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‘नदिया के पार’ फिल्म वाला गॉंव और उसके कलाकार अब कैसे है ?

ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित सबसे सफल और ख़ूबसूरत फ़िल्मों की जब भी बात होती है तो जिस फ़िल्म का नाम सबसे पहले जेहन में आता है वो है 80 के दशक में बनी राजश्री प्रोडक्शंस की फ़िल्म नदिया के पार।

नये चेहरों को लेकर बेहद कम लागत में बनी उस दौर में तब तक की सबसे सफल इस फ़िल्म ने सफलता के कई रिकॉर्ड तोड़े तो कई नये रिकॉर्ड भी स्थापित किये। आइये जानते हैं इस कालजयी फ़िल्म से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातों के बारे में।

Film Nadiya Ke Paar NaaradTV
फ़िल्म: नदिया के पार 

फ़िल्म: नदिया के पार 

राजश्री प्रोडक्शंस के बैनर तले बनी फ़िल्म नदिया के पार का निर्माण किया था राजश्री प्रोडक्शंस की नींव रखने वाले ताराचंद बड़जात्या जी ने।

फ़िल्म डिस्ट्रीब्यूशन से स्वतंत्र प्रोडक्शन के क्षेत्र में क़दम रखने वाली राजश्री प्रोडक्शंस की सबसे सफल फ़िल्मों में से एक नदिया के पार को लिखा और निर्देशित किया था गोविंद मूनिस जी ने, जो 50 के दशक से ही फ़िल्मों के एक सक्रिय लेखक, गीतकार और सहायक निर्देशक थे।

Kesav Prasad Mishra NaaradTV
केशव प्रसाद मिश्र

केशव प्रसाद मिश्र की उपन्यास कोहबर की शर्त-

इस फ़िल्म की कहानी मशहूर लेखक और उपन्यासकार केशवप्रसाद मिश्र जी के उपन्यास ‘कोहबर की शर्त’ पर आधारित थी, जिसमे पूर्वी उत्तर प्रदेश के दो गाँवो के जन-जीवन और उसकी संस्कृति के साथ साथ उसकी संवेदना को भी बड़ी ही आत्मीयता के साथ चित्रित किया गया है। हालांकि केशव प्रसाद मिश्र द्वारा रचित उपन्यास कोहबर की शर्त कुल चार खंडों में प्रकाशित हुआ था लेकिन इस उपन्यास के शुरुआत के दो खंड की ही कहानी को फिल्मी रूप देकर फिल्म नदिया के पार में दर्शाया गया।

राजकमल प्रकाशन द्वारा वर्ष 1965 में प्रकाशित इस उपन्यास की कहानी का अंत इतना सुखद नहीं है जितना कि फिल्म नदिया के पार में दिखाया गया है।

फ़िल्म के अंत में जहाँ नायक चंदन और नायिका गुंजा का मिलन दिखाया गया है, वहीं मूल उपन्यास में ऐसा नहीं है उसमें गुंजा का विवाह चंदन के बड़े भाई ओमकार से ही होता है और गुँजा चंदन की भाभी के रूप में उसके घर आती है। समय गुज़रता है पहले काका की मृत्यु होती है और कुछ दिनों बाद गाँव में फैली महामारी से ओमकार की भी मृत्यु हो जाती है।

गुँजा के पिता यानि वैद्य जी गुँजा को अपने साथ लेकर चले जाते हैं लेकिन कुछ ही दिनों में गुँजा वापस लौट आती है और अपने पुराने प्रेम की याद दिला कर चंदन से विवाह का प्रस्ताव रखती है जिसे चंदन ठुकरा देता है।

चंदन द्वारा ठुकराये जाने पर पहले से टूटी गुँजा भीतर ही भीतर और टूटने लगती है और एक दिन उसकी भी मृत्यु हो जाती है। बेहद ही दर्दनाक अंत के साथ ख़त्म हुई इस कहानी में परिवर्तन के लिये बाकायदा ताराचंद जी ने लेखक केशव प्रसाद जी से इजाज़त माँगी थी। हालांकि इस उपन्यास पर फिल्म बनाने के लिये केशव जी ने ताराचंद जी को पहले यह कहकर मना कर दिया कि “किसी रचनाकार के लिये उसकी रचना उसके बच्चे की तरह होती है।

