डर के आगे जीत है! कभी टी.वी. कमर्शियल्स में, कभी फ़िल्मी सीन्स में, तो कभी क्रिकेट (ज़िंदगी) के मैदान में। ये डायलॉग आये दिन सुनने को मिलता है। क्योंकि, डर ही वो एहसास है जो बड़े से बड़े अनुभवी खिलाड़ी (इंसान) के सही फ़ैसले पर भी शक का सवाल खड़ा कर देता है। लेकिन, एक सच ये भी है कि डर नाम का ये शैतान अक्सर जवानी के जोश के आगे कहीं नहीं ठहरता है और जब कोई खिलाड़ी (इंसान) डर से आगे बढ़ जाता है। तो, ज़िंदगी उस खिलाड़ी (शख़्स) को सिवाये क़ामयाबी के कोई और तोहफ़ा नहीं देती है। एक ऐसी ही डर को मात देने वाली दास्तान समेटे हुए है हमारा आज का एपिसोड।
रिवाइंड वर्ल्ड कप 2003-
वो दास्तान जो एक खिलाड़ी के क्रिकेट के लिये दीवानापन को क़रीब से बताती है। वो दीवानापन जो भारतीय क्रिकेट के पलटवार करने के नीडर रवैये की शुरुआत बताती है। वो रवैया जो नारद टी.वी. की खास श्रृंखला“रिवाइंड वर्ल्ड कप 2003” के पांचवें भाग का मुख्य आकर्षण है। वो आकर्षण जो इंग्लैंड के विरुद्ध खेले गये भारत के 2003 विश्व कप अभियान के पांचवे मैच को अमर कर गया। उस रोज़ मैदान पर घटे ज़्यादातर लम्हें कुछ निडर, बेबाक और बेख़ौफ़ खिलाड़ियों से जुड़े हुए है।
तो फिर! तैयार हो जाइये आज से ठीक 19 साल पहले वाली उस भारतीय टीम के लिये जिसने अपने निराले अंदाज़ में हर डर का मुँह तोड़ जवाब दिया और 26 फ़रवरी 2003 का दिन हर भारतीय क्रिकेट प्रेमी के लिये यादगार बना दिया।
दोस्तों! 2003 विश्व कप ने अभी तक बहुत से विवाद और करिश्माई प्रदर्शन देखे थे। जिनका ज़िक्र हम इस श्रृंखला के पिछले एपीसोड्स में लगातार करते आ-रहे हैं।
हालाँकि, अब 2003 विश्व कप ग्रुप राउंड धीरे-धीरे समाप्ति की ओर था। मगर, ग्रुप ‘ए’ यानी भारत के ग्रुप में अब भी तस्वीर साफ़ नहीं थी। क्योंकि, अजय ऑस्ट्रेलिया क्वालीफाई कर चुका था और बचे दो स्थानों के लिये पाकिस्तान, भारत, इंग्लैंड एवं ज़िम्बाब्वे के बीच मे जंग छिड़ी हुई थी। हालाँकि, भारत अपने चार में से 3 मैच जीत के यहाँ तक आया था। मगर, अगले दो मैच इंग्लैंड और पाकिस्तान से होने के चलते अच्छी फ़ॉर्म में होते हुए भी भारतीय टीम पर काफ़ी दबाव था।
ऐसे में आज से ठीक 19 साल पहले भारत के सामने इंग्लैंड की चुनौती तैयार थी। वो इंग्लैंड जो अभी तक इस विश्व कप में एक भी मैच मैदान पर उतरकर नहीं हारा था। वो इंग्लैंड जिसको अपनी टीम पर इतना आत्मविश्वास था, कि उसने ज़िम्बाब्वे को वॉकओवर देने में भी परहेज़ नहीं किया।
