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How Chandrayaan-3 Will Help Indian Economy?

आखिरकार (finally) हम चाँद पर पहुँच गये | हमारे वैज्ञानिकों (scientists) ने वो कर दिखाया जो आज तक कोई नहीं कर पाया | भले ही हम चन्द्रमा पर पहुँचने वाले चौथे देश हों लेकिन चन्द्रमा के दक्षिणी (southern) ध्रुव (pole) पर पहुँचने वाले सबसे पहले देश हैं | आप ये जरूर (Sure) सोच रहे होंगे कि आखिर ऐसी क्या वजह है कि हमसे पहले चन्द्रमा (Moon) पर पहुँचने वाले तीनों देश (Country) सोवियत (soviet) रूस, अमेरिका(America) और चीन दक्षिणी ध्रुव पर क्यों नहीं गये | सवाल (Question)जायज है लेकिन इसका जवाब हमारे वैज्ञानिकों की अद्वितीय (quique) प्रतिभा (talent) पर मुहर लगाता है | असल (Real) में चन्द्रमा का दक्षिणी ध्रुव वो जगह है जहाँ उतरना सबसे ज्यादा (More) मुश्किल (difficult) है | और भारत ने पिछली बार चन्द्रयान 2 से मिली असफलता (Failure)के बावजूद (Despite) जोखिम लेने का साहस किया | और जीत उसी की हुआ करती है जिनमें जोख़िम (Risk) लेने का माद्दा (Materiality) होता है | पूरी दुनिया (World) यूँ ही हमारे वैज्ञानिकों को सलाम थोड़े ही ठोंक रही है | पूरी दुनिया हैरान है | हमने अन्तरिक्ष (space) की दुनिया में बहुत लम्बी (Long) छलांग (Jump) लगा दी है | लेकिन इस अभियान (Chapmign) ने एक बार फिर से उस ज्वलंत मुद्दे (Issues) को हवा दे दी है जो गाहे बगाहे उठता रहता है | सवाल इन अभियानों से आम आदमी को मिलने वाले फायदे का | सवाल इन अभियानों से मूलभूत सुविधाओं में आने वाले अंतर का | आज के इस विडियो में हम इसी मुद्दे को टटोलने, जानने और समझने की कोशिश करेंगे | तो बने रहिये हमारे साथ इस पोस्ट में शुरू से अंत तक |

Chandrayan 3

सबसे पहले तो हम बात करते हैं इन अभियानों (Campaigns) के बजट की | चन्द्रयान 3 का बजट अच्छे अच्छों को दांतों (Teeth) तले उँगलियाँ (Fingers)दबाने को मजबूर (compelled) कर रहा है | इसका बजट था महज 615 करोड़ | हैरानी (shock) की बात ये है कि इसका बजट चन्द्रयान 2 से कहीं कम है | चन्द्रयान 2 पर लगभग 980 करोड़ का खर्च (Expenditure) आया था | वहीं मिशन मून के तहत पहले चन्द्रयान (Chandrayaan) 1 का बजट 380 करोड़ था | दुनिया के बाकी मून मिशन से तुलना भी जरूरी है | रूस के हालिया लूना 25 का बजट 1600 करोड़ था जोकि भारत के चन्द्रयान 3 से ढाई गुने से भी कहीं ज्यादा था | यहाँ भी हम दूसरों के मुकाबले (competition) बहुत ज्यादा किफायती (affordable) हैं | अब जरा इसकी तुलना हम फिल्मों से कर लें | हाल ही में आई बॉलीवुड (Bollywood) फिल्म आदिपुरुष का बजट था लगभग 700 करोड़ | वहीं हॉलीवुड फिल्म ओपनहाइमर (oppenheimer) का बजट लगभग 1500 करोड़ था | दिलचस्प (interesting) बात ये है कि भारत के चन्द्र अभियानों का बजट किसी भी साइंस फिक्शन (fiction) फिल्म से बहुत कम है | स्पेस साइंस (science) बेस्ड हॉलीवुड कल्ट मूवी इंटरस्टेलर का बजट 1368 करोड़ रूपये था |

