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India vs Canada: Full Explanation

9 – 10 सितम्बर (September) को नई दिल्ली के प्रगति मैदान में इतिहास (History) रचा गया | साल 1999 में जी 20 की स्थापना (Establishment) हुई थी लेकिन भारत (India) को इसकी मेजबानी (hosting) का मौका पहली बार इसी साल मिला | सभी देशों के प्रमुखों के लिए दिल्ली के VVIP होटलों में प्रेसिडेंशियल (presidential) सुईट बुक किये गये थे | सभी देशों के प्रमुख इन्हीं सुइट में ठहरे सिवाय (Except) एक के | कनाडा के प्रधानमंत्री (Prime Minister) जस्टिन ट्रूडो ने सुइट में रहने से मना कर दिया था | ट्रूडो के लिए भारत सरकार (Government)  की तरफ से ललित होटल में सुपर (Super) लक्ज़री स्टे के इंतजाम किये गये थे | लेकिन ट्रूडो सुइट के बजाय एक सामान्य से कमरे (Room) में ठहरे | कनाडा और भारत के रिश्ते (Relations) इस समय तनाव के दौर से गुजर रहे हैं | इसका साफ़ असर जी 20 में भी देखने को मिला | प्रधानमन्त्री मोदी ने समिट (Summit) में मौजूद सभी देशों (Country) के नेताओं के साथ बैठकें कीं सिवाय ट्रूडो के | और जब दोनों मिले भी तो मोदी ने कनाडा (Canada) के धरती से भारत के खिलाफ चल रहे खालिस्तानी आन्दोलन (Movement) को लेकर ट्रूडो को फटकार लगाई | शायद भारत की खरी खरी ट्रूडो को बर्दाश्त नहीं हुई और उन्होंने अपने देश लौटते ही कुछ ऐसा कर डाला जिससे दोनों देशों के सम्बन्ध (Relations)  खतरे में पड़ गये | आज के इस विडियो में हम भारत कनाडा के रिश्तों को जानने समझने की कोशिश करेंगे | हम समझने की कोशिश करेंगे कि आखिर कब, क्यों और कैसे कनाडा खालिस्तानियों का गढ़ बन गया | तो बने रहिये हमारे साथ इस पोस्ट के आखिर तक |

Canada

सबसे पहले तो हमें ये समझने की जरूरत है कि भारत और कनाडा के रिश्तों में ये खटास पहली बार नहीं आई है | साल 1974 में भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण राजस्थान के पोखरन में किया था | बहुत कम लोग जानते होंगे कि इस न्यूक्लियर टेस्ट का एक बहुत खास कनेक्शन कनाडा से भी था | आगे बढ़ने से पहले आइये समझें कांडू (CANDU) को | CANDU यानी ‘कनाडा ड्यूटेरियम युरेनियम’ | कांडू एक कनाडाई रिएक्टर (Reactor) डिजाईन है जिसका इस्तेमाल (Use) न्यूक्लियर टेस्ट में किया जाता है | भारत ने भी अपने न्यूक्लियर (Nuclear) टेस्ट में इसी रिएक्टर का इस्तेमाल किया था | इस पर कनाडा के तत्कालीन (contemporaneous) पीएम पियरे ट्रूडो भारत से बहुत नाराज हुए थे | उन्होंने आरोप लगाया था कि भारत ने कांडू टाइप रिएक्टर का सैन्य इस्तेमाल किया है | जिसके चलते भारत कनाडा के रिश्तों (Relation) में खटास आ गई थी | पियरे ट्रूडो कोई और नहीं बल्कि वर्तमान पीएम जस्टिन ट्रूडो के पिता थे | एक कहावत है कि जैसा बाप वैसा बेटा | जो काम आज जस्टिन ट्रूडो कर रहे हैं वही काम कभी उनके पिता (Father) पियरे ट्रूडो ने किया था | यही वो शख्स हैं जिन्होंने 1985 में हुए एयर (Air) इंडिया हादसे के आरोपियों को बचाने का काम किया था |

