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हीरो साइकिल : कैसे बनी देश की सबसे बड़ी साइकिल कम्पनी

 देश की सबसे बड़ी साइकिल कम्पनी हीरो
फुटपाथ पर काम करके खड़ी कर दी देश की सबसे बड़ी साइकिल कम्पनी

बेशक़ आज हमारे पास स्कूटर्स, बाइक्स, कार आदि जैसे तमाम निजी साधन उपलब्ध हैं लेकिन इन सबकी बढ़ती भीड़ के बीच भी सैकड़ों सालों से चल रही साइकिल की लोकप्रियता में कभी कोई कमी नहीं आयी है। एक दौर तो ऐसा भी था जब साइकिल खरीदे जाने पर पूरा गाँव ही नहीं दूर दराज के लोग भी उसे देखने पहुँचा करते और बाकायदा साइकिल की पूजा करने के बाद ही साइकिल मालिक उसकी सवारी करता। साइकिल के पहिये तब न जीवन की रफ्तार बढ़ाने का काम करते थे, बल्कि हमारे सपनों को भी एक नयी उड़ान दे दिया करते थे, और उस उड़ान को पंख देने वाली साइकिल कंपनियों में जिस कंपनी का नाम सबसे पहले लिया जाता है, वह नाम है हीरो साइकिल का। क्या बड़े और क्या बच्चे, हीरो साइकिल तब से अब तक हर किसी की चहेती और भरोसेमंद कम्पनी रही है। हालांकि आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि कभी साइकिल निर्माण में रिकॉर्ड कायम करने वाली इस कम्पनी की शुरुआत उधार के रुपयों से हुई थी। क्या है कहानी हीरो साइकिल की,

नमस्कार…

 

हीरो साइकिल कम्पनी की शुरुआत, संघर्ष और सफलता की बात करने से पहले हमें यह भी जानना चाहिए कि साइकिल यानि बाइसिकिल की शुरुआत कब व कहाँ हुई और क्यों यह इतने चलन में आई?

 

बाइसिकिल का इतिहास-

बात साल 1816 की है, जब इंडोनेशिया में माउंट तम्बोरा नाम का एक ज्वालामुखी फटा था। इस आपदा में एक बहुत बड़ा क्षेत्र तहस-नहस हो गया और वहाँ के लोगों के मुख्य आहार भैंस, बकरी, मुर्गी आदि सब जीव समाप्त हो गये तो मजबूरन उन्होंने अपने घोड़ों को मारकर खाना शुरू कर दिया। हालांकि इससे उनका पेट तो ज़रूर भर गया लेकिन यातायात की एक बड़ी समस्या खड़ी हो गयी, क्योंकि यात्रा के एकमात्र साधन भी तब घोड़े ही हुआ करते थे। इस समस्या से निजात पाने के लिए साल 1817 में कार्ल ड्राइस नाम के एक शख़्स ने बाइसाइकिल का निर्माण किया। हालांकि तब बाइसाइकिल में पैडल नहीं थे और उसे चलाने के लिये पैरों को जमीन पर रगड़ कर उसे आगे बढ़ाना होता था। तब बाइसिकिल को डैन्डी हॉर्स या अलबेला घोड़ा नाम दिया गया था, जो आगे चलकर बाइसिकिल के नाम से जाना गया। साल 1864 में पैडल वाली साइकिल भी बनना शुरू हो गयी और धीरे-धीरे पूरी तरह से चलन में आ गयी। बहरहाल ये तो हुई साइकिल की शुरुआत की कहानी आइये अब लौट आते हैं अपने मूल विषय यानि हीरो साइकिल पर।

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साइकिल पार्ट्स से हुई शुरुआत

