अमिताभ बच्चन की फिल्म अजूबा के बनने की कहानी

सुपरहीरो एक ऐसी छवि जिसका ख़याल जेहन में आते ही सुपर मैन से लेकर शक्तिमान तक और स्पाइडर मैन से लेकर कृष तक न जाने कितने ही नाम याद आ जाते हैं। हालांकि सुपरहीरो पर आधारित फिल्में भारत में कम ही बनती हैं क्योंकि एक तो इसका बजट बहुत ज़्यादा होता है और दूसरा ऐसी फिल्मों को बनाने में इस्तेमाल होने वाली टेक्नोलॉजी के मामले में हम थोड़े पीछे रह जाते हैं। हालाँकि पिछले कुछ सालों में भारतीय फिल्मों में भी बेहतरीन टेक्नालॉजी का इस्तेमाल हुआ है जो इस मामले में विदेशी फिल्मों से किसी मायने में कम नहीं हैं। दोस्तों 90 के दशक के शुरुआत में भी एक ऐसी ही फिल्म आयी थी जो फैंटेसी और सुपरहीरो पर आधारित थी और उस फिल्म का नाम है अजूबा। उस दौर में इस फिल्म को बच्चों के साथ-साथ बड़ों ने भी बहुत पसंद किया था। फिर क्या वज़ह हुई जो यह फिल्म असफल साबित हुई? तो आइये जानते हैं नारद टीवी की खास श्रृंखला फिम्ली फैक्ट्स में फिल्म अजूबा से जुड़ी कुछ रोचक और दिलचस्प बातें.
वर्ष 1991 में आयी सुपरहीरो की कहानी पे आधारित फिल्म अजूबा का निर्माण और निर्देशन सदाबहार अभिनेता शशि कपूर जी ने किया था। फिल्म के गीतों को लिखा था आनंद बख्शी जी ने और फिल्म का संगीत तैयार किया था लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जी की जोड़ी ने जिसमें साथ दिया था वनराज भाटिया जी और ऐलेक्से रेबनिकोव ने।
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इस फिल्म के निर्देशन में शशि कपूर जी का साथ दिया था सोवियत संघ के निर्देशक गेन्नाडी वासिलेव ने। अरब के लोक साहित्य (such as One Thousand and One Nights) पर आधारित इस फिल्म का निर्माण शशि कपूर जी ने सोवियत संघ की फिल्म प्रोडक्शन कम्पनी के साथ मिल के किया। इस फिल्म को भारत में हिंदी-उर्दू मिश्रित भाषा के साथ-साथ रसियन भाषा में सोवियत संघ में भी रिलीज़ किया गया था लेकिन फिल्म की लंबाई को देखते हुये इसे वहाँ 2 भागों में रिलीज़ किया गया । फिल्म के पहले भाग का नाम The Return of the Thief of Baghdad और दूसरे भाग का नाम Black Prince Ajuba रखा गया।
फिल्म अजूबा की अधिकांश शूटिंग युक्रेन और याल्टा में हुई थी।
दोस्तों इस फिल्म की शूटिंग के दौरान के कई किस्से बहुत ही रोमांचक हैं जिसके बारे में सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
बताया जाता है कि शूटिंग के दौरान अक्सर सोवियत संघ में बर्फबारी का सामना करना पड़ता था। उस वक़्त इतनी कड़ाके की ठंड हुआ करती थी कि शूटिंग के लिये जाने वाला हेलिकॉप्टर बर्फ की चादर से ढक जाता था. इसलिए टेकऑफ़ से पहले उसके पंखों पर जमी बर्फ को एक विशेष रसायन की मदद से डी फ्रीजिंग कर पिघलाना पड़ता था । ऐसा उन्हें रोज़ ही शूटिंग स्थल तक जाने और वापस आने के लिए करना पड़ता था।
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कुल 80 मिलियन यानि 8 करोड़ के लागत से बनी यह फिल्म उस ज़माने में भारत की सबसे मँहगी फिल्म के रूप में देखी जाती थी। हालांकि ऐक बेहतरीन फिल्म होने के बावज़ूद भारत में इस फिल्म का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन मात्र 38 मिलियन का ही रहा और यह फिल्म बुरी तरह फ्लाॅप साबित हुई।