साल 2021 की जनगणना के अनुसार कनाडा में भारतीय (Indian) मूल के लगभग 14 लाख लोग हैं जिसमें से सिखों की संख्या लगभग आठ लाख है जोकि कनाडा की पापुलेशन का 2.1 परसेंट है | धर्म (Religion) के आधार पर ये कनाडा की चौथी बड़ी संख्या है | इसी देश (Country) में भारत के बाद सबसे ज्यादा सिख पाए जाते हैं | अब सवाल ये है कि सिख इस देश में कैसे और कब इतनी गहरी पकड बना पाने में कामयाब (Success) हो गये | कनाडा के निचले सदन यानी हाउस ऑफ़ कॉमन्स में 2019 के चुनाव में सांसदों (MPs) की संख्या 18 थी जबकि इसी साल भारत में हुए लोकसभा चुनाव में 13 सिख सांसद बने | ये संख्या कनाडा में सिखों का दबदबा बयान करता है | लेकिन कनाडा हमेशा से ही सिखों का देश नहीं था न ही सिख वहां के मूल निवासी हैं | सिख वहां कैसे और क्यों पहुंचे इसके लिए हमें एक बार फिर से इतिहास में झांकना पड़ेगा |

हाँ पहले हम आपको बता दें कि भारत में खालिस्तान मूवमेंट (Moment)  पर एक डिटेल्ड (Detailed) विडियो हम पहले ही बना चुके है | आज के विडियो को ज्यादा बेहतर तरीके से समझने के लिए जरूरी है कि आप पहले उस विडियो को जरूर देख लें | हम विडियो का लिंक डिस्क्रिप्शन (Description) में दे रहे हैं | जहां से आप विडियो को देख सकते हैं | आइये अब हम आपको ले चलते हैं आज से करीब सवा सौ साल पीछे | बात है साल 1897 की | ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया ने ब्रिटिश भारतीय (Indian) सैनिकों की एक टुकड़ी को डायमंड जुबली सेलिब्रेशन में शामिल होने के लिए लन्दन (London) बुलाया | उस समय घुड़सवार सैनिकों का एक दल महारानी के साथ ब्रिटिश कोलम्बिया के रास्ते में था | ब्रिटिश कोलम्बिया कनाडा का ही एक राज्य है | सैनिकों के दल में शामिल थे रिसालदार मेजर केसर सिंह | रिसालदार मेजर ब्रिटिश इंडियन आर्मी में अधिकारी रैंक (Rank) हुआ करती थी | केसर सिंह कनाडा की उपजाऊ जमीन (Land)  देखकर खासा प्रभावित (Effect) हुए | उन्होंने कनाडा में ही रहने का फैसला (Decision) कर लिया | और रहने के लिए उन्होंने चुना ब्रिटिश (British) कोलम्बिया | इतिहासकारों (Historians) की मानें तो केसर सिंह कनाडा में बसने वाले पहले सिख थे | केसर सिंह वहां अकेले नहीं बसे बल्कि कुछ और सैनिक भी उनके साथ वहीँ बस गये | जबकि बाकी के सैनिक वापस भारत लौट गये |

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भारत वापस लौटे सैनिकों ने लोगों को बताया कि ब्रिटिश सरकार (Government) उन्हें वहां बसाना चाहती है | बस यहीं से सिखों के कनाडा में बसने की शुरुआत हुई | अगले कुछ ही सालों में लगभग 5000 भारतीय कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया में जा बसे | ख़ास बात ये है कि इनमें से 90 फीसदी सिख थे | हालाँकि सिखों का कनाडा में बसना और बढ़ना इतना आसान भी नहीं रहा | वहां के लोग भारतीयों की बढती आबादी देख परेशान हो उठे | सिखों को वहां तमाम विरोध झेलने पड़े लेकिन वो वहां बस चुके थे और अब वो किसी भी कीमत पर वापस लौटना नहीं चाहते थे | वो लड़ाई लड़ते रहे | साथ के दशक में वहां लिबरल पार्टी की सरकार बनी जिसने प्रवासी (Passengers) नियमों में सकारात्मक (Positive) बदलाव किये | जिसका नतीजा ये हुआ कि वहां भारतीय मूल के लोगों की संख्या तेज में बढ़ने लगी |

