लगभग एक शताब्दी के अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट के अपने कालखंड के गुजर जाने के बाद अगर हम वेस्टइंडीज क्रिकेट को पलटकर देखें तो 80 ‘s के दौरान जब यह टीम टेस्ट क्रिकेट में अपनी बादशाहत के उरुज पर थी तब उस बादशाहत की विरासत को सही हाथों में देने की बात भी जोर पकड़ने लगी थी क्योंकि माईकल होल्डिंग, जोयल गार्नर और एंडी रोबर्ट जैसे दिग्गज अपने करियर के आखिरी पड़ाव पर पहुंच गए थे।
ऐसे में किसी सशक्त पेस अटैक की मांग उठना लाजमी था, इस मांग से पैदा हुआ एक और शानदार पेस अटैक जिसके दो नाम आज भी उस दौर के बल्लेबाजों के मन में सिहरन पैदा कर देते हैं।
कर्टनी वोल्श का शुरुआती जीवन-
अपने देश जमैका के आजाद होने के दो महीने बाद 30 अक्टूबर साल 1962 के दिन किंगस्टन शहर में पिता जोन वोलस्टन और मां एरिक वाल्श के घर कर्टनी एंड्रू वाल्श का जन्म हुआ था।
छोटी उम्र से ही अपने देश के लिए खेलने का सपना आंखों में संजोए वोल्श की शुरुआत उसी मेलबर्न क्रिकेट क्लब से हुई जहां से इनके आईडल माईकल होल्डिंग ने अपना सफर शुरू किया था।
यहां कर्टनी वोल्श ने खुद को एक महान तेज गेंदबाज बनाने से अधिक एक शानदार एथलीट बनाने पर जोर दिया, हमेशा अपने दोस्तों से आगे रहने की ज़िद और दिन के किसी भी घंटे में आउटडोर गेम्स खेलने के पागलपन ने युवा कर्टनी वोल्श को एक ऐसे सांचे में ढाल दिया था जहां से पुरे दिन गेंदबाजी करने पर भी थकावट का नामोनिशान इनके चेहरे पर दिखाई नहीं देता था।
कर्टनी वोल्श का क्रिकेट में शुरूआत-
17 साल की उम्र में एक्सेलजर हाई स्कूल की सनलाइट कप क्रिकेट टीम की तरफ से खेलते हुए जब कर्टनी वोल्श ने एक पारी में दस विकेट लेने का कारनामा किया तो इनके लिए जैसे क्रिकेट की दुनिया का हर दरवाजा हाथ खोले खड़ा हो गया था जहां से 1981 में वोल्श जमैका की फस्ट क्लास क्रिकेट टीम में शामिल हुए।
साल 1982-83 में अपनी वेस्टइंडीज यात्रा के दौरान इंग्लिश क्रिकेटर टोम ग्रेवनी की नजर इन पर पड़ी जिसकी गेंदों को डालने की नियमितता और रिदम टोम को माईकल होल्डिंग की याद दिला रही थी।
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कर्टनी वोल्श का वेस्टइंडीज टीम में चयन-
एक युवा लड़के का अपनी आंखों पर ऐसा प्रभाव देखकर टोम ने ग्लूस्टरशायर टीम मैनेजमेंट से कर्टनी वोल्श को अपनी टीम में शामिल करने के लिए कहा और इस तरह कर्टनी वोल्श का दी ग्रेट कर्टनी वोल्श बनने का सफर शुरू हुआ।
वोल्श ने साल 1984 में बिल्कुल नीचले स्थान पर सीजन खत्म करने वाली टीम को अगले दो सालों में शीर्ष पर लाकर खड़ा कर दिया था, साल 1986 में अपने साथी गेंदबाज डेविड लोरेंस के आउट ओफ फोर्म प्रदर्शन के चलते कर्टनी ने अकेले अपनी टीम के गेंदबाजी अटैक को संभाला और 790 ओवर फेंके जिनमें 118 विकेट शामिल थी।
डुरासेल-
लगातार गेंदबाजी करते रहने की कला को देखते हुए कर्टनी वोल्श को इनके साथी क्रिकेटर डुरासेल कहकर बुलाते थे।
कर्टनी वोल्श ने नवम्बर 1984 को अपना टेस्ट डेब्यू आस्ट्रेलिया के खिलाफ खेलते हुए किया जिसमें इनके साथ माल्कम मार्शल, माईकल होल्डिंग और जोयल गार्नर जैसे दिग्गज खेल रहे थे।
