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“क्रिकेट में महानता एक दिन की मेहनत से नहीं मिलती।इसके लिये तपस्या करनी पड़ती है।” मशहूर कमेंटेटर रिची बेनो के कहे गए ये शब्द क्रिकेट की फ़ितरत और खिलाड़ियों की मेहनत को शीशें की तरह साफ़ करते हैं। क्योंकि, महान शब्द किसी खिलाड़ी को यूँ ही नहीं मिल जाता। लेकिन दोस्तों, आज हम विश्व कप 2011 के एक ऐसे मैच का ज़िक्र करने जा रहे हैं।
जिसमें तीन खिलाड़ियों ने अपने महान होने का सबूत दिया और सिद्ध किया कि भले ही महान बनना मुश्किल है, लेकिन महानता की कोई सीमा नहीं है। वो मैच जिसकी बात हम यहाँ कर रहे हैं। वो विश्व कप 2011 का आख़िरी लीग मैच था। जोकि, आज से करीब 10 साल पहले 20 मार्च 2011 को चेन्नई में भारत और वेस्टइंडीज़ के बीच खेला गया था।
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वेस्टइंडीज ने क्यों किया था स्टार खिलाड़ियों को टीम से बहार
तो चलिये, आपको लेकर चलते हैं आज से करीब 10 साल पहले चेन्नई के एम ए चिदंबरम स्टेडियम , चेपॉक में। ये मैच 2011 ग्रुप स्टेज का आख़िरी मैच था। इस मैच से पहले ही भारत और वेस्टइंडीज दोनों टीमें क्वार्टर फाइनल के लिये क्वालीफाई कर चुकी थी। इसका मतलब ये था कि मैच ज़रूरी नहीं था
। जिसका सबूत देते हुए वेस्टइंडीज ने क्रिस गेल , शिवनारायण चंद्रपाल और केमर रोश को आराम दिया। लेकिन, पिछले मैच में साउथ अफ़्रीका से एक रोमांचक मुक़ाबला हारकर आयी भारतीय टीम लय प्राप्त करना चाहती थी। भारतीय टीम ने पिछले मैच के आख़िरी ओवर में फ़्लॉप रहे नेहरा की जगह लोकल बॉय रविचंद्रन अश्विन को टीम में शामिल किया
और चोटिल सहवाग की जगह सुरेश रैना को भी विश्व कप का पहला मैच खेलने का मौका मिला। धुलेंडी के दिन दोपहर ढाई बजे शुरू हुए इस मुक़ाबले में धोनी ने एक बार फिर टॉस जीतकर पहले बल्लेबाज़ी करने का फ़ैसला लिया।सहवाग की जगह तेंदुलकर के साथ गौतम गंभीर ने भारतीय पारी की शुरुआत की। एक बड़ी शुरुआत की तलाश में उतरी भारतीय टीम का स्कोर अभी सिर्फ़ 8 रन ही हुआ था ।
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कि , सचिन तेंदुलकर रवि रामपॉल की गेंद पर कीपर के हाथों कैच आउट हो गए। यही आया महानता का वो पहला क्षण जिसका ज़िक्र हमने वीडियों की शुरुआत में किया था। दरसअल हुआ ये था , कि पारी के पहले ओवर की अंतिम गेंद पर , रवि रामपॉल की शरीर की तरफ़ आ रही गेंद को सचिन थर्डमैन की ओर खेलना चाह रहे थे।
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लेकिन, गेंद बल्ले का अंदरूनी किनारा लेते हुए। कीपर के दस्तानों में चली गयी। ज़ोरदार अपील हुई। मगर, अंपायर ने आउट नहीं दिया। लेकिन, सचिन जानते थे कि गेंद बल्ले पर लगी है ओर वो ख़ुद पैवेलियन की ओर चल दिये। उस रोज़ हर भारतीय प्रशंसक को सचिन की ईमानदारी पर गर्व था। लेकिन, उनके सौवें शतक से चूक जाने का मलाल भी था।
तीसरे नंबर पे बल्लेबाज़ी करने आये विराट कोहली ने गंभीर के साथ मिलकर 45 गेंदों में तेज़ 43 रनों की साझेदारी बनाई। 51 रन के स्कोर पर गंभीर रामपॉल की गेंद पर 22 रन बनाकर आउट हो गए। भारतीय टीम मुश्किल में नज़र आ रही थी। फिर क्रीज़ पर आये युवराज सिंह। युवराज ने कोहली के साथ मिलकर पहले पारी को संभाला और धीरे-धीरे रन बनाये।
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जैसे ही मैच बीच के ओवरों में आया और पिच बल्लेबाज़ी लिए आसान हुई , युवराज ने शॉट्स लगाने शुरू किये। कोहली के 59 रन पर आउट होने से पहले उन्होंने युवराज के साथ मिलकर तीसरे वीकेट के लिये 143 गेंदों में 123 रन जोड़ दिये थे। नंबर 5 पर बल्लेबाज़ी करने उतरे धोनी , वो भी सिर्फ़ 22 रन ही बना पाये और 42 वे ओवर की चौथी गेंद पर आउट हो गए।
