
मैं टैस्ट में रन बना रहा था। लगातार 50’s बना रहा था।पर 100 नहीं आ रहा था। तो उन्होंने मुझे टैस्ट से ड्रॉप कर दिया। कुछ टाइम बाद मुझे ओडीआई से भी ड्रॉप कर दिया गया। और टैस्ट के बेस पर मेरी ओडीआई में भी छुट्टी कर दी गई। जो कि मुझे आज तक समझ नहीं आया। मुझे कोई सफ़ाई नहीं दी गई, किसी ने नहीं बताया कि मुझे क्यों ड्रॉप किया गया। बस, वर्ल्ड कप के ठीक एक साल बाद मेरा ओडीआई कैरियर खत्म हो गया।2012 से 2018 तक मुझे सिर्फ 4 टैस्ट मिले, फिर मुझे राइट ऑफ कर दिया गया। ये शब्द उस अभागे क्रिकेटर के हैं, जिसने बड़े मौकों पर हमेशा परफॉर्म किया।2007 के टी 20 वर्ल्ड कप और 2011 का ओडीआई वर्ल्ड कप, जो इंडिया जीता था, उन दोनों फाइनल में ये बंदा टॉप स्कोरर था। नाम बताने की जरूरत तो नहीं, आप समझ ही गए होंगे,ये इंडियन टीम के अनसंग हीरो गौतम गंभीर हैं।अब जब कोई प्लेयर वर्ल्ड कप के इतने दुर्गम मैच, इतनी हाई प्रैशर, इंटेंसिटी वाले मैच इंडियन टीम को जीताए, वो भी बैक टू बैक,तो आइडियल सिनेरियो तो ये बनता है कि उसे खूब सर आंखों पर बिठाया जाए, उसकी तारीफ़ में कसीदे पढ़े जाएं, और खूब आदर सम्मान वाली विदाई दी जाए।लेकिन ये इंडिया है, यहां बिना सिर पैर का कुछ भी हो जाया करता है। यही किया गया गौतम गंभीर के साथ। जब 2011 के वर्ल्ड कप में वो एक एक रन जोड़ जोड़कर मोस्ट क्रूशियल 97 रनों की पारी खेल रहे थे तो उन्होंने शायद सपने में भी नहीं सोचा होगा कि ठीक एक साल बाद उन्हें टीम से बाहर निकाल दिया जायेगा।
हमने कुछ दिन पहले हमने लेजेंडस स्नब नाम की सिरीज शुरू की थी, जिसके पहले एपिसोड में हमने मिस्टर आईसीसी शिखर धवन के साथ हुईं बदसलूकी और पॉलिटिक्स पर विडियो किया था, कैसे उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया।जिस पर आपने गौतम गंभीर के ऊपर विडियो के लिए ढेरों कमेंट्स किए । तो आज हम इस सीरीज के दूसरे एपिसोड में बात करेंगे टीम इण्डिया के अनसंग हीरो गौतम गंभीर के साथ हुई नाइंसाफी और उनके करियर की सैड एंडिंग की।

देखिए ये कोई बायोग्राफी पोस्ट तो है नहीं, तो उनके जन्म, परवरिश इस सब पर बात न करते हुए सीधे पॉइंट पर आते हैं। तो बात है 2007 की, जब गौतम गंभीर काफ़ी बढ़िया परफॉर्म कर रहे थे और ओडीआई वर्ल्ड कप के लिए अपनी दावेदारी पेश कर रहे थे। लेकिन उनके ऊपर बेहद ही नए आए रॉबिन उथप्पा को टीम में चुना जाता है। जो कि काफ़ी शॉकिंग था। खैर,टीम इंडिया मुंह के बल गिरता है और ग्रुप स्टेज में ही एग्जिट । जिसके बाद हमारे सीनियर प्लेयर पीछे हट जाते हैं और सितंबर 2007 टी 20 वर्ल्ड कप में सिलेक्शन होता है ओपनर गौतम गंभीर का। जिन्होंने इस वर्ल्ड कप में तबाही मचा दी थी। सहवाग के साथ उनकी सुपरहिट जोड़ी ने हमें शानदार मैचेस जिताए।लेकिन जब बात आई फाइनल की, तो बाकी प्लेयर्स ने जाने क्यों नॉन परफॉर्मिग एसेट बन गए, जैसा कि अब पूरी इंडियन टीम बन जाती है आईसीसी टूर्नामेंट में।और सभी फेल होने लगे।