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Hutch To Vodafone Story_हच वोडाफोन कैसे बना ?

‘यू एंड आई, इन दिस ब्यूटीफुल वर्ल्ड..’ अगर आपने 2000 के पहले दशक (Decade) को जिया होगा तो ये लाइन सुनते ही आपको टीवी पे दिखाई देने वाले एक बेहद दिलचस्प (Interesting) विज्ञापन (Advertisement) की याद आ गयी होगी। इस विज्ञापन में एक बच्चा ऊँचे-नीचे पहाड़ी रास्तों पे, तो कभी उबड़ खाबड़ या गीले (Wet) रास्तों पे चलता जा रहा होता है, और एक प्यारा सा डॉगी (Doggy) उसके पीछे पीछे  हर उस जगह चलता दिखाई देता है, जहाँ-जहाँ भी वह जाता है। इस विज्ञापन का संदेश (Massage) यह था कि आप कहीं भी जायें हमारा नेटवर्क (Network) आपके साथ साथ होगा। और यह विज्ञापन था टेलीकॉम (Telecom) सेक्टर (Sector) की एक नेटवर्क कम्पनी का जो भारत में कॉलिंग (Calling) के साथ इंटरनेट प्रोवाइड (Provide) करने वाली शुरुआती कम्पनियों में से एक थी। जी हाँ आपने बिल्कुल ठीक समझा हम बात कर रहे हैं ‘हच एस्सार’ (Hutch Essar) की जो आगे चलकर मुंबई में ‘ऑरेंज’ बना और फिर देश भर में वोडाफोन (Vodafone) में बदल गया। बाद में इसी Vodafone का Idea में विलय हुआ, जो Vodafone-Idea यानि Vi बन गया। ‘हच’ जैसी कम्पनी जो कभी BSNL के अलावा दूसरी एकमात्र कम्पनी थी, जो भारत में कॉलिंग के साथ इंटरनेट की सुविधा दिया करती थी, आख़िर क्यों वोडाफोन के हाथों बिक (Sell) गयी? कब और कैसे हुई भारत में इसकी शुरुआत? और कब वोडाफोन ने इसका अधिग्रहण किया? जानेंगे इन सभी सवालों के जवाब आज के पोस्ट में इसलिए बने रहें हमारे साथ शुरू से अंत तक।

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नमस्कार…

हच की भारत में एन्ट्री-
‘हच’ की शुरुआत भारत में होने से पहले यह कम्पनी ‘हचिनसन वैम्पोआ’ (Hutchinson wampoa) नाम से जानी जाती थी जो कि एक हॉन्ग (Hong) कॉन्ग (Kong) बेस्ड कंपनी थी। साल 1992 में हचिनसन वैम्पोआ और मैक्स ग्रुप के बीच की साझेदारी (Partnerships) के बाद ‘हचिनसन मैक्स टेलिकॉम लिमिटेड’ यानि HMTL बनी, जिसके बाद साल 1994 में ये ब्रांड (Brand) इंडिया आया। हालांकि शुरुआत में इस कम्पनी को केवल मुंबई सर्कल का ही लाइसेंस (License) मिला। मुंबई में मिली सफलता के बाद, साल 1999 में HMTL दिल्ली पहुंचा और अगले ही साल यानि साल 2000 में कोलकाता और गुजरात में भी जा पहुँँचा। हालांकि साल 1999 में HMTL ने मुंबई में ऑरेंज कम्पनी के साथ मिलकर काम किया था और वहाँ इसे ऑरेंज के नाम से ही जाना जाता था। हम आपको बता दें कि ऑरेंज फ्रांस की एक टेलीकॉम (Telecom) ब्रांड था। दिसंबर 1999 में, दोनों कंपनियों ने मुंबई और मुंबई से सटे इलाके नवी (New) मुंबई और कल्याण के लिए ट्रेडमार्क (Trademark) उपयोग पर एक लाइसेंसिंग (Licensing) एग्रीमेंट (Agreement) किया और मिलकर काम किया। हालांकि कुछ ही सालों में दोनों कम्पनियों के बीच एग्रीमेंट को लेकर कुछ बात बिगड़ गयी थी जिसके बाद ऑरेंज ने हच पर एग्रीमेंट का उल्लंघन करने के आरोप भी लगाये थे, जिन्हें जल्द ही सुलझा भी लिया गया था।

