21वीं सदी की शुरुआत से ही विश्व क्रिकेट में टिकने के लिए , खिलाड़ियों का प्रतिभावान होने के साथ-साथ तेज़ और फिट होना भी ज़रूरी है। लेकिन, कुछ क्रिकेटर्स ऐसे भी रहे हैं। जो दिखने में एक क्रिकेटर जैसे नहीं लगते थे। मगर, जब उनके हाथ मे गेंद होती थी।
तो उनके सामने क्रीज़ पर मौजूद बल्लेबाज़ नाचने लगते थे। तेज़ी, क्रिकेटर, मोटापा ये शब्द एक ही समूह का हिस्सा नहीं हैं। लेकिन, एक ऐसा भारतीय क्रिकेटर भी रहा है। जिसने ना सिर्फ़ इन शब्दों से ऊपर उठकर अपने खेल को जिया। बल्कि, आने वाली पीढ़ी के सामने ख़ुश्मिज़ाजी से क्रिकेट खेलने की मिसाल पेश की। वो खिलाड़ी जो क्रिकेट के मैदान पर भी अपनी ही धुन में रहता था। वो खिलाड़ी जिसका लाल फ्रेम वाला नीला चश्मा क्रिकेट प्रेमियों लिए स्टाइल सिम्ब्ल था। वो खिलाड़ी जिसे विश्व क्रिकेट रमेश पवार के नाम से जनता है।
दोस्तों, नारद टी. वी. के दर्शकों की ख़ास डिमांड पर आज हम ‘अनसंग हीरोज़ ऑफ़ इंडियन क्रिकेट’ में रमेश पवार की ज़िन्दगी के अनछुए पहलू आपसे साँझा करेंगे।
रमेश पवार का शुरुआती जीवन-
दोस्तों, रमेश पवार का जन्म 20 मई 1978 को बॉम्बे (महारष्ट्र) में हुआ था। रमेश के पिता राजाराम कभी अपने ज़माने में क्रिकेटर थे। पिता का क्रिकेट प्रेम रमेश और उनके भाई किरन पवार को क्रिकेट के मैदान तक ले गया। भाई किरन का खेल रमेश के लिए मिसाल रहा।
किरन ने साल 1994 में ऑस्ट्रेलिया जाने वाली अंडर-19 क्रिकेट टीम का नेतृत्व भी किया था। अपने शुरुआती दिनों में पैसों की कमी के कारण रमेश के लिए अकैडमी जाना मुमकिन नहीं था। यही रमेश की ज़िंदगी में दास सिवालकर आये, जिन्होंने रमेश के लिए शिवाजी पार्क मैदान के शारदाश्रम स्कूल में नेट्स का प्रबंध किया। रमेश क्रिकेटर बनने की राह पर निकल पड़े थे। लेकिन, रमेश जब 10 साल के थे। तो उनकी माँ का देहांत हो गया।
यहाँ से उनकी बहन गीता विलानकर ने परिवार संभाला और रमेश को माँ की कमी महसूस नहीं होने दी। अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए रमेश ने ‘टाइम्स ऑफ इंडिया‘ से कहा था “हम किसी चाँदी के चम्मच के साथ पैदा नहीं हुए थे। लेकिन, हमारा बचपन था मज़ेदार!” विश्व क्रिकेट में एक ऑफ़ स्पिनर के रूप में छाप छोड़ने वाले रमेश ने अपना क्रिकेट जीवन बतौर बैट्समैन शुरू किया था। स्कूल के दिनों में रमेश मराठी मीडियम की ओर से एक बल्लेबाज़ के रूप में खेला करते थे।
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मुम्बई का रणजी ट्रॉफी 2002-03-
जो कभी-कभी गेंद भी फेंक लेता था। लेकिन, वासु परांजपे ने रमेश में छुपे स्पिनर को पहचाना और स्पिन की बारीकियाँ सिखाई। रमेश की स्पिन वक़्त के साथ अच्छी हो रही थी और बेहतर होता खेल रमेश को 1999 में ही मुंबई रणजी टीम तक ले आया। शुरुआती सीज़न में औसत प्रदर्शन करने वाले रमेश ने 2002-03 रणजी सीज़न में अमिट छाप छोड़ी। उस साल रमेश ने मुम्बई को रणजी ट्रॉफी जिताने में बल्ले और गेंद दोनों से अहम योगदान दिया।
