एक ज़माना था जब मिडिल क्लास फैमिली में स्कूटर का होना प्राउड फील कराता था साथ ही यह हर घर की ज़रूरत भी बन चुका था। लेकिन 90s का दौर आते-आते धीरे-धीरे स्कूटर की जगह बाइक्स ने लेनी शुरू कर दी और ‘देश की धड़कन’ के अपने स्लोगन के साथ तेज़ी से उभरी एक मोटरसाइकिल कंपनी का नाम हर ज़ुबान पर छा गया। और वह नाम था Hero Honda कम्पनी का। अपने स्लोगन ‘देश की धड़कन’ से ‘धक धक गो’ तक कंपनी का यह सफ़र तो बहुत ही सुहाना रहा, लेकिन साल 2010 में जब इंडियन गवर्मेंट ने विदेशी कंपनियों को इंडिया में सीधे 70 परसेन्ट तक के विदेशी निवेश करने की परमिशन दी तो ढेरों विदेशी कम्पनियां इंडिया आयीं और कई विदेशी कम्पनियां जो इंडियन कम्पनियों के साथ मिलकर पहले से इंडिया में अपना कारोबार जमाये हुई थीं उन्होंने अपना एग्रीमेंट ख़त्म कर स्वतंत्र कारोबार करना शुरू कर दिया। इंडिया के हीरो ग्रुप और जापानी कम्पनी होंडा मोटर्स के बीच 26 साल का एग्रीमेंट टूटना इसका सबसे बड़ा एक्ज़ाम्पल था जिसने मार्केट में एक हलचल मचा दी थी। हालांकि दोनों कम्पनियों का अलग होने के पीछे की जो दूसरी वज़हें थीं वो कुछ और ही थीं जिनके बारे में हम आज आपको बताने वाले हैं।
होंडा कम्पनी, हीरो होंडा से अलग हुई और हीरो कम्पनी ‘हीरो मोटोकार्प’ बन गयी। देखते ही देखते “धक, धक गो” से हीरोकॉर्प की नई थीम “हम मैं है हीरो” हर तरफ गूंजने लगी साथ ही इस ख़बर पर मुहर लग गयी कि दोनों कम्पनियों का अलगाव हो चुका है। आज दोनों कम्पनियों की अलग-अलग फैक्ट्रीज़ है और दोनों ही अपनी-अपनी बाइक्स मैनुफेक्चर कर मार्केट में अलग-अलग बेच भी रहे हैं। होंडा और हीरो मोटोकार्प के अलगाव की कहानी शुरू करने से पहले आइये शॉर्ट में हम यह भी जान लेते हैं कि इन दोनों कम्पनियों का मिलन कब और क्यों हुआ था? और दोनों के बीच का एग्रीमेंट क्या था?
Hero-Honda agreement-
यह दास्तान उस दौर की है जब हीरो कंपनी दुनिया की सबसे बड़ी साईकल बनाने वाली कंपनीज़ में से एक कही जाती थी साथ ही इसका नाम दुनिया की दिग्गज़ कम्पनियों में गिना जाने लगा था। बदलते वक़्त के साथ हीरो कंपनी के मालिकों ने ग़ौर किया कि विदेशी मार्किट में मोटरसाइकिल का बिज़नेस काफी तेजी से उभर रहा है जिसका कि इंडिया में तगड़ा स्कोप हो सकता है क्योंकि तब इंडिया में टू व्हीलर के नाम पर स्कूटर और बिक्की दो ही ऑप्शन मौज़ूद थे। कंपनी के मालिकों को यब बात अच्छे से समझ आ चुकी थी इंडियन मार्किट में मोटरसाइकिल उतारने के लिये इससे बेहतर टाइम नहीं मिलेगा लेकिन इसमें सबसे बड़ी प्रॉब्लम थी बाइक्स के इंजन बनाने की टेकनोलॉजी, जिसके बिना मोटरसाइकिल मैनुफेक्चर करना हीरो के लिये दूर का ख़्वाब था।
