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बॉलीवुड में दिखाई देने वाले विदेशी अभिनेता

हर दशक में अंग्रेजी हुक़ूमत से जुड़ी कोई न कोई कहानी हिंदी फ़िल्म में बनती ही रही है। आज़ादी के इतने वर्षों बाद आज भी अंग्रेजी हुकूमत और उनसे हुए संघर्षों की घटनाएं किसी न किसी फ़िल्म या टीवी शोज़ के ज़रिये हमें देखने को मिल ही जाती हैं। उन कहानियों को देखना तो दिलचस्प होता ही है लेकिन उससे कहीं दिलचस्प होता है उन किरदारों को देखना जिनके बारे में हमने सिर्फ सुना या पढ़ा है। ऐसे में उन ऐक्टर्स को देखना और भी दिलचस्प हो जाता है जो अपनी दमदार ऐक्टिंग से उन किरदारों को जीवंत करते हैं। फिर चाहे वो किसी क्रांतिकारी की भूमिका हो या किसी अंग्रेज की। आज हम ऐसे ही कुछ ऐक्टर्स के बारे में चर्चा करने वाले हैं जिन्होंने हिंदी फ़िल्मों में अंग्रेज की भूमिका निभाकर अपनी एक अलग पहचान बनायी थी।

Kamal kapoor

 कमल कपूर-

दोस्तों अगर आपने अमिताभ बच्चन की फ़िल्म ‘मर्द’ देखी होगी तो शायद ही उस फ़िल्म के क्रूर किरदार जनरल डायर को भुला पाये होंगे। उस किरदार को निभाने वाले ऐक्टर का नाम है कमल कपूर, जिनकी पहचान है उनकी नीली-नीली कँजी आँखें जो उन्हें एक अंग्रेज की भूमिका में बड़ी ही आसानी से फिट कर देती थीं। 22 फरवरी 1920 को पेशावर के एक पंजाबी हिंदू परिवार में जन्मे कमल कपूर ने अपनी शिक्षा लाहौर में पूरी की थी। उनके भाई एक पुलिस ऑफिसर थे जो मध्यप्रदेश में कार्यरत थे। पढ़ाई पूरी करने के बाद कमल कपूर ने भी अपने भाई के पास ही रहने का मन बना लिया था लेकिन अचानक उन्हें ऐक्टिंग के प्रति दिलचस्पी पैदा हो गयी और वे वर्ष 1944 में पेशावर से मुंबई आ गये जहाँ उसी वर्ष उनके मौसेरे भाई पृथ्वीराज कपूर ने पृथ्वी थियेटर की शुरूआत की थी। कमल भी पृथ्वीराज कपूर के साथ थिएटर में काम करने लगे और ऐक्टिंग को ही अपना कॅरिअर बनाने का मन बना लिया। फ़िल्मों की बात करें तो कमल कपूर की पहली फिल्म 1946 में रिलीज हुई ‘दूर चलें’ थी। इस फ़िल्म में उनकी नायिका थीं नसीम बानो जो ऐक्ट्रेस सायरा बानो की माँ थीं। हालांकि यह फ़िल्म तो सफल न हो सकी लेकिन कमल कपूर को उनके लुक की वज़ह से कई फ़िल्मों में काम ज़रूर मिल गया, वो भी बतौर नायक। बाद में वर्ष 1948 में रिलीज़ हुई ‘आग’ फ़िल्म में कमल ने राज कपूर के पिता की भूमिका निभाई, यह फ़िल्म निर्माता-निर्देशक के रूप में राज कपूर की पहली फिल्म भी थी। हालांकि इस फ़िल्म के बाद उन्हें इसी तरह की भूमिकाएँ निभाने के लिए कई प्रस्ताव मिले, लेकिन उन्होंने करने से साफ इनकार कर दिया। दरअसल कमल बतौर नायक ही फिल्मों में काम करना चाहते थे और उन्होंने तकरीबन 21 फ़िल्मों में बतौर नायक काम भी किया लेकिन अफसोस की उन फ़िल्मों