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HMTL से बनी हचिनसन एस्सार’
HMTL ने भारत में अपने कारोबार को फैलाने के लिये साल 2005 में एस्सार (Essar) कम्पनी से हाथ मिलाया HMTL से ‘हचिनसन एसार’ यानि HEL में तब्दील (Transform) हो गयी। एस्सार ग्रुप स्टील, एनर्जी, पावर, कम्यूनिकेशन, शिपिंग & लॉजिस्टिक्स और प्रोडक्शन जैसे मैनुफैक्चरिंग एंड सर्विसेज के लिए जानी जाती है।
दरअसल यह वही दौर था जब  भारत में मोबाइल की डिमांड (Demand) बहुत तेजी के साथ बढ़ रही थी और हच भी इस मौके का पूरी तरह से फायदा उठाना चाहता था। देश के कुछ शहरों से निकलकर पूरे भारत में अपनी पहचान बनाने का केवल एक ही उपाय था और वो था टीवी विज्ञापन (Advertisement)। हच ने फैसला लिया कि क्यों न एक एक ऐसा ऐड कैंपेन (Campaign) चलाये जाये जो उन्हें उनके कंपेटिटर्स (Competitors) के बीच कुछ अलग और ख़ास दिखने में मदद करे। जिसके बाद हच अपने पॉपुलर (Popular) विज्ञापनों के साथ देखते ही देखते एक जाना पहचाना नाम बन गया। दोस्तों हच का विज्ञापन (Advertisement) तब से लेकर आज तक हर किसी का फेवरेट (Favorite) टीवी विज्ञापन बना हुआ है। इसका विज्ञापन जिसमें न कोई फेमस (Famous) चेहरा था और न ही बहुत हो हल्ला फिर भी हर किसी को यह आज तक याद है। दरअसल इस विज्ञापन के बनने के पीछे भी बड़ा दिलचस्प क़िस्सा है, जिसके बारे में अगर बात न की जाये तो यह चर्चा अधूरी कही जायेगी।

हच का मशहूर विज्ञापन-
हच के विज्ञापन बनाने वाली ऐड एजेंसी का नाम है ‘ओ एंड एम’ यानि ‘ओग्लीवी एंड मैदर’। इकनॉमिक (Economic) टाइम्स से हुई एक पुरानी बातचीत में ओग्लीवी (Oglivi) एंड मैदर के क्रिएटिव (Creative) डायरेक्टर राजीव राव ने बताया था कि ऐड (AD) को बनाने के पहले उनका ब्रीफ (Brief) छोटा सा था। एक ऐसा ऐड हो जिसमें हच के बढ़ते नेटवर्क (Network) की कहानी दिखाई दे। काफी देर बाद ऐड के लिए एक आइडिया निकलकर आया कि एक लड़का होगा जिसकी बहन हर जगह उसके साथ साथ जाती है। इसमें लड़के का अर्थ होगा कस्टमर (Customer) और बहन का अर्थ होगा नेटवर्क (Network)। मगर तमाम डिस्कशन (Discussion), या यूं कहें कि ब्रेनस्टॉर्मिंग (Brainstorming) के बाद ये तय हुआ कि बहन की जगह एक कुत्ता (Dog) रखना चाहिए। जिसके पीछे एक वजह यह बताई गई कि कुत्ता क्यूट (Cue) होता है, दूसरा ये कि कुत्ते की वफादारी  (Loyalty) के बारे में सभी जानते हैं और तीसरा ये कि एक कुत्ते का प्रेम हमेशा निस्वार्थ (Selfless) होता है।

