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“सरकाई लियो खटिया” गाने वाली गायिका पूर्णिमा (Sushma Shrestha) की कहानी

Singer Poornima Biography In Hindi पूर्णिमा जीवनी | Sushma Shrestha Biography in Hindi

शिखर पर पहुँचना निश्चय ही सबसे सुखद अनुभव होता है जो किसी भी शख्स को भीड़ से अलग बनाता है .लेकिन किसी भी क्षेत्र की शीर्षता मात्र ही सफलता का प्रमाण नहीं होती | बल्कि आपकी विलक्षण प्रतिभा,सार्थक प्रयास और असाधारण योगदान भी आपको एक विशेष पहचान दिलाने का काम करता है |


जिसके लिए आप अग्रिम पंक्तियो में भले ही ना गिने जाते हो लेकिन उस कला के प्रशसंकों की यादों में आप हमेशा जीवित रहते हैं | ऐसी ही कुछ भूमिका आज पुराने सदाबहार गानों और उन्हें आवाज देने वाले मशहूर गायको की हैं.


बात 60 और 70 के दशक की हो या 80 और 90 के दशक की, भले ही ये दौर आज बीता ज़माना लगता हो लेकिन आज भी इनके गीतों की दीवानगी कुछ इस कदर है कि इनके चाहने वालों को दूसरा कोई विकल्प रास नहीं आता .
इन गीतों की मधुरता आज भी दिल के साथ रूह को भी छू लिया करती है |


एक सच्चा कला प्रेमी जितना प्यार कला से करता है उतना ही कलाकारों से भी, जिसमे मोहम्मद रफी- किशोर कुमार, लता मंगेशकर आशा भोंसले जैसी हस्तियां शामिल हैं तो उनके उत्तराधिकारी के तौर पर उदित नारायण कुमार सानू ,अल्का याग्निक श्रेया घोषाल सहित अनेकों नाम हमारे ज़हन में हैं.


जिनकी मैजूदगी भारतीय संगीत के लिए गौरवपूर्ण रही है. इसके अलावा इतने विस्तृत बॉलीवुड में गायकी की दारोमदार संभालने में लक्की अली ,जसपिंदर नरूला,कविता सेठ जैसे कई अंडररेटेड सिंगरों का एक विशेष योगदान रहा है .जिसमे शुमार एक नाम प्लेबैक सिंगर पूर्णिमा का भी है |

जिनके सदाबहार नगमों को आज हम सुनते तो हैं लेकिन उनके नाम की चमक वर्तमान में कहीं न कहीं फीकी पड़ रही है .
तो सिंगर स्पेशल के आज के इस एपिसोड में हम जानेंगे गायिका पूर्णिमा के संगीतमयी सफर के कुछ रोचक किस्सों के बारे में।

Sushma Shrestha Childhood

पूर्णिमा का पूरा जीवन और करियर उनके नाम के साथ ही बंटा हुआ है जिसमे पहला हिस्सा है सुषमा श्रेष्ठ का बतौर बाल गायिका शुरुआती जीवन.
और दूसरा हिस्सा है पूर्णिमा का बॉलीवुड के पार्श्व गायन का सफर . आपको बताते चलें कि इनके बचपन का नाम सुषमा श्रेष्ठ था जिन्हें आगे चलकर पूर्णिमा के नाम में पहचान मिली.


सुषमा श्रेष्ठ का जन्म 6 सितंबर 1960 को मुंबई के एक नेपाली मूल के नेवार परिवार में हुआ था|
इनके माता पिता संगीत जगत से जुड़े हुए थे|
पिता भोलानाथ श्रेष्ठ एक कुशल संगीतकार और अच्छे तबला वादक थे जिन्होंने 50 और 60 के दशक के दौरान कई मशहूर संगीत निर्देशकों के साथ काम किया था। और इनकी माता निर्मला श्रेष्ठ आशा भोंसले जी की सहेली थीं.