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अब सवाल ये कि जब हमारा अन्तरिक्ष अभियान (Campaign) इतना सस्ता है फिर भी उसकी उपयोगिता (utility) पर सवाल क्यों उठाया जाया है | ये सही है कि चाँद (Moon) पर पहुँच जाने से न तो हमें बिजली मिल जायेगी न ही पानी (Water) और न ही सड़क | तो क्या हमें मूलभूत (basic)  सुविधाओं पर ही सारा ध्यान केन्द्रित (centered) करके साइंस जैसे सब्जेक्ट (subject) को एकदम से नजरंदाज कर देना चाहिए | पिछले साल दिल्ली में आयोजित (Held) नेशनल (National) रोड इन्फ्रा कॉन्क्लेव (conclave) में सड़क निर्माण (Construction) से जुड़े तमाम जानकारों (experts) का जमावड़ा लगा | कॉन्क्लेव में जो एक बड़ी महत्वपूर्ण (Important) बात निकल कर सामने आई उसका जिक्र (Mention) करना यहाँ जरूरी है | हाई वे के एक किलो मीटर के निर्माण (Construction) में लगभग 25 से 30 करोड़ तक की लागत आती है | यानी चन्द्रयान 3 के बजट में केवल 20 किलोमीटर हाई वे का ही निर्माण (Construction) हो सकता है | निश्चित (Fixed) रूप से इसे बहुत ज्यादा नहीं कहा जा सकता | क्या 20 किमी के लिए हम अन्तरिक्ष (space) विज्ञान की तिलांजली (tilanjali) दे दें |

अब बात रोजगार की | स्पेस फाउंडेशन (foundation) ने अपनी अनुअल (annual) रिपोर्ट में कहा कि ग्लोबल (global) स्पेस इकॉनमी (economy) 2023 की दूसरी तिमाही में 546 बिलियन अमेरिकी (American) डॉलर तक पहुँच गई है | पिछले एक दशक (decade) में स्पेस इकॉनमी (economy) ने 91 परसेंट की छलांग (Jump) लगाई है | वहीं भारत की स्पेस इकॉनमी इस समय 10 से 11 बिलियन (billion) डॉलर के करीब है | इसरो की 1 मार्च 2020 की अनुअल (annual) रिपोर्ट के अनुसार उस समय तक वहां 20,122 कर्मचारी (Employee) थे | निश्चित (Fixed) रूप से इस समय ये आंकड़ा (the figure) और ज्यादा ही होना चाहिए | अब जब हमारा चन्द्रयान 3 सफलतापूर्वक (successfully) चाँद पर पहुँच चुका है ऐसे में इसमें कोई शक नहीं कि भारत में स्पेस साइंस (science) में निवेश करने के लिए ढेरों कम्पनियां (companies) आगे आयेंगी और इससे उम्मीदों (expectations) और अवसरों (opportunities) के नये द्वार खुलेंगे | भारत में अन्तरिक्ष (space) विज्ञानं में रिसर्च (Research) से जुडी इसरो एक मात्र सरकारी (official) संस्था है लेकिन धीरे धीरे ही सही इस क्षेत्र में निजी कम्पनियां (companies) भी आगे आ रही हैं | उन्हें इस क्षेत्र (Area) में सम्भावनाएं (possibilities) नजर आ रही हैं | यही वजह है कि चन्द्रयान 3 के सफल लैंडिंग (landing) में न केवल इसरो बल्कि तमाम निजी कम्पनियों ( companies)का भी हाथ है | और अब इन कम्पनियों की संख्या और इस क्षेत्र में किया जाने वाला निवेश (Investment)  भी कई गुना बढ़ना तय है |