दोस्तों जिस दौरान हच के विज्ञापन का यह आइडिया फाइनल (Final) हुआ था उस वक़्त ऐड एजेंसी ‘ओ एंड एम’ की नेशनल (National) ब्रांड हेड रहीं रेणुका जयपाल, इकोनॉमिक्स (Economic) टाइम्स (Times) से हुई बातचीत में बताती हैं कि जब उन्होंने हच कम्पनी के हेड असीम घोष से इस विज्ञापन का आइडिया शेयर किया तो घोष ने पूछा कि क्या उस बच्चे का मतलब हमारे 10 लाख कस्टमर और वो छोटा सा कुत्ता हमारा 10 लाख डॉलर का इन्वेस्टमेंट है? इस पर रेणुका ने हाँ में जवाब दिया तो घोष ने कहा कि इससे पहले कि ऐसे आइडिया के लिए उनकी हिम्मत जवाब दे दे, वे फौरन वहाँ से जायें और बस ये ऐड किसी तरह बना कर दें। दरअसल घोष भी जानते थे कि एक कुत्ते  (Dog) को नेटवर्क के रूप में दिखाने पे शायद उनका भी मन बदल जाये इसलिए उन्होंने फौरन (Immediatly) उस पर काम करने को कहा होगा। ख़ैर जब ऐड के लिए कुत्ता चुनने की बात आई, तो ऐड मेकर्स (Makers) ने तय कर लिया कि लैब्राडोर (Labrador) या रिट्रीवर (Retriever) जैसे ब्रीड्स (Breeds) जो इंडिया में पहले से ही बहुत पॉपुलर और कॉमन थे उन्हें कास्ट (Cast) नहीं करेंगे। शुरुआत में एक फॉक्स (Fox) टेरियर (Terrier) फाइनल किया गया लेकिन बात नहीं बनी जिसके बाद आख़िर में फाइनल हुआ ‘चीका’ जो कि एक पग (Pug) था। इस विज्ञापन के बाद चीका द पग हच का ब्रांड फेस बनने के साथ-साथ पूरे इंडिया का भी चहेता कुत्ता बन गया था। रेणुका जयपाल बताती हैं, उस वक़्त ये एक बहादुरी भरा फैसला था, क्योंकि हम एक कुत्ते को ब्रांड फेस बनाने वाले थे, जो इंडिया में पॉपुलर (Popular) नहीं था। यह ऐड ट्रेडिशनल (Traditional) एडवरटाइजिंग (Advertise) से एकदम अलग था। साल 2003 में हच का सबसे मशहूर (Famous) ऐड (AD) शूट (Shoot) किया गया था जिसमें एक नन्हा बच्चा गोवा की सड़कों पर घूम रहा है और उसका कुत्ता हर जगह उसके पीछे पीछे चलता है। फुटबॉल (Football) ग्राउंड हो या उस बच्चे के पेशाब करने की जगह हो वह कुत्ता अपनी मासूमियत (Innocence) के साथ उसके साथ हर जगह दिखाई देता है। इस विज्ञापन (Advertise) के ज़रिये यह संदेश  (Massage) दिया गया कि आप जहां भी जाएं, हमारा नेटवर्क आपके साथ जाएगा।

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यह विज्ञापन काफी पॉपुलर (Popular) हुआ और अगले 4 सालों तक थोड़े बहुत फेर बदल के साथ तक लगातार चलता रहा हालांकि कॉन्सेप्ट (Concept) वही रहा और ‘चीका द पग’ हच (Hutch) के साथ बना रहा। हाँ इतना बदलाव ज़रूर हुआ कि इस बीच हच का ब्रांड कलर ऑरेंज (Orange) की जगह पिंक (Pink) हो गया। एक ख़ास बात कि जब साल 2007 में हच वोडाफोन में बदल गया, तब भी यह कुत्ता ही उनका ब्रांड (Brand) फेस बना रहा। वोडाफोन का मानना था कि वे चीका के साथ ही आगे बढ़ेंगे क्योंकि लोग उससे प्रेम और जुड़ाव महसूस करते हैं। दिलचस्प (Interesting) बात कि कई साल बाद जब 2016 में वोडाफोन 4G लेकर आया, तब भी एक पग (Pug) को ही ऐड कैंपेन के लिए लाया गया था।