हीरो साइकिल की शुरुआत का श्रेय ओम प्रकाश मुंजाल जी को दिया जाता है जो मुंजाल भाईयों में से एक थे। बात तब की है जब देश का विभाजन हुआ था और उस बँटवारे के दौरान पाकिस्तान से भारत आने वालों में अनाज व्यवसायी बहादुर चंद मुंजाल और ठाकुर देवी का परिवार भी था जो अपने चार बेटों सत्यानंद मुंजाल, ओमप्रकाश मुंजाल, ब्रजमोहनलाल मुंजाल और दयानंद मुंजाल के साथ भारत आ तो गये थे लेकिन समस्या यह थी कि यहाँ काम क्या किया जाये। शुरुआती दिनों में मुंजाल भाइयों ने पंजाब के लुधियाना में फुटपाथों पर साइकिल के पुर्जे बेचना शुरू किया और वहाँ की गलियों में भी घूम-घूमकर इस काम को किया। इसके बाद कारोबार आगे बढ़ा तो मुंजाल भाइयों ने ख़ुद से साइकिल पार्ट्स बनाने का फैसला किया और इस काम को शुरू करने के लिए साल 1956 में उन्होंने बैंक से 50 हजार रुपए लोन लिया और लुधियाना में ही साइकिल पार्ट्स बनाने का अपना पहला कारखाना लगा लिया।

कारखाना लग गया और पार्ट्स भी तैयार होने लगे तो मुंजाल भाइयों ने विचार किया कि क्यों न साइकिल के पार्ट्स बेचने के बजाय ख़ुद का साइकिल निर्माण किया जाये, इससे तो और भी ज्यादा लाभ होगा। बस फिर क्या था मुंजाल भाइयों ने 25 साइकिलें बना कर मार्केट में उतार दी, जो देखते ही देखते हर किसी का ख़्वाब बन गयी। साल 1966 तक आते-आते हीरो कंपनी प्रति वर्ष एक लाख साइकिल तैयार करने लगी थी जिसने साल 1986 तक 22 लाख से अधिक साइकिलों तैयार कर पूरी दुनियां को हैरत में डाल दिया, और सबसे बड़ी साइकिल निर्मित करने वाली कंपनी बन गयी।

 

जब वादा पूरा करने के लिए ख़ुद मशीन चलाई कंपनी मालिक ने

बड़ों के लिये साइकिल बनाने के साथ जब हीरो कम्पनी ने बच्चों के लिये साइकिल बनाना शुरू की तो यह हर बच्चे के जीवन का एक अहम हिस्सा बनती चली गयी। जिसका नतीजा यह हुआ कि इसकी डिमांड भी बढ़ने लगी और वादे के मुताबिक तय समय पर मार्केट में देना कंपनी की ज़िम्मेदारी बन गयी थी। बताया जाता है कि उसी दौरान एक बार हीरो साइकिल कंपनी में हड़ताल हो गयी, जिससे साइकिल का निर्माण बिल्कुल ही ठप हो गया था जिसे देखते हुए हीरो साइकिल कंपनी के मालिक ने ख़ुद ही मशीन चला कर साइकिल बनाया था। हालांकि उन्हें इस तरह काम करते हुए देख कंपनी के ही कुछ अधिकारियों ने समझाया कि यह काम बाद में भी हो सकता है। तब उन्होंने कहा कि “आप सब चाहें तब घर जा सकते हैं लेकिन मेरे पास ऑर्डर है इसलिए मैं काम करूंगा। अगर साइकिल निर्माण नहीं हुए तो, एक वक्त के लिए डीलर तो समझ जायेंगे कि हड़ताल के कारण काम नहीं हो रहा है, मगर उस बच्चे के मन को हम कैसे समझाएंगे जिसके माता-पिता ने उसके जन्मदिन पर उसे साइकिल दिलाने का वादा किया होगा। हमारी हड़ताल की वजह से ऐसे कई बच्चों का दिल टूटेगा, लेकिन ऐसा मैं होने नहीं होने दूंगा। मैं हर उस माता-पिता का किया हुआ वादा पूरा करूंगा जिन्होंने अपने बच्चे को साइकिल दलाने का वादा किया है।”

 

