रिकी पोंटिंग- जीत का जादूगर
150 सालों के क्रिकेट इतिहास में हर एक तूफानी गेंद का तोड़ बल्लेबाजों ने निकाला है, चाहे वो यॉर्कर पर हेलीकॉप्टर शॉट हो या बाउंसर पर अपर कट। लेकिन इन सब शॉट्स में सबसे मुश्किल रहा है बॉडी-लाइन शार्ट पिच गेंद पर फ्रण्टफुट में आकर पुल शॉट खेलना। इस मुश्किल शॉट को स्टाइलिश बनाने वाले खिलाड़ी की आज हम बात करेंगे और बताएंगे कि कैसे तस्मानिया का यह दुबला सा लड़का विश्व क्रिकेट का सर्वकालिक महान कप्तान बन गया।
आरम्भिक जीवन
पोंटिंग का जन्म 19 दिसंबर 1974 को तस्मानिया में हुआ। उनके पिता ग्रीम पोंटिंग एक क्लब क्रिकेटर थे और उनकी मां लॉरेन पोंटिंग ऑस्ट्रेलियाई खेल विगोरो की स्टेट चैंपियन थी। रिकी के चाचा ग्रेग कैम्पबेल ऑस्ट्रेलिया के लिए टेस्ट खेल चुके थे , तो जाहिर तौर पर पोंटिंग को क्रिकेट की तालीम घर से ही मिली।
शुरुआती क्रिकेट कैरियर
पोंटिंग ने 1986 में मोर्बे क्रिकेट क्लब से अंडर-13 में कैरियर की शुरुआत की और 11 दिवसीय उत्तरी तस्मानिया जूनियर क्रिकेट कॉम्पिटिशन में भाग लेकर वहां महज एक हफ्ते में 4 शतक बना डाले, इसी अद्भुत खेल के कारण केवल 14 साल ही उम्र में कुकाबुरा से उन्हें पहली स्पॉन्सरशिप मिली। उत्तरी तस्मानिया के कोच टेड रिचर्ड्सन ने पोंटिंग की काबिलियत को डेविड बून के समकक्ष अंकित किया था।
पोंटिंग ऑस्ट्रेलियन रूल्स फुटबॉल के लिए फुटबॉल भी खेलते थे, और उन्होंने जूनियर लेवल पर नॉर्दर्न लौंसेस्टन के लिए खेला , जहां हाथ मे गहरी चोट से उनका फुटबॉल कैरियर ख़त्म हो गया और क्रिकेट को उसका दांये हाथ का सबसे स्टाइलिश बल्लेबाज मिला।
पोंटिंग ने स्कॉच ओकबर्न कॉलेज में ग्राउंड्समैन की नौकरी भी की, उसके बाद उनको ऑस्ट्रेलियन क्रिकेट अकेडमी में 2 महीने की ट्रेनिंग का मौका मिला जो उनके अद्भुत खेल की वजह से 2 साल की ट्रेनिंग में बदल गया। उसी ऑस्ट्रेलियन क्रिकेट अकेडमी में भविष्य के अपने समकालिक महान बल्लेबाज सचिन से उनका सामना 1992 में हुआ, जब अकेडमी से खेलते हुए उन्होंने सचिन का बेहतरीन कैच लपका। अपने अद्वितीय फुटवर्क और जबरदस्त फील्डिंग के कारण पोंटिंग सुर्खियां बटोरने लगे। जिसके कारण उनको अकेडमी में ही टेस्ट क्रिकेटर शेन वॉर्न की गेंदों पर बल्लेबाजी करने का मौका मिला । वॉर्न एक नेट बैट्समैन की काबिलियत देखकर चौंक गए।
पोंटिंग से ‘पंटर’
क्या आपको पता है दोस्तों, पोंटिंग और वॉर्न अकेडमी में अच्छे दोस्त बन गए थे और पोंटिंग की कुत्तों की रेस में बैटिंग की आदत को देखते हुए शेन वार्न ने उन्हें पंटर नाम दिया, जो पोंटिंग के साथ हमेशा के लिए जुड़ गया।
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अंतराष्ट्रीय क्रिकेट कैरियर
वो साल 1995 था जब रिकी पोंटिंग ने 13 फ़रवरी को ऑस्ट्रेलिया के लिए पहला मैच खेला, हालांकि साउथ अफ्रीका के खिलाफ खेले गए उस वन डे मैच में वे 1 रन ही बना पाए। लेकिन भारत के खिलाफ बिना बॉउंड्री के 92 गेंदों में 62 रन ने पोंटिंग की दृढ़ता और धैर्य का परिचय दिया। 8 दिसम्बर 1995 को श्रीलंका के खिलाफ चोटिल स्टीव वॉ की जगह अपना पहला टेस्ट मैच खेलने उतरे पोंटिंग ने एक गलत निर्णय का शिकार होने से पहले शानदार 96 रनों की पारी खेलकर अपने बड़े खिलाड़ी होने पर मुहर लगा दी।
टेस्ट मैचों में पोंटिंग की फ़ॉर्म ख़राब चल रही थी, जूस वजह से वेस्टइंडीज के खिलाफ टेस्ट मैचों से उनको ड्राप कर जस्टिन लेंगर को जगह मिली।
1997 की एशेज सीरीज पोंटिंग की पहली एशेज सीरीज थी, जिसमें पहले ही टेस्ट में 127 रनों के साथ पूरी सीरीज में 48.2 की औसत से 241 रन बनाकर पंटर ने टेस्ट मैचों में शानदार वापसी की। हालांकि पूरे कैरियर के 35 एशेज मैचों में 44 की औसत से 2476 रन पोंटिंग की काबिलियत कर साथ न्याय नहीं करते।
पोंटिंग और विश्व कप
1996 विश्व कप में वेस्टइंडीज के खिलाफ जयपुर में 102 रन बनाकर पोंटिंग विश्व कप में शतक बनाने वाले सबसे युवा बल्लेबाज बने, फाइनल में 45 रन बनाने में बावजूद वे श्रीलंका के विरुद्ध ऑस्ट्रेलिया की हार नहीं बचा सके।
