दोस्तों हर क्रिकेटर चाहता है कि पूरी दुनिया उसकी दीवानी हो,फिर चाहे वो ऑन द फील्ड हो या ऑफ द फ़ील्ड,उनके ढेरों फैंस हों। कुछ खिलाड़ी तो विश्व भर में लोकप्रिय होते हैं, दिल करता है कि बस उन्हें ही खेलता देखते रहें। परंतु इनमे से कुछ खिलाड़ी ऐसे थे जिन्होंने अचानक से सन्यास की घोषणा कर कितने फैंस की क्रिकेट देखने की वजह छीन ली। हालांकि सन्यास के वक्त तक भी उनमें काफी क्रिकेट बचा था।
5- ग्रीम स्मिथ
ग्रीम स्मिथ का आंकलन विश्व के सबसे सफल कप्तान और महान सलामी बल्लेबाजों में होता है। मात्र 22 वर्ष की आयु में उन्होंने दक्षिण अफ्रीका टीम की कमान संभाली ।कप्तानी में उन्होंने कमाल की परिपक्वता दिखाई।इसके अलावा वे लगातार लंबी पारियां खेलने में भी माहिर थे।
अपने आकर्षक स्ट्रोकप्ले के लिए मशूर स्मिथ की 2003 में लॉर्ड्स पर 259 रन की पारी आज भी किसी विदेशी बल्लेबाज द्वारा सर्वश्रेष्ठ पारी है।उन्होंने 4 बार 300 से अधिक ऑपनिंग साझेदारियां की।अपनी कप्तानी में उन्होंने दक्षिण अफ्रीका को 54 टेस्ट में जीत दिलाई और साथ ही 100 टैस्ट में कप्तानी करने वाले वे पहले कप्तान भी हैं।
उन्होंने बतौर कप्तान भी टेस्ट में सर्वाधिक रन बनाए। उन्हें घंटो तक बल्लेबाजी करते देखने में काफी आनंद आता था। परंतु केवल 33 वर्ष की आयु में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया। ये फैसला उन्होंने तनाव में आकर लिया।जब 2014 में उनकी बेटी गर्म पानी से जल गई थी।स्मिथ ने अपने करियर में 117 टेस्ट,197 एकदिवसीय और 77 टी 20 खेले।
4- माईकल क्लार्क
अपने वक्त के सबसे महान बल्लेबाजों में से एक माइकल क्लार्क ने जहां ऑस्ट्रेलियाई टीम में बल्लेबाज़ी को और गहराई प्रदान की,वहीं अपनी बाएं हाथ की स्पिन गेंदबाजी से कई मैच जिताऊ स्पैल भी डाले। अपने पहले ही टेस्ट में 151 रन की पारी खेलकर उन्होंने अपनी आक्रमक बल्लेबाज़ी का नज़ारा पेश किया। परंतु उन्हें कई बार पीठ, घुटने और कमर की चोटों की समस्या ने काफी सताया।
जिसके चलते उन्हें टीम से अंदर बाहर होना पड़ता। बावजूद इसके क्लार्क ने कई बार ताबड़तोड़ वापसी कर टेस्ट और एकदिवसीय क्रिकेट में लाज़वाब पारियां खेली।लेकिन 2014 में उनके करीबी दोस्त और टीम के सदस्य फिलिप ह्यूज के देहांत से उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से काफ़ी गहरी ठेस पहुंची थी,और वे अंदर से काफी टूट चुके थे।
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इसके बाद से क्लार्क में वह पहले वाली बात नहीं दिखी। हालांकि उन्होंने 2015 में ऑस्ट्रेलिया की कप्तानी करते हुए अपनी टीम को 5वी बार विश्व कप जीताने में अहम योगदान दिया। परंतु मात्र 34 वर्ष की आयु में क्लार्क ने एशेज श्रृंखला के बाद क्रिकेट के हर प्रारूप से संन्यास ले लिया। उस वक्त उन्होंने ये तक कह दिया था कि ह्यूज़ के देहांत के समय ही उन्हें सन्यास ले लेना चाहिए था। उन्होंने अपने करियर में 115 टेस्ट,245 एक दिवसीय और 34 टी 20 मुकाबले खेले।
3- जॉन्टी रोड्स
जॉन्टी रोड्स का नाम सुनते ही हमारी आंखों के सामने एक चीते सा दौड़ता हुआ फुर्तीला क्रिकेटर आता है, जिसकी तरफ़ गेंद जाते ही कोई बल्लेबाज रन चुराने की गलती नहीं करता था, और जिसने ये गलती की,अपना विकेट देकर खामियाजा भुगता। विश्व के सबसे फिट और फुर्तीले क्रिकेटर जॉन्टी ने अपने करियर में कमाल की बल्लेबाजी तो की ही, परंतु अपनी फील्डिंग से विश्व क्रिकेट में एक अलग पहचान बनाई।