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दोस्तों इसमें भी कोई डाउट की बात नहीं है कि इस विज्ञापन (Advertisement) से पहले पग (Pug) को असल में एक बदसूरत (Unattractive) कुत्ते ( Dog) की तरह देखा जाता था और इसकि फेस दूसरे कुत्तों जितना क्यूट नहीं माना जाता था। लेकिन इस विज्ञापन के बाद अचानक (Suddenly) ही इंडिया में पग (Pug) की बिक्री (Sales) बढ़ने लगी थी और पग्स के दाम 10,000 से शुरू होकर 60,000 रुपये तक पहुँच गये थे। अचानक पग्स (pugs) की बढ़ती डिमांड (demand) के बाद ‘एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट’ सवाल उठाने लगे कि पग को इंडिया में इतना प्रोमोट (promote) क्यों किया जा रहा है, जबकि पग इंडिया का नेटिव (native) कुत्ता नहीं है और यहां का मौसम उनकी सेहत (health) के लिए अच्छा नहीं है। बिज़नस (Business) टुडे की एक रिपोर्ट (Report) के मुताबिक़, इंडिया में 50,000 पग्स गैरकानूनी तरीके से इम्पोर्ट (Import) किए गए और धड़ल्ले से बेचे गए वह भी बिना इस ब्रीड की ज़रूरतों का ध्यान रखे हुए। साल 2018 में PETA इंडिया ने वोडाफोन से ऑफिशियली (Officially) अपील (appeal) की और कहा कि वे पग को विज्ञापन में कास्ट करना बंद कर दें। क्योंकि इंडिया जैसे देश में उन्हें तमाम बीमारियां (Diseases) होने का खतरा रहता है। जिसके बाद ब्रांड ने बाद में ज़ूज़ूज़ पेश किया, जिसे पग द्वारा बनाई गई तुलना में भी अधिक लोकप्रियता (Popularity) मिली थी।

वोडाफोन कम्पनी- 
वोडाफोन ने हच को कैसे खरीदा इस बारे में बात करने से पहले आइये वोडाफोन के बारे में इन शॉर्ट कुछ ज़रूरी बातें जान लेते हैं। वोडाफोन का पूरा नाम ‘voice data fone’ है जो कि यूके (UK) की एक टेलीकॉम (Telecom) कंपनी है। वोडाफोन (Vodafone) कंपनी इस कंपनी (Company) के फाउंडर (Founder) अर्नेस्ट हैरिसन और गेर्री व्हेनत हैं। कंपनी का हेड ऑफिस लंदन और न्यूबरी, बर्कशायर (Bershire)) मे स्थित है। इस कंपनी की शुरुआत 1991 में हुई थी। आज यह कम्पनी 25 से ज़्यादा देशो में अपना कारोबार (Turnover) करती है। भारत में आने के बाद  साल 1999 में, वोडाफोन दुनिया की सबसे बड़ी मोबाइल टेलीकॉम कंपनी बन गयी थी जबकि यूके की यह तीसरी सबसे बड़ी पब्लिक (Public) टेलीकॉम कंपनी बन गयी थी।

वोडाफोन की भारत में एन्ट्री-
अगस्त 2005 में जब हच (Hutch) को एस्सार (Essar) का साथ मिला तब एस्सार दिल्ली, उत्तर प्रदेश (पूर्व), राजस्थान और हरियाणा में एस्सार कम्पनी का प्रमुख भागीदार (Partner) था, लेकिन बाद में हच ने अपनी हिस्सेदारी बढ़ा ली थी। साल 2006 के आख़िर तक आते-आते भारत की सेल (Sale) फोन यूजर आबादी 150 मिलियन तक हो गई थी। ख़ास बात कि हर महीने 6 मिलियन से अधिक नए ग्राहकों (Customers) के साथ भारत दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता मोबाइल बाजार (Market) बन गया था। इसी दौरान वोडाफोन ने भारत में कारोबार फैलाने की प्लानिंग (Planning) की और एस्सार के साथ मिलकर नया ब्रांड ‘वोडाफोन एस्सार’ नाम से 21 सितंबर 2007 को भारत में लॉन्च (Launch) किया गया और स्लोगन (Slogan) दिया गया “हच इज नाउ वोडाफोन”। इस तरह से पॉपुलर ब्रांड हच को पूरे भारत में वोडाफोन में बदल दिया गया।