आप मेरी कहानी को अपने हिसाब से काट छाँट कर बनायेंगे, फिर उस कहानी की आत्मीयता को भी हर कोई बिना समझे फिल्म नहीं बना सकता।” ऐसे में ताराचंद जी ने उन्हें आश्वासन दिया कि बिना उनकी इजाज़त के कहानी में कोई बदलाव नहीं होगा।

दोस्तों हम यहाँ बता दें कि इलाहाबाद में बतौर ऑडिटर कार्यरत केशव जी ने नौकरी छोड़ फिल्मों का रुख पहले ही कर लिया था। उन्होंने अपने भाई प्रोड्यूसर ए के मिश्र के साथ मिलकर फ़िल्म रजिया सुल्तान बनायी थी। बहरहाल केशव प्रसाद जी और ताराचंद जी ने गोविंद मूनिस जी के साथ मिलकर उस कहानी में बदलाव कर एक सुखद अंत वाली कहानी का रूप दिया और गोविन्द मूनिस जी ने फिल्म की स्क्रिप्ट तैयार कर दी। 

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निर्देशक-गोविन्द मूनिस

निर्देशक-गोविन्द मूनिस

गोविन्द मूनिस जी ने इस कहानी को जिस ख़ूबसूरती से फ़िल्म की शक्ल दी है वह क़ाबिले तारीफ़ है। बतौर निर्देशक नदिया के पार गोविंद जी की सफलतम फ़िल्म ज़रूर है लेकिन इससे पहले उन्होंने भोजपुरी फिल्म मितवा का भी निर्देशन किया था।

गोविन्द मूनिस जी पर आधारित एक वीडियो नारद टीवी पर पहले भी आ चुका है अगर आपने न देखा हो तो ज़रूर देखें डिस्क्रिप्शन में उसका लिंक आपको मिल जायेगा।

1 जनवरी 1982 को रिलीज हुई फिल्म नदिया के पार के गाने भी बेहद सफल हुए थे। मिट्टी की ख़ुश्बू लिये इस फिल्म के सभी गीत आज भी दर्शकों के पसंदीदा हैं।

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संगीतकार रवींद्र जैन जी

इस फिल्म का संगीत दिया था जाने माने संगीतकार रवींद्र जैन जी ने और फिल्म के गीत भी उन्होंने ही लिखे थे। दोस्तों यह बहुत ही ताज्ज़ुब की बात है कि दिखायी न देने के बावज़ूद भी जिस शिद्दत के साथ रविन्द्र जैन जी ने इस फ़िल्म के गाने बनाये थे वे इस फिल्म की ख़ूबसूरती में चार चाँद लगा देते हैं, फिर चाहे वो फिल्म का होली गीत हो या शादी का गीत, या रोमांटिक गाने हों या फिर देवर भाभी के स्नेह व छेड़-छाड़ से जुड़ा गीत।

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अभिनेता-सचिन पिलगांवकर
अभिनेता-सचिन पिलगांवकर

 आइये एक नज़र डाल लेते हैं फिल्म से जुड़े मुख्य कलाकारों पर जिन्होंने अपने किरदारों को कुछ इस तरह जीवंत किया कि लोग उन्हें असल जीवन में भी उसी किरदार के नाम से याद करते हैं। इस फिल्म में सचिन पिलगांवकर जी ने नायक चंदन का किरदार निभाया था।

इस फिल्म को करने से पहले सचिन राजश्री प्रोडक्शन की ‘गीत गाता चल’ और ‘अंखियों के झरोखे से’ जैसी फिल्मों में काम कर चुके थे और जब चंदन के रोल की बात आयी तो एक बार फिर राजश्री प्रोडक्शंस के पसंदीदा ऐक्टर रह चुके सचिन को ही चुना गया।

सचिन ने अपने किरदार को जीवंत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और यह फिल्म राजश्री प्रोडक्शंस के साथ-साथ सचिन की भी यादगार फिल्मों में से एक बन गयी।

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अभिनेत्री साधना सिंह जी
अभिनेत्री साधना सिंह जी

बात करें इस फिल्म के सबसे चर्चित किरदार ‘नदिया के पार’ की नायिका गुंजा की तो इस किरदार को निभाया था अभिनेत्री साधना सिंह जी ने। इस किरदार में साधना इस कदर घुलमिल गयीं थीं हर किसी को यही लगता था कि साधना की पृष्ठभूमि गाँव से ही होगी।

