
वनडे विश्व कप, यूँ तो एक अन्य आईसीसी इवेंट ही है। मगर, एक क्रिकेट प्रेमी के लिये विश्व कप किसी त्यौहार से कम नहीं है। क्योंकि, वनडे विश्व कप ही एकमात्र ऐसा मंच होता है, जहाँ बड़े से बड़ी टीम को छोटी से छोटी टीम भी झटके देने का दम रखती है। वो विश्व कप ही होता है, जहाँ खिलाड़ी के असली टैलेंट और टेंपरामेंट का टेस्ट होता है। इसलिये, विश्व कप को कामयाब खिलाड़ी के सर का ताज माना जाता है।
यही वजह है कि हर खिलाड़ी और क्रिकेट फ़ैन अपनी टीम को विश्व कप जीतते हुए देखना चाहता है। ऐसा ही करोड़ों आँखों का सपना लिये आज से ठीक 19 साल पहले भारतीय टीम ने 2003 विश्व कप का आगाज़ किया था। हालाँकि, एक भारतीय क्रिकेट फ़ैन के लिये 2011 विश्व कप जीत ज़्यादा महत्व रखती है। मगर, हक़ीक़त में उस जीत की नींव 2003 विश्व कप में ही रखी गयी थी। क्योंकि, उस विश्व कप से पहले भारत बस एक भागीदार के तौर पर विश्व कप में उतरता था। मगर, 2003 के शानदार खेल के बाद से लेकर आज तक भारत को हर विश्व कप में जीत का दावेदार माना जाता है।

World Cup 2003-
2003 विश्व कप में भले ही भारत को जीत ना मिली हो। मगर, उस विश्व कप में भारत का फ़ाइनल तक का सफ़र किसी फ़िल्म की पटकथा (के प्लॉट) से कम नहीं है। उस विश्व कप की यादें आज भी भारतीय क्रिकेट फ़ैन्स के दिमाग़ में ताज़ा हैं और उन सुनहरी यादों को दोबारा जीने का एक मौका लिये,
फिर हाज़िर है नारद टी.वी. दर्शकों की ख़ास माँग पर ‘रिवाइंड वर्ल्ड कप 2003’ सिरीज़ लेकर। इस सिरीज़ में हम एक बार फिर ठीक 19 साल पहले हुए हर मैच के दिन का एपिसोड आपके बीच लायेंगे और हर वो ख़ास लम्हा आपसे साँझा करेंगे। तो चलिये दोस्तों! शुरू करते हैं 2003 विश्व कप के सुनहरे सफ़र का पहला एपिसोड (अध्याय)।
दोस्तों, वैसे तो हर विश्व कप अपने आप में ख़ास होता है और इतिहासिक बातों के लिये याद किया जाता है। मगर, साल 2003 वनडे विश्व कप से पहले माहौल में ख़ुशी कम तनाव ज़्यादा था। तैयारी कम डर ज़्यादा था। प्लानिंग कम विवाद ज़्यादा थे। जिसमे सबसे बड़ा विवाद था सुरक्षा का हवाला देकर राजनीतिक उल्लू सीधा करने वाली टीमों के बॉयकॉट को लेकर।
2003 विश्व कप की मेज़बानी-
असल में 2003 विश्व कप की मेज़बानी दक्षिण अफ़्रीका के साथ केन्या और ज़िम्बाब्वे की टीमें भी कर रही थीं। मगर, ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड को ज़िम्बाब्वे के हरारे में, जबकि न्यूज़ीलैंड को केन्या के नैरोबी में खेलने से परेशानी थी।
ये बॉयकॉट विवाद इतना उलझा हुआ था कि विश्व कप के तीन दिन पहले तक तस्वीर साफ़ नहीं हो पाई और आगे चलकर 2003 विश्व कप ने बॉयकॉट का कलंक झेला। जिसकी चर्चा इस सिरीज़ के अगले एपिसोड्स में करेंगे। मगर, अभी इतना जान लीजिये कि माहौल ख़ुशनुमा बिल्कुल नहीं था। क्योंकि, दूसरी तरफ़ भारत और आईसीसी भी आमने-सामने थे और हालात इतने ख़राब थे कि विश्व कप एक महीने तक भारत के खेलने पर सवालिया निशान थे।
हालाँकि, भारत के साथ आईसीसी का टकराव आख़िर तक चलता रहा। साथ ही श्रीलंका, वेस्टइंडीज़ और दक्षिण अफ़्रीका के खिलाड़ी मौके का फ़ायदा उठाते हुए कॉन्ट्रैक्ट को लेकर अपने-अपने बोर्ड्स के ख़िलाफ़ खड़े थे। हालाँकि, दक्षिण अफ़्रीका और वेस्टइंडीज़ बोर्ड्स को खिलाड़ियों के आगे झुकना पड़ा। लेकिन, श्रीलंकाई बोर्ड ने खिलाड़ियों के बीच फ़ूट का रास्ता अपनाया और विश्व कप के लिये टीम तैयार की।