इस के अलावा पूरा भारत जहाँ सचिन के लाजवाब खेल को इन्जॉय कर रहा था। वहीं पूरी दुनिया एक नये इंग्लिश स्टार जेम्स एंडरसन को चमकते हुए देख रही थी। एंडरसन उस विश्व कप में अभी तक खेले तीन 3 मैचों में 9 विकेट ले चुके थे और जिसमें 2 बार एक मैच में 4 विकेट लेने का कारनामा भी शामिल था। जबकि, एंड्रू फ्लिंटाफ, एंड्रू कैडिक और क्रेग वाइट का अनुभव इंग्लैंड के लिये पहले ही कमाल कर रहा था।
दूसरी तरफ़ बल्लेबाज़ी में मार्कस ट्रेसकोथिक, निक नाइट, माइकल वॉन और नासिर हुसैन जैसे अनुभवी ज़िम्मेदार खिलाड़ियों को एलेक स्टुअर्ट, पॉल कॉलिंगवुड और एंड्रू फ्लिंटॉफ के आक्रमक अंदाज़ का साथ था।
आसान भाषा में कहें तो उस दौर की इंग्लैंड टीम एक ख़तरनाक जंगल के शिकारी की तरह थी। जो किसी हालत में हार मानने को तैयार नहीं थी। हालाँकि, हमारी भारतीय टीम शुरुआती झटकों के बाद उभरते हुए अपने खेल से सबको चौंकाते हुए आगे बढ़ रही थी। मगर, अब भी उन लोगों को जवाब देना बाक़ी था जो “भारत को कमज़ोर टीमों को, कुचलने वाला कमज़ोर शेर” कह रहे थे।
इसके अलावा पूरा देश चाहता था कि पाकिस्तान के विरुद्ध ज़रूरी मुक़ाबले में भारत अपनी पूरी लय के साथ उतरे। इसलिये, भारत के पास इंग्लैंड को हराने के सिवा दूसरा कोई रास्ता नहीं था। तो! इस तरह कई डर और ढेरों दुआओं के बीच आज से ठीक 19 साल पहले 18,000 दर्शकों की मौजूदगी में भारत बनाम इंग्लैंड मैच शुरू हुआ।
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India vs England 2003 World Cup-
दोस्तों! भारत बनाम इंग्लैंड मुक़ाबला डरबन के जिस किंग्समीड स्टेडियम में था। वहाँ की पिच फ्लड लाइट्स की रोशनी में तेज़ गेंदबाज़ों को मदद करने के लिये मशहूर थी। इसलिये, भारत ने नामीबिया के ख़िलाफ़ चोटिल हुए नेहरा को खिलाने का रिस्क लिया। यहाँ इस फ़ैसले को रिस्क कहने की वजह ये है कि मैच की सुबह तक नेहरा की एड़ी डबल रोटी (ब्रेड) की तरह फूली हुई थी और जोशीले आशीष नेहरा इस हालत में भी खेलने को तैयार थे। ये जानते हुए, कि बॉलिंग के दौरान अगर उनका पाँव सिर्फ़ स्लिप भी हुआ तो नेहरा का करियर समाप्त हो सकता है।
मगर, नेहरा ने टीम की ज़रूरत को अपने करियर से आगे रखा और आने वाले करिश्में से अनजान कप्तान सौरव गाँगुली ने भी नेहरा के इस हौसले का सम्मान किया। साथ ही गाँगुली ने टॉस जीतकर बल्लेबाज़ी चुनी और भारतीय गेंदबाज़ों को एक्स्ट्रा एडवांटेज (अतिरिक्त मदद) मिलना तय कर दिया। जबकि, सहवाग और सचिन की सलामी जोड़ी ने पहली गेंद से ही इंग्लिश गेंदबाज़ों पर दबाव बनाकर रखा। हालाँकि, कैडिक और एंडरसन ने कुछ बलखाती (स्विंग होती) गेंदों से जय-वीरू (सचिन-सहवाग) को परेशान ज़रूर किया। मगर, आँखें जमने के बाद सहवाग ने कवर ड्राइव और सचिन ने फ्लिक के साथ चौक्के बटोर कर इंग्लिश बॉलिंग लाइन अप के होश उड़ा दिये।