पूर्णिमा अपने साक्षात्कार में ये बात स्वीकार कर चुकी है उनकी संगीत में रूचि की वजह उनका पारिवारिक माहौल ही था।
वो बताती है कि उनकी माता गर्भावस्था के दौरान अक्सर आशा भोंसले जी से गाने सुना करती थी और साथ ही उनके जैसी ही अपने संतान की प्रार्थना करती थी| शायद तभी प्रसंशको को इनकी मधुर आवाज की आशा जी समानता दिखती है|

पूर्णिमा खुद भी अपने आप को आशा भोंसले के समान तो नहीं लेकिन उनसे बेहद प्रभावित मानती है|
संगीतमय माहौल से घिरे होने के कारण सुषमा की 5 साल की उम्र में ही संगीत के प्रति विशेष रुचि जाग गईं थी|
जिसका परिचय देते हुए उन्होंने महज 9 की आयु में ही बतौर बाल गायिका फिल्मो में संगीत यात्रा शुरू कर दी|

इन्होंने 1971 में आयी फ़िल्म ” अंदाज ” में ” है ना बोलो बोलो” गाना गाया|
पूर्णिमा अपने आप को खुशनसीब मानती है कि उन्हें पहला ही मौका शंकर जयकिशन जैसे नामी संगीतकार के सानिध्य में मिला |
दरअसल पूर्णिमा को ये मौका मिलना भी काफी रोचक भरा है….

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संगीतकार शंकर हमेशा से ही अपने संगीत में कुछ नया प्रयोग के लिए जाने जाते थे, उस वक्त भी उनके मन में ये ख्याल आया कि क्यों ना बच्चों के गीत किसी बच्चे से ही गवाया जाय| बस फिर क्या था एक बाल गायक की तलाश शुरू हो गई| लेकिन उस वक्त चाइल्ड सिंगिंग जैसा कोई प्रोफेशन प्रचलित नहीं था, जिससे उन्होंने सभी परिचित लोगो को कह दिया कि जो भी बच्चा अच्छा गाता हो

उसे स्टूडियो लाकर ये गाना गवाया जाए| जिस पर चंद्र कांत जी ने सुषमा श्रेष्ठ का नाम सुझाया और ये भी बताया कि वी भोला श्रेष्ठ की बेटी हैं, जिसके बाद शंकर ने उन्हें इस गाने के लिए सुषमा को चयनित किया|
ये गाना अपने आप मे एक बड़ा हिट था जिसे सुषमा ने मुहम्मद रफी साहब सुमन कल्याणपुर जैसे नामी गायकों के साथ मिलकर अपनी आवाज़ दी थी .

Sushma Shrestha

 

अपने बचपन के इन कुछ वर्षों में सुषमा अपने मामा और मौसी के साथ गणेश चतुर्थी जैसे खास मौकों पर गली मोहल्लों के पंडालों में गाया करती थीं . जिसने उनके गायन कला को निखारने में कारगर भूमिका निभाई|
इसके बाद इन्होने अपने पिता से पारंपरिक संगीत प्रशिक्षण लेना शुरू किया|


लेकिन कहते है ना आप कोशिश वो करते हैं जो आपको करना होता है लेकिन आखिर होता वही है जो नियति ने लिखा होता है| इनके प्रशिक्षण शुरू होने के 6 महीने के भीतर ही 11 अप्रैल 1971 को, इनके पिता की हार्ट अटैक मृत्यु हो गयी | लेकिन इन्होंने इन विषम परिस्थितियों में टूटने के बजाय खुद को मजबूत किया और अगले ही दिन यानी 12 अप्रैल 1971 को वह एक शो के लिए पंजाब एशोसिएशन के मंच पर गई

जो उनके पिता का सपना था। उनके पिता के निधन के समाचार से वहाँ सभी वाकिफ थे| आलम ये था कि 10 साल की सुषमा के मंच पर चढ़ते ही सबकी आंखे नम हो गई, जो वास्तव में पूर्णिमा के जीवन का सबसे भावुक कर देने वाला पल था.

पूर्णिमा ने अपनी इस प्रस्तुति में कुल चार गाने गाए थे, जिसमें से उनके एक मराठी गाने ने सबको आश्चर्य में डाल दिया .
इस शो में बॉलीवुड अभिनेता दारा सिंह, प्राण , कपूर परिवार सहित हिंदी फिल्म उद्योग और संगीत जगत के अनेकों दिग्गजों की उपस्थिति थी जिन्हें सुषमा के गायन प्रतिभा ने काफी प्रभावित किया ,और उन्हें ढाई सौ की स्कोलरशिप भी दी गयी.