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स्पेस (space) रिसर्च (Research) से जुडी अमेरिकी निजी कम्पनी ( companies) स्पेस एक्स की बात करना यहाँ बहुत जरूरी है | इस कम्पनी के लगभग 4000 सैटलाइट (satellite) इस समय स्पेस में मौजूद (Present) हैं जबकि कम्पनी के मालिक (Owner) एलन मस्क का कहना है कि उनका इरादा स्पेस में 42000 सैटलाइट भेजने का है | अमेरिका की ‘ब्यूरो ऑफ़ लेबर स्टेटिस्टिक्स डाटा’ की एक रिपोर्ट (Report) बताती है कि साल 2020 तक स्पेस साइंस (science) लगभग डेढ़ लाख नौकरियां (jobs) दे रहा था | जाहिर तौर पर ये आंकड़ा अब इससे कहीं ज्यादा ही होगा | ये क्षेत्र वेतन व् अन्य सुविधाओं के लिहाज से भी कहीं ज्यादा आकर्षक है | यही रिपोर्ट बताती है कि अमेरिकी निजी स्पेस कम्पनियां लगभग एक लाख 25 हजार डॉलर का औसत (average) मासिक (monthly) वेतन दे रही हैं | जो की निजी (Personal) क्षेत्र की अन्य नौकरियों के 59 हजार डॉलर के दुगुने (double) से भी ज्यादा है | यानी रोजगार (employment) की द्रष्टि (Drishti) से ये क्षेत्र बेहद आकर्षक (Attractive) है | निश्चित रूप से ये उन युवाओं (youth) को अपनी ओर खींचने के लिए पर्याप्त (Sufficient) वजह है | मस्क की कम्पनी (company) स्पेस एक्स को तगड़ा मुनाफा (profits) भी हो रहा है | इसी साल की पहली तिमाही में कम्पनी ने 55 मिलियन (million) डॉलर का मुनाफा कमाया है |

 

इसमें कोई दोराय नहीं कि चन्द्रयान 3 की सफलता (Success) भारत में निजी कम्पनियों (companies) को बढ़ावा (encouragement) देने का काम करेंगी | इस क्षेत्र (Area) में जब कम्पनियों की संख्या (Number) और साइज़ बढ़ेगा तो निश्चित तौर पर ज्यादा मैन पॉवर की जरूरत (Need) होगी | यानी आने वाले समय में रोजगार (employment) के अवसर काफी (Enough) तेजी से बढने वाले हैं | इस तरह ये हमारी एक मूलभूत(basic)जरूरत को पूरा करने में सक्षम (Able) होंगे | अन्तरिक्ष (space) विज्ञानं एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें समुद्र की गहराई जितनी सम्भावनाएं (possibilities) हैं | और उन सम्भावनाओं को टटोलने (to grope) के लिए असंख्य (innumerable) लोगों की भी जरूरत पड़ेगी | भले ही आज हम इसकी सम्भावनाओं (possibilities) की विशालता को ठीक से न समझ पा रहे हों लेकिन भविष्य (Future) इसी का है | निश्चित रूप से भविष्य (Future) में स्पेस साइंस रोजगार (employment) उपलब्ध (Available) करने वाले सबसे बड़े क्षेत्रों(areas)  में शामिल (Involved) होगा | इसका मतलब ये हुआ कि ये फील्ड (Field) न केवल अभी रोजगार दे रहा है बल्कि (Rather) भविष्य (Future) में बड़े स्तर पर रोजगार देने की क्षमता (Capacity) रखता है | जब लोगों के पास रोजगार (employment) होगा तो उसकी मूलभूत आवश्यकतायें (requirements) यानी रोटी कपडा और मकान खुद (Self) ब खुद पूरी हो जाएँगी |

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अब बात करते हैं इस क्षेत्र से जुड़े खर्च (Expenditure) और कमाई (Earnings) की | इसमें कोई दोराय नहीं कि अन्तरिक्ष (Space) में रिसर्च (Research) बेहद खर्चीला (Expensive) होता है हालाँकि भारतीय अभियान (Champaign) इस मामले में बेहद किफायती (Affordable) साबित होते रहे हैं | फिर भी खर्च तो होता ही है | लेकिन जब हम इसकी तुलना (Comprae) इससे होने वाली आय से करेंगे तो तस्वीर बहुत हद तक साफ़ हो जाएगी | स्पेस रिसर्च को फिजूल (Waste) और गैर जरूरी (Important) बताने वाले लोग अक्सर इस पर बात नहीं करते | भारत आज सैटलाइट (Satellite) लौन्चिंग (Launching) में इतना सक्षम हो चुका है कि वो अपने सैटलाइट लांच करने के साथ ही साथ दुनिया के तमाम देशों (Country) के सैटलाइट भी लांच कर रहा है | एक आकंडे (Data) के मुताबिक 30 जुलाई 2023 तक भारत ने दुनिया के 34 देशों के 431 सैटलाइट लांच कर चुका था |

