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जब स्कॉटलैंड की तरफ़ से खेले राहुल द्रविड़।

                                                                                                    Rahul Dravid

दोस्तों वैसे तो हर एक क्रिकेट फैन, जो बचपन से क्रिकेट को फ़ॉलो (Follow) करता है, और एक क्रिकेटर बनने का सपना (Dream) भी देखता है, उसका गोल (goal) तो अपने देश के लिए खेलने का ही होता है। हाँ वो बात और है। कि ये सपना किसी किसी का ही पूरा होता है। पर जिसका पूरा हो जाए, उसके लिए यह किसी लॉटरी (lottery) से कम नहीं। जो करोड़ों की पॉपुलेशन (Population) में से निकलकर आए ,देश के लिए खेले और सब फैंस (Fans) का हीरो बन जाए। हालांकि क्रिकेट इतिहास (History) में कुछ कलाकार तो ऐसे भी थे जो एक की बजाए 2 देशों से खेलते नज़र आए। जैसे इयोन मोर्गन, जो अपने देश नीदरलैंड के अलावा इंग्लैंड (England) से खेले और अपनी कैप्टेंसी (captaincy)  में उन्हें वर्ल्ड कप भी जीताया। ज्यादातर ये फॉरेन (Foreign) क्रिकेटर्स के केस में देखा गया है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक इंडियन क्रिकेट का एक लीजेंड (Legend) खिलाड़ी तो ऐसा था जिन्होंने 2 देशों के लिए क्रिकेट खेला,लेकिन किसी को कानों कान ख़बर नहीं लगी। वो खिलाड़ी 16 साल तक इंडियन क्रिकेट को सर्व करता रहा, बिना किसी स्वार्थ (Selfness) के।

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जब टीम को ज़रूरत थी ओपनिंग (Opening) की, तो उसने ओपनिंग की, जब उसे नीचे बैटिंग को बोला, तो हंसते हंसते उसने हां कह दी।जब ज़रूरत थी एक अच्छे विकेटकीपर (Wicketkeeper) की, तो उसने ग्लव्स संभाले, जब मांग थी हिटिंग (Hitting) की, तो उसने ताबड़तोड़ बैटिंग की। और जब टीम लगभग शर्मनाक हार चुकी होती थी, तो उसने दीवार की तरह डटकर अपनी पेशेंस (Patience) से टीम को कई मैच जिताए,तो कुछ ड्रॉ (Draw) भी कराए। जी हां दोस्तों, ये इंडियन टीम की दीवार द ग्रेट राहुल द्रविड़ थे।
पर ये तो इंडियन टीम के एक मैन प्लेयर थे। जो कि वाइट बॉल और रेड बॉल दोनों के ही परफैक्ट (Perfect) बैट्समैन थे। किसी टाइम हमारे कंट्री के कैप्टन भी थे।फिर आख़िर इन्हे क्यों दूसरे देश से खेलना पड़ा। इतना नाम, शोहरत और टीम का एक इंपोर्टेंट (Important) प्लेयर होने के बावजूद।और आखिर कब। ये सुनकर हो सकता है कि आप सोच रहे हों कि कहीं ये कोई बेईमानी, या स्पॉट (Spot) फ़िक्सिंग (Fixing) का चक्कर तो नहीं था। अरे नहीं यार, द्रविड़ जैसा जेंटेलमैन (Gentleman) ऐसा करने का सोच भी नहीं सकते। पर आखिर ऐसी क्या दुविधा आन पड़ी थी, जो टीम का ये संकट मोचक खिलाड़ी निकल पड़ा था इसका सॉल्यूशन लेकर।
चलिए आज की पोस्ट में हम आपको बताते हैं।

स्कॉटलैंड टीम ने किया एप्रोच – 

बात है 2003 की, जब सौरव गांगुली की जोरदार, जोशीली (Passionate) कप्तानी में इंडियन टीम ने कई झंडे गाड़े, चाहे वो इंग्लैंड के घर में नैटवेस्ट (Natwest) ट्रॉफी जीतना हो, या फिर ऑस्ट्रेलिया में टैस्ट जीतना, ऐसे कई कमाल इस टीम ने कर दिखाए थे। कमाल के मैच विनर्स के साथ उphysiotherapist,physical therapy,physio,physiotherapyतरी ये टीम बस एक कदम से वर्ल्ड चैंपियंस के टाइटल (Titles) से चूक गई। जिसके बाद बारी थी 2007 के वर्ल्ड कप की। जहां कई नई टीमें, कई एसोसिएट (Associate) देश निकलकर आए, जो कि 2007 के वर्ल्ड कप खेलना चाहते थे। और क्वालीफाई (Qualify) करने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार थे।
ऐसे में एक टीम बनी थीं,स्कॉटलैंड की नेशनल क्रिकेट टीम। जो कि बस 2007 का वर्ल्ड कप खेलना चाहती थी। जिसके लिए उसे अभी क्वालीफाई करना था, जो कि बिना नैशनल लीग (League) जीते बिना पॉसिबल (Possible) नहीं था।लेकिन एक प्रॉब्लम थी। कि इस टीम के सारे प्लेयर्स काफ़ी यंग (Young) और इनएक्सपीरियंस (Inexperience) थे , जो बड़े मैचों में परफॉर्म करने और इन टूर्नामेंट (Tournament) में खेलने की स्टाइल, एप्रोच (Approach), उस इंटेंट से अनजान थे। ऐसे में स्कॉटलैंड क्रिकेट को जरूरत थी एक ऐसे जाने माने चेहरे को, एक ऐसे दिग्गज क्रिकेटर की, जो उनके लिए एक गाइड (Guide) का काम तो करे ही, साथ ही स्कॉटलैंड क्रिकेट को भी एक पहचान दिला सके।

