देव आनंद के परिवार का इतिहास

सदाबहार अभिनेता की अगर कोई मिसाल देनी हो तो जो नाम सबसे पहले जेहन में आता है वह है देव आनंद। बात उनके लुक की हो, या स्टाइल की हो, या उनकी ऐक्टिंग की हो, देव आनंद हमेशा समय से आगे के अभिनेता ही नज़र आये। न सिर्फ अभिनेता बल्कि एक पटकथा लेखक, निर्माता और निर्देशक के रूप में भी वे कमाल थे। देव आनंद दुनिया के एकमात्र ऐसे नायक हैं जिनका करियर 8 दशकों तक कायम रहा। बावज़ूद इसके दर्शकों के लिए उनका परिवार और उनका निजी जीवन एक रहस्य ही बना रहा।
शुरूआत करते हैं आनंद परिवार के मुखिया यानि देव आनंद के पिताजी से जिनका नाम ‘पिशोरीमल आनंद’ था। जो पेशे से पंजाब के गुरदासपुर डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के एक एडवोकेट थे। देव आनंद की माँ एक गृहणी थीं। जिनका अधिकतर समय अपने बच्चों के पालन पोषण में ही बीता। देव आनंद जब 18 वर्ष के थे उसी दौरान उनकी माँ का देहांत हो गया था।

आइये अब एक नज़र डाल लेते हैं आज के वीडियो के मुख्य पात्र यानि देव आनंद जी के जीवन पर। 26 सितंबर 1923 को पंजाब के गुरदासपुर में जन्मे देव आनंद का असली नाम धर्मदेव पिशोरीमल आनंद था। अपने चार भाइयों में देव तीसरे नंबर पे थे। वर्ष 1942 में लाहौर के ‘गवर्नमेंट कॉलेज’ से अंग्रेजी साहित्य से स्नातक की डिग्री प्राप्त कर देव आनंद वर्ष 1943 में ऐक्टर बनने की चाह लिए मुंबई पहुंच गये
उस वक़्त उनके पास मात्र 30 रुपए थे, वहाँ पहुँच कर उन्होंने एक सस्ते से होटल में कमरा किराए पर ले लिया। पैसे खत्म होने पर उन्होंने मिलिट्री सेंसर ऑफिस में 165 रुपये मासिक वेतन पर क्लर्क की नौकरी कर ली जहाँ उन्हें सैनिकों की चिट्ठियों को उनके परिवार के लोगों को पढ़कर सुनाना होता था। लगभग एक साल तक नौकरी करने के बाद वह अपने बड़े भाई चेतन आनंद के पास चले गए जो मुंबई में ही भारतीय जन नाट्य संघ यानि इप्टा से जुड़े हुए थे। देव आनंद भी इप्टा के नाटकों में छोटे-मोटे रोल करने लगे। फिल्मों में देव आनंद को पहला ब्रेक 1946 में बनीं फिल्म हम एक हैं से मिला। ढेरों सफल फिल्मों में काम करने के बाद देव आनंद ने नवकेतन नाम से अपना एक बैनर बनाया। इस बैनर तले उन्होंने ढेरों फिल्मों का निर्माण किया।

