“ऐतिहासिक लॉर्ड्स की बालकनी में प्रुडेंशियल वर्ल्ड कप की ट्रॉफी हाथ में लेकर मुस्कुराता चेहरा”। जब भी इस वाक्य को कल्पना में पिरोते हैं तो एक ही चेहरा सामने आता है महान ऑल राउंडर कपिल देव का। संभवतः भारत का पहला जेन्युविन फ़ास्ट बॉलर, महान आल राउंडर और आत्मविश्वास लबरेज़ एक कप्तान। आज की कहानी उसी महानतम भारतीय आल राउंडर कपिल देव की है।
जनवरी 1959 को तब के ईस्ट पंजाब में जन्मे कपिल देव 7 भाई बहनों में 6ठे नम्बर पर थे। कपिल को क्रिकेट से कहीं ज़्यादा प्यार दृढ़ता वाले व्यक्तियों से था। उनके प्रेरक रहे थे नेल्सन मंडेला। कपिल देव बचपन से ही बल्लेबाज बनने ख्वाब देखते थे, जो जायज भी था क्योंकि हिंदुस्तान में या तो स्पिनर्स चलते थे या बल्लेबाज। उनकी प्रतिभा को सही वक्त से पहचान कर उनके पिता रामलाल निखन्ज उनको चंडीगढ़ के फेमस कोच देश प्रेम आज़ाद के पास ले गए, तब कपिल महज 14 साल के थे। उनकी बौलिंग की क्षमता वाक़ई हैरान कर देने वाली थी, इसी वजह से अगले साल उनको तब के बॉम्बे के कोचिंग कैम्प में बुलाया गया, जहां कपिल की गेंदबाजी और बल्लेबाजी के किस्से दूर दूर तक सुनाई दिए। हरयाणा उनका यह टैलेंट यूज़ करना चाहती थी, सो कपिल को बॉम्बे से वापस हरयाणा बुलाया गया, जहां नवंबर 1975 में उन्होंने पड़ोसी राज्य पंजाब के खिलाफ रणजी डेब्यू किया। जहां उनके 6 विकेट ने हरयाणा को 63 रनों से विजयी बनाया। वो पूरा सीज़न उन्होंने 30 मैचों में शानदार 121 विकेट्स के साथ कम्पलीट किया। कपिल पर चयनकर्ताओं की नज़र भी पड़ रही थी, इसलिए नहीं कि वो अच्छे बल्लेबाज या गेंदबाज़ हैं, बल्कि इसलिए कि उनकी गेंदें तेज़ी के साथ बाउंस होती थीं।
अगले रणजी सीजन के पहले ही मैच में जम्मू कश्मीर के खिलाफ उन्होंने 36 पर 8 का प्रदर्शन कर सभी को अपनी ओर आकर्षित किया, अब लोग स्टेडियम भी भरने लगे थे, यह देखने कि जिस तेज़ गेंदबाज़ी को वो रेडियो पर सुना करते हैं, वो असल मे दिखती कैसी है, आखिर स्विंग होती कैसी है, बाउंसर क्या होती हैं। प्री क्वार्टर फाइनल में बंगाल के खिलाफ दूसरी पारी में महज 9 ओवर्स के भीतर ही उन्होंने 20 रन देकर 8 विकेट लिए, दर्शक आज भी इस मैच को नहीं भूलते। लहराती हुई बेहद तेज़ गति की गेंदे, इन स्विंग और लेट आउट स्विंग गेंदे देख दर्शक रोमांचित हो उठे थे। आने वाले लगभग सभी रणजी सीजन में उन्होंने अपनी गेंदबाज़ी और बल्लेबाजी का बेहतरीन नमूना पेश किया। उनका दलीप ट्रॉफी में 65 रन 7 विकेट का शानदार प्रदर्शन उनको न केवल नार्थ जोन की टीम में लाया बल्कि विल्स ट्रॉफी में भी उनको जगह मिल गयी।
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16 अक्टूबर 1978 को महज 19 साल की उम्र में उन्होंने फैसलाबाद में पाकिस्तान के खिलाफ अपना पहला टेस्ट खेला। उन्होंने आते ही बाउंसर से हेल्मट्स पर मारना शुरू किया और सादिक़ मोहम्मद के रूप मे पहला विकेट हासिल किया। इसी सीरीज के तीसरे टेस्ट में उन्होंने महज 33 गेंदों के 52 रन ठोककर अपना बल्लेबाजी का जलवा दिखाया। वेस्टइंडीज के भारत दौरे पर उन्होंने पहले टेस्ट शतक जमाया और महज 124 गेंदों पर 126 रन बना डाले। देव ने इंग्लैंड की जमीं पर अपना पहला 5 विकेट हॉल बनाया, और पूरी सीरीज 16 विकेटों के साथ खत्म की।