भारतीय टीम का स्कोर कार्ड 218 रन पर चार विकेट दिखा रहा था। क्रीज़ पर रैना और युवराज मौजूद थे। साथ ही युसफ़ पठान को बल्लेबाज़ी करने आना था। यानी एक बड़ा स्कोर बनता दिख रहा था।लेकिन, 2011 विश्व कप में पारी का ख़राब अंत करना जैसे भारतीय टीम का स्टाइल बन गया हो।
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युवराज सिंह की पारी
इस मैच में भी वही हुआ।एक समय 232 रन पर 4 विकेट से भारतीय टीम 49.1 ओवर के बाद 268 रनों पर आल ऑउट हो गयी। जिसमें वेस्टइंडीज़ की ओर से रवि रामपॉल ने 5 विकेट प्राप्त किये। रैना के साथ युसफ़ पठान एक बार फिर फ़्लॉप रहे। लेकिन, इस पारी का मुख्य आकर्षण रहे युवराज सिंह। जिन्होंने 123 गेंदों में 10 चौकों एवं 2 छक्कों के साथ 113 रन बनाए और एक एंड संभाल कर रखा।
यही महानता का वो दूसरा क्षण है। चेन्नई में उस रोज़ गर्मी और उमस बहुत ज़्यादा थी। युवराज कई बार थककर घुटनों पर आ गए। पानी की कमी के कारण कई बार उनके लिये ड्रिंक्स लायी गयी और कहा गया कि रिटायर हो जाओ। लेकिन, रिटायर नहीं हुए और धुरी बनकर भारतीय पारी को आगे बढ़ाया। इस पारी की महानता विश्व कप 2011 के बाद युवराज के फेफड़ों में ट्यूमर होने की ख़बर ने बड़ा दी।
युवराज की इस शानदार पारी के दम पर भारत ने वेस्टइंडीज़ को 269 रनों के लक्ष्य दिया। 269 रनों के जवाब में वेस्टइंडीज़ ने संभल के खेलना शुरू किया। वेस्टइंडीज का पहला विकेट कर्क एडवर्ड्स के रूप में 34 के स्कोर पर गिरा। हालाँकि, एडवर्ड्स तो इससे पहले भी आउट हो गए थे। दरअसल कोहली का एक थ्रो जब स्टंप्स पर लगा तो एडवर्ड्स क्रीज़ से बाहर थे।
मगर, अंपायर टफेल ने थर्ड अंपायर को इशारा नहीं किया। रिप्ले देखने पर पता चला कि एडवर्ड्स आउट थे। तीसरे नम्बर पर डेरेन ब्रेवो बल्लेबाज़ी करने आये।
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इस गेंदबाज के आगे ढेर हो गयी वेस्टइंडीज टीम
ब्रेवो और स्मिथ ने दूसरे विकेट के लिए 56 रन जोड़े । यहीं 91 के स्कोर पर ब्रेवो आउट हो गए। फिर बल्लेबाज़ी करने आये वेस्टइंडीज बल्लेबाज़ी की रीढ़ कहे जाने वाले रामनरेश सरवन। सरवन और डेवोन स्मिथ ने तेज़ी से रन बनाने शुरू किये। क़रीब 30 ओवरों के बाद वेस्टइंडीज का स्कोर 154 रन पर 2 विकेट था। अब बची 120 गेंदों में सिर्फ़ 115 रन चाहिए थे।
जोकि, शेष 8 विकेट और वेस्टइंडीज की बल्लेबाज़ी को देखते हुए आसान लग रहे थे। लेकिन, यहीं आया महानता का तीसरा क्षण। 31 वें ओवर की तीसरी गेंद पर ज़हीर खान की नकल गेंद को डेवोन स्मिथ समझ ही नहीं पाए और शानदार 81 रन बनाकर बोल्ड हो गए। फिर तो मानो ज़हीर की एक गेंद ने सभी गेंदबाज़ों में ऊर्जा का संचार कर दिया हो।
देखते ही देखते पोलार्ड , सेमी , रसेल सब सिंगल डिजिट में ही आउट हो गये । एक समय 269 रन आसानी से बनाने की संभावना रखने वाली वेस्टइंडीज 188 रन पर आल आउट हो गयी। भारत की तरफ़ से ज़हीर खान ने सबसे अधिक के विकेट लिये । जबकि, अश्विन और युवराज को 2-2 विकेट मिले एवं रैना और हरभजन ने भी 1-1 विकेट अपने नाम दर्ज करवाया।
इस तरह भारत महानता के पथ पर चलकर 80 रनों से मैच जीत गयी। अपने 6 में से 4 जीत, एक टाई और 1 हार के साथ भारत ने क्वार्टर फाइनल के लिए क्वालीफाई कर लिया था।
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क्वार्टर फाइनल में भारत को ऑस्ट्रेलिया का सामना करना था। गेंदबाज़ी लय में दिख रही थी। लेकिन, बल्लेबाज़ी को लेकर अब भी सवाल थे। क्या ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाज़ों के सामने एक बार फिर ताश के पत्तों की तरह गिरेगी भारतीय बल्लेबाज़ी ? या ऑस्ट्रेलियाई बादशाहत को समाप्त करेगी ?