बतौर अभिनेता ढेरों सफल फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवाने के बाद वर्ष 1970 में देव आनंद ने निर्देशन के क्षेत्र में भी कदम रख दिया और दर्जनों फिल्मों का निर्देशन किया जिनमें हरे रामा हरे कृष्णा और हीरा पन्नाा जैसी शानदार फिल्में भी शामिल हैं। देेेव आनंद जी को वर्ष 2001 में पद्मभूषण तथा वर्ष 2002 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 3 दिसम्बर 2011 को लंदन में 88 वर्षीय देव आनंद जी का निधन हो गया। बात करते हैं देव आनंद जी की पत्नी की जिनका नाम है कल्पना कार्तिक। 19 सितंबर 1931 को लाहौर के एक पंजाबी ईसाई परिवार में जन्मी कल्पना जी का असली नाम मोना था। उनके पिता गुरदासपुर में तहसीलदार थे जो बंटवारे के बाद शिमला में आकर बस गए थे। कल्पना जी की शिक्षा-दीक्षा शिमला के सेंट बीड्स कॉलेज में हुई थी जहाँ एक ब्यूटी कॉन्टेस्ट जीतकर वे मिस शिमला बन गईं। इसी ब्यूटी कॉन्टेस्ट के दौरान देव आनंद के भाई चेतन आनंद की उन पर नज़र पड़ी जो वहां अपनी पत्नी उमा जी के साथ गये हुए थे। कल्पना रिश्ते में उमा आनंद की चचेरी बहन लगती थीं। चेतन ने उन्हें फिल्मों में काम करने का ऑफर के साथ ही उनको नया नाम ‘कल्पना कार्तिक’ दिया। कल्पना को सबसे पहले 1951 में आई नवकेतन की फिल्म ‘बाजी’ में एक डॉक्टर की भूमिका मिली।
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मिली। इसके बाद उन्होंने नवकेतन की ही कुछ और फिल्मों में बतौर मुख्य नायिका काम किया जिनमें से एक फिल्म थी ‘टैक्सी ड्राइवर’। एक दिन इसी फिल्म की शूटिंग की तैयारियों के बीच अचानक देव आनंद ने कल्पना से शादी कर ली। वर्ष 1954 में हुई इस घटना के बारे में खुद देव आनंद ने एक इंटरव्यू में बताया था कि, ‘हम एक दूसरे से फिल्म ‘बाजी’ से ही प्यार करने लगे थे। हमने तभी फैसला लिया था कि हम चुपचाप शादी कर लेंगे। इस बारे में हम किसी को नहीं बताएंगे और बाद में लोगों को दावत दे देंगे।’ देव आनंद ने इस घटना के बारे में आगे बताया कि, ‘मेरी जेब में ही एक अंगूठी थी। हमने रजिस्ट्रार से बात की और उसे सेट पर आने के लिए बोला। ब्रेक के बीच में जब सेट तैयार हो रहा था तब मैंने कल्पना को हल्का सा इशारा किया। हम पास में ही एक डिपार्टमेंटल रूम में गए और शादी करके वापस आ गए।
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फिर हमने अपना अगला शॉट दिया।’ वर्ष 1957 में आई फिल्म ‘नौ दो ग्यारह’ सहित बतौर अभिनेत्री कल्पना कार्तिक ने कुल छह फिल्मों में अभिनय किया। बाद में उन्होंने नवकेतन की कई फिल्मों में एक सहयोगी निर्माता के रूप में भी काम किया।
देव आनंद और कल्पना कार्तिक की दो संतानें हैं बेटा सुनील आनंद और बेटी देविना आनंद।

सुनील आनंद का जन्म 1956 में ज्यूरिख, स्विट्जरलैंड में हुआ था, बतौर ऐक्टर कुछ फिल्मों में काम करने के बाद सुनील ने अपने पिता देव आनंद की फिल्मों के निर्माण के दौरान उनका भरपूर सहयोग किया। ख़बरों के मुताबिक सुनील जल्द ही अपनी नई फिल्म के साथ धमाल मचाने की तैयारी में हैं। देव आनंद की बेटी का नाम ‘देविना आनंद’ है।
जिनकी शादी हुई थी बॉबी नारंग से जो कि एक पायलट थे। वे प्रसिद्ध व्यवसायी रमेश नारंग के भाई थे। शादी के कुछ साल बाद ही देविना और बॉबी का तलाक हो गया। बाद में बॉबी नारंग का 2010 में कैंसर से निधन भी हो गया था। देविना जी की दूसरी शादी हुई हरजिंदर पाल सिंह देओल के साथ। देविना और उनके पहले पति बॉबी नारंंग से एक बेटी हुई जिनका नाम है गीना नारंग। गीना फैशन और फोटोग्राफी की दुनिया में एक जाना माना नाम है, उन्होंने अपनी फोटोग्राफी के लिए कई पुरस्कार भी जीते हैं। गीना नारंग के पति प्रयाग मेनन भी फैशन के क्षेत्र में ही कार्यरत हैं।