ऑस्ट्रेलिया के भारत दौरे पर कपिल ने 2 बार फाइव विकेट हॉल सहित पूरी सीरीज में 28 विकेट चटकाकर कुछ हद तक 1979 वर्ल्ड कप की कड़वी यादें भुलाने का काम किया। इसी साल पाकिस्तान के ख़िलाफ़ वानखेड़े में शानदार 69 रन बनाकर मैच जितवाया और चेपक में बल्ले से 98 और गेंद से 11 विकेट लेकर जीत का परचम लहराया।
एक प्रेरणादायक किस्सा आपको सुनाते हैं, साल 1980 में ऑस्ट्रेलिया दौरे पर भारत 1-0 से पिछड़ रहा था। और दूसरे मैच में 143 रन डिफेंड करने थे कि तभी कपिल ग्रोइन इंजरी के कारण बाहर हो गए। लेकिन जज्बा जब हिमालय फतह करने का हो तो आंधियां भी ठंडी बयार लगती हैं। भारत का यह शेर पेनकिलर खाकर मैदान में वापस आता है और 28 रनों की कीमत पर 5 विकेट चटकाकर भारत को विजयी बना देता है। हालांकि उसके बाद भी कपिल लगातार अच्छा खेलते रहे। 1981-82 में इंग्लैंड के खिलाफ होम सीरीज में 318 रन और 22 विकेट्स, लॉर्ड्स में 130 रनों की पारी वर्ल्ड कप से पहले ,उनके लिए अच्छा संकेत थी।
1982 के पाकिस्तान दौरे के बाद उनको कप्तान बना दिया गया, यह हैरानी भरा फैसला था क्योंकि उन्होंने सुनील गावस्कर को अपदस्थ किया था।
साल 1983 के वर्ल्ड कप की कथा कहानी हम दिएर एरा वर्सेज आवर एरा में सुना चुके हैं। आप उस वीडियो में उस दौर को जीवंत होते हुए देख सकते हैं। खैर 83 के वर्ल्ड कप में 60 की गजब औसत से 303 रन और 20 की बेमिसाल औसत से 12 विकेट के साथ 7 कैचस ने उनका महान कप्तान और अव्वल दर्जे का हरफनमौला खिलाड़ी का दर्जा करार कर दिया।
वर्ल्ड कप के बाद भारत का दौरा करने आई वेस्टइंडीज ने टेस्ट में 3-0 और वन डे में 5-0 से भारत को धो डाला। इसी टेस्ट सीरीज के मोटेरा वाले मैच में कपिल ने 83 रन देकर 9 विकेट चटकाए , लेकिन भारत मैच हार गया। जिसकी वजह से पुनः 1984 में सनी गावस्कर को कप्तान नियुक्त किया गया। जहां उन्होंने इंग्लैंड को सीरीज में हराया ।
कपिल 1987 वर्ल्ड कप में भारत के कप्तान थे। पहले मैच में कपिल की स्पोर्ट्समैनशिप का उच्च पैमाना तब देखने को मिला जब कपिल ने ऑस्ट्रेलिया के 268 के कुल स्कोर को यह कहकर बढ़वाया कि एक शॉट पर ऑस्ट्रेलिया 6 मिलने चाहिए। जवाब में भारत 1 रन से मैच हार गया। भारत सेमीफाइनल में इंग्लैंड से हार गया। कपिल पर मिड विकेट पर लॉलीपॉप कैच देने जैसे आरोप लगे, उनके पीछे पीछे पूरी टीम ढह गई। उसके बाद कपिल ने कभी कप्तानी नहीं की।
कपिल का कप्तानी कैरियर रोलर कोस्टर राइड की तरह रहा। उनके और गावस्कर के बीच मनमुटाव की भी खबरें आने लगी कप्तानी को लेकर, हालांकि बाद में दोनों ने माना कि ख्यालों में इख़्तिलाफ़ जरूर थे लेकिन मनमुटाव नहीं। यानी मतभेद थे मनभेद नहीं।