में उस दौर की जानी मानी ऐक्ट्रेसेज़ के होने के बाद भी उनकी कुछ ही फ़िल्में सफल हो सकीं। वर्ष 1951 में कमल ने एक फ़िल्म भी प्रोड्यूस की जिसका नाम था ‘कश्मीर’ लेकिन यह फ़िल्म भी नाकाम ही साबित हुई। इसके बाद उन्होंने एक और फिल्म ‘ख़ैबर’ का निर्माण किया जिसमें वे ख़ुद ही नायक बने थे लेकिन वर्ष 1954 में आयी यह फ़िल्म भी बुरी तरह फ्लाप रही और कमल कपूर की अब तक की सारी कमाई हुई दौलत इस फ़िल्म में डूब गयी। इस नाकामयाबी के बाद कमल टूट से गये और ऐक्टिंग फील्ड से एक दूरी सी बना ली। लेकिन कुछ ही वर्षों के बाद कमल ने वर्ष 1958 में आयी फिल्म आख़िरी दाँव से दोबारा फ़िल्मों में वापसी की और इस बार उन्होंने ख़ुद को एक विलेन के रूप में पेश किया जिसमें वे आगे चलकर कामयाब भी हुये। हालांकि इस फ़िल्म से तो उन्हें आगे कोई काम नहीं मिल सका लेकिन उसी दौरान उनकी मुलाक़ात आइ एस जौहर जी से हो गयी जो उस ज़माने के मशहूर कॉमेडियन होने के साथ-साथ एक कामयाब राइटर, डायरेक्टर और प्रोड्यूसर भी थे जिन्होंने आगे चलकर कमल कपूर को अपनी लगभग हर फ़िल्म में शानदार भूमिकायें दीं। बतौर विलेन कमल कपूर को वर्ष 1965 में रिलीज हुई इन्हीं की फिल्म “जौहर महमूद इन गोवा” से पहचान भी मिली थी। यह फिल्म इतनी बड़ी हिट साबित हुई कि कमल कपूर ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। इस फ़िल्म के बाद उनके पास फ़िल्मों की लाइन लग गई। “जौहर इन बॉम्बे”, “जौहर महमूद इन हांगकांग”, “जब जब फूल खिले”, “राजा और रंक”, “दस्तक”, “पाकीज़ा”, “पापी”, “चोर मचाए शोर”, “फाइव राइफल्स”, “दो जासूस”, “दीवार”, “खेल खेल में”, डॉन, “मर्द” और “तूफान” आदि ढेरों फ़िल्मों में कमल ने गैंगस्टर से लेकर भ्रष्ट पुलिस अफसर तक के छोटे-बड़े किरदार निभाये। उनके द्वारा अमिताभ बच्चन की डॉन फ़िल्म में निभाया किरदार नारंग आज भी याद किया जाता है जो ख़ुद कमल कपूर का भी बेहद पसंदीदा किरदार था।लगभग पाँच दशकों तक ऐक्टिंग करने वाले कमल ने विलेन के साथ-साथ ढेरों कैरेक्टर रोल भी प्ले किये। वर्ष 1967 में रिलीज हुई फिल्म ‘दीवाना’ में उन्होंने एक बार फिर राज कपूर के पिता की भूमिका निभाई थी। उन्होंने हिंदी के अलावा पंजाबी और गुजराती भाषाओं में लगभग 600 से भी अधिक फिल्मों में अभिनय किया। वर्ष 1993 में आयी फ़िल्म ‘ज़ख़्मीं रूह’ में वे आख़िरी बार नज़र आये थे।

बाद में बढ़ती उम्र के चलते कमल कपूर की तबीयत ख़राब रहने लगी और 2 अगस्त 2010 को उनका निधन हो गया। कमल कपूर के पांच बच्चे हैं जिनमें तीन बेटे और दो बेटियां हैं। उनकी छोटी बेटी 70 और 80 के दशक के मशहूर फिल्म निर्माता रमेश बहल की पत्नी हैं, जिनके बेटे गोल्डी बहल आज के मशहूर प्रोड्यूसर और ऐक्ट्रेस सोनाली बेंद्रे के पति हैं।

