ट और 20 वनडे मैचों में कुल 15 विकेट लिए थे।
सलिल का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन कुछ ख़ास नहीं रहा। मगर, सलिल ने 54 फर्स्ट क्लास मैचों में 25.33 की शानदार औसत से 181 विकेट लिये थे।
ये आँकड़ें इस बात की गवाही देते हैं कि सलिल में काफ़ी क्रिकेट बची थी। लेकिन, सलिल ने अपनी किस्मत को दोष नहीं दिया और क्रिकेट से संन्यास के बाद सलिल ने एक फाइटर की तरह ज़िन्दगी को नये ढंग से जीने का फ़ैसला लिया।
सलिल ने वसई में फ़िश फार्मिंग का बिज़नेस शुरू किया।लेकिन, सलिल को बिज़नेस में नुकसान हुआ।
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ये सलिल के लिये बहुत मुश्किल दौर था। सलिल को घर चलाने के लिये काम करना ज़रूरी था। तब सलिल ने रुख़ किया बॉलीवुड का। क्योंकि, सलिल को 1996 विश्व के दौरान भी मॉडलिंग ऑफ़र्स आये थे।
जब करना पड़ा टीवी सीरियल्स में काम-
इसलिये, उनके लिये काम पाना मुश्किल नहीं रह। सलिल ने टी.वी. डेब्यू ज़ी टी.वी. के मशहूर धारावाहिक ‘चाहत और नफ़रत’ से किया।
क्रिकेट के मैदान पर बल्लेबाज़ों के होश उड़ा देने वाले सलिल को शुरू में कैमरे के सामने बहुत परेशानी आयी।
सलिल ने अपने शुरुआती दिनों का एक दिलचस्प किस्सा याद करते हुए कहा था “मुझे आज भी याद है। ‘चाहत और नफ़रत’ सीरियल के सेट पर मेरा पहला दिन था। मेरा डायलॉग था “मैं आ रहा हूँ”। जोकि सीरियल में मेरी एंट्री की ओर इशारा था। लेकिन, मैं पहले ही शॉट में इतना घबरा गया कि उस छोटे से डॉयलोग के लिये भी 44 रिटेक हुये।मैं क्रिकेट के मैदान पर कभी इतना नर्वस नहीं हुआ था।”
‘चाहत और नफ़रत’ सीरियल में सलिल अंकोला के ‘विशाल’ के किरदार को ख़ूब पसंद किया गया। इसके बाद सलिल ने संजय दत्त स्टारर ‘कुरुक्षेत्र’ फ़िल्म से अपना सिनेमाई सफ़र शुरू किया।
फिर, ‘पिता’ और ‘चुरा लिया है तुमने’ जैसी बड़ी बजट फिल्मों में भी वो नज़र आये। सलिल को फिल्मों में टी.वी. जैसी क़ामयाबी नहीं मिल पायी। सलिल जहाँ बड़े पर्दे पर एक अच्छी फ़िल्म को तरसते रहे।
वहीं टी.वी. पर सलिल ‘कहता है दिल’, ‘श…. कोई है’, ‘विक्राल-गबराल’, ‘करम अपना अपना’, ‘प्यार का बंधन’, ‘सावधान इंडिया’ और ‘कर्मफल दाता शनि’ जैसे कई कामयाब सीरियालों का हिस्सा रहे
। ख़ासकर ‘विक्राल गबराल’ में ‘विक्राल’ और ‘कर्मफल दाता शनि’ में सूर्य देव के किरदार के लिए सलिल अंकोला को तारीफ़ और प्यार दोनों मिलें। लेकिन, सलिल का कैमरे के सामने का ये करिश्माई सफ़र जितना जादुई दिखता है उतना है नहीं।
डिप्रेशन के भी हुए शिकार
दरअसल, साल 2008 और 2010 के दौरान सलिल को शराब की लत और डिप्रेशन के चलते रिहैब सेंटर भेजा गया था। सलिल के लिये वो वक़्त बहुत मुश्किल था। वो लगातार काम कर रहे थे। लेकिन, उन्हें सुकून नहीं मिल रहा था।
पहली पत्नी परिणीता अंकोला के स्वर्गवास के बाद अकेले चल रहे सलिल को उनकी दूसरी पत्नी रिया बैनर्जी ने संभाला। पूरी तरह से स्वस्थ होने के बाद सलिल सिर्फ़ 2 फ़िल्मों का ही हिस्सा रहे।
लेकिन, सलिल ने अपनी पर्सनालिटी पर ध्यान देना जारी रखा। 52 साल की उम्र में भी उनका लगातार जिम जाना इस बात की ओर इशारा करता है कि वो अपनी फिटनेस को लेकर कितने सीरियस हैं।
एक क्रिकेटर के तौर पर शुरू हुआ सलिल अंकोला का सफ़र फ़िल्मी दुनिया की दौड़ भाग के बाद एक बार फिर क्रिकेट पर आकर रुक गया है
दरअसल साल 2020 मे सलिल अंकोला को सीनियर मुम्बई क्रिकेट टीम की चयन समिति का चेयरमैन नियुक्त किया गया था।
सलिल ने चेयरमैन की भूमिका पर बात करते हुये कहा “मुझे एक मराठी फ़िल्म और एक हिंदी वेबसिरीज़ के ऑफर आये। लेकिन, मैंने मना कर दिये। क्योंकि, क्रिकेट मेरा पहला प्यार है और अब मैं उस पर ही पूरा ध्यान देना चाहता हूं।”
सलिल के नेतृत्व में चुनी गई मुम्बई टीम ने लम्बे अंतराल के बाद विजय हज़ारे ट्रॉफी जीती और सलिल अंकोला को फ़क्र करने का मौका दिया।
पहले चोट, फिर बिज़नेस में नुकसान, फिर कैमरे का डर, फिर नशे और डिप्रेशन की परेशानी। लेकिन, सलिल ने कभी भी हार नहीं मानी और हर बार ये साबित किया कि इंसान अगर ठान ले तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है।
इसलिये, हमने पहले ही कहा था सलिल अंकोला की ज़िंदगी एक फ़िल्मी कहानी जैसी है।
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