दोस्तों इसमें तो कोई दो राए नहीं है कि जॉन्टी विश्व के सर्वकालीन महान क्षेत्ररक्षक थे।उनके जैसा फील्डर न ही तो पहले आया था,और शायद न ही आगे आएगा। उन्होंने 1993 में वेस्टइंडीज के खिलाफ़ एक मुकाबले में 5 कैच लिए ,जिसके चलते उन्हें फील्डिंग के लिए मैन ऑफ द मैच चुना गया।
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इसके अलावा 1992 विश्व कप में पाकिस्तान के खिलाफ़ वो रनआउट कौन भूल सकता है। उसके बाद से तो ये तक कहा जाने लगा की जॉन्टी पर गुरुत्वाकर्षण काम ही नहीं करता। यही नहीं, कई बार कठीन परिस्थितियों में बल्लेबाजी करने आए रोड्स ने मध्य क्रम में कई महत्त्वपूर्ण पारियां खेली और अपनी टीम को जीत दिलाई।
उनके बल्लेबाज़ी आंकड़े भी अच्छे खासे थे। परंतु इसके बावजूद केवल 32 वर्ष की आयु में 2001 में टेस्ट क्रिकेट से संन्यास ले लिया। कारण पूछे जाने पर उन्होंने सीमित ओवर क्रिकेट में ध्यान केंद्रित करना और 2003 विश्व कप के लिए खुद को पूर्णतः सज करना बताया।इसके बाद उन्होंने 2003 विश्व कप के बाद अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास की घोषणा कर दी थी।
विश्व कप के दौरान केन्या के खिलाफ़ मुकाबले में उनसे एक कैच छूट गया जो कि पहले उनके करियर में कभी नहीं देखा गया था, इससे उनकी कलाई टूट गई और वे टूर्नामेंट से बाहर हो गए। ये उनका अंतिम मुक़ाबला साबित हुआ।आज भी विश्व भर में क्रिकेटर जॉन्टी रोड्स को अपना आईडल मानते हैं और उनके जैसी फील्डिंग करने का ख़्वाब देखते हैं। जॉन्टी ने अपने करियर में कुल 52 टेस्ट और 245 एक दिवसीय मुकाबले खेले।फिल्हाल वे आईपीएल में पंजाब किंग्स के फील्डिंग कोच हैं।
2- एडम गिलक्रिस्ट
विश्व के सबसे बेहतरीन विकेटकीपर बल्लेबाजों में शुमार एडम गिलक्रिस्ट ने हर प्रारूप में क्रिकेट खेलते हुए 2000 के दशक की उस अजय ऑस्ट्रेलियाई टीम में चार चांद लगाए। अपनी आक्रामक बल्लेबाज़ी से जहां गिलक्रिस्ट एकदिवसीय और टी20 मुकाबलों में सलामी बल्लेबाजी कर अपनी टीम को तूफानी शुरुआत देते,वहीं टेस्ट में नंबर 7 पर तेज़ तर्रार बल्लेबाजी करते हुए गेंदबाजों की जमकर ख़बर लेते।
उन्होंने अपने करियर में अनेकों रिकॉर्ड्स की झड़ी लगाई और साथ ही कई यादगार पारियां खेली, जैसे एशेज में केवल 57 गेंदों में शतक, विश्व कप 2007 में 149 रन की ताबड़तोड पारी। यही नहीं, उनके खिलाफ़ लगातार 3 विश्व कप फाइनल में 50 या उससे अधिक स्कोर बनाने का भी दुर्लभ रिकॉर्ड दर्ज है। इसके अलावा वे टेस्ट क्रिकेट में 100 छक्के लगाने वाले भी पहले बल्लेबाज बने।
इसके अलावा विश्व कप 2003 में अंपायर के नोट ऑउट करार देने के बावजूद स्वयं एक जेंटलकेन की भांति पवेलियन लौटे गिलक्रिस्ट ने खेल भावना को भी बखूबी निभाया और इसके लिए उन्हें आज भी सराहा जाता है। परंतु गिलक्रिस्ट ने पूरे विश्व को उस वक्त चौंका दिया जब भारत के खिलाफ श्रृंखला के दौरान ही अचानक 2008 में उन्होंने क्रिकेट को अलविदा कह दिया।