अब हीरो के पास ले देकर एक ही रास्ता बचता था, और वो था किसी ऐसी विदेशी कंपनी के साथ कॉलेब्रेशन करना, जिसके पास बाइक्स मैनुफेक्चर करने का एक्सपेरीयंस या इंजन बनाने की क्षमता हो। ये वो दौर था जब कोई विदेशी कंपनी सीधे सीधे इंडिया में इन्वेस्ट नहीं कर सकती थी लेकिन गवर्नमेंट ने इसकी छूट दी हुई थी कि कोई भी इंडियन कंपनी किसी भी विदेशी कंपनी के साथ टाई अप करके इंडिया में कारोबार कर सकती है। काफी सोच विचार के बाद हीरो ग्रुप के मालिकों में से एक ब्रजमोहन लाल मुंजाल ने जापानी कंपनी हौंडा के पास में अपना प्रोपोज़ल भेजा जो उस दौर में दुनिया की सबसे बड़ी मोटरसाइकिल कंपनी मानी जाती थी।
उधर होंडा कंपनी की नज़र में भी इंडिया जैसा बिग मार्केट किसी सोने के अंडे देने वाली मुर्गी से कम नहीं था। चूँकि तब कोई भी विदेशी कंपनी भारत में डायरेक्ट अपना बिज़निस स्टार्ट नहीं कर सकती थी ऐसे में इस प्रोपोज़ल को हौंडा ने हाथों हाथ लिया क्योंकि वह अच्छी तरह जानती थी हीरो जैसी बड़ी कंपनी के ज़रिये ही इंडियन मार्किट में छाया जा सकता है। इस तरह साल 1984 में दोनों कंपनीज़ यानि हीरो और हौंडा ने हाथ मिलाया। इसके बाद एग्रीमेंट किया गया कि हीरो बाइक के लिए बॉडी बनाएगा और होंडा उनके लिये इंजन सप्लाई करेगा। इसी के साथ ही दोनो कम्पनियों ने एक NOC भी साइन की जिसके मुताबिक फ्यूचर में कभी भी वे एक दूसरे के सामने अपना प्रोडक्ट लॉन्च नहीं करेंगीं।
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बस फिर क्या था बिना किसी देरी के हीरो होंडा का पहला प्लांट हरियाणा में लगा दिया गया और साल 1985 में अपनी पहली बाइक CD 100 मार्केट में लॉन्च भी कर दी। टू व्हीलर के रूप मोटर साइकिल का यह रूप देखते ही देखते पूरे इंडिया में पॉपुलर हो गया साथ ही हीरो होंडा कंपनी का नाम भी सबकी ज़ुबान पर चढ़ गया। इस पॉपुलरटी की दूसरी सबसे बड़ी वज़हें थीं, स्कूटर के कम्परीज़न में इस बाइक का ज़्यादा माइलेज़ और साथ ही इसका प्राइस, जो मिडिलक्लास के लिए काफी अफोर्डेबल था। ‘Fill it, Shut it, Forget it’ यानि गाड़ी की टंकी में ‘पेट्रोल भरो, बंद करो और भूल जाओ।’ कंपनी का यह टैगलाइन भी लोगों को ख़ूब पसंद आया था जिसमें यह मैसेज साफ था कि इसका माइलेज ज़बरदस्त है।
मतभेद की शुरुआत-
इंडियन मार्केट में हीरो होंडा कि कारोबार अच्छा चल रहा था लेकिन कंपनी के भीतर की सिचुएशन उतनी ठीक नहीं थी जितनी कि बाहर से नज़र आती थी। दरअसल इंडियन मार्केट में हीरो होंडा के कारोबार के लेकर शुरुआत में तो कोई प्रॉब्लम नहीं थी लेकिन गड़बड़ तब शुरू हुई जब दूसरे बड़े देशों में हीरो होंडा के बाइक्स सेल करने की बात हुई। क्योंकि अमेरिका और रूस जैसी डेवलप कंट्रीज़ में हौंडा तो पहले से ही अपनी बाइक्स सेल कर रही थी और वहाँ उसकी मार्केट ख़राब न हो इसलिए उसने हीरो हौंडा को इन देशों में अपनी बाइक सेल करने के लिये परमिशन देने से साफ इनकार कर दिया।