रमेश ने 32 की औसत से 20 विकेट लिए और 47 की औसत से 514 रन बनाये। रमेश का ये प्रदर्शन उन्हें सेलेक्टर्स की रडार में ले आया। लेकिन, टाइम्स शील्ड में मध्य रेलवे से खेलने वाले रमेश पवार के लिए उनके टीम मेट कुलमणि परिदा भी चुनौती थे। क्योंकि, साल 2004 में पाकिस्तान जाने वाले भारतीय टीम के लिए ये दोनों स्पिनर फेवरेट थे।
मौके को देखते हुए पवार ने अपनी ज़िंदगी का सबसे बड़ा फ़ैसला लिया। वो रेलवे छोड़कर रूफ़िट इंडस्ट्री में शामिल हो गये। पवार के इस फ़ैसले ने उनसे नौकरी छीन ली। उस दौरान पवार ने एयर इंडिया और ओएनजीसी में भी नौकरी की कोशिश की। मगर, वो नाकाम रहे।
जब ख़राब प्रदर्शन के चलते रमेश को टीम से ड्रॉप कर दिया गया-
पवार की मानें तो वो उनकी ज़िंदगी का सबसे मुश्किल दौर था। लेकिन, पवार ने हार नहीं मानी और क्रिकेट के मैदान पर पसीना बहाते रहे। फिर आया 16 मार्च 2004 का वो दिन। जिसके लिए पवार ने कई रातें जाग के गुज़ारी थी।
पवार ने रावलपिंडी में पाकिस्तान के विरुद्ध अपने वन-डे कैरियर की शुरुआत की। लेकिन, रमेश के वन-डे कैरियर की वैसी शुरुआत नहीं रही। जैसी उनसे उम्मीद थी। रमेश 2 वन-डे मैचों में एक भी विकेट नहीं ले पाये। ख़राब प्रदर्शन के चलते रमेश को टीम से ड्रॉप कर दिया गया। उसके बाद रमेश ने घरेलू सर्किट में आग लगा दी।
रमेश पवार रणजी ट्रॉफी में जबरजस्त वापसी-
विनायक माने की जगह सेफ्टन पार्क की ओर से खेलते हुए पवार ने 32.5 की औसत से 325 रन बनाए और 21 कि औसत से 25 विकेट भी लिये। फिर, 2004-05 और 2005-06 रणजी ट्रॉफी सत्रों में लगातार 2 बार 50 से अधिक विकेट लेकर सनसनी मचा दी।
चयनकर्ताओं ने फिर रमेश के नाम पर चर्चा शुरू की। क़रीब 2 साल बाद टीम में लौटे रमेश पवार ने इंग्लैंड के विरुद्ध घरेलू सिरीज़ में बल्ले और बॉल दोनों से अच्छा प्रदर्शन किया। पवार ने जमशेदपुर वाले मैच में 79 रन पर 5 विकेट खोकर मुश्किल में दिख भारत को, अपनी 54 रनों की पारी की मदद से धोनी के साथ मिलकर अच्छे स्कोर तक पहुंचाया। फिर, फ़रीदाबाद वाले मैच में 34 रन देकर 3 विकेट भी लिए। फिर आया चैंपियंस ट्रॉफी में पवार का सबको हैरान कर देने वाला प्रदर्शन।
वेस्टइंडीज़ के विरुद्ध 190 रन डिफेंड कर रही भारत ने ये मैच 20 रन से जीता। जिसमें पावर ने 42 रन पर 3 विकेट देकर प्रत्येक भारतीय का दिल जीत लिया। फिर अगले मैच में इंग्लैंड के विरुद्ध 24 पर 3 विकेट लेकर अपना कैरियर बेस्ट प्राप्त किया। इसके बाद साल 2007 में पवार ने इंग्लैंड जाकर 5 की शानदार इकोनॉमी के साथ 6 विकेट भी लिये। लेकिन,साल के अंत मे लगी चोट, मोटापा और ख़राब फ़ील्डिंग ने रमेश के कैरियर पर एक दम से फ़ुल स्टॉप लगा दिया।