दोस्तों आपको ताज्जुब होगा कि साधना एक पंजाबी शहरी परिवार से ताल्लुक रखती थीं और ग्रामीण परिवेश से उनका कोई नाता नहीं था। हालांकि उन्होंने कभी ऐक्ट्रेस बनने का सोचा तक नहीं था, उन्हें संगीत में रूचि थी और उसी क्षेत्र में कुछ करना चाहती थी।

दरअसल साधना की बहन राजश्री प्रोडक्शंस की फिल्म ‘पायल की झंकार’ में काम कर रही थी और उस फिल्म की शूटिंग देखने के दौरान ही बड़जात्या फैमिली और गोविन्द मूनिस जी की नज़र साधना पर पड़ गयी और इस तरह उन्हें ‘नदिया के पार’ फिल्म का ऑफर मिला और वे भी फिल्मों में आ गयीं।

इस फिल्म में साधना द्वारा निभाया गुँजा का किरदार ही आज भी साधना जी की पहचान है। इसी वज़ह से सोशल प्लेटफार्म पर भी उन्हें अपने ऑफिसियल पेज का नाम “साधना सिंह गुँजा” रखना पड़ा।

गुंजा और चंदन के अलावा फिल्म ‘नदिया के पार’ में एक और अहम किरदार था। वो किरदार था चंदन के बड़े भाई ओमकार का जिसे अभिनेता इंदर ठाकुर ने निभाया था।

दोस्तों कम लोगों को ही पता होगा कि इंदर ठाकुर अपने ज़माने के मशहूर विलेन हीरालाल जी के बेटे थे और असल जिंदगी में वो सीधे साधे ग्रामीण लुक के ओमकार से बिल्कुल उलट थे।

दरअसल इंदर ठाकुर एक फैशन डिज़ाइनर और मॉडल हुआ करते थे, साथ ही वे एयर इंडिया के अकाउंट्स डिपार्टमेंट में जॉब भी कर रहे थे। दोस्तों आपको यह जानकर बहुत दुःख होगा कि महज 35 साल की उम्र में ही एक आतंकवादी हमले में इंदर जी की उनके परिवार संग मौत हो गई थी।

23 जून 1985 की जिस वर्ष उन्होंने न्यूयॉर्क शहर में आयोजित वर्ल्ड मॉडलिंग एसोसिएशन सम्मेलन के दौरान 1985 के अंतर्राष्ट्रीय फैशन डिजाइनर का पुरस्कार जीता था। यात्रा के दौरान टोरंटो से लंदन के बीच उनका विमान आतंकवादी घटना का शिकार हो गया था। हवा के बीच कनिष्क विमान में हुए धमाके की वज़ह से विमान क्रैश हो गया था और उसमें सवार सभी 329 लोग मारे गए थे जिनमें इंदर, उनकी पत्नी प्रिया और उनका बच्चा भी शामिल था।

दोस्तों इंदर ठाकुर ने अपने करियर में सिर्फ दो फिल्मों में काम किया था। फिल्म नदिया के पार के बाद वे वर्ष 1985 में रिलीज़ हुई फिल्म तुलसी में नज़र आये थे और इस फिल्म में भी इंदर ठाकुर ने सचिन के भाई का रोल प्ले किया था और इस फिल्म में भी नायिका थीं साधना सिंह।

फिल्म में इन कलाकारों के अलावा चंदन के काका के रोल में राम मोहन, पड़ोस की काकी के रोल में लीला मिश्रा, वैद्य जी के रोल में विष्णू कुमार व्यास, चंदन की भाभी के रोल में मिताली और रज्जो के रोल में शीला डेविड जैसे ढेरों ऐक्टर्स ने अपनी शानदार ऐक्टिंग से फिल्म में जान डाल दी थी।

नदिया के पार फिल्म इतनी सफल हुई थी कि दर्शकों ने इसके किरदारों पर ही अपने बच्चों के नाम रखने शुरू कर दिये थे। बताया जाता है कि अभिनेत्री साधना सिंह के अभिनय से लोग इतने प्रभावित हो गये थे कि उस दौर के लोगों ने अपनी बेटियों के नाम गुंजा रखने शुरू कर दिए थे और ऐसा ही कुछ चंदन नाम के साथ भी हुआ था।

साधना सिंह के मुताबिक, गुंजा का किरदार लोगों को इतना पसंद आया था कि उस ज़माने में कई बार तो लोग उन्हें देखते ही उनके पैर छूने लगते थे। 

ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित इस फ़िल्म को अक्सर लोग एक भोजपुरी फ़िल्म समझ बैठते हैं जबकि यह फ़िल्म हिंदी-अवधी मिश्रित भाषा की ही है। फिल्म में लीला मिश्रा जी अपने चिर-परिचित बनारसी लहजे में भी बोलती नज़र आती हैं।

इस कहानी की पृष्ठभूमि पूर्वी उत्तर प्रदेश के ग्रमीण इलाक़े से जुड़ी होने के कारण गोविन्द जी ने भी पटकथा और संवाद को लिखने में मिट्टी की उस ख़ुश्बू को कहीं से फीका नहीं पड़ने दिया। उन्होंने इस फिल्म का निर्देशन भी उत्तर प्रदेश के गाँव में जा के ही किया ताकि कहानी के साथ पूरा न्याय हो सके। नदिया के पार फिल्म की 90% शूटिंग जौनपुर के केराकत नगर पंचायत के विजयपुर और राजेपुर नामक गांवों में हुई।

दोस्तों जब फिल्म ‘नदिया के पार’ की शूटिंग जौनपुर के गांव में हुई थी, तब वहाँ ख़ास सुविधाएं तो दूर ज़रूरी सुविधाएं भी नहीं थीं। गांव में बिजली नहीं रहती थी और रात सभी को लालटेन के उजाले में ही बितानी पड़ती थी।

सारी महिला कलाकारों को खाट पर ही सोना होता था और यही नहीं शुरुआती दिनों में तो वहां टॉयलेट तक भी नहीं था ऐसे में सभी को ग्रामीणों की तरह ही जीवन जीना पड़ता था। मगर शायद फिल्म की सफलता में वे असुविधाएं भी मददगार बन गईं और सारे कलाकारों के अंदर ठेठ ग्रामीण अंदाज़ समा पाया, जिसे वे पर्दे पर बखूबी प्रस्तुत कर सके।

दोस्तों आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि दो गाँवों की इस कहानी को एक ही गाँव के दो अलग-अलग मोहल्लों मे शूट किया गया था और गाँव के ही रास्तों और नदी के दृश्यों को बड़ी ही ख़ूबसूरती से फिल्म में जोड़ दिया गया था जिससे ऐसा लगता था जैसे एक गाँव नदी के इस पार है तो दूसरा नदी के उस पार।

हम अपने नये दर्शकों को बता दें कि फिल्म के शूटिंग लोकेशन्स पर नारद टीवी पर कई वीडियो पहले भी आ चुके हैं जिनमें उन जगहों की पूरी जानकारी के साथ-साथ स्थानीय लोगों से बातचीत और उनके अनुभवों को भी बताया गया है।

फिल्म नदिया के पार की सफलता का अंदाज़ा आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि इसको तेलुगु में प्रेमलयम नाम से डब भी किया गया और वर्ष 1994 में राजश्री प्रोडक्शन्स ने ख़ुद अपनी इसी कहानी पर हम आपके हैं कौन के नाम से  दोबारा एक फिल्म बनायी। दर्शकों ने फिल्म के इस नवीन संस्करण को भी हाथों हाथ लिया यह फिल्म भी सुपरहिट रही।

दोस्तों कम लोगों  को ही पता होगा कि ‘हम आपके हैं कौन’ टाइटल का जन्म भी फिल्म ‘नदिया के पार’ में बोले गये एक संवाद से ही हुआ है।

फिल्म के एक दृश्य में चंदन द्वारा गुंजा से पुछा गया सवाल ‘हम तुम्हारे हैं कौन?’ हर किसी को इतना पसंद आया था कि जब राजश्री वालों ने इस कहानी पे दोबारा फिल्म बनायी तो इसी संवाद को फिल्म का टाइटल बना दिया।

फिल्म की कामयाबी-

कम बजट में बनी इस फिल्म ने कई सिनेमाघरों में लगातार 100 हफ्ते चलकर कामयाबी के कई रिकॉर्ड बना दिए। वैसे फिल्म का बजट कितना था इसकी तो ठीक से जानकारी नहीं है परंतु बताया जाता है कि लगभग 1 करोड़ के लागत की इस फिल्म ने उस जमाने में लगभग 5.5 करोड़ रुपए की कमाई की थी जो आज के परिवेश में कई सौ करोड़ के बराबर है।

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