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सभी का उस वक्त अंदाजा था की ये दिग्गज 3–4 वर्ष तो और खेलेगा परंतु उन्होंने भारत के खिलाफ़ अन्तिम टेस्ट के बाद ही टेस्ट क्रिकेट से संन्यास ले लिया। और ताजुब तो इस बात का था कि सर्वाधिक विकेटकीपिंग शिकार का रिकॉर्ड लगभग 24 घंटे पहले ही उन्होंने अपने नाम किया था।2 महीने बाद कॉमनवेल्थ सिरीज़ के बाद सभी प्रारूपों से सन्यास की घोषणा कर दी।
हालांकि बाद में उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया कि मैच के दौरान जब वीवीएस लक्ष्मण का कैच उनसे छूटा तो उन्होंने क्रिकेट को अलविदा कहने का मन बना लिया। गिलक्रिस्ट ने अपने करियर में 96 टेस्ट,287 एकदिवसीय और 13 टी 20 मुकाबले खेले। हालांकि उन्होंने घरेलू और फ्रैंचाइज क्रिकेट खेलना जारी रखा और 2013 में उससे सन्यास लिया।
1- वीवीएस लक्ष्मण
वीवीएस लक्ष्मण भारत के वो होनहार बल्लेबाज थे जिन्होंने सलामी बल्लेबाजी से लेकर मध्य क्रम में, हर स्थान पर रन बनाए और उनकी बेहद सुंदर शॉट्स देखकर फैंस मुग्ध हो जाया करते। लक्ष्मण को लेग साइड के अपने शानदार स्ट्रोकप्ले के चलते और कलाइयों के खूबसूरत इस्तेमाल के कारण कलाईयों का जादूगर भी कहा जाता है।
वे ऊपरी क्रम के बल्लेबाजों के साथ तो डटकर खेलते ही थे, परंतु अपने करियर की अधिकतर पारियों में उन्होंने निचले क्रम के बल्लेबाजों के साथ बहुमूल्य साझेदारियां कर भारत को कुछ अविश्वसनीय मुकाबले भी जिताए। जिनमें से एक है 2010 मोहाली टेस्ट . सचिन, सहवाग गांगुली, द्रविड़ और युवराज सिंह से सुसज्जित उस अप्रतिम भारतीय बैटिंग लाइन अप का लक्ष्मण एक अभिन्न अंग थे।
वैसे तो लक्ष्मण ने अपने करियर में 100 से भी अधिक टेस्ट खेले, परंतु इसके बावजूद कभी उनका चयन भारत की विश्व कप में कभी नहीं हुआ। वे भारतीय टीम के सबसे विश्वसनीय खिलाड़ी थे। वे मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियों से भी मैच को निकाल जाते थे।फिर चाहे वो अहमदाबाद टेस्ट में 15/5 पर लड़खड़ाती पारी हो,या 2001 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ़ फॉलो on में बल्लेबाज़ी,
जहां किसी ने भी भारत को वो मुकाबला जीतते हुए नही देखा था। परंतु लक्ष्मण की 281 रन की पारी की बदौलत भारत ने ऑस्ट्रेलिया को न केवल मैच हराया,अपितु श्रृंखला भी जीती। लक्ष्मण ने ऐसे कई कीर्तिमान स्थापित किए और कई ऐसे यादगार लम्हें भी। लेकिन हद तो उस वक्त हो गई जब अचानक ही इस दिग्गज ने 2012 में अचानक से ही सन्यास की घोषणा कर दी।
और उस वक्त उनका चयन आगामी न्यूजीलैंड श्रृंखला के लिए भी हो चुका था। चाहे 2011–12 ऑस्ट्रेलियाई दौरा काफी बुरा रहा था परंतु अब लक्ष्मण अच्छी लय में दिख रहे थे।और श्रृंखला का पहला मैच भी उनके घरेलू मैदान हैदराबाद में होना था। जहां उनके पास अपना अंतिम फेयरवेल टेस्ट खेलकर विदाई का मौका भी था,
लेकिन इसके बावजूद उन्होंने एक झटके में ही अपने सभी फैंस को चौंका दिया। हालांकि ये अटकलें भी लगाई गई कि इसकी वजह धोनी हैं।और बाद में लक्ष्मण ने बताया कि धोनी से उनकी ऑफ द फील्ड वार्तालाप इतनी नहीं हो पाती थी और अब क्रिकेट को अलविदा कहने का समय आ गया था। लक्ष्मण ने अपने करियर में कुल 134 टेस्ट और 86 एक दिवसीय मुकाबले खेले।
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