विश्व क्रिकेट इतिहास के हर दौर में ऐसे मौके बहुत आये जब क्रिकेट के खेल पर एक जैसी पकड़ रखने वाले दो महान खिलाड़ी एक ही समय में एक ही टीम की तरफ से खेलते हुए नजर आए, भारतीय क्रिकेट इस तरह के दौर का साक्षी एक से ज्यादा बार रहा है जिसमें से एक समय ऐसा भी था जब भारतीय क्रिकेट में एक तरफ सुनील गावस्कर रिकॉर्ड्स की लड़ी लगा रहे थे तो वहीं दूसरी तरफ गुंडप्पा विश्वनाथ अपनी स्टाइलिश बल्लेबाजी से विश्व क्रिकेट को मंत्रमुग्ध कर रहे थे।
अब जरा सोचिए की अगर कोई बल्लेबाज भारतीय टीम में रहते हुए सुनील गावस्कर के प्राइम में उनको टक्कर दे सकता है तो वह बल्लेबाज किस तरह का होगा कौनसी ऐसी खूबियां उसमें होगी जो उसे सुनील गावस्कर से भी बेहतरीन बनाती थी, कैसा रहा होगा ऐसे बल्लेबाज का क्रिकेट करियर और जिंदगी का सफर आज के इस एपिसोड में इसी विषय पर बात करने वाले है।
गुंडप्पा विश्वनाथ का शुरुआती जीवन-
गुंडप्पा विश्वनाथ का जन्म 12 फरवरी साल 1949 को मैसूर में स्थित शिवमोगा जिले के भाद्रवती कस्बे में पिता रंगनाथ विश्वनाथ के घर हुआ था।
विश्वनाथ के पिता मैसूर स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में एक स्टेनोग्राफर के तौर पर काम करते थे, गुंडप्पा के अलावा इनकी छः और संतानें थी जिसमें तीन बेटे और तीन बेटियां थीं।
गुंडप्पा विश्वनाथ की उम्र जब चार साल हुई तो उनके पिता का तबादला भाद्रवती से 250 किलोमीटर दूर बैंगलोर में हो गया था जहां इनका परिवार विश्वेश्वर पुरम में एक किराये के घर में रहता था।
गुंडप्पा विश्वनाथ बताते हैं कि उन्होंने लगभग सात साल की उम्र में पहली बार बल्ला हाथ में लिया था, यहां से एक बल्लेबाज के तौर पर गली क्रिकेट में अपने दोस्तों के साथ टेनिस गेंद से खेलते हुए विश्वनाथ को इस खेल से प्यार होने लगा था और यह प्यार अगले पांच सालों में अपने उरूज़ पर पहुंच गया था।
गुंडप्पा विश्वनाथ का क्रिकेट जगत में रूचि-
विश्वनाथ को बहुत छोटी उम्र में ही क्रिकेट के करीब लाने वाले लोगों में उनके भाई जगन्नाथ का बहुत बड़ा हाथ था, विश्वनाथ के भाई बहुत अच्छे क्लब क्रिकेटर थे और किसी मैच के दिन सुबह अपने भाई को जल्दी उठाकर मैच की कोमेन्ट्री सुनाते थे, इसके अलावा जगन्नाथ अपने भाई को क्रिकेट से जुड़े कई किस्से कहानियां भी सुनाया करते थे।
अपने भाई से किस्से कहानियां सुनते सुनते विश्वनाथ आस्ट्रेलियाई क्रिकेट और खासकर नील हार्वे को पसंद करने लगे थे और धीरे-धीरे यह पसंद हार्वे को आइडलाइज करने तक पहुंच गई थी।
आगे जब ग्यारह साल की उम्र में एक फस्ट क्लास मैच के चलते विश्वनाथ को अपने पसंदीदा खिलाड़ी हार्वे को देखने और छूने का मौका मिला तो उस पल को विश्वनाथ आज भी किसी सपने की तरह मानते हैं।
नील हार्वे और भाई जगन्नाथ के अलावा तीसरे जिस इन्सान का असर विश्वनाथ की क्रिकेट पर पड़ा उसका नाम एस कृष्णा था जो विश्वनाथ के पड़ोस में रहते थे और अपनी कोलेज क्रिकेट टीम के कप्तान भी थे।
कृष्णा विश्वनाथ को टेनिस बोल से खेलते हुए देखते थे और उनसे प्रभावित होकर कृष्णा विश्वनाथ के खेल को और अधिक निखारने में दिलचस्पी भी लेने लगे थे।
विश्वनाथ धीरे धीरे एक अच्छे बल्लेबाज के तौर पर अपने आसपास के लोगों के बीच फेमस होने लगे थे, उनके साथ खेलने वाले बच्चे उन्हें सबसे अच्छा खिलाड़ी मानते थे लेकिन इन सबसे अलग एक समय ऐसा भी आया जब विश्वनाथ को अपनी छोटी उम्र और हाइट के चलते रिजेक्शन मिलने लगा था।