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केन्द्रीय विज्ञानं व् प्रौद्योगिकी मंत्री स्वतंत्र प्रभार जीतेन्द्र सिंह ने एक बयान में बताया था कि भारत ने विदेशी (Foreigner) सैटलाइट लांच करके लगभग 23 अरब 9Arab) रूपये की कमाई की है | ये आंकड़ा (Figure) सुनकर किसी को भी हैरानी हो सकती है | लेकिन यही सच है | अब सोचने की बात है कि इन अभियानों में खर्च ज्यादा है या फिर आय | वास्तव (Really) में तो इनमें होने वाला खर्च आय (Income) के मुकाबले कहीं नहीं ठहरता | और इतनी कमाई यूँ ही नहीं हुई बल्कि (Rather)  हमने इसके लिए सालों साल तप (Tenacity) किया है | हमारे वैज्ञानिकों ने अपना पसीना बहाया है, दिन रात एक किया है तब वो इस मुकाम (Destination) तक आ पाए हैं | इस कमाई से मूलभूत सुविधाओं (Features)  का वो ढांचा खड़ा किया जा सकता है जिसके बारे में सोचना भी मुश्किल (Difficult) है | स्पेस (Space) अभियानों से होने वाली ये आय ही उन आलोचकों (Critics) का मुँह बंद करने के लिए काफी है जो इनकी सार्थकता (significance) पर अक्सर सवाल उठाते रहते हैं |

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आज भारत तकनीक (Technique) के मामले में दुनिया के अग्रणी (leading) देशों में है | हम मौसम का पहले से बेहतर और सटीक (accurate) अनुमान लगा पा रहे हैं, कम्युनिकेशन (Communication) सिस्टम में हमने लम्बा रास्ता तय कर लिया है, अन्तरिक्ष (space) विज्ञानं की समझ रखने वालों में हम सबको पीछे छोड़ चुके हैं | ऐसा स्पेस रिसर्च के चलते ही सम्भव (Possible)  हुआ है | जरा पीछे लौटिये (Return) और याद कीजिये 21 नवम्बर 1963 के वो पल जब भारत का पहला राकेट (Rocket) अपने लौन्चिंग पैड तक साइकिल (Cycle) से ले जाया गया था | या 1981 का वो दिन जब इसरो के पहले कम्युनिकेशन (Communication) सैटलाइट के पलोड (Payload) को बैलगाड़ी से ले जाया गया था | आज ये सब सोच के भी हैरानी होती है |

यकीन करना मुश्किल होता है | सोचिये हमने कितनी तरक्की (Improvement) कर ली है | एक बार को मान भी लिया जाये कि हम स्पेस रिसर्च (Research) को बंद करके सारा ध्यान मूलभूत सुविधाओं पर केन्द्रित (Focused) कर दें लेकिन क्या इससे हमें इन तकनीक (Technique) की जरूरत नहीं पड़ेगी? सच तो ये है कि तकनीक के बिना रहना सम्भव (Possible) ही नहीं है | बिना फ़ोन, बिना इन्टरनेट (Internet) या बिना टीवी चैनल्स के रहना आज के युग (Age) में भला सम्भव है? यानी हमें तकनीक तो चाहिए ही होगी | अब हमारे पास नहीं होगी तो हमें इन तकनीकों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर (Dependent) रहना पड़ेगा | और कोई भी देश ये सेवाएँ (services) हमें मुफ्त में तो देगा नहीं | जाहिर है उसके लिए हमें अच्छी खासी रकम देनी पड़ेगी वो भी हमेशा | और बहुत सम्भव (Possible) है कि ये खर्च हमारे खुद के अभियानों से भी महंगा पड़ जाये |