इस मैच की पहली पारी में कर्टनी वोल्श को ज्यादा कुछ करने का मौका नहीं मिला, इन्होंने पर्थ के मैदान पर दुर बाउंड्री पर खड़े होकर आस्ट्रेलियाई टीम को 76 के स्कोर पर बिखरते हुए देखा, जिसमें माईकल होल्डिंग ने छः विकेट लिए थे।
दुसरी पारी में इन्हें गेंदबाजी करने का मौका मिला तो कर्टनी वोल्श ने दो विकेट अपने नाम किए जिसके चलते आस्ट्रेलिया वह मैच एक पारी के भारी अंतर से हार गई।
जनवरी 1985 को वनडे क्रिकेट में पदार्पण करने वाले वोल्श की जगह अपनी टीम में अभी तक एक अतिरिक्त गेंदबाज की थी, लेकिन ये सबकुछ दिसम्बर 1986 में खेले गए एक वनडे मैच के बाद बदल गया।
जब श्रीलंका के खिलाफ शारजहां के मैदान पर वेस्टइंडीज टीम की तरफ से पांचवें गेंदबाज के तौर पर मैदान पर उतरे कर्टनी वोल्श ने 249 के स्कोर का पीछा कर रही श्रीलंकन टीम के पांच बल्लेबाजों को सिर्फ एक रन देकर आउट कर दिया था।
वेस्टइंडीज यह मैच 193 रनों से जीतने में कामयाब रही और वर्ल्ड क्रिकेट को मिल गया अपना सबसे सस्ता फाइव विकेट होल जो वोल्श का वनडे क्रिकेट में एकमात्र फाइव विकेट होल भी था।
कर्टनी वोल्श दूसरो खिलाड़ियों से अलग कैसे ?
अपनी गेंदबाजी से कई दिग्गज खिलाड़ियों के मन में खौफ पैदा करने वाले वोल्श ने अपने करियर में हर मैच क्रिकेट भावना को जीत से भी ऊपर रखकर खेला जिसका सबसे बड़ा ग्वाह बना 1987 वर्ल्डकप का नौवां मैच जहां मैच की अंतिम गेंद पर दो रन डिफेंड कर रही वेस्टइंडीज टीम हाथ में आया हुआ मैच सिर्फ इसलिए हार गई थी।
क्योंकि वोल्श ने नियमों और जीत को क्रिकेट भावना से नीचे रखकर सलीम जाफर को मैनकडिग आउट करने से मना कर दिया था और उन्हें चेतावनी देकर हार को स्वीकार कर लिया।
वेस्टइंडीज यह मैच हार गई लेकिन वोल्श ने क्रिकेट के सबसे बड़े मंच पर हर किसी का दिल जीत लिया था और उनके इस काम को सराहते हुए पाकिस्तान में रहने वाले उनके एक प्रशंसक ने वोल्श को अपने हाथों से बुना हुआ कार्पेट भेंट किया था।
1988 में आस्ट्रेलिया के खिलाफ खेलते हुए ब्रिसबेन के मैदान पर वोल्श ने कुछ ऐसा कर दिया था जो क्रिकेट इतिहास में अपनी तरह का एकमात्र दृश्य था।
दरअसल इस टेस्ट मैच की पहली पारी में आखिरी गेंद पर टोनी डोडमेड को आउट करने के बाद अगली पारी की अपनी पहली दो गेंदों पर लगातार माईक वेल्टा और ग्रीम वुड को आउट कर वोल्श ने दो इंनिग्स में फैली एक हैट्रिक को अपने नाम किया था।
एक साधारण एक्शन के साथ दुनिया के महानतम पेसर्स के बीच बल्लेबाजों को डराने वाली अपनी बाउंसर्स से वेस्टइंडीज टीम के गेंदबाजी लाईनप को एक दशक तक लीड करने वाले वोल्श को कर्टली एम्ब्रोस का बखूबी साथ मिला और इन दोनों ने मिलकर 90’s के दौर में एक ऐसे चक्रव्यूह का निर्माण किया जिससे निकल पाना हर बैटिंग लाइनअप के लिए नामुमकिन था।
इन दोनों गेंदबाजों ने साथ में 49 मैच खेले और 421 विकेट अपने नाम किए जिसमें सबसे खास बात यह रही कि ये दोनों गेंदबाज बल्लेबाजों को धमकाने और गाली गलौज जैसी हरकतें नहीं करते थे।
गार्ड ऑफ ऑनर-