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ऐसे में स्कॉटलैंड क्रिकेट यूनियन के सीईओ ड्वेन जोन्स के दिमाग में एक नाम आया, मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर, जो कि उस समय बेहद शानदार फॉर्म में थे। जोन्स ने 2003 में इंडियन क्रिकेट कोच जॉन राइट से बात की, और साफ़ साफ़ स्कॉटलैंड के लिए कुछ मैच खेलने के लिए सचिन को उनसे माँग लिया, जिससे उनकी टीम को एक बूस्ट मिलता। और कई मैच विनर तैयार होते, जो उन्हें 2007 वर्ल्ड कप के लिए क्वालीफाई (Qualify) करा सके।लेकिन सचिन का आना पॉसिबल (Possible) नहीं था। पर स्कॉटलैंड की मदद भी तो जरूरी थी।
ऐसे में कोच ने फ़ैसला किया राहुल द्रविड़ को ये नेक काम सौंपने का। जो कि उनसे बेहतर कोई नहीं कर सकता था। और एक बार फिर, फॉर द सेक ऑफ़ टीम, राहुल इस नेक काम के लिए राजी (Agree) हो गए। लेकिन वहां जाने से पहले द्रविड़ ने ये कसम खाई कि जिस ईमानदारी के साथ वे इन्डियन टीम के लिए खेले, बिल्कुल वैसा ही स्कॉटलैंड के लिए भी खेलेंगे। जो कि उनके हंबल (Humble) और होनेस्ट (Honest) नेचर (Nature)) को दर्शाता है।अब क्योंकि उनकी नई नई शादी हुई थी, तो अपनी वाइफ (Wife) के साथ निकल पड़े द्रविड स्कॉटलैंड को 3 महीने के हनीमून (Honeymoon) कम फिलंथ्रोपी (philanthropy) क्रिकेट के लिए भेजा गया। जहां स्कॉटलैंड के एनआरआई लोगों ने डोनेशन डिनर्स (Donations diner), चैरिटी (Charity) और नजाने कहां कहां से 45000 पाउंड इकट्ठे कर द्रविड़ के खान पान,और रहने का बंदोबस्त (Arrangement) किया।

                                                     Rahul Dravid

द्रविड़ ने स्कॉटलैंड के 11 ओडीआई और एक टूर गेम समेत टोटल 12 टूर मैच खेले थे। जहां 2 सेंचुरी और 8 पचासे जड़ 67 के ऐवरेज से 600+ रन ठोक डाले। हां, बदकिस्मती (Bad luck) का आलम कुछ ऐसा रहा कि 12 में से 11 बार टीम के हाथ सिर्फ हार लगी। जिसके बाद राहुल इंडिया लौट आए। लेकिन इस उपकार के लिए उनकी खूब वाहवाही, सराहना हुई। जहां बाकी बड़े खिलाड़ी दूसरों की मदद करने को भी राजी नहीं, वहां ये दिग्गज अपनी कैरियर की पिक (Peak) में होने के बावजूद दूसरे देशों के छोटे टीम की मदद करने को बिलकुल पीछे न हटा। द्रविड़ के इस साथ ने टीम की खूब मदद की और आपको ये जानकर हैरानी होगी कि उस टीम का हिस्सा आज के स्कॉटलैंड क्रिकेट टीम के कप्तान कायल कोएटजर भी थे। जिस 19 वर्षीय युवा को द्रविड़ की कंपनी ने काफ़ी हेल्प की। इसके बाद स्कॉटलैंड वो टूर्नामेंट जीती और 2007 वर्ल्ड कप भी खेली। जिसमें द्रविड़ का एक बड़ा रोल था। क्योंकि उनकी ग्रूमिंग (Grooming) का ही नतीजा था, जो स्कॉटलैंड को इतने मैच विनर (Winner) मिले।और इतने कॉन्फिडेंस (Confidence))के साथ। द्रविड़ की एक कोच (Coach) के तौर पर चाहे दुनिया उन्हें कितनी भी क्रिटिसाइज (critiques) करे,लेकिन द्रविड़ हमेशा से ही एक महान खिलाड़ी और उससे भी ग्रेट ह्यूमन (Human) बिंग (Being) रहे। बिल्कुल हीरा (Diamond), जो सबके काम आ  या। जिसने सभी की हेल्प की।।

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राहुल द्रविड़ के कंट्रीब्यूशन (Contribution) न केवल इंडियन क्रिकेट, बल्कि वर्ल्ड क्रिकेट के लिए अनमोल रहे। चाहे वो पाकिस्तान के यूनिस खान हों, या केविन पीटरसन की फरियाद,या चाहे ख़ुद साक्षात स्कॉटलैंड टीम। राहुल ने सबकी मदद की। जो कि उन्हें और महान बनाता है। उनकी डिक्शनरी (Dictionary) में नो शब्द था ही नहीं। शायद इसलिए उनके जैसी दूसरी दीवार क्रिकेट में शायद दोबारा न आए। जिसे क्रिस गेल जैसे दिग्गज भी काफ़ी इज्ज़त देते हैं।
तो दोस्तों ये थी कहानी राहुल द्रविड़ के स्कॉटलैंड टीम से खेलने की, जो कि मजबूरी का मास्टरस्ट्रोक (Masterstroke) था। और उनके इस पीरियड (Period) की खुद स्कॉटलैंड क्रिकेट ने भी खूब सराहना की।जिस एफर्ट (affort) में इस नायाब हीरे ने अपना बेस्ट दिया।
आज की पोस्ट में इतना ही। धन्यवाद।

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