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इन अभियानों पर सवाल उठाने वालों से एक और सवाल | जब हमारा देश ओलम्पिक (Olympics) में मेडल (Medal) जीतता है तो एक आम आदमी को क्या मिलता है? जब हम क्रिकेट (Cricket) वर्ल्ड (World) कप (Cup) जीतते हैं तो आम आदमी को क्या मिलता है, हाल ही में चेस (chess) वर्ल्ड कप में प्रग्नानंद रनर अप रहे भला आम आदमी को क्या मिला? ये और बात है कि यही आम आदमी इन सफलताओं पर अपना सीना फुलाए घूमता है | ऐसा लगता है कि मेडल इसी आम आदमी को मिला गया हो | हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि हम उस देश (Country) में रहते हैं जहाँ सबसे पहले देश आता है | जाति, धर्म, भाषा, रंग, रूप तो बहुत बात में आता है | हम हर उस उपलब्धि (achievement) का जश्न मानते हैं जिससे देश का मान सम्मान (Respect) बढ़ता हो | आखिर देश के प्रति आम से लेकर खास तक हर एक व्यक्ति की कुछ जिम्मेदारियां (Responsibilities) हैं | और देश का हर आम आदमी इसे अच्छे से जानता है | तभी तो 23 अगस्त की शाम छह बजकर चार मिनट पर जैसे ही हमारे चन्द्रयान 3 चन्द्रमा को चूमा वैसे ही सब्जी – फल का ठेला लगाने वाले, पटरी पर दुकान लगाने वाले, रिक्शा खींचने वाले, ऑटो चलाने वाले, ट्रेन चलाने वाले से लेकर हवाई जहाज उड़ाने वाले तक ने एक साथ मिलकर तालियाँ पीटीं और पूरे जोश से जश्न मनाया | उनके लिए ये उपलब्धि केवल देश के वैज्ञानिकों (scientists) की या केवल इसरो की ही नहीं बल्कि ये उपलब्धि थी देश के हर आम ओ खास की |

Chandrayan 2

उत्तर प्रदेश, हरियाणा, तेलंगाना सहित तमाम राज्यों (States) में हर स्कूल कॉलेज में (students) के लिए चन्द्रयान 2 की लैंडिंग को लाइव दिखाने के इंतजाम किये गये थे | ये एक ऐसा फैसला था जो आने वाले समय में देश की दशा और दिशा बदलने की ताकत रखता है | इससे छात्रों में स्पेस (Space) साइंस के प्रति न केवल आकर्षण (Attraction) बढेगा बल्कि इन्ही में से तमाम छात्र भविष्य में इसे अपने कैरियर के रूप में भी लेंगे | असल में ऐसे सवाल अक्सर राजनीतिक (political) गलियारों से ही उठते हैं | आम जनता तो अभी तक जोश में है | जब पूरी दुनिया भारत और भारत के वैज्ञानिकों को बधाई संदेश (Message) देने में जुटी थी तब हमारे ही राजनेताओं (politicians) का ज्ञान पूरी दुनिया को हैरान कर रहा था | किसी ने राकेश शर्मा के बजाय फिल्म कलाकार (artist) और निर्माता (the creator) राकेश रोशन को ही भारत का पहला अन्तरिक्ष यात्री बता डाला | वहीं राजस्थान के एक मंत्री महोदय ने तो चन्द्रयान 3 से चन्द्रमा पर भेजे गये यात्रियों (passengers) तक को सलामी दे डाली | वहीं बिहार के एक मंत्री इसे मौसम (Season) की जानकारी देने वाला उपग्रह (Satellite) बता बैठे | जिस अभियान की सफलता (Success) के लिए पूरा देश प्रार्थना कर रहा था | शाम 5 बजे ही टीवी और मोबाइल स्क्रीन के समाने आँखें गड़ाए बैठा था उस अभियान के बारे में हमारे नेताओं का ऐसा ज्ञान चौंकाने (shocking) के लिए काफी है | ज्यादा हैरानी तो इस बात की है कि यही नेता बाद में इन अभियानों की सार्थकता (significance) पर सवाल उठाते हैं |

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लेकिन इस पोस्ट से आप इतना तो जरूर समझ गये होंगे कि ये अभियान (Campaign) हमारे लिए क्यों जरूरी हैं | और इससे आम आदमी को किसी तरह का कोई नुकसान (Loss) नहीं बल्कि फायदे जरूर हैं | इसलिए अब जरूरत है इन अभियानों की सार्थकता (significance) पर उठने वाले सवालों को सिरे से ख़ारिज किये जाने की और चन्द्रयान 3 की सफलता (Success)  के बाद सूर्य और शुक्र के अभियानों की सफलता की कामना करने की | साथ ही आज के बच्चों और युवाओं को स्पेस साइंस की दुनिया से परिचित (Familiar) कराने की ताकि हम इस क्षेत्र में दुनिया के सिरमौर बन सकें | जल्द ही वो वक्त भी आयेगा जब अन्तरिक्ष हम सबसे आगे होंगे और दुनिया हमारे पीछे |

————————————जय हिंद——————————————————–

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