1999 के विश्व कप के सेमीफाइनल में साउथ अफ्रीका के सामने उनकी 37 रनों की महत्त्वपूर्ण पारी की बदौलत ऑस्ट्रेलिया ने मैच ड्रॉ करवा कर फाइनल में पाकिस्तान को हराया और विश्व कप अपने नाम किया।
2003 में जब उनको ऑस्ट्रेलिया के विश्व कप अभियान का कप्तान बनाया गया, तब पोंटिंग ने अजेय रहते हुए ऑस्ट्रेलिया को न सिर्फ़ विश्व विजेता बनाया बल्कि खुद भी फाइनल में 140* रन बनाकर रिकॉर्ड कायम किया।
उसी विश्व कप फाइनल से जुड़ा एक मजेदार वाकया याद आता है जब उपविजेता भारत के दर्शकों के इस भ्रम को कि पोंटिंग के बल्ले में स्प्रिंग है, एक अखबार ने फाइनल के 8 दिनों बाद ” पोंटिंग के बल्ले में स्प्रिंग थी” नाम से हैडलाइन छाप दी, तो ये देखकर दर्शक पुनः फाइनल की अपेक्षा करने लगे, लेकिन वो अख़बार 1 अप्रैल का था, और दर्शकों को अप्रैल फूल बनाया गया था।
विश्व कप के अपने अजेय अभियान को पोंटिंग ने 2007 विश्व कप में भी जारी रखा, और अपनी कप्तानी में लगातार दूसरी बार ऑस्ट्रेलिया को विश्व विजेता बनाया। अपनी अभेद्य टीम के बल पर पोंटिंग ने 2006 और 2009 में चैंपियंस ट्रॉफी भी जीती।
पोंटिंग विश्व कप इतिहास के सबसे सफल कप्तान भी हैं, 29 मैचों में 26 जीत इस बात का प्रमाण है; यही नहीं 2003 और 2007 विश्व कप में ऑस्ट्रेलिया अजेय रही थी।
पोंटिंग: महानतम कप्तान
2002 में वनडे मैचों और 2004 टेस्ट मैचों में कप्तानी मिलने के बाद रिकी ने अपने साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया की क्रिकेट टीम के प्रदर्शन को मानो आकाश की अनन्त ऊँचाइयों पर लाकर रख दिया, जिसकी गवाही उनके आंकड़े देते हैं। एक सफल कप्तान के तौर पर पोंटिंग ने 77 टेस्ट्स में से 48, 230 वन डे मैचों में से 165 में जीत दर्ज की, जो अपने आप में विश्व रिकॉर्ड है।
हालांकि एक कप्तान के तौर पोंटिंग एशेज में सफल नहीं रहे। उनकी कप्तानी में ऑस्ट्रेलिया को 19 में से सिर्फ 8 मैच में ही जीत मिली और 6 मैचों में हार का मुंह देखना पड़ा। जिसमें 2005 और 2009 में ऑस्ट्रेलिया की एशेज में हार ने पोंटिंग की कप्तानी पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिए थे।
संन्यास
मैक्ग्रा, वार्न, गिलक्रिस्ट, हेडेन, ब्रेट ली, बेवन , सायमंड्स जैसे खिलाड़ियों से सजी ऑस्ट्रेलिया का पोटिंग ने जिस तरह नेतृत्व किया, आज उसकी मिसाल पूरी क्रिकेट दुनिया देती है। इन सभी खिलाड़ियों के सन्यास के साथ ही पोंटिंग ने भी 2012 में रिटायरमेंट की घोषणा की। क्रिकेट से सन्यास के वक़्त 168 टेस्ट्स में 13378 और 375 वन डे मैचों में 13704 रनों के साथ 17 टी ट्वेंटी मैचों में 401 रन और कुल 71 शतक पोंटिंग को सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों की सूची में शामिल करते हैं। इसके साथ ही पोंटिंग ने 384 कैच और 80 रन आउट्स भी किये, जो एक रिकॉर्ड है।
इंटरनेशनल क्रिकेट के अलावा पोंटिंग ने आईपीएल में KKR, और मुम्बई इंडियंस के लिए खेला, फ़िलहाल वह दिल्ली कैपिटल्स के मुख्य कोच की भूमिका निभा रहे हैं।
निजी जिंदगी
साल 2002 में पोंटिंग ने रियाना कैंटोर से शादी की, आज पोंटिंग 3 बच्चों के पिता है। इसके अलावा पोंटिंग ने अपनी आत्मकथा ” एट द क्लोज़ ऑफ प्ले:पोंटिंग” भी लिखी है, जो 2013 में प्रकाशित हुई।
पोंटिंग विवादों के साये में भी रहे, 1998 के भारत दौरे के दौरान उनको कलकत्ता में एक क्लब में बदतमीज़ी करने के कारण बाहर निकाल दिया गया, वहीं साल 2007-08 में फेमस बॉर्डर गावस्कर सीरीज में भी उन पर बेईमानी के दाग लगे।
लेकिन इन सबसे ऊपर उठकर रिकी पोंटिंग ने एक कामयाब बल्लेबाज, सफलतम कप्तान और महान क्षेत्ररक्षक के रूप में खुद को स्थापित किया। एक ही समय में महानतम सचिन तेंदुलकर और जोंटी रोड्स से तुलना पोंटिंग के वर्चस्व की गवाही देती है।
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