दोस्तों ऐसा नहीं है कि शशि कपूर जी ने पहली बार कोई बड़ी फिल्म बनायी थी या उन्हें बड़ी फिल्म बनाने का कोई अनुभव नहीं था। बेहद ज़िन्दादिल और रोमांटिक छवि के अभिनेता शशि कपूर अभिनय के क्षेत्र में सफलता के झण्डे गाड़ने के बाद फिल्म निर्माण के क्षेत्र में सक्रिय हो गये। उन्होंने 70 के दशक के आखिर में ‘फिल्मवालाज’ नाम से एक प्रोडक्शन हाउस खोला जिसके अंतर्गत ‘जुनून’, ‘कलयुग’,’ 36 चौरंगी लेन’, ‘विजेता’ और ‘उत्सव’ जैसी ढेरों शानदार फिल्में बनायीं। लेकिन अफसोस की बात है कि ये फिल्में कला के पारखियों द्वारा सराहे जाने के बावज़ूद बॉक्स ऑफिस पर सफल न हो सकीं और बतौर निर्माता शशि कपूर को इन फिल्मों से आर्थिक रूप से बहुत नुकसान हुआ। इस घाटे से उबरने के लिए ही उन्होंने फिल्म अजूबा जैसी बड़ी कमर्शियल फिल्म बनाने का विचार किया था। इस फिल्म में उन्होंने अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर को बतौर नायक चुना। फिल्म में शम्मी कपूर, डिंपल कपाड़िया, अमरीश पुरी, सोनम, सईद जाफरी और दारा सिंह जैसे ढेरों दिग्गज़ कलाकार भी थे। इसके अलावा इस मेगा प्रोजेक्ट को अंतरराष्ट्रीय स्तर की पहचान दिलाने के लिए सोवियत संघ के कई कलाकारों को भी शामिल किया था।

दोस्तों जैसा कि आप जानते हैं कि इस फिल्म के निर्माण के साथ साथ इसका निर्देशन भी ख़ुद शशि कपूर जी ने ही किया था और एक फॉर्मूला फिल्म होने की वज़ह से शशि इस फिल्म की हर छोटी-से छोटी बारीकियों पर ध्यान दिया करते थे ताकि कहीं से कोई कसर न रह जाये। और इसी वजह से यह फिल्म वर्ष 1985-86 से शुरू तो हुई लेकिन इसके पूरा होने में तकरीबन 5 वर्ष लग गये और फिल्म ओवर बजट हो गयी जो इस फिल्म की नाकामयाबी की एक बड़ी वज़ह बनी। उस दौर में भारत में इतनी महंगी फिल्म का पैसा वसूल होना इसलिये भी बड़ा मुश्किल था क्योंकि तब लोग VCR के माध्यम से सारी फिल्में घरों में देख लेते थे जिससे निर्माता और डिस्ट्रीब्यूटर का बहुत नुकसान होता था। और तब मल्टीप्लेक्स का भी ज़माना नहीं था। ख़ैर एक बात तो सच है कि ऐसी फिल्मों का असली मज़ा बड़े परदे पर ही आता है।
दोस्तों शशि कपूर के इस महत्वाकांक्षी फिल्म को दर्शकों का वैसा रिस्पॉन्स नहीं मिला, जैसी शशि कपूर ने उम्मीद की थी। इस फिल्म की नाकामयाबी ने अभिनेता शशि कपूर को तोड़ कर रख दिया। फिल्म की असफलता की वज़ह से शशि कपूर इतने अधिक कर्ज़े में आ गये कि उन्हें अपनी संपत्ति का कुछ हिस्सा तक बेचना पड़ा। एक साक्षात्कार में शशि कपूर के मैनेजर रहे बकुल ने बताया कि ‘अजूबा’ के घाटे ने शशि कपूर को अस्पताल पहुंचा दिया था और उनकी बीमारियों का सिलसिला एक बार शुरू हुआ तो उनकी मौत पर ही जाकर थमा।
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दोस्तों इस फिल्म की शूटिंग के दौरान शशि कपूर जी के नेकदिली और इंसानियत से जुड़ा एक किस्सा भी बकुल जी ने बताया जो यक़ीनन शशि कपूर जी के प्रति सम्मान को और बढ़ा देता है। वर्ष 1987 में जब ‘अजूबा’ फिल्म की शूटिंग चल रही थी। फिल्म ओवर बजट होने की वज़ह से उसे जल्द पूरी करना भी ज़रूरी था ऐसे हालात में भी जब एक दिन उन्हें यह पता चला कि क्रूमेंबर्स के लिए कुक का काम करनेवाली ऐक महिला की बेटी को दिल की बीमारी है तो उन्होंने बकुल जी को बुलाया और पचास हजार रुपये देकर ये कहा कि ये पैसे नानावटी अस्पताल में डॉ शरद पांडे को दे आओ ताकि उस बच्ची का जल्द से जल्द इलाज शुरू हो जाये। दोस्तों यहाँ हम बता दे कि डॉ शरद पांडे अभिनेता चंकी पांडे के पिता हैं, जो नानावटी हॉस्पिटल के ऐक मशहूर हार्ट सर्जन थे। बहरहाल शशि कपूर जी की आर्थिक सहायता से उस बच्ची का सफल ऑपरेशन हुआ और उसे एक नयी ज़िन्दगी मिली।