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अनुराधा पौडवाल: बॉलीवुड की दूसरी लता कही जाने वाली गायिका

यूँ तो बॉलीवुड में हमेशा से ही,  एक से बढ़कर एक मशहूर  गायको नें अपने  सदाबहार गानो से लोगों को रोमांच  किया है | लेकिन 70-80 का  वो दौर भारतीय गायन के लिए स्वर्ण युग से कम नहीं था ;जहाँ   शहंशाह ए तरन्नुम “मोहम्मद रफ़ी साहब” और किशोर कुमार जैसे गायको नें दिल की आवाज को अपने गानों में उतारा |

वहीं  स्वर कोकिला लता मंगेशकर और आशा भोसले जैसी  गायिकाओं ने भी लोगों नें  दिलो में अमिट छाप छोड़ दी | लेकिन गायिकाओं के इसी भीड़ में एक नाम ऎसा भी  रहा, जिन्होंनें ना सिर्फ अपनी प्रतिभा से गायन क्षेत्र में  विशेष जगह बनायीं बल्कि अपने सुरीली आवाज के दम पर आज भी संगीत प्रेमियों के दिलो में शुमार  हैँ|

इन्होने बॉलीवुड में जहाँ अपने सुरीले गानो से लोगों को आकर्षित किया वहीं इनके  भक्ति गानो के आज भी  सभी श्रोता कायल हैँ |जी हाँ हम बात कर रहे हैँ अनुराधा पौडवाल जी के बारे में, जिन्होंने 70 के दशक से  2006, एक लम्बे समय तक  play back singing  में अपना लोहा मनवाया  और इनकी सुरीली आवाज और मधुर  गाने आज भी हमारे दिलो छाये हुए हैँ

और ये सिलसिला आगे भी जारी रहेगा एक ही दौर  से होने  के  कारण समय-समय पर लोगों द्वारा  इनकी तुलना लता मंगेशकर से की जाती रही है| और कई मौका पर तो इन्हे लता मंगेशकर के विकल्प के रूप  में भी देखा गया |लेकिन इनकी विलक्षण प्रतिभा और सुरीली आवाज,  किसी उपमा की  मोहताज नहीं है,और ये खुद भी लता जी  प्रशंसक रही हैँ |

Anuradha Paudwal Studio

और हमेशा उन्हें ही  अपना मार्गदर्शक बताया  | इनकी उपलब्धि और गायन के प्रति निष्ठा,  इनको  हमेशा से  ही अपनी अलग पहचान दिलाती है पद्म श्री से सम्मानित  इस महगायिका का जन्म 27 अक्टूबर, 1954 में कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले में स्थित करवार गाँव के एक संपन्न कोंकणी परिवार में हुआ था,

लेकिन जन्म के कुछ समय बाद ही इन्हें मुंबई आना पड़ा जिससे इनका पालन पोषण मुंबई में ही हुआ,  मुंबई आना,  आगे चलकर  इनके फ़िल्मी करियर के लिए भी अच्छा साबित हुआ | क्योकि फ़िल्मी सपनो का ख्वाब देखने वालो को अपने सपनो के  लिए इस शहर का रुख करना ही पड़ता हैँ |


बचपन से ही ये पढ़ाई में  अच्छी थीं  इसी कारण ये डॉक्टर बनना चाहती थीं लेकिन किसी कारणवश इनका रुझान संगीत में हो गया  इन्होंने अपने साक्षात्कार में ये बताया कि संगीत के प्रति उनका लगाव तभी शुरू हो गया था जब उन्होंने चौथी कक्षा में लता जी को लाइव सुना और सयोंग से सारी ज़िंदगी उनका नाम प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से लता जी  के साथ जुड़ा रहा|

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अनुराधा जी जिस परिवार और समाज से आती थीं वहाँ फ़िल्म जगत को लेकर अच्छा नजरिया नहीं रखा  जाता था और उनके पिता का भी मानना था कि प्रतिष्ठित परिवार  की लड़कियों को  फ़िल्मों जैसी शो बिजनेस  में काम नहीं  करना चाहिए | अनुराधा जी के  बचपन के बारे में ये भी बताया जाता हैँ कि शुरुआत में उनकी आवाज साधारण थीं |

और  एक बार वो निमोनिया बीमारी से ग्रसित हो गई जिससे  वो 40 दिन तक बिस्तर पर ही रही |उसके बाद उनके आवाज में जो परिवर्तन आया वो वाकई चौकानें वाला था | 

Anuradha Paudwal

इन  40 दिनों में अनुराधा जी नें जो सिर्फ एक आवाज सुना वो थीं  लता जी की, क्योंकि उनकी बीमारी के दौरान  उनके चाचा नें उन्हें लता जी के आवाज में भागवत गीता की  रिकॉर्डिंग भेंट की |हमने आपको इससे पहले भी बताया कि अनुराधा जी का पूरा जीवन लता मंगेशकर से जुड़ा रहा ये आपको  आगे भी देखने को मिलेगा |