यही वजह थी कि 4 अगस्त सन् 2000 को ओवल के मैदान पर यह जोड़ी आखिरी बार मैदान पर उतरी तो लगभग पन्द्रह हजार दर्शकों सहित इंग्लैंड टीम की तरफ से इन दोनों को गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया था।
साल 1994 में कर्टनी वोल्श को वेस्टइंडीज टीम का नया कप्तान चुना गया जिनके सामने पहला और सबसे बड़ा लक्ष्य था भारतीय दौरा जहां वोल्श को अपने साथी एम्ब्रोस, रिची रिचर्डसन और डेसमंड हेंस के बगैर टेस्ट क्रिकेट में अपनी टीम की चौदह सालों से चली आ रही अजेय बादशाहत को खत्म होने से रोकना था।
पहला मैच भारतीय टीम ने 96 रनों से जीत लिया था और दुसरा मैच वेस्टइंडीज जीमी एडम्स की मदद से ड्रो कराने में सफल रही, तीसरे टेस्ट मैच के लिए दोनों टीमें भारत के सबसे नये क्रिकेट स्टेडिम मोहाली पहुंची जहां वेस्टइंडीज ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करते हुए 443 रन बनाए जिसके जवाब में भारत 387 रन ही बना पाई।
दुसरी पारी में 358 रनों का लक्ष्य प्राप्त करने उतरी भारतीय टीम के लिए वोल्श की गेंद पर मनोज प्रभाकर की नाक पर लगी चोट शायद भारतीय टीम की एक शर्मनाक हार की तरफ एक इशारा थी, भारतीय टीम इस पारी में 115 रनों पर सिमट गई थी।
साल 2000 और 2001 का क्रिकेट सीजन कर्टनी वोल्श के लिए अपने करियर का सबसे यादगार समय रहा क्योंकि इन दो सालों में वोल्श ने पहले कपिल देव के 434 विकेटों के रिकॉर्ड को तोड़ा और अगले ही साल पोर्ट ओफ स्पेन के मैदान पर जैक कैलिस को आउट कर इस खेल के इतिहास में 500 विकेट लेने वाले पहले टेस्ट गेंदबाज बन गए थे।
कर्टनी वोल्श का क्रिकेट करियर-
वोल्श ने अपने 17 सालों के टेस्ट करियर में कुल 132 टेस्ट मैच खेले जो किसी भी तेज गेंदबाज के लिए एक बहुत बड़ी बात है और उससे भी बड़ी बात ये कि वोल्श ने अपने टेस्ट करियर में कुल 5000 ओवर डाले थे यानी लगभग 30000 गेंदें जिनमें इन्होंने 519 विकेट अपने नाम किए थे। इसके अलावा वनडे करियर में इन्होंने 205 मैचों में 225 विकेट लिए थे।
बात करें इस खिलाड़ी के बल्लेबाजी करियर की तो उसकी भी एक अलग ही कहानी है, बल्लेबाजी में टेस्ट और वनडे दोनों में 30 का उच्चतम स्कोर रखने वाले वोल्श के शोट देखने में इतने मजेदार होते थे कि लोग उन पर तालियां बजाते नहीं थकते थे।
कर्टनी वोल्श के नाम बैटिंग में 41 बार शून्य पर आउट होने का वर्ल्ड रिकॉर्ड दर्ज है साथ ही इन्होंने 63 बार नाबाद लौटने का वर्ल्ड रिकॉर्ड भी अपने नाम किया था।
रिटायरमेंट के बाद वोल्श ने वेस्टइंडीज मेन्स क्रिकेट टीम के सलेक्टर, बांग्लादेश और किंग्स इलेवन पंजाब के कोच के तौर पर अपनी दुसरी पारी को आगे बढ़ाया, वर्तमान में ये गेंदबाज वेस्टइंडीज की महिला क्रिकेट टीम को अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
कर्टनी वोल्श का ब्यक्तिगत जीवन-
बात करें इनकी निजी जिंदगी के बारे में तो कर्टनी वोल्श ने कभी शादी नहीं की और जब भी इन्हें इस बारे में सवाल पुछा जाता है तो वोल्श कहते हैं कि उन्होंने अपनी जिंदगी में क्रिकेट से ही प्यार किया है और इस खेल से ही शादी भी की है।
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