शेन वॉर्न को ड्रग्स यूज़ करने का दोषी पाया गया-
इस तरह 10 फ़रवरी 2003 को जब वेस्टइंडीज़ बनाम साउथ अफ़्रीका मैच के साथ विश्व कप शुरू हुआ तो क्रिकेट गलियारों में खेल से ज़्यादा विवाद चर्चे में थे। जिसमें तड़के का काम किया पूर्व ऑस्ट्रेलिआई स्पिनर शेन वॉर्न ने। दरअसल, पहले मैच के दो दिन बाद ही रुटीन मेडिकल चैक अप में शेन वॉर्न को ड्रग्स यूज़ करने का दोषी पाया गया और ऑस्ट्रेलिया डिपोर्ट कर दिया गया। इस घटना के बाद अस्थायी लाग-लपेट के साथ जैसे-तैसे विश्व कप को आगे बढ़ाया गया।
2003 विश्व कप प्रारूप-
दोस्तों, 2003 विश्व कप प्रारूप 1999 विश्व कप की तरह ही था। जिसके अनुसार (हिसाब से) 14 टीमों को 7-7 के दो राउंड रोबिन ग्रुपों में बाँटा गया। जहाँ जीत हासिल करने वाली टीम को 4 पॉइंट मिलते। फिर, पहले राउंड के बाद दोनों ग्रुप की टॉप-3 टीमें सुपर सिक्स राउंड के लिये क्वालीफाई करतीं। जहाँ से सेमीफाइनल और फाइनल की तस्वीर साफ़ होती।
भारत ग्रुप-ए में ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, पाकिस्तान, ज़िम्बाब्वे, नामीबिया और नीदरलैंड्स के साथ था। जबकि, मेज़बान साउथ अफ़्रीका के ग्रुप यानि ग्रुप-बी में न्यूजीलैंड, वेस्टइंडीज़, श्रीलंका, केन्या, कनाडा और बांग्लादेश थे।
दोनों ग्रुप वैसे तो बैलेंस्ड थे। लेकिन, बॉयकॉट विवाद ने नतीजो में जो ज़बरदस्त उलटफ़ेर किये, वो अगले एपिसोड्स में आपका होश उड़ा देंगे। फ़िलहाल, आपको लिये चलते हैं आज से ठीक 19 साल पहले के पार्ल मैदान में, जहां 3674 दर्शकों की मौजूदगी में भारत विश्व कप 2003 के पहले मुक़ाबले में नीदरलैंड्स के विरुद्ध दोपहर ढाई बजे खेलने उतरा था।
उस दौर की भारतीय टीम किसी गाइडेड मिसाइल से कम नहीं थी। क्योंकि, टॉप-3 में सचिन, सहवाग और गाँगुली की महान तिकड़ी थी। तो मिडिल ऑर्डर में द्रविड़, कैफ़, मोंगिया और युवराज की आतिशी पल्टन थी। साथ ही गेंदबाज़ी में हरभजन, कुंबले, ज़हीर और श्रीनाथ जैसे धुरंधर थे।
जबकि, बेंच पर आशीष नेहरा, अजीत अगरकर, पार्थिव पटेल और संजय बांगर जैसे खिलाड़ी अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे थे। बस एकमात्र परेशानी का सबब ये था कि उस दौरान भारतीय टीम विदेश में अच्छा खेलने के लिये नहीं जानी जाती थी। फिर भी! अभ्यास मैचो के अच्छे प्रदर्शन से मिले हौसलें के साथ भारत ने टॉस जीतकर, कमज़ोर हॉलैंड पर दबाव बनाने के इरादे से पहले बल्लेबाज़ी चुनी।
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हॉलैंड टीम-
उस वक़्त की हॉलैंड टीम नई-नई क्रिकेट जगत में आयी थी और एकदम अनुभवहीन थी। इसलिये, कुछ विशेषज्ञों ने भारत बनाम हॉलैंड मैच को शेर और बकरी की लड़ाई बताया। मगर, हॉलैंड के गेंदबाज़ो का इरादा कुछ और था।
सचिन तेंदुलकर और सौरव गाँगुली जैसे बड़े खिलाड़ियों के सामने होने के बावजूद हॉलैंड की ओर से सधी हुई शुरुआत रही। ख़ासकर जिस तरह तेज़ गेंदबाज़ों ने गाँगुली को बाँधे रखा वो वाकई क़ाबिले तारीफ़ था। जिसका नतीजा ये रहा कि जब गांगुली 12वे ओवर की आख़िरी गेंद पर रोलैंड का शिकार बने, तो भारत का स्कोर सिर्फ़ 30 रन था।