उसके बाद धीरे -धीरे सुषमा एक प्रसिद्ध बाल गायिका के रूप में जानी जाने लगी, उन्होंने संगीत जगत के मशहूर जोड़ी कल्याणजी आनंदजी के साथ भी काम किया, जिन्हें 70 के दशक में सुषमा को एक सफल बाल गायिका बनाने का श्रेय जाता है। इसके बाद आरडी बर्मन ने भी सुषमा के लिए कई हिट गीतों की रचना की ।

आरडी बर्मन ने सुषमा के लिए फिल्म आ गले लग जा के ” तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई ” और फिल्म हम किसी से कम नहीं के “क्या हुआ तेरा वादा” जैसे के गीतों की रचना की|

Sushma Shrestha


गायन से लंबे समय से दूर रहने के बाद 1992 में आयी फ़िल्म बोल राधा बोल से उन्होंने अपने समय की सबसे बड़ी हिट ” तू तू तू तू तू तारा ” से बॉलीवुड में फिर से दमदार वापसी की । जिसका श्रेय पूर्णिमा संगीत निर्देशक जोड़ी आनंद- मिलिंद को देती है। उन्होंने आनंद-मिलिंद के साथ 20 से अधिक गाने गाए |


दरअसल यह प्रस्ताव भी पूर्णिमा (sarkai lo khatiya jada lage singer name) को उनके द्वारा दिया गया था| इसके अलावा भी उन्होंने उस समय के कई जाने-माने संगीत निर्देशकों के साथ काम किया, जिसमें अनु मलिक, जतिन-ललित, राम लक्ष्मण, नदीम-श्रवण, विजू शाह, आनंद राज आनंद, निखिल-विनय, आदेश श्रीवास्तव और प्रीतम जैसे नाम शामिल हैं।


पूर्णिमा ने डेविड धवन की फिल्मों की श्रृंखला 1995 की कुली नं॰ 1 , 1997 में आयी जुड़वा , हीरो नं॰ 1 और 1999 में आयी बीवी नं॰ 1 में कई लोकप्रिय गानों को अपनी आवाज दी.

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वैसे तो पूर्णिमा के दर्जनों गाने सदाबहार गानों के लिस्ट में आते हैं लेकिन इनके सबसे प्रसिद्ध गानों में सरकाई लियो खटिया , जोरा जोरी चने के खेत में, ऊंची हैं बिल्डिंग, सोना कितना सोना है जैसे गाने आते हैं|


उन्होंने जूही चावला, माधुरी दीक्षित, मनीषा कोईराला, सुष्मिता सेन, शिल्पा शिरोडकर, करिश्मा कपूर, रवीना टंडन, काजोल, रानी मुखर्जी, मधु, तब्बू और श्रीदेवी जैसी कई अभिनेत्रियों को अपनी आवाज़ दी । कहा जाता है कि पूर्णिमा के गाने फिल्मों को हिट करवाने में भी कारगर साबित होते थे|


पूर्णिमा के आवाज का ये जादू बॉलीवुड तक ही सीमित नहीं है, उन्होंने हिंदी के अलावा लगभग सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं जैसे तमिल, तेलुगु, मराठी, उड़िया, असमी, छत्तीसगढ़ी, गुजराती, बंगाली, पंजाबी, हरियाणवी, अरबी और नेपाली गीतों में अपनी आवाज़ दी है।


इस तरह बाल गायिका सुषमा श्रेष्ठ और पार्श्व गायिका पूर्णिमा दोनों का बॉलीवुड में एक सफल कॅरियर रहा है

Sushma Shrestha


पूर्णिमा को 1971 और 1978 में फिल्मफेयर बेस्ट फीमेल प्लेबैक सिंगर के लिए दो बार नामांकित किया गया था, जिससे वह अब भी 11 वर्ष की उम्र में सबसे कम उम्र की नॉमिनी के रूप में रिकॉर्ड रखती हैं। 2017 में उन्हें भारत के उपराष्ट्रपति के हाथों मोहम्मद रफी पुरस्कार दिया गया था ।


इसके अलावा वह सिंगिंग रियलिटी शो” भारत के शान: सिंगिंग स्टार” के तीसरे सीज़न में जजों में से एक थीं जिसे प्राइमटाइम में दूरदर्शन पर प्रसारित किया गया था।


पूर्णिमा भले ही कभी बॉलीवुड के शीर्ष गायिकाओं में अपनी जगह ना बना पायी हो लेकिन आज भी वह भारत के विभिन्न हिस्सों में स्टेज शो में सबसे अधिक व्यस्त गायिकाओं में से एक है|

और उनके श्रोताओं में भी उनके गानों और सुरीली आवाज का वही खुमार आज भी बरकरार है….

 
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Vikas Chauhan

Bollywood And Sports Content Writer On Naarad TV

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