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अजीबो गरीब मैन ऑफ द मैच।

क्रिकेट के खेल में मैन ऑफ द मैच का अवार्ड किसी खिलाड़ी को मैच में अपने बल्ले या गेंद से किए गए बेहतरीन प्रदर्शन को देखते हुए दिया जाता है।

क्रिकेट के खेल को पसंद करने वाले लगभग हर शख्स को इस बात का जरूर पता होगा और उसे यह परिभाषा भी याद होगी लेकिन क्रिकेट के खेल के लिए कहा गया कोई भी वाक्य बिना किंतु परन्तु अगर मगर के खत्म हो जाए ऐसा नहीं हो सकता।

Man of the Match NaaradTV121

मैन ऑफ द मैच अवार्ड-

क्रिकेट के खेल से जुड़े हर हिस्से हर पहलू का कोई ना कोई अपवाद होना बिल्कुल तय बात है जैसे आप मैन ऑफ द मैच अवार्ड के इतिहास को ही उठाकर देख लीजिए।

सिर्फ एक खिलाड़ी के बल्ले और गेंद से किए गए प्रदर्शन को सम्मानित करने के लिए बना यह पुरस्कार समय समय पर कई ऐसी घटनाओं का साक्षी रहा है जिन्हें देखकर या जिनके बारे में सोचकर उस पर यकीन कर पाना मुश्किल हो जाता है।

क्रिकेट के खेल से जुड़े लगभग हर तरह के अवार्ड्स समारोह में किसी खिलाड़ी के द्वारा बल्ले और गेंद से किए गए प्रदर्शन पर ध्यान दिया जाता है और उसी के हिसाब से किसी खिलाड़ी को पुरुस्कृत किया जाता है, ऐसे में कोई कप्तान अगर अपनी ‌टीम को खुद की कार्यकुशलता के जरिए एक मुश्किल परिस्थिति से जीत दिलाता है तो भी उस तरफ बहुत कम लोगों का ध्यान जाता है।

हार के बाद सबसे पहले कप्तान से सवाल जवाब करने वाले ‌लोग टीम की जीत ‌में कप्तान की भूमिका को नजरंदाज कर देते हैं वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि वह एक खिलाड़ी के तौर पर उस मैच में ‌अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाया था।

लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट का मंच जिसने कई असंभव कारनामों को मैदान पर घटित होते हुए देखा है वही मंच दो ऐसे मैचों का ग्वाह भी रहा है जिसमें बल्ले और गेंद के प्रदर्शन से ज्यादा कप्तानी को महत्व दिया गया था।

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1983 इंग्लैंड और श्रीलंका का मैच- 

जी हां दोस्तों विश्व क्रिकेट ऐसे पहले मौके का ग्वाह साल 1983 के वर्ल्डकप के दौरान इंग्लैंड और श्रीलंका के बीच खेले गए मैच के दौरान बना था जिसमें इंग्लिश कप्तान बोब विल्स को उनकी शानदार ‌फिल्ड सेंटिंग और बेहतरीन निर्णय लेने की क्षमता के लिए सम्मानित किया गया था।

20 जून साल 1983 को दलिप मेंडिस की कप्तानी में टुर्नामेंट से बाहर हो चुकी श्रीलंकाई टीम लीड्स के मैदान पर टुर्नामेंट का अपना आखिरी मैच खेलने उतरी और सामने थी बोब विल्स की कप्तानी में सेमीफाइनल का टिकट पक्का कर चुकी इंग्लिश टीम, यानि यह मैच दोनों ही टीमों के लिए किसी फोर्मेंलिटि से बढ़कर कुछ नहीं था।

इस मैच में इंग्लिश कप्तान बोब विल्स ने टोस जीतकर श्रीलंका को पहले बल्लेबाजी करने के लिए कहा क्योंकि विज्डन के अनुसार पीच गेंदबाजों के लिए मददगार थी।

और यहां से शुरू हुआ विल्स के बेहतरीन ‌फैसलों का एक ऐसा सिलसिला जो कई बड़े खिलाड़ियों के कुछ बेहतरीन प्रदर्शनों के बावजूद भी विल्स को सर्वश्रेष्ठ साबित करने में सक्षम था।

इस मैच में विल्स के फिल्ड प्लेसमेंट और निर्णयों की ज्यादा जानकारी नहीं मिली है लेकिन इस मैच में श्रीलंकाई बल्लेबाजों का लच्चर प्रदर्शन और विल्स का लगातार अपने गेंदबाजों को बदलने के फैसले का अंजाम स्कोरकार्ड पर देखकर विल्स को उनकी ‌कप्तानी के लिए सम्मानित करने का फैसला सही लगता है।