लेकिन यहां अकेले ही मैच को ले गए गौतम गंभीर, जिन्होंने पाकिस्तानी बॉलर्स की ताबड़तोड़ पिटाई कर हमें कुछ फाइट करने लायक स्कोर दिया। और जिस समय वे आउट हुए,टीम का स्कोर सिर्फ 130 था, जिसमें से 54 बॉल्स में खेली उनकी फाइटिंग 75 रनों की पारी थी। जो कि हमें वर्ल्ड कप जीताने में काम आई। भारत पहली बार वर्ल्ड चैंपियन बना। यहां से गंभीर के कैरियर की पीक शुरू हुई। यही वो टाइम था,जब टीम ने उन्हें स्क्वाड में पूरी सिक्योरिटी दी। और गौती ने एक के बाद एक मास्टरपीस दिए।2008 वो इकलौता मौका था जब ऑस्ट्रेलिया में हम कॉमनवेल्थ बैंक सीरीज जीते थे। जिसमें 440 रन बनाकर गंभीर टॉप स्कोरर रहे थे। और एक के बाद एक उनके बल्ले से सेंचुरी, हाफ सेंचुरी आ रही थी।2009 में भी उन्होंने कुछ ऐसा जादू कर दिखाया जब 41 साल बाद हम न्यूज़ीलैंड में टैस्ट सीरीज जीत थे। यहां भी 441 रन बनाकर वे टॉप स्कोरर बने। जिसमें वो 137 वाली उनकी अड़ियल पारी भी थी जब फॉलो ऑन के बाद वे 2.5 दिन अकेले ही डटे रहे।मैन ऑफ द सीरीज बने। और तो और,टैस्ट क्रिकेटर ऑफ द ईयर भी बने गंभीर। एक के बाद एक कीर्तिमान रच रहे गंभीर इस वक्त अनस्टॉपेबल थे, जो यहां से ओडीआई वर्ल्ड कप में टीम के सबसे बड़े एक्स फैक्टर के रूप में गए।और 2011 के वर्ल्ड कप में सहवाग सचिन को ओपनिंग देते हुए गंभीर को नंबर 3 तो कभी 4 पर मौका मिला।अब कोई और प्लेयर होता तो अपनी पोजीशन के साथ छेड़ छाड़ और नैचुरल गेम के रोने रोता।लेकिन गंभीर का सिर्फ एक ही सपना था, टीम को वर्ल्ड कप जीताना। उन्होंने इस टूर्नामेंट में खूब परफॉर्म किया।44 के ऐवरेज से 393 रन,लेकिन इनमें से सबसे इंपोर्टेंट और बड़ी पारी आई थी वर्ल्ड कप फाइनल में, जब सचिन –सहवाग शुरूआत में ही हमें धोखा दे गए। यहां तक कि जब विराट भी आउट हुए तो मैच कहीं भी जा सकता था।लेकिन वो गंभीर ही थे जिन्होंने एक एक रन जोड़ जोड़ कर, एक एक ओवर से खतरा निकाल निकाल कर हमें जीत की देहलीज पर लाकर खड़ा कर दिया था।और यहां एक बात कह दूं, मैंने बहुत कमेंट्स में ये डिबेट देखा है कि धोनी ने काम बॉल में 91 रन बनाए इसलिए उन्हें मैन ऑफ द मैच मिला,लेकिन सच तो ये है कि गंभीर की बैटिंग मैच की तीसरी ही बॉल पर आ गई थी जब 0 के स्कोर पर हमारा पहला विकेट गिरा था। ..
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उन्होंने बड़े ही सावधानी और कमिटमेंट से 122 बॉल की संयम भरी,जिम्मेदारी से 97 रन बनाए थे। जिसने हमें कोलाप्स से बचाया था। गिरते पड़ते, गंभीर ने जो कैरेक्टर दिखाया, एक एक रन लिए, इंटेंस मोमेंट्स पर डाइव लगाई, वो देखने लायक थी, वरना कुछ लोग आईपीएल में तो पूरा लेट जाते हैं, मगर वर्ल्ड कप में डाइव लगानी भूल जाते हैं।सबको धोनी का वो विनिंग सिक्स तो याद है।लेकिन अफसोस , गंभीर का वो हार्डवर्क सब भूल गए, हम ओडीआई वर्ल्ड कप जीत गए और 28 साल का वो सुखा खत्म हुआ।लेकिन यहां से शुरु हुई वो पॉलिटिक्स, जिसका गंभीर को कोई भनक तक नहीं था। इसके बाद उन्हें टीम से बाहर करने का एक बहाना ढूंढ लिया गया। बात है 2012 की, जब हम श्रीलंका और ऑस्ट्रेलिया से कॉमनवेल्थ बैंक सीरीज खेलने गए थे। जहां गम्भीर वाइस कैप्टन थे। और हमारे टॉप 3 सचिन सहवाग और गौतम थे। अब इन्हें टीम से डायरेक्ट निकालना धोनी के लिए पॉसिबल नहीं था। देखा जाए तो सचिन 38 के हो चुके थे, सहवाग 33, मगर गम्भीर अभी सिर्फ 29 के थे, जिनमें कम से कम 8–10 साल का क्रिकेट, और 2 वर्ल्ड कप तो बाकी थे।