Tom Alter

 टॉम ऑल्टर-

इस कड़ी में हम अगले जिस ऐक्टर का नाम लेने वाले हैं, उन्हें बच्चे से लेकर बड़े तक सभी पहचानते हैं क्योंकि हिंदी फ़िल्मों और टीवी शोज़ में सबसे ज़्यादा अंग्रेजों के रोल शायद इन्होंने ही निभाये होंगे, और इस ऐक्टर का नाम है टॉम ऑल्टर। एक दौर था जब फ़िल्मों में अंग्रेजों के रोल निभाने की बात होती थी तो सबसे पहले टॉम ऑल्टर को ही याद किया जाता था और वो भी लगभग 4 दशकों तक। 22 जून 1950 को उत्तराखंड के मसूरी में जन्मे टॉम ऑल्टर विदेशी माता-पिता की संतान थे, टॉम की माँ नाम बैरी ऑल्टर और पिता का नाम जिम ऑल्टर था जो अमेरिकी क्रिश्चियन मिशनरी से जुड़े थे। नवंबर, 1916 में टॉम ऑल्टर के दादा-दादी अमेरिका से भारत आए थे। जो कुछ वर्षों तक मद्रास में रहने के बाद लाहौर चले गये जहाँ उन्होंने रावलपिंडी, पेशावर, सियालकोट के क्षेत्रों में काम करना शुरू किया। टॉम के पिता का जन्म सियालकोट में ही हुआ था। बँटवारे के बाद टॉम के दादा-दादी पाकिस्तान में ही रहे और उनके माता-पिता हिंदुस्तान चले आये जो पहले इलाहाबाद यानि प्रयागराज में रहे, जहाँ उनके पिता इविंग क्रिश्चियन कॉलेज में बतौर हिस्ट्री और इंग्लिश टीचर कार्यरत थे, फिर अपनी मिशनरी के लिये सहारनपुर और जबलपुर में कुछ वर्षों तक रहने के बाद उत्तराखंड के मसूरी के नज़दीक राजपुर में बस गये। तीन भाई बहनों में टॉम सबसे छोटे थे। टॉम की बड़ी बहन का नाम मार्था, और बड़े भाई का नाम जॉन है। चूँकि टॉम भारत में ही पले बढ़े थे इसलिए एक आम भारतीय की तरह ही फर्राटेदार हिंदी तो बोलते ही थे साथ ही उर्दू में भी उन्हें महारत हासिल थी। उनकी शिक्षा मसूरी के वुडस्टॉक स्कूल में हुई थी । 18 साल की उम्र में, टॉम उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका चले गए और एक साल तक येल विश्वविद्यालय में अध्ययन किया, लेकिन पढ़ाई में मन नहीं लगने से बीच में ही वापस लौट आये। भारत आने पर पिता के ज़रिये उन्हें जगाधरी, हरियाणा के सेंट थॉमस स्कूल में एक शिक्षक के रूप में काम मिल गया जहाँ उन्होंने लगभग छह महीने तक अपने छात्रों को क्रिकेट की कोचिंग भी दी। इसके बाद अगले ढाई वर्षों में, ऑल्टर ने कुछ समय के लिए मसूरी के वुडस्टॉक स्कूल, में भी पढ़ाया जहाँ उनके चाचा प्रिसिपल थे, और बाद में कुछ समय के लिये अमेरिका जाकर वहाँ के एक अस्पताल में भी काम किया फिर चाचा के बुलाने पर टॉम भारत वापस लौट आये।

 दोस्तों टॉम के फ़िल्मों में आने की वज़ह भी बड़ी दिलचस्प है। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि वह राजेश खन्ना की वज़ह से फिल्मों में आए थे और वे भी राजेश खन्ना के जैसा सुपरस्टार बनना चाहते थे। उन्होंने बताया था कि वह राजेश खन्ना की फिल्म का फर्स्ट डे फर्स्ट शो देखने अक्सर मंसुरी से दिल्ली आते थे और उन्होंने कनॉटप्लेस स्थित रीगल सिनेमा में राजेश खन्ना की आनंद, दुश्मन और अमर प्रेम जैसी कई फिल्मों के फर्स्ट शो देखे थे। दरअसल टॉम ने राजेश खन्ना की फिल्म आराधना को देखने के बाद ही एक्टर बनने का निश्चय कर लिया था। बाद में वर्ष 1972 में उन्होंने बाकायदा इसके लिये पुणे जाकर FTII में दाखिला लिया और ऐक्टिंग भी सीखी, जहाँ उनकी 1974 तक की ट्रेनिंग के दौरान ढेरों आज के दिग्गजों से दोस्ती हुई। रोशन तनेजा इनके गुरु थे तो नसीरुद्दीन शाह और ओम पुरी इनके जूनियर थे तो वहीं शबाना आज़मी इनकी सीनियर हुआ करती थीं। फ़िल्मों में टॉम के ऐक्टिंग कॅरियर की बात करें तो उन्होंने साल 1975 में फ़िल्म मृगतृष्णा से शुरुआत की लेकिन उन्हें नोटिस किया गया वर्ष 1976 में आयी रामानंद सागर की फिल्म ‘चरस’ से। इस फिल्म में उन्होंने एक कस्टम अधिकारी का रोल प्ले किया था। इसके बाद टॉम कई फ़िल्मों में नज़र आये, हालांकि उन्हें असल पहचान मिली फिल्म क्रांति से, इस फ़िल्म में उन्होंने एक क्रूर ब्रिटिश ऑफिसर का रोल निभाया था। इसके बाद उन्होंने ‘शतरंज के खिलाड़ी’ हम किसी से कम नहीं, क्रांति, कर्मा, आशिकी, परिंदा जैसी शानदार फ़िल्मों सहित करीब 300 फिल्मों में जबरदस्त काम किया।