ऐसे समय में विश्वनाथ की मुलाकात अपने हाई स्कूल के दिनों में चन्द्रा शेट्टी से हुई जो स्पार्टन क्रिकेट क्लब के ओनर थे, उन्होंने किसी मैच के दौरान विश्वनाथ को खेलते हुए देखा और अपने क्लब में शामिल होने के लिए कह दिया।
शेट्टी के लिए विश्वनाथ का हुनर उनकी उम्र और हाइट से ज्यादा मायने रखता था और यही कारण है कि वो विश्वनाथ के सलेक्शन के लिए टीम के कप्तान से भी उलझ पड़ते थे।
अपने क्लब क्रिकेट टीम की तरफ से खेलते हुए भी विश्वनाथ का प्रदर्शन शानदार रहा और वो शेट्टी की आंकाक्षाओं पर खरे उतर रहे थे।
गुंडप्पा विश्वनाथ का क्रिकेट में शुरूआत-
हाई स्कूल पास करने के बाद विश्वनाथ ने sbi बैंक में कुछ समय के लिए काम भी किया था और sbi की क्रिकेट टीम के लिए भी कभी नीचे तो कभी टोप ओर्डर में बल्लेबाजी करते हुए विश्वनाथ लगभग हर मैच में अपने हुनर का जौहर दिखा रहे थे।
यहां से विश्वनाथ डोमेस्टिक क्रिकेट सर्किट में भी पहचाने जाने लगे थे और साल 1967 को विश्वनाथ ने मैसूर की तरफ से खेलते हुए आन्ध्राप्रदेश के खिलाफ अपना रणजी डेब्यू किया और 230 रनों की शानदार पारी खेली।
आगे साल 1969 में विश्वनाथ को इंडियन बोर्ड प्रेजिडेंट इलेवन की तरफ से न्यूजीलैंड के खिलाफ खेलने का मौका मिला और यहां विश्वनाथ ने मुश्किल में पड़ी अपनी टीम को उबारने में अहम भूमिका निभाई थी।
यह विश्वनाथ के शानदार प्रदर्शन का ही परिणाम था कि उन्हें जल्द ही भारत की अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट टीम की तरफ से खेलने का मौका भी मिल गया, 15 नवम्बर साल 1969 वह दिन रहा जब विश्वनाथ को भारत की सफेद जर्सी में मैदान पर उतरने का मौका मिला, पहली पारी में विश्वनाथ शून्य के स्कोर पर आउट हो गए थे, पवैलियन लौटने पर उदास बैठे विश्वनाथ को कप्तान पटौदी ने हिम्मत बंधाते हुए कहा था कि उदास मत हो तुम अगली पारी में जरुर शतक लगाओगे।
अगली पारी में चौथे स्थान पर बल्लेबाजी करने उतरे 20 साल के विश्वनाथ ने शुरू से ही अपने पसंदीदा शोट्स लगाने शुरू कर दिए थे और देखते ही देखते अपना स्कोर 100 तक पहुंचा दिया, भारत मैदान पर एक नौसिखिये को सुपरस्टार बनते देख रहा था।
विश्वनाथ ने पच्चीस शानदार चौकों की मदद से 137 रन बनाए जिसके चलते भारत यह मैच ड्रा कराने में सफल रहा था।
इस सीरीज में आस्ट्रेलिया की मजबूत टीम के सामने विश्वनाथ ने गेंदबाजों के लिए स्वर्ग मानी जाने वाली पीचो पर दो अर्धशतकीय पारियां भी खेली और अपनी प्रतिभा का सबूत पुरे विश्व क्रिकेट के सामने रख दिया था।
आस्ट्रेलिया के सामने अपने प्रदर्शन और फिर डोमेस्टिक क्रिकेट में शानदार बल्लेबाजी के चलते विश्वनाथ को साल 1971 में होने वाले वेस्टइंडीज और इंग्लैंड के ऐतिहासिक दौरों के लिए भी टीम में शामिल किया गया लेकिन यहां इस बल्लेबाज का बल्ला वो कमाल नहीं कर पाया जिसकी उम्मीद की जा रही थी।
1971 में खराब प्रदर्शन का परिणाम यह हुआ कि विश्वनाथ को लोग वन मैच वन्डर कहने लगे थे, विश्वनाथ के बारे में तरह तरह की बातें होने लगी थी जिनका जवाब देना इस खिलाड़ी के लिए जरूरी हो गया था और यह मौका उन्हें कुछ ही समय बाद भारत के दौरे पर आई इंग्लैंड टीम के खिलाफ मिला।