दायें हाथ से ऑफ़ ब्रेक स्पिन डालने वाले रमेश पवार के पास दूसरा और कैरम बॉल के ज़माने में परंपरागत लूप ऑफ़ स्पिन और वेरिएशन थे। साथ ही पवार के पास फ्लिपर और गेंद को बिना डरे फ्लाइट कराने की क्षमता भी थी।
रमेश पवार का कैरियर भले ही ज़्यादा लंबा ना रहा हो। लेकिन, रमेश का कहना है “मैने अपनी ज़िंदगी की तरह क्रिकेट जिया है। मैं जितने वक़्त मैदान में रहा, बस क्रिकेट के बारे में सोचता था।” साल 2007 के बाद रमेश पवार फिर कभी अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में वापसी नही कर पाये। लेकिन, 2015 तक घरेलू क्रिकेट और आईपीएल से जुड़े रहे। अपने 16 साल के लंबे फर्स्ट क्लास कैरियर में रमेश मुम्बई, गुजरात और राजस्थान की ओर से रणजी ट्रॉफी खेले।
रमेश पवार का प्रदर्शन-
रमेश ने 148 मैचों 470 विकेट लिए।जबकि, 26 की औसत से 4245 रन बनाये। जिनमें 7 शतक और 17 अर्धशतक भी शामिल हैं। घरेलू क्रिकेट में रमेश के विकेट और शतक ये बताते हैं कि एक वो बेहतरीन स्पिन आल राउंडर रहे। जिन्हें अपने मोटापे की वजह से ज़्यादा मौके नहीं दिए गए। लेकिन, जब भी मौके मिले पवार ने अच्छा प्रदर्शन ही किया।
आईपीएल-
रमेश पवार ने भारत के लिए 31 वन डे मैच खेले। जिसमे उन्होंने 4.65 के शानदार इकॉनमी रेट से 34 विकेट लिए और 19 पारियों में 163 रन भी बनाये। रमेश पवार ने भारत के लिए 2 टेस्ट मैच भी खेले। जिसमें सिर्फ़ 6 विकेट लिए और 13 रन बनाये। रमेश पवार ने 2008 से 2013 तक आईपीएल में किंग्स इलेवन पंजाब और कोच्चि टस्कर्स केरला की ओर से 27 मैच खेले।
क्रिकेट टीम का कोच के रूप में रमेश पवार का सफर-
अपनी ज़िंदगी के करीब 30 साल क्रिकेट को देने के बाद रमेश पवार ने साल 2015 में क्रिकेट के सभी प्रारूपों से संन्यास की घोषणा कर दी। लेकिन, संन्यास के बाद भी पवार खुद को क्रिकेट से दूर नहीं रख पाए और एक कोच के रूप में अब भी क्रिकेट के साथ जुड़े हैं। रमेश पवार को साल 2018 में भारतीय महिला क्रिकेट टीम का कोच बनाया गया था।
महिला टी-20 विश्व कप के दौरान मिथाली ने पवार पर टीम में ना चुने जाने को लेकर आरोप लागाये थे। इस मामले को नैशनल कवरेज मिली।
बीसीसीआई की कमेटी ने बीच मे आकर ये मामला सुलझाया। रमेश पवार को इस्तीफ़ा देकर इस विवाद की भरपायी करनी पड़ी। बाद में रमेश पवार को विजय हज़ारे के लिये मुम्बई टीम के हैड कोच के रूप में नियुक्त किया गया था।
अगर,’द इंडियन एक्सप्रेस‘ की मानें तो फ़िलहाल बीसीसीआई ने पवार को 2021 के दौरान बेंगलुरु में होने वाले कैम्प पर नज़र रखने को कहा है। पवार एक अनसंग हीरो की तरह अब भी भारतीय क्रिकेट के लिए भविष्य के सितारों को तराश रहे हैं।
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