अब बात करते हैं देव आनंद जी के भाइयों के बारे में। देव आनंद कुल 4 भाई थे जिनमें सबसे बड़े थे ‘मनमोहन आनंद’ जो कि एक एडवोकेट थे। मनमोहन आनंद जी फिल्मों से दूर ही रहे उनके परिवार के लोग बाद में कनाडा के ओटावा में बस गये।
दूसरे नंबर पर थे ‘चेतन आनंद’। 3 जनवरी 1915 को पंजाब के गुरदासपुर में जन्मे चेतन की शिक्षा दीक्षा लाहौर में हुई। बाद में इन्होंने दून स्कूल में इतिहास के शिक्षक के रूप में भी कार्य किया। उनका फ़िल्मी सफर वर्ष 1944 में आई फ़िल्म ‘राजकुमार’ से बतौर ऐक्टर शुरू हुुुआ था। बाद में उन्हें निर्देशन का मौक़ा मिला फिल्म नीचा नगर से। बतौर निर्देशक उनकी पहली फ़िल्म ‘नीचा नगर’ ने वर्ष 1946 में हुए पहले ‘कान फ़िल्म समारोह’ में सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का अवार्ड जीता था जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने वाली पहली हिंदी फ़िल्म बनी। नवकेतन से अलग होने के बाद चेतन ने हिमालय फ़िल्म्स नाम से अपनी अलग कम्पनी शुरू की थी। उनकी फिल्मों में हक़ीक़त, आखिरी खत, हीर रांझा, हंसते ज़ख्म, हिंदुस्तान की कसम और कुदरत आदि प्रमुख हैं। 90 के दशक में उन्होंने दूरदर्शन के लिये परमवीर चक्र जैसा दमदार और सफल धारावाहिक भी बनाया।
चेतन की पत्नी का नाम था उमा बैनर्जी जिनसे उन्होंने लाहौर में कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही विवाह कर लिया था। उनके दो बेटे हैं जिनके नाम हैं केतन आनंद और विवेक आनंद। चेतन आनंद का नाम उनकी पसंदीदा अभिनेत्री प्रिया राजवंश का साथ भी जुड़ा। हालांकि उन्होंने कभी शादी तो नहीं की लेकिन वे ज़िन्दगी भर एक साथ ही रहे। 6 जुलाई, 1997 को चेतन आनंद जी का देहान्त हो गया।

देव आनंद जी के सबसे छोटे भाई थे ‘विजय आनंद’। जिनका जन्म 22 जनवरी 1934 को लाहौर मे हुआ था। विजय ने मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के दौरान ही नाटकों की स्क्रिप्ट लिखनी शुरू कर दी थी। विजय आनंद, गोल्डी आनंद के नाम से भी मशहूर थे। वे 60 और 70 के दशक के बेहद सफल निर्माता व निर्देशक रहे हैं। विजय आनंद द्वारा निर्देशित फिल्मों में ‘गाइड’, ‘ज्वेल थीफ’, तीसरी मंजिल और ‘जॉनी मेरा नाम’ जैसे दर्जनों सुपरहिट नाम शामिल हैं। बतौर ऐक्टर भी विजय आनंद ने कई फिल्मों में काम किया। 90 के दशक में दूरदर्शन पर आने वाले जासूसी धारावाहिक ‘तहकीकात’ में उन्होंने ‘डिटेक्टिव सैम’ की भूमिका निभाई थी जो बहुत मशहूर हुई थी।
विजय आनंद की पहली पत्नी का नाम है लवलीन जिनसे उनका कुछ ही वर्षों में तलाक हो गया। बाद में विजय आनंद ने दूसरी शादी सुषमा कोहली से की जो रिश्ते में उनकी भांजी लगती थीं। 23 फरवरी 2004 को दिल का दौरा पड़ने से विजय आनंद का निधन हो गया था। विजय आनंद के एक बेटे हैं जिनका नाम है वैभव आनंद।
वैभव बतौर सहायक निर्देशक रवि चोपड़ा और सूरज बड़जात्या के साथ काम कर चुके हैं। उनके पिता विजय आनंद और ताऊ देव आनंद ने उन्हें एक मौक़ा देने की बात की थी लेकिन बदकिस्मती से ऐसा न हो सका। बहरहाल 14 वर्षों के इंतज़ार और 100 से भी ज्यादा फिल्मों के ऑडिशन देने के बाद आखिरकार उन्हें अपना पहला ब्रेक एकता कपूर के वेब सीरीज ‘द वर्डिक्ट: नानावटी वर्सेस स्टेट’ से मिला।