दोस्तों टॉम ने ढेरों फिल्मों में तरह तरह के किरदार निभाये लेकिन अपने लुक की वजह से उन्हें ज्यादातर अंग्रेज अफसरों या विदेशी करेक्टर निभाने को ही मिलते थे।  यहाँ तक कि टॉम ने हिंदी फिल्मों के अलावा बंगाली, असामी और मलयाली भाषाओं की फिल्मों में भी ‘अंग्रेज’ का करेक्टर निभाया है। टॉम भले ही अंग्रेजों के रोल करने के लिये याद किये जाते हैं, लेकिन हिंदी और उर्दू भाषा में उनकी जबरदस्त पकड़ थी जिसके दम पर वे हर तरह के किरदार को बड़ी ही आसानी से निभा लेते थे। टॉम ने एक इंटरव्यू में कहा था कि “मैंने मौलाना आज़ाद, मिर्ज़ा गालिब, साहिर लुधियानवी के भी किरदार किये हैं, जिसके लिये लोगों ने मेरी एक्टिंग की तारीफ की लेकिन किसी ने यह नहीं कहा कि इस किरदार का इतना गोरा रंग क्यों है? ज़रूरी ये है कि आप भरोसे के साथ काम करें।” टॉम ने फिल्म ही नहीं बल्कि कई टीवी सीरियल में भी दमदार काम किया था। 90 के दशक में प्रसारित सीरियल जुनून में टॉम द्वारा निभाये किरदार केशव कलसी के लिये आज भी दर्शक उन्हें याद किया करते हैं। सीरियल ‘ज़ुबान संभाल के’ में इन्होंने एक ब्रिटिशर का रोल किया था जो तब बेहद चर्चित हुआ था।  दर्जनों टीवी सीरियल्स के अलावा एक शो में उन्होंने बतौर होस्ट ढेरों जानी-मानी हस्तियों के इंटरव्यू भी लिये हैं। इसके अलावा वर्ष 2014 में टॉम ने राज्यसभा टीवी के शो संविधान में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का रोल निभाया था, जिसमें उनके किरदार को काफी सराहा गया था। टॉम ने कई इंटरनैशनल प्रोजेक्ट्स में भी काम किया था जिनमें इंग्लिश फिल्म विद लव, दिल्ली!, सन ऑफ फ्लावर, साइकिल किक, अवतार, ओसियन ऑफ अन ओल्ड मैन, वन नाइट विद द किंग, साइलेंस प्लीज आदि नाम प्रमुख हैं।

फिल्मों के अलावा उन्होंने थिएटर को भी ख़ूब वक़्त दिया था, वर्ष 1977 में उन्होंने FTII दोस्त नसीरुद्दीन शाह और बेनजमिन गिलानी के साथ मोटली नाम का थियेटर ग्रुप भी खोला था। दोस्तों टॉम एक मल्टी टैलेंट्ड पर्सनैलिटी थे, उन्होंने द लॉन्गेस्ट रेस , रीरन एट रियाल्टो और द बेस्ट इन द वर्ल्ड सहित किताबें लिखी हैं। वे 1980 के दशक के अंत से 1990 के दशक की शुरुआत में एक खेल पत्रकार थे। उन्हें क्रिकेट से बहुत प्रेम था और देखने व खेलने के साथ साथ इसके बारे में भी उन्होंने स्पोर्ट्सवीक , आउटलुक , क्रिकेट टॉक , संडे ऑब्जर्वर , फ़र्स्टपोस्ट , सिटीजन और डेबोनेयर जैसे पत्रिकाओं के लिये ढेरों आर्टिकल्स लिखे हैं। दोस्तों टॉम सचिन तेंदुलकर का इंटरव्यू लेने वाले पहले पहले शख्स के रूप में भी जाने जाते हैं। वर्ष 1988 में टॉम ने ही मास्टर ब्लास्टर सचिन का पहला इंटरव्यू लिया था। इसके अलावा उन्हें उर्दू और शेरो-शायरी में भी बेहद दिलचस्पी थी। हिंदी सिनेमा में अभूतपूर्व योगदान के लिए टॉम को वर्ष 2008 में पद्मश्री से भी नवाजा गया था।