लेकिन धोनी, चाहे कितने भी सफल और बढ़िया कप्तान क्यों न हों, लेकिन उनका ये डिसीजन बेहद घटिया था। उन्होंने रोटेशन पॉलिसी की पॉलिटिक्स करते हुए मीडिया में ये साफ़ कर दिया था कि हमारे टॉप 3 स्लो फील्डर है तो इन तीनों को एक साथ नहीं खिलाया जा सकता। जिसमें सबसे ज्यादा सफर किया वाइस कैप्टन गम्भीर ने। क्योंकि वो इस वक्त अपने कैरियर के बेस्ट फॉर्म में थे।उन्होंने लगातार 92 और,91 की इनिंग्स खेल मैन ऑफ द मैच परफोर्मेंस दी, लेकिन फिर भी ड्रॉप किए गए।अब रोटेशन पॉलिसी एक अलग टॉपिक है, इसकी एक लंबी कहानी है, जिस पर आप अगर वीडियो चाहते हैं तो कॉमेंट करें। लेकिन जब इण्डिया बाहर हो रहा था तो धोनी ने इन तीनों को खिलाया पर हम फाइनल तक न पहुंच सके। अब देखा जाए तो टीम में विराट के बाद सबसे अच्छा गम्भीर ने ही किया था 308 रन बनाए थे।लेकिन इसके तुरंत बाद उन्हें वाइस कैप्टेंसी से हटा दिया गया और विराट को वाइस कैप्टन बनाया गया। मुझे अभी तक इस बात का लॉजिक और सेंस समझ में नहीं आया। पर चलिए, गुंडा फिल्म हो, या इंडियन टीम, हमें दिमाग नहीं लगाना।
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कभी भी कुछ भी हो सकता है। गम्भीर ने आते ही एशिया कप के पहले मैच में सेंचुरी ठोक दी। लेकिन वे मेनेजमेंट की हिटलिस्ट में थे। कुछ भी हो, बलि का बकरा गंभीर ने ही बनना था। आपको 2012 वाली वो सिरीज तो याद ही होगी। जब इंग्लैंड आखिरी बार इण्डिया में कोई टैस्ट सिरीज जीता था। उस सीरीज में भी गौती ने 2 फिफ्टी और कई 30,40 वाली पारियां खेली थी।ये वो टाइम था जब टेस्ट सेंचुरी उनके बल्ले से नहीं आई और उन्हें टीम से फॉरेवर ही ड्रॉप कर दिया जाता है।टेस्ट के बेस पर ओडीआई टी 20 टीम से भी उनकी छुट्टी कर दी जाती है। इसके बाद गम्भीर की टैस्ट टीम में सिर्फ 2 बार वापसी हुई,2014 जहां 2 टेस्ट के फेलियर के बाद उन्हें फिर ड्रॉप कर दिया गया।और 2016 में तो उनका करियर ही खत्म कर दिया गया। गम्भीर को आज भी इसी बात का मलाल है कि 2011 का जो वह वर्ल्ड कप जीते थे, उसे 2015 में डिफेंड करने का मौका ही नहीं मिला उन्हें। साथ ही 2011 का वर्ल्ड कप उनका पहला और आखिरी ओडीआई वर्ल्ड कप था। परफॉर्म तो वे डोमेस्टिक में भी रहे थे।लेकिन कई साल की इग्नोरेंस और पॉलिटिक्स के बाद 2018 में उन्होंने क्रिकेट को अलविदा कह दिया। कितने दुख की बात है, जिसने हमेशा बड़े मौकों पर इण्डिया को ट्रॉफी जीताई, उसे ही बेतुके तरीकों से टीम से ड्रॉप कर दिया गया, वो भी उनके करियर की पीक पर, जिससे उनका परफोर्मेंस काफ़ी खराब हुआ। शायद इसी वजह से हम वर्ल्ड कप नहीं जीतते, क्योंकि अपने चैंपियन मैच विनर्स को हमें सम्मान देना ही नहीं आता।काश गम्भीर फाइनल में मैन ऑफ द मैच होते। कम से कम उन्हें कोई भुलाता तो न। करोड़ों इंडियन फैंस को खुशी के पल देने वाले इस टीम मैन के कैरियर की सेड एंडिंग तो न होती, आज भी सोचकर दिल रोता है। आखिर क्या गलती थी गम्भीर की।कॉमेंट करके ज़रूर बताएं कि क्या इंडियन टीम के इस अनमोल रत्न को इस तरह ट्रीट करना चाहिए था? और अगला वीडियो किस प्लेअर पर चाहेंगे आप?
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