आइये अब भारत (India) और कनाडा के बीच कूटनीतिक (Diplomatic) रिश्तों (Relations) को समझने की कोशिश करते हैं | दोनों ही देश कॉमनवेल्थ के सदस्य (Commonwealth) रहे हैं | कॉमन वेल्थ कंट्रीज (Countries) यानी राष्ट्रमंडल देश उन देशों को कहा जाता है जो कभी अंग्रेजी हुकुमत रही है | कनाडा को आजादी जहाँ साल 1867 में ही मिल गई थी वहीँ भारत 1947 में आजाद हो सका था | दोनों देशों (Countries) के बीच कुटनीतिक सम्बन्ध 1947 में ही बन गये थे | साल 1949 में ही देश के पहले प्रधानमन्त्री (Prime Minister) जवाहर लाल नेहरु कनाडा यात्रा पर गये थे | ये सिलसिला लम्बा चला भी लेकिन फिर दोनों के रिश्तों में खटास पैदा हो गई | अप्रैल 2015 में नरेंद्र मोदी कनाडा के दौरे पर गये | आप जानकर हैरान रह जायेंगे कि किसी भारतीय प्रधानमन्त्री ने 42 साल बाद कनाडा की यात्रा (Travel)  की थी | हालाँकि 2010 में तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह भी कनाडा गये थे लेकिन वो वहां जी 20 समिट में हिस्सा लेने गये थे |

फ़िलहाल दोनों देशों के बीच रिश्ते दिनों दिन ख़राब हो रहे हैं | लेकिन इससे पहले भी ऐसे मौके आए हैं जब हालात बिगड़े हैं—

1. साल 1974 –

18 मई 1974 को भारत ने पोखरन राजस्थान में अपना पहला परमाणु परीक्षण (Tests) किया था | The New York Times में छपी एक रिपोर्ट (Report) के मुताबिक तत्कालीन पीएम पियरे ट्रूडो ने इस न्यूक्लियर (Nuclear) टेस्ट को दोनों देशों के बीच 1971 में हुई सहमति (Consent) का उल्लंघन बताया था |

2. साल 1998 –

भारत ने दूसरा न्यूक्लियर टेस्ट पोखरन में ही किया था | जिसके बाद भारत (India) को तकनीक (Technique) देने के लिए कनाडा पर आरोप (Blame)  लगे | लेकिन कनाडा ने इन आरोपों को सिरे से नकार दिया और सख्त रुख अपनाते हुए अपने राजदूत को भारत से वापस बुला लिया साथ ही सभी गैर मानवीय सहायता को भी तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया |

अब हम समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर खालिस्तान आन्दोलन (Movement)  भारत की सीमा पार कर कनाडा तक कैसे जा पहुंचा | हम आपसे एक बार फिर निवेदन (Request) कर रहे हैं कि खालिस्तान आन्दोलन को विस्तार से समझने के लिए इसी टॉपिक (Topic) पर बना हमारा विडियो जरूर देखें जिसका लिंक हमने डिस्क्रिप्शन में दे दिया है | उन्ही बातों को इस विडियो में दोहराने का कोई मतलब नहीं है | लेकिन फिर भी ये जरूरी है कि खालिस्तान आन्दोलन से जुडी कुछ खास बातों पर जल्दी से गौर कर लिया जाये | आजादी के बाद से ही चली आ रही खालिस्तान की मांग साल 1980 आते आते काफी हद तक ठंडी पड़ चुकी थी | लेकिन इसी दशक (Decade) में उदय हुआ जनरैल सिंह भिंडरावाले का | भिंडरावाला दमदम टकसाल का मुखिया (Chief) था | वो एक शोला की तरह आया और मद्धम पड़ चुकी आग को एकदम से सुलगा दिया | खालिस्तान आन्दोलन फिर से खड़ा हो चुका था | लेकिन इस बार का आन्दोलन खूनी था | पूरा पंजाब खून से सना हुआ था | साल 1981 में अख़बार पंजाब केसरी के सम्पादक लाला जगत नारायण की हत्या कर दी गई | जबकि 1983 में खालिस्तान समर्थकों (Supporters) ने स्वर्ण मंदिर में पंजाब के DIG ए एस अटवाल को मौत के घाट उतार दिया | ये वो दौर था जब पंजाब की कानून व्यवस्था की खुलेआम धज्जियां उड़ रहीं थीं | तत्कालीन प्रधानमन्त्री इंदिरा गाँधी ने पंजाब (Punjab) में राष्ट्रपति (President) शासन लगा दिया | इससे अलगाव वादी भडक उठे | भिंडरावाले की अगुवाई में तमाम खालिस्तानी समर्थकों ने स्वर्ण मंदिर पर कब्जा (Capture) जमा लिया | इन लोगों ने वहाँ भारी मात्र में हथियार भी जमा कर लिए | 1 जून 1984 को ऑपरेशन (Operation) ब्लू (Blue) स्टार (Star) हुआ | जिसमें भिंडरावाला मारा गया | लेकिन इस ऑपरेशन (Operations) से सिख भावनात्मक रूप बहुत आहत हुए | जिसके बदले में इंदिरा गाँधी की हत्या (Murder) कर दी गई | इसके बाद पंजाब की धरती पर खालिस्तान आन्दोलन कमजोर पड़ता गया | लेकिन कनाडा में बसे सिखों ने इसे मरने नहीं दिया | वो डटे रहे | साल 1985 में कनाडा से मुंबई (Mumbai) जाने वाले एयर (Air) इंडिया (India) के कनिष्क विमान में हुए बम धमाके में भी इन्हीं खालिस्तानियों का हाथ था |

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18 जून 2023 | कनाडा के ब्रिटिश कोलम्बिया के एक गुरुद्वारा की पार्किंग | पार्किंग (Parking)  में खड़ी एक कार (Car) की ड्राइविंग (Deriving) सीट पर था भारत से भगोड़ा (Fugitive) और दस लाख का इनामी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर | तभी अचानक मुँह में मास्क (Mask) लगाये दो लोग सामने से आते हैं और अगले ही पल पूरा इलाका ताबड़तोड़ गोलियों की बौछार से थर्रा उठता है | ये गोलियां इन्ही दोनों के हाथों में मौजूद हथियारों (Weapons)  से निकली थीं जिसका निशाना था आतंकी निज्जर |

इस घटना की ठीक तीन महीने और जी 20 समिट के ठीक हफ्ते (Weeks) भर बाद यानी 18 सितम्बर 2023 | कनाडा की संसद हाउस ऑफ़ कॉमन्स | कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो ने एक बयान (Statement)  दिया | उन्होंने आरोप (Blame) लगाया कि निज्जर की हत्या में भारत के एजेंट्स (Agents) का हाथ हो सकता है | ट्रूडो का इशारा साफ़ तौर पर भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी (Agency) रॉ (RAW) की तरफ था | विदेश मंत्री मेलेनी जौली ने कहा कि अगर आरोप सच साबित हुए तो ये ठीक नहीं होगा | इसके साथ ही जोली ने कनाडा में भारतीय (Indian) दूत (Messenger) पवन कुमार राय को देश (Country)  से निष्कासित कर दिया | इसके बाद तो भारत ने भी जवाबी कार्यवाई (Action) करते हुए कनाडा के दूत को देश (Country) से तो निकाला ही कनाडाई नागरिकों (Citizens) को वीजा देने पर भी रोक लगा दी | भारत ने सख्त रुख अपनाते हुए ट्रूडो के बयान को न केवल राजनीति से प्रेरित और कनाडा को आतंकियों के लिए सुरक्षित पनाहगार देश भी बता दिया |