दरअसल वोडाफोन ने अपनी लॉंचिग (Launch) से कुछ महीने पहले हच यानि हचिसन व्हामपोआ से हचिसन एस्सार में उसकी 67 प्रतिशत (Percentage) हिस्सेदारी का अधिग्रहण (Acquisition) किया था। सरल शब्दों में कहें तो वोडाफोन ने हच का हिस्सेदारी खरीद ली थी। पहले इस सौदे के लिए 11.8 अरब डॉलर (Dollar) की राशि (Amount) तय की गयी थी हालांकि उस वक़्त वोडाफोन ने 10.9 अरब डॉलर का ही भुगतान किया और 52 पर्सेंट (Percentage) की हिस्सेदारी, हचिसन टेलिकॉम से खरीद ली। मई 2007 में हचिसन एस्सार का यह अधिग्रहण (Acquisition) पूरा किया गया और जुलाई 2007 में इसे वोडाफोन एस्सार का नाम दिया गया। हच से वोडाफोन में हुआ यह बदलाव वोडाफोन ग्रुप के इतिहास (History) में सबसे तेज़ और सबसे बड़े ब्रांड ट्रांज़िशन (Transation) में से एक था, जिसमें 4 लिख मल्टी (Multi) ब्रांड आउटलेट (Outlet), 350 से अधिक वोडाफोन स्टोर, 1,000 से अधिक मिनी स्टोर, 35 से अधिक मोबाइल स्टोर और 3,000 से अधिक टच-पॉइंट थे। ख़ास बात कि जब हचिसन टेलिकॉम के बोर्ड ने हच-एस्सार में अपनी 67 फीसदी हिस्सेदारी बेचने की घोषणा 9Announce) की थी उस दौरान कई कंपनियों ने अपनी-अपनी बोली लगाई थी। लेकिन भारत की इस चौथी सबसे बड़ी मोबाइल कंपनी के अधिग्रहण की बाजी ब्रिटेन की वोडाफोन ने जीता। ‘हच’ की दौड़ में वोडाफोन ने अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस (Reliance) कम्यूनिकेशंस (Communication), हिंदुजा समूह और एस्सार को पीछे छोड़ा था। बताया जाता है कि हिंदुजा ग्रुप की बोली दूसरे स्थान पर रही। उस दौरान भारतीय मूल के अरुण सरीन वोडाफोन के सीईओ हैं। वोडाफोन एस्सार के साथ साझेदारी के लिए आसानी से तैयार हो गयी थी क्योंकि एस्सार की इसमें पहले से ही 33 फीसदी की हिस्सेदारी थी। इस डील के बाद वोडाफोन के मुखिया अरुण सरीन ने कहा था कि “मुझे एस्सार के साथ साझेदारी में किसी तरह का ऐतराज नहीं है। चूंकि एस्सार पहले से ही इस ज्वाइंट वेंचर में हिस्सेदार है, इसलिए उसके पास टॉप बिड को मैच करने का आरओएफएल (ROFL) यानि राइट ऑफ रिफ्यूजल का अधिकार है या फिर वह टैग अलॉन्ग (Along) राइट यानी अपनी हिस्सेदारी बेचने के अधिकार का इस्तेमाल कर सकती है। यदि एस्सार टैग अलॉन्ग राइट का इस्तेमाल कर अपनी हिस्सेदारी बेचती है, तो उसे इसके लिए 6 अरब डॉलर तक मिल सकते हैं।”