अनुराधा  ने भी हमेशा से,  ना  सिर्फ  अपनी सफलताओं का  श्रेय लता जी को  दिया है बल्कि उन्हें अपना  प्रेरणा स्त्रोत के रूप में भी स्वीकार किया | कुछ वर्ष बाद, अनुराधा जी अपने  किशोरावस्था में  अरुण पौडवाल के संपंर्क में आयी, जिनसे जल्द ही इनका प्रेम सम्बन्ध हो गया |लेकिन इनके पिता शुरुआत में अरुण पौडवाल से शादी के लिए मना कर दिया था |

फिर जब वो अरुण पौडवाल से मिले तो उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर शादी के लिए मान गये|  |  1951 में 17 वर्ष की अलका नादकर्णी, 27 वर्ष के वरुण पौडवाल के साथ विवाह बंधन में बंध गई | अनुराधा पौडवाल के बचपन का नाम अलका नादकर्णी ही था जो शादी के बाद अनुराधा पौडवाल हो गया, और ये  स्वाभाविक भी हैँ


जैसा की हमने अपने दर्शकों को कई बार बताया की अनुराधा जी का पूरा जीवन लता जी के साथ जुड़ा रहा, यहीं संयोग एक बार फिर देखने को मिला| इस घटना का जिक्र करने से पहले हम अपने दर्शकों को ये बता दे कि  इनके पति अरुण पौडवाल शुरूआत से ही फिल्मों से जुड़े  थे |वो उस समय तक  मशहूर म्यूजिक डायरेक्टर एसडी बर्मन के साथ काम चुके थे |  

एक बार इनके पति अरुण लता जी की रिकॉर्डिंग सुनाने उनके लाइव रिकॉर्डिंग शो में ले गये, अनुराधा जी का उनके गानो के प्रति दीवानगी पहले से ही थीं जो इस शो को देखने का बाद उभर आया और उन्होंने यहीं गीत मराठी कार्यक्रम “युवा वाणी ” में गाया | दर्शकों को  ये गीत बहुत पसंद आया और ये पहला मौका था जब लोगों का अनुराधा जी की तुलना स्वर कोकिला लता मंगेशकर से किया गया |

Anuradha Paudwal getting National Award

ऎसा होता हैँ कि कई बार ऎसा भी होता हैँ जब आप  चीजों को नहीं चुनते, परिस्थितियाँ ही आपको उन काम के लिए चुन लेती हैँ | इनकी जिंदगी में भी कुछ इससे अलग नहीं हुआ |इस गाने के बाद लोग इनके बारे में  जानना और  इन्हें सुनना चाहते थे | उस समय लक्ष्मीकांत -प्यारेलाल और हृदयनाथ मंगेशकर जैसे संगीत जगत के हस्तियों नें अनुराधा पौडवाल को बॉलीवुड में  पर्दापर्ण  की पेशकश की |

लेकिन उस समय उन्होंने ये प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया | जैसा कि हमने आपको बताया की अरुण पौडवाल डीएस बर्मन के साथ काम कर चुके थे जिसके कारण इनका उनसे अच्छा सम्बन्ध था इसी कड़ी में 1973 में अमिताभ बच्चन और जाया भादुड़ी की  फ़िल्म “अभियान ” में एक गीत गया, जिसका संगीत निर्देशन दादा बर्मन ने ही किया,

यहाँ हम दर्शकों को एक बात बता दे की जया भादुड़ी ही अब अमिताभ बच्चन की पत्नी जया बच्चन हैँ |iइस फ़िल्म में अनुराधा जी के मधुर आवाज को पसंद किया गया लेकिन ये शिव स्तुति गीत होने के कारण बहुत अधिक चर्चा में नहीं रही  |इसके बाद इन्होंने 1976 में ” सुभाष घई” की फ़िल्म कालीचरण में एक श्लोक गीत गया, जिससे इन्हें अच्छी खासी प्रसिद्धि मिली |

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उस समय तक इनके संगीत की  चमक भले ही ज्यादा लोगों तक नहीं पहुँच पायी थी लेकिन एक हीरे की पहचान जौहरी को भलीभांति होती हैँ, इसके बाद इनको  उस समय के मशहूर लक्ष्मीकांत रामप्यारे, कल्याण और आनंद सहित कई नामचीन हस्तियों के साथ काम करने का मौका मिला |इसके बाद इनके हिट गानो का सिलसिला शुरू हुआ |

इसके बारे में  अनुराधा जी ने भी कहा है कि जब उनका सफर शुरू हुआ तो उन्हें कभी सोचने तक का वक्त नहीं मिला| 1880 के दशक में इन्होनें ना  सिर्फ नदीम -श्रवण के साथ 23 गाने रिकॉर्ड किया | बल्कि  महेश भट्ट द्वारा निर्देशित 3 फिल्मों “आशिकी ” “दिल हैँ कि मानता नहीं ”  और  “सड़क ” के गानो को अपनी आवाज दी | इन गानो के बदौलत ही  अनुराधा जी ने अपने  करियर की ऊँचाईयों को छुआ