होंडा चाहती थी कि हीरो होंडा इंडिया के अलावा सिर्फ नेपाल, भूटान और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों तक ही सीमित रहे। इधर हीरो कंपनी जिसका नाम साईकल मनुफैक्चर के तौर पर गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज था, वह इंटरनेशनल मार्किट में अपनी बाइक्स के लिये भी वही ख़ास पोजीशन बनाना चाहती थी लेकिन होंडा की वज़ह से उसकी रफ्तार पर जैसे ब्रेक सी लग गया था। इसका नतीज़ा यह हुआ कि दोनों कंपनीज़ के रिलेशन ख़राब होने लगे। चूँकि एग्रीमेंट के मुताबिक अभी तक हीरो कंपनी सिर्फ बाइक की बॉडी बनाती थी इसलिए चाहकर भी अलग नहीं हो सकती थी क्योंकि इंजन के लिए तो अभी तक वे पूरी तरह से होंडा पर डिपेंड थे।
हीरो कंपनी को यह बात अब समझ में आ चुकी थी अगर उसे होंडा से अलग होना है तो फिर ख़ुद का इंजन मैन्युफ़ैक्चर करना ही पड़ेगा। हीरो ने तय कर लिया कि वह अपने प्रॉफिट को इंजन बनाने में खर्च करेगा और फिर जो होना था वही हुआ, हीरो का यह डिसीजन होंडा को नागवार गुज़रा और दोनों के बीच का मनमुटाव और बढ़ गया। हालांकि साल 2004 में हीरो समूह और होंडा कंपनी ने अपने एग्रीमेंट को दस साल के लिए आगे बढ़ा दिया था। जिसके तहत तय हुआ कि होंडा पहले की तरह ही इंजन उपलब्ध कराती रहेगी। इस एग्रीमेंट का रिन्युअल साल 2014 में होना था, लेकिन मनमुटाव तब तक इतना बढ़ चुका था कि उससे पहले ही दोनों कम्पनियों ने अलग होने का फ़ैसला कर लिया और मुंजाल परिवार ने साल 2010 के दिसंबर में होंडा की सारी 26 प्रतिशत हिस्सेदारी जो 3,841.83 करोड़ रुपये की थी, उसे खरीदने की घोषणा कर दी। उसी दौरान के एक इंटरव्यू में हीरो होंडा के एमडी और सीईओ पवन मुंजाल ने बताया था कि, “यह पिछले 25 साल में सबसे अहम घोषणा है।
बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने हीरो होंडा और होंडा के बीच एमओयू को मंजूरी प्रदान की है। हीरो होंडा नए मॉडल पेश करने के साथ ही मौजूदा मॉडलों का प्रॉडक्शन जारी रखेगी। हालांकि, भविष्य में सभी प्रॉडक्ट्स हीरो समूह और होंडा के बीच नए लाइसेंसिंग समझौते के तहत उतारे जाएंगे।” इंटरव्यू में कंपनी ने यह भी कहा था कि उसके प्रमोटर्स के अलग होने के साथ ही हीरो होंडा ब्रैंड नाम भी आने वाले समय में बदल जाएगा।
अलगाव की दूसरी बड़ी वज़हें-
दरअसल इस मतभेद और अलगाव की सबसे बड़ी वज़ह थी कि एक तरफ हीरो ग्रुप चाहता था कि अपने एग्रीमेंट के तहत दूसरे बड़े देशों में हीरो होंडा कि बाइक्स की सेल पे लगी रोक खत्म कर दी जाए लेकिन वहीं दूसरी तरफ होंडा कंपनी इस परमिशन के बदले हीरो से और ज़्यादा रायल्टी की डिमांड कर रही थी। इतना ही नहीं साल 2000 में होंडा द्वारा अपनी होंडा मोटरसाइकिल एंड स्कूटर इंडिया के जरिए 2000 में दोपहिया बाजार में उतरने की कोशिश भी दोनों कम्पनियों के बीच