बतौर डायरेक्टर 90 के दशक में टॉम ने टीवी श्रृंखला यूल लव स्टोरीज़ के लिए एक एपिसोड भी डायरेक्ट किया था जो एक ही शॉट में पूरा शूट किया गया था।

29 सिंतबर 2017 को मात्र 67 वर्ष की उम्र में टॉम ऑल्टर का निधन हो गया। दरअसल टॉम ऑल्टर लंबे समय से स्किन कैंसर से जूझ रहे थे और वे इसकी लास्ट स्टेज पर थे। अपने निधन से कुछ महीने पहले, टॉम ने बतौर निर्देशक अपनी पहली फिल्म ‘रेरुन ऐट रियाल्टो’ की घोषणा भी की थी, जो उनके द्वारा लिखी गई एक किताब पर आधारित थी। उनके परिवार में उनकी पत्नी कैरल इवान और बेटा जैमी और बेटी अफशान हैं।

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Bob Chirsto

बॉब क्रेस्टो –

बॉलीवुड में अंग्रेजी किरदार निभाने वाले ऐक्टर की लिस्ट में अगला नाम आता है बॉब क्रिस्टो का, जो 80 और 90 के दशक की फिल्मों का एक जाने माने ऐक्टर हुआ करते थे। वर्ष 1938 में ऑस्ट्रेलिया के सिडनी शहर में जन्में बॉब क्रिस्टो का पूरा नाम रॉबर्ट जॉन क्रिस्टो था। हालांकि वर्ष 1943 में बॉब के पिता उन्हें अपने साथ जर्मनी लेकर चले गये जहाँ बॉब की दादी और बुआ रहा करती थीं। ये वही दौर था जब जर्मनी में वर्ल्ड वॉर चल रहा था।बॉब अपने तीन भाइयों में एक थे। जर्मनी में पढ़ाई के साथ ही बॉब थिएटर भी किया करते थे। बाद में बॉब ने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर एक सिविल इंजीनियर बन गये। दोस्तों जर्मनी के एक सिविल इंजीनियर का हिंदी फ़िल्मों में काम करना और फिर यहीं का होकर रह जाने की कहानी भी बड़ी ही दिलचस्प है, दरअसल एक मैगजीन में ऐक्ट्रेस परवीन बाबी की खूबसूरती पर फिदा होकर बॉब अपनी सिविल इंजीनियर की जॉब छोड़कर मुंबई चले आए थे। बॉब जब मुंबई पहुंचे तो उनकी मुलाकात मुंबई के चर्चगेट के पास एक फिल्म की यूनिट से हुई जिनसे बातों-बातों में पता चला कि कैमरामैन अगले ही दिन फिल्म ‘द बर्निंग ट्रेन’ के सेट पर परवीन बाबी से मिलने वाला है। इसके बाद बॉब ने कैमरामैन से पता ले लिया और अगले दिन परवीन से मिलने पहुंच गए। बॉब यहां अपने दोस्त कैमरामैन से बात ही कर रहे थे, कि तभी उन्हें किसी लड़की की आवाज सुनाई दी। मुड़कर देखा तो सामने परवीन थीं। बॉब भी एक्साइटमेंट में परवीन के करीब पहुंच गए लेकिन बग़ैर मेक-अप में परवीन को देखकर पूछ बैठे कि आप तो परवीन बाबी नहीं लगती हैं। इसके बाद उन्होंने मैग्जीन का कवर दिखाते हुए कहा कि ये लड़की परवीन है। इस पर परवीन जमकर हंसीं और बोलीं- मैं शूटिंग के अलावा मेकअप नहीं करती। इसके बाद परवीन और बॉब क्रिस्टो की दोस्ती हो गई। चूँकि बॉब थियेटर पर काम कर ही चुके थे तो ऐक्टर बनने का भी उनके दिल में एक ख़्वाब तो था ही ऐसे में उन्होंने अपना करियर हिंदी फिल्मों में ही बनाने का मन बना लिया।