कानपुर टेस्ट में इन्हें खेलने का मौका मिला लेकिन इस मैच के दौरान ही मुम्बई टेस्ट के लिए टीम का चयन हो गया था जिसमें विश्वनाथ को शामिल नहीं किया गया और विश्वनाथ ने चयनकर्ताओं के इस फैसले को ग़लत साबित करते हुए कानपुर टेस्ट मैच 75 रनों की शानदार पारी खेली जिसके बाद मुम्बई टेस्ट के लिए इन्हें टीम में शामिल किया गया जिसमें शानदार शतकीय पारी खेलकर विश्वनाथ ने सबके मुंह बंद कर दिए थे।
गुंडप्पा विश्वनाथ एक दौर में अपनी तरह के सबसे उम्दा बल्लेबाज थे, ड्राइव शोट और कट करते समय उनके बल्ले से निकली आवाज किसी सुरमई कविता की तरह सुनाई देती थी, कलाईयों का इस्तेमाल विश्वनाथ से बेहतर आज भी कोई बल्लेबाज नहीं कर सकता है, अपनी इन्हीं खूबियों की बदौलत चौदह साल लम्बे करियर में ऐसे बहुत कम मौके आए थे जब विश्वनाथ को भारतीय टीम से ड्राप किया गया था।
साल 1974-75 में जब वेस्टइंडीज की टीम भारत पहुंची तो विश्वनाथ के बल्ले से उनके करियर का सबसे शानदार प्रदर्शन निकला, मुश्किल टीम और मुश्किल समय में बेहतर से बेहतरीन हो जाने की कला रखने वाले विश्वनाथ ने दो मैचों में हार के बाद कोलकाता टेस्ट में 139 रनों की पारी खेली और भारत को सीरीज में वापसी कराने में अहम भूमिका निभाई।
अगला मैच मद्रास में था और यहां भारत के सात विकेट 91 के स्कोर पर गिर गए थे लेकिन विश्वनाथ एक छोर पर वेस्टइंडीज की आग उगलती गेंदबाजी पर भारी पड़ रहे थे, यहां विश्वनाथ ने कुल 97 रनों की पारी खेली जिसे आज भी विश्व क्रिकेट इतिहास में खेली गई सबसे बेहतरीन पारियों में गिना जाता है, खुद गवास्कर ने इस पारी को अपनी आंखों से देखी सबसे बेहतरीन पारी बताया था।
विश्वनाथ मुश्किल गेंदबाजी लाइनअप के सामने किस कदर अच्छे बल्लेबाज थे इसका पता आप इसी बात से लगा सकते हैं कि उनका औसत आस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज जैसी टीमों के सामने 50 से भी ऊपर रहा था।
साल 1976 में जब भारत ने पोर्ट ऑफ स्पेन के मैदान पर रिकार्ड 403 रन चेज किए तो उसमें भी विश्वनाथ ने 112 रनों की बेहतरीन पारी खेली थी और यही वो पारी थी जिसने मैच ड्रा कराने उतरी भारतीय टीम में जीत हासिल करने का हौसला भरा था।
अगले साल आस्ट्रेलिया गई भारतीय टीम में भी विश्वनाथ शामिल थे और उन्होंने जैफ थोमसन जैसे गेंदबाजों के सामने सीरीज में सबसे ज्यादा 500 रन बनाए थे।
बात करें विश्वनाथ के वनडे करियर की तो यहां यह खिलाड़ी टेस्ट क्रिकेट जैसा जादू नहीं दिखा पाया था क्योंकि विश्वनाथ की बल्लेबाजी सिर्फ टेस्ट क्रिकेट को ही शूट करती थी, साल 1974 में अपना पहला वनडे मैच खेलने वाले विश्वनाथ दो बार भारत की तरफ से वर्ल्डकप खेलने वाली टीम का हिस्सा भी रहे जिसमें साल 1979 में वेस्टइंडीज के खिलाफ वर्ल्डकप में खेली गई 75 रनों की पारी को विश्वनाथ अपने वनडे करियर की सबसे बेहतरीन पारी मानते हैं हालांकि भारत को इस मैच में हार का सामना करना पड़ा था।
आगे विश्वनाथ को दो मैचों में भारत का नेतृत्व करने का मौका भी मिला था जिसमें से एक मैच ड्रा रहा था और दुसरा मैच भारत हार गई थी।
एक अच्छे कप्तान और खिलाड़ी का फर्ज-
इंग्लैंड के खिलाफ एक मैच में अम्पायर के गलत नतीजे को देखते हुए विश्वनाथ ने एक अच्छे कप्तान और खिलाड़ी का फर्ज निभाते हुए गलत आउट दिए गए इंग्लिश बल्लेबाज बोब टेलर को वापस बुला लिया था जिनकी शतकीय पारी की वजह से आगे चलकर भारत वह मैच हार गई थी लेकिन विश्वनाथ ने सबका दिल जीत लिया था।