वर्कर्स से लेकर डीलर्स तक की ज़िम्मेदारी-

सफलता अच्छे अच्छों को बदल देती है लेकिन मुंजाल भाईयों ने कभी भी अपने डीलर्स, वर्कर और ग्राहकों को नज़र अंदाज़ नहीं किया बल्कि ख़ुद के फ़ायदे से कहीं ज़्यादा उनका ख़्याल रखा। इस बात का ही उदाहरण है साल 1980 में घटी यह घटना जब हीरो साइकिल का एक लोडेड ट्रक एक्सिडेंट में जल गया। ऐसे में मुंजाल भाइयों ने अपने नुकसान के बारे में न पूछकर पहले यह जानना ज़रूरी समझा कि ड्राइवर किस हाल में है। साथ ही उन्होंने डीलर के पास दोबारा फ्रेश कंसाइनमेंट भेजा ताकि डीलर को किसी तरह का नुकसान न हो।

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साइकिल उत्पादन का वर्ल्ड रिकॉर्ड-

80 का दशक में हीरो साइकिल हर साल 22 लाख से अधिक साइकिलों तैयार कर साइकिल का उत्पादन करने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी बन गयी और साल 1986 में हीरो साइकिल्स का नाम दुनिया की सबसे बड़ी साइकिल उत्पादक कंपनी के तौर पर गिनीज बुक ऑफ व‌र्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज हुआ। भारत के अलावा अफ्रीका, एशिया और यूरोप के 89 देशों में साइकिल निर्यात करने वाली हीरो साइकिल कंपनी की साइकिल बाजार में 48 फीसदी की हिस्सेदारी है।

बी.बी.सी. और व‌र्ल्ड बैंक से अपने बेहतरीन मैनेजमेंट की तारीफ पा चुकी हीरो साइकिल्स ‘लंदन बिजनेस स्कूल’ और ‘इंसीड फ्रांस’ में बिजनेस स्टडी का एक हिस्सा है। इसके अलावा ब्रिटेन ने साल 2004 में हीरो साईकिल कंपनी को सुपर ब्रांड का दर्जा भी दिया था। साथ ही 14 करोड़ से अधिक साइकिलों का निर्माण करने के लिए इसे दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी का दर्जा भी मिल चुका है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक हीरो साईकिल कंपनी के दुनिया भर मे 7500 से अधिक आउटलेट्स हैं जहां 30 हजार से ज्यादा लोग काम करते हैं।

 

हीरो साइकिल से हीरो मोटोकार्प तक का सफर-

दोस्तों हीरो साईकिल कंपनी की पहचान सिर्फ साइकिल तक ही सीमित नहीं है क्योंकि यह हीरो साईकिल से हीरो ग्रुप तक का सफर तय कर चुकी है, जिसके बैनर तले मुंजाल ब्रदर्स ने साइकिल कंपोनेंट्स, ऑटोमोटिव, ऑटोमोटिव कंपोनेंट्स, आईटी, सर्विसेज जैसे कई प्रोडक्ट भी तैयार किये हैं। टूव्हीलर हीरो मैजेस्टिक से शुरुआत करने वाले हीरो ग्रुप ने 1984 में जापान की बड़ी कंपनी Honda के साथ साझेदारी की और Hero Honda Motors Ltd की स्थापना हुई, जिसके तहत साल 1985 में पहली बाइक CD 100 को लॉन्च किया। साल 2011 में यह दोनों कंपनियां अलग हो गईं और हीरो कंपनी हीरो मोटोकॉर्प बन गयी।

 

वर्तमान मालिक व कारोबार-

मुंजाल भाइयों में सबसे बड़े भाई दयानंद मुंजाल के 60 के दशक में हुए निधन के बाद अन्य तीन भाइयों ने कारोबार को सँभाला था जिनमें से ओमप्रकाश मुंजाल व बृजमोहन लाल मुंजाल की साल 2015 में और सत्यानंद मुंजाल की साल 2016 में मृत्यु हो चुकी है । वर्तमान समय में हीरो कंपनी को ओमप्रकाश मुंजाल जी के बेटे पंकज मुंजाल सँभाल रहे हैं और बदलते परिवेश में हीरो कंपनी अब भी ​हर साल 75 लाख साइकिल बना रही हैं।

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