इस मैच में श्रीलंकाई ‌बल्लेबाज विल्स के शिंकजे से खुद ‌को आजाद नहीं करा पाए और उनकी बेहतरीन कप्तानी के साथ साथ गेंदबाजों ‌के शानदार प्रदर्शन के चलते पचास ओवर खेलने के बाद भी सिर्फ 136 रन ही बना पाए थे।

इस मैच में विल्स की शानदार ‌कप्तानी का ही नतीजा था कि श्रीलंका के आठ बल्लेबाज इस मैच में कैच आउट हुए थे, श्रीलंका के ‌लक्ष्य का पीछा करने उतरी इंग्लिश टीम ने पच्चीसवें ओवर में यह मैच एक विकेट के ‌नुकसान पर जीत लिया था।

विल्स का एक खिलाड़ी के तौर पर इस मैच में योगदान सिर्फ एक विकेट का रहा था जबकि उनके साथी खिलाड़ी ग्रिम फोलर 77 गेंदों में 81 रन की पारी खेलकर नाबाद रहे थे।

विल्स को अपनी कप्तानी के लिए मिले अवार्ड से लगभग एक साल बाद क्रिकेट इतिहास को अपने सबसे चहेते स्टेडियम लोर्डस में भी कुछ ऐसा ही वाकया देखने को मिला था।

तारीख 21 जुलाई 1984 और मौका बेंसन एंड हेजेज कप के फाइनल मुकाबले का था जो योर्कशायर और लंकाशायर की टीमों के बीच खेला गया था।

लंकाशायर के कप्तान जोन अब्राहम्स ने टोस जीतकर पहले गेंदबाजी करने का फैसला लिया और योर्कशायर की मजबूत बैटिंग लाईन अप के पहले दो बल्लेबाज मैदान पर उतरे।

योर्कशायर की उस टीम में एल्विन कालीचरण, डेनिस एमिस और पोल स्मिथ जैसे अपने जमाने के बेहतरीन बल्लेबाज शामिल थे लेकिन वो दिन शायद लंकाशायर की टीम और उसके कप्तान का था।

योर्कशायर की टीम ‌ने पहले बल्लेबाजी करते हुए लंकाशायर की टीम के बेहतरीन गेंदबाजों के सामने और जोन अब्राहम्स की रणनीति के सामने 139 के स्कोर तक आते आते घुटने टेक दिए और मजे की बात यह रही कि इस योर्कशायर टीम के कप्तान बोब विल्स ही थे।

जवाब में लंकाशायर ने यह मैच 42 ओवरों में चार विकेट खोकर जीत लिया और ‌चैम्पियन बन गई।

विरोधी टीम के बल्लेबाज कालीचरण ने इस मैच में 70 रनों की बेहतरीन पारी खेली थी तो वहीं लंकाशायर के गेंदबाज पोल अलोट और स्टीफन जेफरीज ने तीन तीन विकेट अपने नाम किए थे।

लेकिन इन सबसे ऊपर जोन अब्राहम्स की कप्तानी को रखा गया जिन्होंने मैच में सिर्फ एक कैच लेने के अलावा बैटिंग और बोलिंग में कोई बड़ा योगदान नहीं दिया था यही वजह रही कि जब मैन ऑफ द मैच के लिए उनका नाम पुकारा गया तो वो अचंभित रह गए और यकायक उनके मुंह से निकल गया क्या मैं सच में?

कप्तानी के बाद अब चलते हैं हमारी लिस्ट के दुसरे पायदान पर और बात करते हैं क्रिकेट इतिहास के उस इंसीडेंट की जब किसी खिलाड़ी की जगह ग्राउंड्स मैन को मैन ऑफ द मैच चुना गया था।

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New Zealand and South Africa

8 – 12 दिसम्बर का साल 2000 तक न्यूजीलैंड और साउथ अफ्रीका-

जी हां दोस्तों ये बात है 8 – 12 दिसम्बर का साल 2000 तक न्यूजीलैंड और साउथ अफ्रीका के बीच खेले गए सीरीज के तीसरे मैच की जो साउथ अफ्रीका के वन्डर्रस स्टेडियम पर खेला गया था, सीरीज ‌पहले दो मैच जीतकर अफ्रीका अपने नाम कर चुकी थी।

मैच के पहला, तीसरा और चौथा दिन ‌बारिश की भेंट चढ़ गए और सिर्फ दो ही दिन ‌क्रिकेट देखने को मिली जिसमें सिर्फ 190 ओवर का खेल ही हो पाया था दोनों टीमों ‌ने एक एक पारी खेली थी।