ऐसे में सहवाग ने आकर एक कड़क शॉट खेलकर अपने इरादे साफ़ कर दिये। मगर, जल्द ही वो भी सिर्फ़ 6 रन बनाकर चलते बने। लेकिन, भारत की परेशानियाँ तब ज़्यादा बढ़ गयीं जब 52 रन बनाकर फ़ॉर्म में दिख रहे सचिन 81 के स्कोर पर आउट हो गये।
यहाँ से भारत को एक साझेदारी की तलाश थी। लेकिन, पहले डी लीडे की गेंद ने राहुल का डिफ़ेंस भेदा और फिर लाहौर में जन्मे अदील राजा ने कैफ़ को अपने जाल में फ़ँसाया। इस वक़्त भारत का स्कोर पूरे 32 ओवर के बाद 5 विकेट खोकर 114 रन था और मुश्किलें साफ़ नज़र आ-रही थी। क्योंकि, अब भारत के लिये तेज़ी से रन बनाने से ज़्यादा ज़रूरी था बचे हुए सभी 18 ओवर खेल जाना।
ऐसे में युवराज सिंह ने दिनेश मोंगिया के साथ मिलकर विकेट गिरने का सिलसिला रोका और रन बनाना भी जारी रखे। अब ऐसा लग रहा था कि भारत एक सम्मानित स्कोर तक पहुँच जायेगा। लेकिन, अदील की क़िस्मत से हाथ में फँसे कैच ने 169 के स्कोर पर युवराज सिंह को पैविलियन का रास्ता दिखाया और फिर देखते ही देखते पूरी भारतीय टीम 204 रन बनाकर ऑल आउट हो गयी। 204 रन के टोटल में भारत की तरफ़ से सचिन की फ़िफ़्टी के बाद दिनेश मोंगिया के 42 रन सर्वश्रेष्ठ योगदान था।
जबकि, दूसरी तरफ़ हॉलैंड की ओर से टिम डी लीडे ने 4 और अदील राजा ने 2 विकेट लेकर मैच में जान फूँक दी थी। अब भारत को इज़्ज़त बचाने के लिये हॉलैंड को 204 रनों से पहले रोकना था। जबकि, हॉलैंड को इतिहास रचने के लिये 50 ओवरों में सिर्फ़ 205 रन बनाने थे।
मैच के पहले हाफ़ ने भले ही भारतीय बल्लेबाज़ों और दर्शकों का मनोबल हिलाकर रख दिया था। मगर, पहले हाफ़ के बाद ख़ुशी की बात ये भी थी कि पिच में अब भी कमाल बाक़ी था। जोकि, हरभजन, कुंबले, श्रीनाथ और ज़हीर खान जैसे वर्ल्ड क्लास खिलाड़ियों के क़हर बरपाने के लिये काफी था। इसके बाद हुआ भी ऐसा ही।
भारतीय गेंदबाज़ों ने हॉलैंड बल्लेबाज़ी लाइन अप का पिच पर टिकना मुहाल (दूभर) कर दिया। जिसकी शुरआत श्रीनाथ ने पहले ओवर में क्लोपेनबर्ग और 9वे ओवर में हैंक जैन मोल के विकेट साथ की। इसके बाद तो मानो भारतीय गेंदबाज़ों में विकेट लेने की होड़ लग गयी हो।
जिसका नतीजा ये रहा कि दूसरी पारी से पहले मैच जीतने की दावेदार हॉलैंड का स्कोरकार्ड 54 रन पर ही सात विकेट दिखा रहा था। वो तो बाद में 21 साल के सलामी बल्लेबाज़ डैन वैन बंज ने 62 रन बनाकर हॉलैंड की साख़ बचाने का काम किया। हालाँकि, बंज ने 45वें ओवर तक संघर्ष जारी रखा। मगर, हॉलैंड सिर्फ़ 136 रन ही जोड़ सका।
जिसमें सबसे बड़ा हाथ श्रीनाथ और कुंबले के 4-4 विकेटों का था। इस तरह भारत ने तूफ़ान उठने से पहले ही हॉलैंड को 64 रनों से हराकर विश्व कप 2003 की शानदार शुरुआत की। मगर, हॉलैंड जैसी टीम के ख़िलाफ़ सितारों से सजी भारतीय बल्लेबाज़ी का यूँ 204 रन पर ध्वस्त हो जाना परेशानी का सबब ज़रूर था।
अब देखना ये है कि क्या भारत अपनी ग़लतियों से सबक़ लेकर विश्व कप अभियान में आगे बढ़ेगा या फिर एक झटका मिलने के बाद ही भारतीय बल्लेबाज़ी ट्रैक पर वापस लौटेगी।
धन्यवाद!
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