जिस निज्जर की मौत पर इतना बवाल खड़ा हुआ है उसको भी थोड़ा जान समझ लिया जाये—

1. निज्जर फर्जी दस्तावेजों (Documents) के सहारे कनाडा पहुंचा था

2. कनाडा की नागरिकता (Citizenship) पाने के लिए उसका आवेदन (Application) दो बार रिजेक्ट (Reject) कर दिया गया था | वहां की कोर्ट (Court) ने भी उसे नागरिकता देने से मना कर दिया था | हालाँकि कनाडा के इमिग्रेशन (Immigration) मिनिस्टर (Minister) मार्क मिलर ने एक बार बताया था कि निज्जर साल 2015 में कनाडा का नागरिक बना |

3. जबकि साल 2014 में ही इंटरपोल (Interpoles) ने उसके खिलाफ रेड (Red) कार्नर (Corner) नोटिस जारी किया था |

4. वो अलगाववादी समूह (Group) खालिस्तानी टाइगर फ़ोर्स (Fource) यानी KTF का मास्टर (Master) माइंड (Mind) था |

5. वो कनाडा की नो फ्लाई (Fly) लिस्ट में था

6. भारत ने 2020 में उसे आतंकी (Terrorist) घोषित (Announce) कर दिया था

7. वो भारत में भगोड़ा (Fugitive) घोषित था ही उस पर दस लाख का ईनाम (Reward)भी था |

8. 2022 में निज्जर ने खालिस्तान को लेकर एक जनमत संग्रह भी कराया था जिसके लिए उसने दर्जनों देशों का दौरा भी किया था |

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खालिस्तानी अलगाववादियों (Separatist) पर नरमी कनाडा की पहचान रही है | कनिष्क विमान (Plane) हादसा (Accident) कनाडा के इतिहास (History) में सबसे भीषण (Horrific) हवाई हादसा था | इस बात के पक्के सबूत थे कि धमाके में खालिस्तान समर्थकों (Supports) का ही हाथ है लेकिन कनाडा सरकार (Government) ने तब भी कोई एक्शन नहीं लिया | साल 2005 में हमले का मुख्य (Main) आरोपी छूट गया | सजा भी हुई तो सिर्फ एक आरोपी को | भारत की तत्कालीन प्रधानमन्त्री (Prime Minister) इंदिरा गाँधी ने साल 1982 में ही कनाडा सरकार से आतंकी तलविंदर सिंह परमार के प्रत्यर्पण (Extradition) की मांग (Demand) की थी | लेकिन कनाडा सरकार ने इस मांग को ठुकरा दिया था | तब कनाडा के पीएम वर्तमान (Present) पीएम जस्टिन के पिता (Father) पियरे ट्रूडो थे | यही परमार 1985 में हुए कनिष्क बम धमाके (Bang) का मास्टरमाइंड (Master Mind) था | मजे की बात तो ये है कि कनाडा खालिस्तानियों के आन्दोलन को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता बताता है |

आइये अब समझने की कोशिश (Try) करते हैं कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो खालिस्तान प्रेम की असली (Real) कहानी (Story) | असल में सारा किस्सा कुर्सी का है | कनाडा में साल 2019 में चुनाव हुए थे | चुनाव में ट्रूडो की लिबरल पार्टी ऑफ़ कनाडा को 157 सीटें मिलीं जबकि विपक्षी (Opposition) कंजर्वेटिव पार्टी को 121 | ट्रूडो सरकार बनाने लायक बहुमत हासिल नहीं कर सके | तब उनका साथ दिया न्यू डेमोग्राफिक पार्टी NDP ने | जिसके मुखिया है खालिस्तान आन्दोलन (Movement) के बड़े समर्थक माने जाने वाले जगमीत सिंह | यानी सत्ता (Power) की चाभी जगमीत सिंह के हाथों में ही है | खालिस्तान समर्थकों के खिलाफ ट्रूडो के एक बयान (Statement)  का मतलब है सत्ता से बाहर होना और इसमें कोई दोराय नहीं कि वो ये रिस्क (Risk) नहीं लेना चाहते |