अलगाव की एक बहुत बड़ी वज़ह बनी। दरअसल कॉलेब्रेशन के दौरान जो NOC साइन किया गया था, उसमें यह साफ दर्ज़ था कि दोनों कम्पनीज़ एक दूसरे के सामने इंडिया में कभी भी अपनी-अपनी बाइक्स नहीं लॉन्च करेंगें, लेकिन होंडा ने उस एग्रीमेंट को नज़रअंदाज़ कर साल 1999 में अपनी एक सेप्रेट कंपनी Honda Motercycle and scooter india Pvt Ltd. के नाम से रजिस्टर्ड करा ली और हीरोहौंडा के कम्पटीशन में अपनी बाइक्स मार्केट में लॉन्च कर दी वह भी लगभग उन्हीं दामों में। इसका नतीज़ा यह हुआ कि हीरो होंडा के कस्टमर्स बँटते चले गये और हीरो ग्रुप को नुकसान उठाना पड़ा जो कि नैचुरली होना ही था। कुछ ही सालों बाद हौंडा ने एक्टिवा स्कूटी लॉन्च कर स्कूटर सेगमेंट में भी अपने पैर जमा लिये। हीरो जहाँ अभी भी हीरो होंडा के प्रॉफिट में अपनी हिस्सेदारी तक ही सीमित था वहीं होंडा को दोतरफा प्रॉफिट हो रहा था, हीरो होंडा से अलग, और अपनी सेपरेट कंपनी से अलग।
ज़ाहिर सी बात है कि ये वज़हें काफी थी हीरो कंपनी को हौंडा से अलग होने के लिये। जिसके बाद साल 2010 आते-आते दोनों कंपनीज़ अलग हो गयीं। हालांकि हीरो के पास होंडा नाम को साथ में लगाने का राइट साल 2014 तक था, लेकिन हीरो ख़ुद भी अपने आप में एक बड़ा नाम था इसलिए उसने यह ज़रूरी नहीं समझा कि होंडा नाम का सहारा लिया जाये। जापानी कंपनी होंडा से अलग होने के बाद हीरो ग्रुप ने अपनी सारी तैयारी पहले ही कर ली थी। बस इंतज़ार था तो कंपनी के शेयरधारकों की मंजूरी का, जिसके मिलते ही कंपनी ने अपना नाम बदलकर हीरो मोटोकार्प रख लिया।
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16 दिसंबर 2010 को हुए इस अलगाव के बाद हीरो होंडा कंपनी में दोनों ही कंपनीज़ के 26 – 26 % शेयर थे जिसमें से हौंडा ने अपने 26% शेयर हीरो को ही बेचने का फ़ैसला किया और हीरो कंपनी के प्रमोटर ब्रजमोहन लाल मुंजाल ने 1.2 अरब डॉलर में ये शेयर खरीदकर अपनी नई कंपनी हीरो मोटोकॉर्प के नाम से शुरू की। उस दौरान दिये अपने एक इंटरव्यू में हीरो मोटोकार्प के अध्यक्ष ब्रजमोहन मुंजाल ने बताया था कि,
“हमारे और होंडा के बीच जो अलगाव हुआ है वो हमारे लिए एक शुभ संकेत था। इसके अलावा यह हमारे लिए एक नये युग की शुरूआत है। उन्होने बताया कि हीरो अब दुनिया भर में स्वतंत्र होकर अपना दम दिखाएगी और विकास के नये आयाम स्थापित करेगी।”
मज़े की बात कि जब हीरो और होंडा कम्पनीज़ एक दूसरे से अलग हुईं तो लोगों को लगने लगा था कि होंडा के सपोर्ट के बिना हीरो कंपनी ज़्यादा दिनों तक मार्केट में सर्वाइव नहीं कर पायेगी लेकिन आज हीरो मोटोकार्प का नाम दुनिया की सबसे बड़ी मोटरसाईकल बनाने वाली कंपनियों में से एक बन चुका है जो करीब 40 देशों में अपनी बाइक्स सेल कर रही है।
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