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कल्कि अवतार कौन है? कब होगा कल्कि अवतार?

“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥”

गीता में वर्णित चौथे अध्याय (Chapter) के 7वें और 8वें श्लोक (Stanza) में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से स्पष्ट (Clear)रूप से बता दिया था कि इस धरती पर जब जब धर्म की हानि (Loss) होगी और अधर्म बढ़ेगा तब तब मैं अपने नये रुप को रचुंगा। साधुओं की रक्षा के लिए, पापियों के विनाश के लिए एवं धर्म की स्थापना (Establishment) के लिए, मैं हर एक युग (Era) में प्रकट होता रहुंगा। विभिन्न पुराणों में भी इस बात का उल्लेख (Mention) किया गया है कि कलियुग में पाप की सीमा पार हो जाने पर दुष्टों के संहार के लिये भगवान विष्णु फिर से अवतार लेकर धरती पर आयेंगे। भगवान के इस अवतार का क्या नाम होगा, कौन होगा वह पापी जिसका अंत करने भगवान को इस धरती पर आने के लिए विवश होना होगा तथा यह घटना कलियुग के किस चरण में घटित होगी? आज के पोस्ट में हम हम इन्हीं सब प्रश्नों के उत्तर लेकर आये हैं, इसलिए बनें रहे हमारे साथ शुरू से अंत तक।

                                                                                                                         Bhagvan vishnu

नमस्कार

अभी तक इस धरती पर भगवान विष्णु के कुल 9 अवतार हो चुके है , परन्तु 10वां अवतार अभी तक नहीं हुआ है। विभिन्न पुराणों के अनुसार 10वां अवतार कलयुग के अंत में जब सृष्टि में पाप अपने चरम पर होगा तब भगवान विष्णु का अबतक के सबसे शक्तिशाली अवतार का जन्म होगा। इतना ही नहीं जब भगवान दुष्टों का संहार कर धरती को पापमुक्त करेंगे उसी समय से सतयुग का फिर से प्रारंभ होगा। धर्म ग्रंथों के अनुसार कलियुग में भगवान विष्णु कल्कि (Kalki) रूप में अवतार लेंगे। साथ ही यह भी उल्लेख किया गया है कि भगवान कल्कि का यह अवतार कलियुग व सतयुग के संधिकाल में होगा और कल्कि देवदत्त नाम के घोड़े पर आरूढ़ होकर अपने तलवार से पापियों का विनाश करेंगे।

भगवान विष्णु के 10 अवतार​ जिनका वर्णन हमारे ग्रन्थों व पुराणों में किया गया है वो इस प्रकार हैं- पहला मत्स्य अवतार, दूसरा कूर्म अवतार यानि कक्ष अवतार, तीसरा वराह अवतार, चौथा नरसिंह अवतार, पांचवां वामन अवतार, छठवां परशुराम अवतार, सातवाँ राम अवतार, आठवां कृष्ण अवतार, नौवां बुद्ध अवतार और दसवां कल्कि अवतार।