बॉब ने हिंदी फिल्मों में ऐक्टिंग की शुरुआत वर्ष 1978 में आयी फ़िल्म ‘अरविंद देसाई की अजीब दास्तान’ से की और उसके बाद एक अंग्रेजी फ़िल्म में उन्होंने बॉडी डबल के रूप में काम मिला। इसी बीच उनकी एक और फ़िल्म आयी जिसका नाम था पहरेदार। बाद में बॉब क्रिस्टो को संजय ख़ान ने 1980 में आई फिल्म ‘अब्दुल्ला’ में काम करने का मौका दिया। इसी वर्ष रिलीज़ हुई फ़िरोज़ ख़ान की फ़िल्म कुर्बानी में भी बॉब नज़र आये थे। इन फ़िल्मों से बॉब को पहचान मिल गयी और फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। दोस्तों बॉब को लेकर उस वक़्त एक किस्सा बहुत मशहूर हुआ था। दरअसल एक बार संजय खान ने बॉब को अपने कुछ पैसे लेने स्विट्जरलैंड अकेले भेज दिया। ये बात जब डायरेक्टर विधु विनोद चोपड़ा को पता चली तो उन्होंने कहा- आपने एक विदेशी शख्स को इतनी बड़ी रकम लेने अकेले भेज दिया। अगर वो पैसे लेकर वहां से भाग गया तो क्या करोगे? इसके बाद बॉब जिस दिन वहां से लौटने वाले थे उसी दिन संजय खान ने उन्हें विधु वाली सारी बात बताई और कहा कि “तुम जान-बूझकर थोड़ा लेट आना, क्योंकि विधु ने मुझसे शर्त लगाई है कि बॉब वापस नहीं आएगा।” इसके बाद बॉब क्रिस्टो जब कुछ देर तक नहीं आए तो विधु को लगा कि वो शर्त जीत चुके हैं। लेकिन कुछ देर बाद बॉब किस्टो उनके सामने थे। 

बॉब ने अपने फिल्मी करियर में विदेशी स्मग्लर, डॉन, क्रूर अंग्रेज अफसर, भ्रष्ट पुलिस ऑफिसर, डकैत, गुंडा और सुपारी किलर जैसे हर तरह के नकारात्मक किरदार निभाये हैं। बॉब की फिल्मों की बात करें तो कालिया, नमक हलाल, बॉक्सर, मिस्टर इंडिया, गिरफ्तार, मर्द, कुर्बानी, आखिरी अदालत, कमांडो, कानून की आवाज, दोस्त, गुनाहों का देवता, सौगंध, फरिश्ते, गुमराह, रूप की रानी चोरों का राजा, हम तुमपे मरते हैं और कसम जैसी चर्चित फ़िल्मों सहित लगभग 200 फ़िल्मों में उन्होंने ऐक्टिंग की है जिनमें हिंदी के अलावा तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम फिल्मों के नाम भी शामिल हैं। बॉब क्रिस्टो ने कुछ टीवी शोज़ में भी किया था, पहली बार वे संजय खान के टीवी सीरियल ‘द ग्रेट मराठा’ में नज़र आये थे। इसमें उन्होंने अहमद शाह अब्दाली का रोल निभाया था।

20 मार्च, 2011 को 72 साल की उम्र में हार्ट अटैक से बेंगलुरू में बॉब क्रिस्टो का निधन हो गया। निजी जीवन की बात करें तो बॉब ने दो शादियाँ की थी।उनकी पहली पत्नी का नाम हेल्गा था जो कि एक थियेटर आर्टिस्ट थीं। हेल्गा के तीन बच्चे हुए 1 लड़का डॉरियस और 2 लड़कियां मॉनिक और निकोल। बाद में एक कार एक्सीडेंट में हेल्गा की मौत हो गई। कुछ वर्षों के बाद बॉब ने दूसरी शादी कर ली उनकी दूसरी पत्नी का नाम नरगिस है। दोनों के एक बेटे भी हैं जिनका नाम सुनील है।

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Prabhath Shanker

Bollywood Content Writer For Naarad TV

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