भारत की शुरुआत ज़बरदस्त लग रही थी। कि, तभी दसवें ओवर की पांचवीं गेंद पर सहवाग 23 रन बनाकर फ्लिंटाफ के हाथों आउट हो गये। नम्बर तीन पर बल्लेबाज़ी करने आये गाँगुली संभलकर रन बना रहे थे। जबकि, तेंदुलकर ने निडर अंदाज़ में शॉट्स लगाने जारी रखे और जब तेंदुलकर 16वें ओवर में तेज़ 50 रन बनाकर आउट हुए तो भारत का स्कोर 91 रन था। जिसकी वजह तेंदुलकर की छोटी से पारी में लगा 1 छक्का और 8 चौक्के थे। ख़ासकर कैडिक की गेंद पर तेंदुलकर ने हुक पर जो छक्का मारा था।
वो आज भी शॉर्ट पिच गेंद पर खेले गये सबसे बेहतरीन शॉट्स में से एक माना जाता है। वैसे अब तक हुए मैच में भारतीय बल्लेबाज़ी पूरी तरह इंग्लिश गेंदबाज़ी पर हावी थी। मगर, 107 के स्कोर पर सौरव के आउट होने से खेल एकदम बिगड़ गया। क्योंकि, पिच पर अब राहुल द्रविड़ और दिनेश मोंगिया मौजूद थे।
यहां से राहुल और मोंगिया ने अगले 14 ओवर कोई विकेट तो नहीं गिरने दिया। मगर, रन बनाये सिर्फ़ 48। जिसकी मुख्य वजह 66 गेंदों में 32 रन बनाने वाले दिनेश मोंगिया का विकेट पॉल कॉलिंगवुड ने हासिल किया और अब मैदान पर आउट ऑफ़ फ़ॉर्म चल रहे युवराज सिंह को आने का मौका मिला। कुछ देर पहले ड्राइविंग सीट पर बैठी भारतीय टीम अब बिखरने के दबाव में थी।
लेकिन,यहीं से युवराज ने बेख़ौफ़ अंदाज़ में सिर्फ़ 38 गेंदों पर 4 चौक्कों और 1 छक्के की मदद से ताबड़तोड़ 42 रन बनाये। इसके बाद जब 47वें ओवर में युवराज सिंह 217 के स्कोर पर आउट हुए। तो काफ़ी देर से पिच पर टिके राहुल द्रविड़ ने भी बल्ला चलाना शुरू किया और एंडरसन के एक ओवर में 16 रन बनाकर भारत का स्कोर 250 तक पहुँचाया। हालाँकि, पारी के आख़िरी ओवर में भारत सिर्फ़ 3 रन बना पाया और एक ही ओवर में 4 विकेट भी खो दिये।
राहुल द्रविड़ ने सबसे ज़्यादा 62 रन बनाये-
भारत की तरफ़ से राहुल द्रविड़ ने सबसे ज़्यादा 62 रन बनाये और स्कोरकार्ड भारत का स्कोर 9 विकेट खोकर 250 रन दिखा रहा था। जोकि, लड़खड़ाई भारतीय पारी देखते हुए एक अच्छा स्कोर लग रहा था।
दोस्तों! जब बोर्ड पर गेंदबाज़ों को 251 रनों का बैकअप और डरबन की पिच से गेंद को उछाल के साथ तेज़ी मिले। तो, हर बॉलिंग अटैक का क़द कई गुना बढ़ जाता है।
जबकि, दूसरी तरफ़ इंग्लैंड की सारी उम्मीदें ट्रेसकोथिक और निक नाइट की सलामी जोड़ी पर टिकी थीं। मगर, इंग्लैंड की अच्छी शुरुआत की उम्मीद को पारी की सातवीं गेंद पर झटक तब लगा, जब कैफ़ ने चीते की फ़ुर्ती से नाइट को रन आउट किया। इंग्लैंड अभी नाइट के झटके से उभरा भी नहीं था कि ज़हीर खान ने ट्रेसकोथिक को शॉर्ट पिच गेंद के जाल में फंसाकर सचिन के हाथों कैच आउट करवाया। अब इंग्लैंड 18 रन पर 2 विकेट खो-चुका था।