Anuradha Paudwal

वर्ष 1883, ये अनुराधा जी के जीवन का सबसे दुखद  समय में से एक रहा जब इनकी बेटी नें हमेशा के लिए उनका साथ छोड़ दिया | बेटी की मृत्यु के बाद इनके पति अरुण पौडवाल भी काफ़ी बीमार हो गये, जिसके बाद अनुराधा जी तनावग्रस्त रहने लगी थी  | अनुराधा जी को अपना पहला पुरस्कार  1987 में फ़िल्म उत्सव क़े गीत “मेरा मन बजे मृदंग ” के लिए उनका मिला

हालांकि उन्होंने इसके लिए  हैरान होने की बात कहीं  क्योंकि वों,  फ़िल्म “हीरो  ” के गीत “तू मेरा जानू ” के लिए पुरस्कार की  उम्मीद कर रही थी| हमें पता होना चाहिए कि एक जज का  नजरिया  कलाकार से अलग ही होता हैँ | 1990 का दौर शुरू होते ही इन्होंने अपनी ज़िंदगी का सबसे दुःखद अनुभव किया | जब इन्होंने अपने पति को भी खो दिया |

अनुराधा जी का उस समय खुद को संभाल पाना मुश्किल था इसलिए वो काफ़ी समय  गायन क्षेत्र से दूर रही | जो उस वक़्त  अल्का यागिनी जैसी आवाजों के लिए सुनहरा अवसर साबित हुआ  | हालांकि इन्होंने इसी दशक में माधुरी दीक्षित जैसी अभिनेत्री को अपने गानों के माध्यम से आवाज दिया था  |

इसके  बाद इन्होंने सिर्फ टी – सीरीज के लिए गाने का फैसला किया | इसलिए  टी -सीरीज के सफलता का श्रेय अनुराधा पौडवाल जी को भी दिया जाता हैँ | उनका टी -सीरीज के प्रति समर्पण देखकर ही इनको टी -सीरीज क्वीन कहा जाने लगा |

Auradha Paudwal

टी -सीरीज के संस्थापक गुलशन कुमार के करीबियों के कारण इनके प्रेम -सम्बन्ध की भी अफवाहें सामने आई, लेकिन इन सब अफवाहों का कोई आधार नहीं रहा | हम यहाँ उनकी निजी ज़िंदगी की बात कर रहे है तो आपको बता दे कि इनका एक बेटा आदित्य पौडवाल और बेटी कविता पौडवाल हैं, जहाँ आदित्य पौडवाल सबसे उम्र में गायक बने वही इनकी बेटी भी एक प्ले बैक सिंगर हैँ  |

और अपने पिता के मौत के बाद इन्होने भी जिम्मेदारियां सँभालने में अपनी माँ का साथ दिया | वर्ष 1997 में इनके मित्र गुलशन कुमार की हत्या कर दिया गया जिससे अनुराधा जी को काफ़ी दुख हुआ | इसके बाद ये लगातार गायन क्षेत्र से लगातार दूरी बनाना शुरू कर दिया और 2006 में फ़िल्म “जाने क्या होगा ” से अपने हुनर  को पूर्ण विराम दे दिया |

इनके संघर्षशील और सफल  जीवन का एक तथ्य चौंकाने वाला भी  रहा है |जहाँ दूसरे लोग अपने करियर के ऊंचाई पर पहुँच कर इसका आनंद लेते हैँ वहीं  अनुराधा पौडवाल ने  वहां से सन्यास ले लिया| बाद में इसका कारण पूछने पर अनुराधा जी ने बताया कि वो अपने करियर के धीमे दौर में इसे समाप्त नहीं करना चाहती थी इसलिए शिखर पर पहुँच कर ही इसका  अंत कर दिया

जिससे लोगों के याद में हमेशा जीवित रहें, जो आज सही भी साबित हो रहा हैँ | अनुराधा जी की बायोग्राफी आप तक पहुँचाने का उद्देश्य, ऐसी धनी प्रतिभा से नारद टीवी के दर्शकों को अवगत करवाना जिन्होने बिना किसी शास्त्री संगीत प्रशिक्षण के गायन के क्षेत्र में आदर्श स्थापित किया |जिसके  लिए इन्हें 2007 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया |

इसके अतिरिक्त इनको  4 बार  फ़िल्म फेयर पुरस्कार और 1 बार राष्ट्रीय फ़िल्म फेयर पुरस्कार मिला | फिलहाल आजकल कैमरे से दूर परिवार के साथ खुश हैं | लेकिन उनके गानों की दीवानगी  आज भी उनके श्रोताओं  में देखा जा सकता है

Anuradha Paudwal Young
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