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कनाडा में ट्रूडो की तेजी से गिरती लोकप्रियता (Popularity) भी दोनों देशों (Country) के बीच हालिया उठापटक की बहुत बड़ी वजह है | एक रिपोर्ट (Report) की माने तो जुलाई में कनाडा में पीएम की लोकप्रियता को लेकर एक सर्वे हुआ | जिसके नतीजे चौंकाने वाले रहे | ट्रूडो को कनाडा के वोटर्स ने पिछली आधी सदी (Decade) का सबसे ख़राब पीएम माना | यानी बात एकदम साफ़ है ट्रूडो की लोकप्रियता खतरे में हैं | खालिस्तानी समर्थकों को लेकर उनकी नरमी उन पर भारी पड़ती नजर आ रही है | हो सकता है उन्हें इनमें अपना वोट (Vote) बैंक (Bank) नजर आता हो तभी उन्हें साधने के चक्कर में वो एकदम से मुखर हो उठे हैं | शायद ये पहली बार होगा जब किसी राष्ट्राध्यक्ष (President) ने केवल आरोपों (Blames) के आधार पर किसी देश (Country)  पर आरोप मढ़ा हो | हैरानी है कि एक तरफ पीएम ट्रूडो पुख्ता आरोपों (Blames) की बात करते हैं वहीं दूसरी तरफ विदेश (Foreign) मंत्री (Minister) कहती हैं कि अगर आरोप सही पाए गये तो ये अस्वीकार्य (Unacceptable) होगा | हैरानी तो इस बात की है पीएम ट्रूडो ने एक बयान (Statement) देकर दोनों देशों के बीच रिश्ते (Relations) तो ख़राब कर दिए हैं लेकिन अब तक आरोपों को साबित करने लायक एक भी सबूत (Evidence) पेश नहीं कर सके हैं | उन्हें समझना चाहिए कि ये कोई गुड्डे गुड़ियों का खेल नहीं बल्कि दो देशों (Countries)  के बीच के सम्बन्ध (Relations)  हैं | इन्हें बनने बनाने में भले सालों लग जाते हों लेकिन बिगड़ने में पल भर भी नही लगता | पूरी दुनिया (country)  की नजरें उन पर हैं | अगर ट्रूडो सबूत पेश किये बिना यूँ ही हवा में बात करते रहे तो उनकी जगहंसाई होनी तय है | हाँ अगर उनका मकसद (Motive) केवल खालिस्तान समर्थकों का तुष्टिकरण  (appeasement) ही है तो वो आग से खेल रहे हैं | उनका आचरण (Behaviour) इस बात को साबित करता है कि वो खालिस्तानी समर्थकों (Supports) के हाथों की कठपुतली की तरह काम कर रहे हैं | उनका ये रवैया आने वाले समय में उनके ही देश (Country) के लिए आत्मघाती म  सिद्ध होगा | क्योंकि इतिहास (History) गवाह है कि आतंकवाद (terrorism) या अलगाववाद कभी भी किसी के भी हित में नहीं रहा है | हम उम्मीद करते हैं कि कनाडा के पीएम ट्रूडो मामले की गम्भीरता को समझेंगे | और एक बार फिर दोनों देशों के सम्बन्ध (Relations) बेहतर और खुशनुमा मोड़ लेंगे |

हम ये स्पष्ट (Clear) कर दें कि इस पोस्ट के जरिये हमारा मकसद (Motive) किसी भी धर्म, जाति या सम्प्रदाय का अपमान करना बिलकुल नहीं है | किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाना हमारा मकसद नहीं है | इस मुद्दे पर अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर रखें |

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