( Ashish Nehra) आशीष नेहरा एड़ी में चोट होने के बावजूद ज़बरदस्त गेंदबाज़ी की-
यहाँ से इंग्लैंड की रीढ़ कहे जाने वाले नासिर हुसैन और माइकल वॉन ने सँभलकर रन बनाने शुरू किये। इंग्लैंड धीरे-धीरे मैच में वापसी कर रहा था और मुक़ाबला टक्कर का होता दिख रहा था। कि, तभी गाँगुली ने गेंद दी आशीष नेहरा को और फिर शुरू हुई डर के आगे मिलने वाली जीत की असल दास्तान। नेहरा ने पहले तो 17वें ओवर की दूसरी और तीसरी गेंद पर क्रमशः नासिर हुसैन और एलक स्टीवर्ट के विकेट लिये। इसके बाद 19वें ओवर की आख़िरी गेंद पर माइकल वॉन को द्रविड़ के हाथों कैच आउट करा नेहरा ने इंग्लैंड की कमर तोड़ दी। इंग्लैंड अब मैच से लगभग बाहर था।
इंग्लैंड की जो थोड़ी-बहुत उम्मीद कॉलिंगवुड और फ्लिंटाफ की जोड़ी से थी। वो भी नेहरा ने 27वें ओवर की पहली गेंद पर सीम बॉलिंग की नुमाइश करते हुए, कॉलिंगवुड का विकेट लेकर तोड़ दी। नेहरा यहीं नहीं रुके! उन्होंने 31वें ओवर में क्रेग वाइट और रॉनी ईरानी के विकेट लेकर विश्व कप के एक मैच में 6 विकेट लेने का अद्धभुत कारनामा कर दिया। एड़ी में चोट होने के बावजूद नेहरा ने उस रोज़ दर्द भुलाकर ज़बरदस्त गेंदबाज़ी की।
नेहरा की लहराती हुई गेंदों के सामने इंग्लिश बल्लेबाज़ ऐसे लग रहे थे जैसे कोई खरगोश गाड़ी की लाइट देखकर होश खो बैठता है। उसके ऊपर से नेहरा की लाइन लेंथ इतनी कमाल की थी कि अपने स्पेल की क़रीब 80 प्रतिशत गेंदे नेहरा ने बैक ऑफ़ गुड लेंथ पर पिच कराई थीं।
फ्लिंटाफ ने तेज़ 64 रन बनाए-
हालाँकि, नेहरा के ओवर समाप्त होने के बाद फ्लिंटाफ ने तेज़ 64 रन बनाकर कुछ विरोध ज़रूर किया। मगर, 251 रनों तक पहुंचने के लिये फ्लिंटाफ की कोशिश बहुत कमज़ोर थी और फ्लिंटाफ के बाद इंग्लैंड की टीम को 168 रन पर ऑल आउट होने में ज़्यादा देर नहीं लगी।
भारत ने 2003 विश्व कप अभियान की चौथी जीत हासिल की-
इस तरह भारत ने 82 रनों के बड़े अंतर से 2003 विश्व कप अभियान की चौथी जीत हासिल की और नेहरा के 23 देकर 6 विकेट लेने वाले प्रदर्शन ने हर भारतीय के लिये 26 फ़रवरी का दिन यादगार बना दिया।
तो दोस्तों, नेहरा के जज़्बे को सलाम करते हुए भारतीय टीम के 2003 विश्व कप अभियान के पांचवें अध्याय को यहीं ख़त्म करते हैं। मगर, ‘रिवाइंड वर्ल्ड कप 2003’ की असली कहानी अभी बाक़ी है। जी हाँ! भारत बनाम पाकिस्तान मैच अभी बाक़ी है। उस यादगार मैच की कहानी लेकर नारद टी.वी. जल्द लौटेगा।
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धन्यवाद !