लेकिन बारिश से पुरी तरह प्रभावित रहे इस मैच को देखने गए लोगों को दो दिनों की क्रिकेट देखने का मौका एक तीसरी टीम के चलते मिल पाया था जिसकी कप्तानी ग्रांउडसमैन क्रिस स्कोट कर रहे थे।

क्रिस स्कोट की निगरानी में उनकी टीम ने पहले दिन मैच रुकने के बाद मैदान को सूखाने और खेलने योग्य बनाने का काम किया जिसके चलते दुसरे दिन मैच शुरू हुआ और इसी तरह आगे जब लगातार दो दिन मैदान पर बरसात होती रही तो इस टीम ‌ने कई घंटों की अपनी अथक मेहनत के जरिए आखिर दिन के खेल के लिए मैदान को तैयार कर दिया ।

इस तरह खिलाड़ियों के दो दिन मैच खेलने और ग्राउंड्स मैन की तीन दिनों की मेहनत के चलते दर्शकों को एक ठीक ठाक मैच देखने को मिला और सभी लोग खुशी खुशी अपने घर लौट गए लेकिन जाने से पहले उन‌ सभी लोगों ने क्रिकेट के खेल में पहली बार ग्राउंड्स मैन की टीम को सम्मानित होते हुए देखा जो सचमुच एक अविस्मरणीय नजारा था।

अविस्मरणीय और अद्भुत मैन‌ ओफ द मैच अवार्ड्स ‌पर आधारित हमारी इस लिस्ट में अगली घटनाएं उन दो मैचों से जुड़ी हुई है जब क्रिकेट के खेल का यह अवार्ड पुरी टीम के ग्यारह खिलाड़ियों को सौंप दिया गया था।

क्रिकेट इतिहास में मैन ऑफ द मैच अवार्ड पाने वाली तीन टीमों में से एक टीम साउथ अफ्रीका है, 15 जनवरी साल 1999 को यह टीम वेस्टइंडीज के खिलाफ सेंचुरियन के मैदान पर खेलने उतरी, जिसमें वेस्टइंडीज के कप्तान ब्रायन लारा ने टोस जीतकर पहले गेंदबाजी करने का फैसला किया।

अफ्रीकी ‌टीम पहले बल्लेबाजी करने उतरी और जैक कैलिस के 83 और मार्क बाउचर के शतक की मदद से 313 का स्कोर खड़ा कर दिया था।

जवाब में वेस्टइंडीज की टीम की तरफ से ब्रायन लारा के अलावा कोई भी बल्लेबाज अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाया जिसके चलते पुरी टीम सिर्फ 48 ओवर खेलकर 144 के स्कोर पर आउट हो गई।

एक बड़ी लीड के साथ एक बार फिर बल्लेबाजी करने उतरी अफ्रीकी टीम ने इस बार गैरी कर्स्टन और जोंटी रोड्स के शतकों और कप्तान हेंसी क्रोंजे की अर्धशतकीय पारी की बदौलत बोर्ड पर 399 रन लगा दिए।

569 का बड़ा स्कोर वेस्टइंडीज पुरा नही कर पाई और दुसरी बार भी सिर्फ 217 रन बनाकर आउट हो गई।

अफ्रीका यह मैच 351 रनों के बड़े अंतर से जीत गई जिसमें अफ्रीका के हर गेंदबाज और बल्लेबाज से लेकर क्षेत्ररक्षकों तक ने अपनी भूमिका बखूबी निभाई थी जिसके चलते इस टीम के हर खिलाड़ी को मैन ऑफ द मैच चुना गया।

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1996: वेस्टइंडीज और न्यूजीलैंड

3 अप्रैल साल 1996 को वेस्टइंडीज और न्यूजीलैंड-

अफ्रीकी ‌टीम के अलावा 3 अप्रैल साल 1996 को वेस्टइंडीज और न्यूजीलैंड के बीच खेले गए सीरीज के चौथे मैच के खत्म होने के बाद पुरी कीवी टीम को सम्मानित किया गया था जिनकी कसी हुई गेंदबाजी और जबरदस्त क्षेत्ररक्षण की बदौलत वेस्टइंडीज की टीम 159 का स्कोर भी चेज नहीं कर पाई थी।

न्यूजीलैंड के बाद पाकिस्तान वह देश‌ रहा जिसकी पुरी क्रिकेट टीम को एक मैच में इसके जबरदस्त प्रदर्शन की बदौलत मैन ऑफ द मैच चुना गया था।

इन सबके अलावा क्रिकेट इतिहास में कुछ और भी ऐसी घटनाएं हुई हैं जहां किसी खिलाड़ी को उसके विचित्र प्रदर्शन की बदौलत सम्मान हासिल हुआ है।

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