बात की जाए उनकी गेंदबाज़ी की तो कपिल लेट आर्म से बौलिंग करते थे, इससे उनको आउट स्विंग करने का फायदा होता था , इसके अलावा टेल एंडर्स को निपटाने के लिए उन्होंने 80s में इन स्विंग यॉर्कर्स का इज़ाद किया। कपिल ने 5 सालों में ही 250 टेस्ट विकेट पूरे कर लिए थे। हालांकि 1984 में घुटने की सर्जरी के बाद से उनकी गेंदबाज़ी की धार कम पड़ते गयी, उनका थोड़ा बहुत जम्प भी कम हो गया था। इस के बावजूद उन्होंने 434 टेस्ट विकेट्स का रिकॉर्ड बनाया जो कि अपने आप मे एक विश्व रिकॉर्ड हुआ करता था।
साल 1990 में लॉर्ड्स में फॉलो ऑन के लक्ष्य को पार करने के लिए उन्होंने लगातार 4 छक्के जड़ दिए, यह वही मैच था जहां ग्राहम गूच में 333 रनों की मैराथन पारी खेली थी। महान अंपायर डिकी बर्ड ने कपिल को सबसे महान आल राउंडर्स में से एक माना है।
1985 के बाद कपिल ODI में एक पिंच हिटर के तौर पर उपयोग में लाये जाने लगे। 1992 के वर्ल्ड कप में उनका स्ट्राइक रेट 125 का था जो कि मिनिमम 100 बॉल्स खेलने वालों में सबसे ऊपर था। साल 1994 न्यूज़ीलैंड के खिलाफ शानदार 434 टेस्ट विकेट्स और 5000 से ज्यादा रन्स और ODI में 253 विकेट्स और 3783 रनों के साथ संसार के बेहतरीन आल राउंडर्स में से एक कपिल देव ने संन्यास लिया।
रिटायरमेंट के बाद 1999 में देव भारत के कोच बने। उनकी कोचिंग में भारत केवल एक टेस्ट जीता और 2 टेस्ट सीरीज हारा जिनमें से एक तो अफ्रीका के खिलाफ होम सीरीज थी। मनोज प्रभाकर द्वारा फिक्सिंग के आरोप लगने के बाद उन्होंने कोचिंग से इस्तीफा दे दिया।
साल 2004 में उनको उस भारतीय टीम का बौलिंग कंसलटेंट बनाया गया जिसने पाकिस्तान का दौरा करना था। अक्टूबर 2006 में उनको नेशनल क्रिकेट अकेडमी का चेयरमैन नियुक्त किया गया
साल 2002 में विजडन ने उनको सदी का सबसे महान भारतीय खिलाड़ी चुना।
साल 2008 में उनको भारतीय आर्मी के लेफ्टिनेंट कर्नल की पदवी दी गयी। इसके अलावा उनको अर्जुन अवॉर्ड, पदम् श्री, पद्म भूषण भी मिला है और साल 2010 में कपिल देव ICC हॉल ऑफ फेम में शामिल हुए।
बात की जाए उनकी निजी जिंदगी की तो उन्होंने रोमी भाटिया से 1980 में शादी की और उनकी एक बेटी है जिसका नाम अमिया है। साल 1993 में कपिल ने गोल्फ कैरियर आरम्भ किया और लॉरेस फाउंडेशन के वो एकलौते एशियाई मेंबर हैं। साल 2020 में उनको हार्ट अटैक से गुजरना पड़ा। फिलहाल वह एकदम स्वस्थ हैं
उन्होंने चार किताबें भी लिखी हैं। जिसमें से 3 तो ऑटोबायोग्राफी हैं और् चौथी सिख धर्म पर है
कपिल का विवादों से ज्यादा नाता नहीं रह। टीम के अंदर होने वक़्ली छिटपुट तो सामान्य सी बात है। लेकिन एक बड़ा आरोप उन पर साथी मनोज प्रभाकर ने लगाया था, हालांकि छानबीन कब बाद वह आरोप साबित नहीं हो सका। 2007 में Zee द्वारा शुरू विवादित ICL के भी वो हिस्सेदार थे। कुल मिलाकर कपिल देव एक अन्तरात्मविश्वास का नाम है। जिसने सभी ट्रेडिशन को तोड़ते हुए पहले फ़ास्ट बौलिंग शुरू की और फिर 1983 में भारत को सबसे खूबसूरत तोहफा दिया। नारद TV महान कपिल देव लो उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए सैलूट करता है।