देव आनंद की बहन का नाम है ‘शील कांता कपूर’। जिनकी शादी हुई थी कुलभूषण कपूर से जो कि एक डॉक्टर हैं। शील कांता जी जाने माने फ़िल्म निर्देशक शेखर कपूर की माँ है। इनकी एक बेटी यानि शेखर कपूर की बहन का नाम है नीलू कपूर जिनकी शादी हुई थी अभिनेता नवीन निश्चल से, बाद में नवीन और नीलू एक दूसरे से अलग हो गये थे। दूसरी बेटी का नाम है अरुणा कपूर जो कि अभिनेता परिक्षित साहनी की पत्नी हैं। इनकी तीसरी बेटी का नाम है सोहेला कपूर।
अब बात करते हैं देव आनंद की अन्य बहनों की जिनमें उनकी कजिन्स शामिल हैं। देव आनंद की एक बहन का नाम है उषा मधोक। जिनकी शादी डॉ पृथ्वी मधोक से हुई है जो 40-50 और 60 के दशक के मशहूर गीतकार डी एन मधोक जी के बेटे हैं। देव आनंद की एक और बहन हैं जिनका नाम है सावित्री कोहली।
इनके बेटे भीष्म कोहली बॉलीवुड अभिनेता व निर्देशक रह चुके हैं। हालांकि भीष्म ने फिल्मों में विशाल आनंद के नाम से शुरूआत की थी। वर्ष 1976 में आयी फिल्म ‘चलते-चलते’ फ़िल्म के लिए इन्हें आज भी याद किया जाता है। इस फ़िल्म का शीर्षक गीत ‘चलते-चलते मेरे ये गीत याद रखना’ आज भी गुनगुनाया जाता है। भीष्म ने अपने करियर में कुल 11 फ़िल्मों में काम किया। एक लम्बी बीमारी के बाद 4 अक्टूबर 2020 को भीष्म कोहली जी का निधन हो गया। निर्माता निर्देशक यश कोहली और ऐक्टर पूरब कोहली के पिता हर्ष कोहली इनके भाई हैं। देव आनंद की एक छोटी बहन है जिनका नाम बोनी सरीन है जो अपने पति राज सरीन के साथ इंग्लैंड के सुरे में रहती हैं। अभिनेता गौतम सरीन, राज सरीन के रिश्तेदार हैं।
देव आनंद के चचेरे भाई विश्वामित्र आनंद जी के बेटे गोगी आनंद भी एक फिल्म निर्देशक थे। बतौर सहायक नवकेतन की कई फिल्मों में काम करने के बाद गोगी आनंद ने डबल क्रॉस, सबसे बड़ा पाप, दूसरी सीता और डार्लिंग डार्लिंग जैसी कई फिल्मों का निर्देशन किया। गोगी ने 90 के दशक में प्रसारित धारावाहिक स्वाभिमान के अलावा वर्ष 2000 में आये धारावाहिक ‘घर एक मंदिर’ का भी निर्देशन किया जो बतौर निर्देशक गोगी आनंद के जीवन का आखिरी सफल धारावाहिक बना।