विश्वनाथ की शानदार बल्लेबाजी से विपक्षी खिलाड़ी किस तरह खौफजदा रहते थे और किस तरह जरुरत पड़ने पर बेईमानी पर उतर आते थे इससे जुड़ा एक किस्सा यह सुनने को मिलता है कि साल 1978 में पाकिस्तान की धरती पर एक वनडे मैच के दौरान जब विश्वनाथ बल्लेबाजी कर रहे थे तब पाकिस्तानी गेंदबाजों ने सभी गेंदे विश्वनाथ के सर के ऊपर से निकालना शुरू कर दिया था और जब इसकी शिकायत अंशुमान गायकवाड़ ने पाकिस्तानी अम्पायरों से की तो उन्होंने कहा कि किसी लम्बे बल्लेबाज को ले आओ।
पाकिस्तान की बढ़ती बेईमानी को देखते हुए कप्तान बिशन सिंह बेदी ने भारतीय टीम को बीच मैच में ही वापस बुला लिया था।
आगे साल 1981 में आस्ट्रेलिया के खिलाफ बड़ियां प्रदर्शन करने के बाद विश्वनाथ का करियर ढलान पर आने लगा था जिसके चलते इन्हें ड्राप करने की बाते भी होने लगी थी लेकिन अभी इस पुराने शेर की आखिरी चिंघाड़ बाकि थी जो साल 1982 में इंग्लैंड के खिलाफ सुनाई दी जहां चेन्नई टेस्ट में इस बल्लेबाज ने अपने टेस्ट करियर का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन किया और 222 रन बनाए जिसमें यशपाल शर्मा के साथ एक पुरे दिन बल्लेबाजी करते रहने का कारनामा भी शामिल था।
अगले कुछ समय में श्रीलंका के खिलाफ खराब प्रदर्शन और फिर पाकिस्तानी पेस बैटरी के सामने विश्वनाथ एक थके हुए शेर की भांति नजर आये और यह थकावट इस बात की तरफ इशारा कर रही थी कि अब पर्दा गिराने का समय आ गया है और ऐसा ही कुछ हुआ साल 1983 में जब पाकिस्तान के खिलाफ अपना आखिरी मैच खेलने के बाद विश्वनाथ ने क्रिकेट से संन्यास ले लिया था।
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गुंडप्पा विश्वनाथ का क्रिकेट में प्रदर्शन-
आगे विश्वनाथ साल 1999 से 2004 तक मैच रेफरी के रूप में और फिर नेशनल सलेक्शन कमेटी के चेयरमैन के रूप में विश्वनाथ इस खेल से जुड़े रहे थे।
विश्वनाथ ने अपने करियर में कुल 91 टेस्ट मैच खेले जिनकी 155 पारियों में इस बल्लेबाज के नाम 6080 रन है जिनमें 14 शानदार शतक भी शामिल हैं और इन शतकों के बारे में एक बात यह भी मशहूर है कि विश्वनाथ ने जिस भी अंतर्राष्ट्रीय मैच में शतक लगाया था उसमें से कोई भी मैच में भारत नहीं हारी थी।
साथ ही फरवरी 1975 में विश्वनाथ आईसीसी टेस्ट रैंकिंग में शीर्ष स्थान हासिल करने वाले पहले भारतीय बल्लेबाज भी बन गए थे, इस स्थान पर यह बल्लेबाज नवम्बर 1975 तक रहा था।
बात करें वनडे करियर की तो यहां विश्वनाथ ने कुल 25 वनडे मैच खेले जिनमें इनके नाम 439 रन है, वनडे करियर में इनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 95 रन रहा था।
गुंडप्पा विश्वनाथ का ब्यक्तिगत जीवन –
बात करें इनकी निजी जिंदगी के बारे में तो विश्वनाथ का विवाह सुनील गावस्कर की बहन कविता से हुई जिनसे इन्हें एक बेटा है जिसका नाम दैविक है।
अर्जुन अवार्ड
बात करें विश्वनाथ को मिले कुछ अवार्ड्स की तो भारत सरकार द्वारा विश्वनाथ को अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया था साथ ही बीसीसीआई द्वारा कर्नल सीके नायडू लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड साल 2009 में दिया गया था।
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