वोडाफोन आते ही मुकदमे में फंसी-
अपनी एंट्री (Entry) के साथ ही वोडाफोन एजीआर (AGR) के मामले में फंस गई थी। इसके अलावा वोडाफोन ने इस सौदे में हुई डील (Deal) पर इंडियन गवर्नमेंट (Government) के रूल के हिसाब से टैक्स (Tax) पे नहीं किया था जबकि वोडाफोन का कहना था कि डील इंडिया से बाहर हुई है तो इंडियन गवर्नमेंट (Government) को टैक्स क्यूँ? एजीआर (AGR) को लेकर भी जो विवाद (Controversy) था वह साल 1999 से ही कंपनियों और सरकार (Government) के बीच चल रहा था। एजीआर (Agr) एक तरह का रेवेन्यू (Revenue) शेयरिंग (Sharing) मॉडल (Model) है, जिसके मुताबिक कंपनियों को अपनी कमाई का एक हिस्सा अडजस्टेड (Adjusted) ग्रॉस (Gross) रेवेन्यू (Revenue) के तौर पर सरकार को देना होता था। हालांकि इसके कैलकुलेशन को लेकर कंपनियों और सरकार के बीच असहमति थी और अंत में यह मामला 2003 में कोर्ट में पहुंचा था। बाद में अक्टूबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की कैलकुलेशन को सही करार दिया।

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वर्तमान स्थिति-
जैसा कि आप जानते ही हैं कि वोडाफोन (Vodaphone) और आइडिया (Idea) मिलकर अब वोडाफोन-आइडिया यानि Vi ब्रांड बन चुका है। मीडिया (Media) रिपोर्ट के मुताबिक 31 दिसंबर 2022 तक, Vi के पास 228.60 मिलियन का ग्राहक (Customer) आधार है, जिसके आधार पर कम्पनी भारत में तीसरा और दुनिया में 11वां सबसे बड़ा मोबाइल टेलीकॉम नेटवर्क (Network) हो चुका है। हम आपको याद दिला दें कि 31 अगस्त 2018 को वोडाफोन इंडिया और आइडिया सेल्युलर (Cellular) का विलय (Fusion) हुआ था। जिसके बाद 7 सितंबर 2020 को, Vodafone Idea ने अपनी नई ब्रांड पहचान, ‘Vi’ को लॉन्च किया था। जनवरी 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक वोडाफोन का कारोबार कुल 47 अन्य देशों में ज्वाइंट (Joint) नेटवर्क के साथ फैला हुआ है। इसके अलावा कंपनी का वोडाफोन ग्लोबल (Global) एंटरप्राइज (Enterprise) डिवीजन (Devesion)150 देशों में कॉर्पोरेट (Corporate) ग्राहकों को टेलीकॉम और आईटी सर्विसेज प्रोवाइड करता है।

दोस्तों अंत में ‘हच’ कम्पनी को लेकर एक बात हम आपको याद दिलाना चाहेंगे जो हच को चाहनेवालों के लिये एक ख़ुशख़बरी के रूप में कुछ सालों पहले सुनाई पड़ी थी। दरअसल कुछ सालों पहले यह ख़बर आई थी कि हच मोबाइल गेमिंग के ज़रिये फिर से भारत में एन्ट्री लेने वाला है। हालांकि हच मोबाइल गेमिंग फील्ड से पहले से ही जुड़ा हुआ है और बताया जाता है कि पॉपुलर (Popular) गेम ऐन्ग्री (Agry) बर्ड (Bird) की मेकिंग (Gaming) में हच (Hutch) की भी भागीदारी (Patnership) रही है। तो दोस्तों यह थी हच एस्सार (Essar) से वोडाफोन एस्सार, और वोडाफोन एस्सार से वोडाफोन आइडिया बनने की कहानी। पोस्ट आपको कैसा लगा कमेंट्स के ज़रिये ज़रूर बतायें।

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