जिस प्रकार (Type) हर युग में रावण, कंस और हिरण्यकश्यप जैसे आक्रांताओं ने पाप की सीमा (Limit) को लांघ कर भगवान को धरती पर अवतरित होने पर विवश कर दिया उसी प्रकार कलियुग में भी दुष्ट ‘कली पुरुष’ के पापों की सीमा बढ़ने पर भगवान कल्कि को अवतार लेने की बात हमारे ग्रन्थों व पुराणों में कही गयी है। हालांकि कली पुरुष अभी तक भौतिक रूप में नहीं आया है परन्तु कलयुग के अंतिम चरण में वह भौतिक रूप ले लेगा व पताल लोक से आसुरी शक्तियों को स्वतंत्र कर मनुष्यों पर राज करने लगेगा, तब भगवान विष्णु का कल्कि अवतार होगा जो 64 गुणों से युक्त, एक महान योद्धा होंगे, जो अबतक के सबसे शक्तिशाली राक्षस कली पुरुष से लड़ेंगे और संपूर्ण मानव जाति को उसके प्रभाव से मुक्त करेंगे, परन्तु अधर्म की वृद्धि के कारण इस युद्ध में कली पुरुष के तरफ से मनुष्य ही लड़ेंगे तथा भगवान को पहचान नहीं पायेंगें। अंत में कली पुरुष के वध के साथ ही कलियुग की समाप्ति होगी और सतयुग का प्रारम्भ हो जायेगा।
विशेष बात कि धर्म व अधर्म के इस युद्ध में भी भगवान कल्कि का साथ वही दिव्य आत्मायें देंगे जो पहले भी भगवान विष्णु के अवतारों का साथ थे। वो 7 दिव्य आत्माएं जिन्हें अमर होने का वरदान मिला था उनमें से सबसे पहले हैं श्री हनुमान जी, दूसरे हैं परशुराम जी, तीसरे आदि कवि महर्षि वेद ब्यास जी, चौथे गुरुद्रोण पुत्र अश्वथामा, पांचवें गुरु कृपाचार्य, छठवें महराज बलि और सातवें हैं लंकाधिपति महराज विभीषण। मान्यता है की भगवान परशुराम ही भगवान कल्कि के गुरु होंगे और अन्य सभी दिव्य आत्माएं राक्षस कली पुरुष के विरुद्ध इस धर्मयुद्ध में भगवान कल्कि की ओर से लड़ेंगे।

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कलीपुरुष का जन्म-

                                                                                                           Kali purush

कली पुरुष के जन्म की कड़ी सतयुग से ही जुड़ी हुई है, इसलिए पहले हमें उस घटना के बारे में जानना अति आवश्यक है। एक बार ऋषि दुर्वासा इंद्र देवता से मिलने स्वर्ग लोक गए हुए थे, परन्तु इंद्र देव उसी समय किसी राक्षस का वध (Kill) करके स्वर्ग लोक आये हुवे थे, ऐसे में जब दुर्वासा ऋषि ने उनके स्वागत (Welcome) के लिए उन्हें फूलों की माला भेंट  की तो अपने विजय की धुन में मग्न (Engrossed) इंद्र देव ने वह फूलों की माला अपने गज अर्थात हाथी को पहना दिया। जब पुनः सभा प्रारंभ हुई तो दुर्वासा ऋषि उनसे मिलने आये तो उन्होंने देखा की उनके फूलों की माला हाथी के पैरों में पड़ी है, दुर्बासा ऋषि को इस पर अत्यंत क्रोध (Anger) आ गया और उन्होंने उसी क्षण श्राप दे डाला की जिस ऐश्वर्य में तुमने मेरे उपहार (Gift)  का अपमान किया वो ऐश्वर्य एक दिन तुम से छीन जायेगा, और यह धन व मान  कुछ न रहेगा। ऋषि दुर्वासा के इस श्राप से भयभीत होकर सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे जिस पर भगवान विष्णु ने उन्हें समुन्द्र मंथन के लिए कहा और बोला की आप लोगों को पुनः पहले जैसा समृद्ध होने के लिए छीर सागर के अमृत की आवश्यकता पड़ेगी। इसके पश्चात अपनो शक्ति बढ़ाने के लिए इंद्र देव ने असुरराज राजा बलि से समन्द्र मंथन में अपनी ओर से भागीदारी की मदद मांगी। हालांकि पहले तो राजा बलि ने देवताओं को मना कर दिया क्योंकि उन्हें यह अनुमान था कि देवता असुरों के साथ छल करेंगे। परंतु शुक्रचार्य के कहने पर राजा बलि इस संधि (Treaty) पर तैयार हो खए की समुन्द्र मंथन में जो भी निकलेगा उसका दोनों में बटवारा होगा। इस प्रस्ताव की सहमति के बाद मंदराचल पर्वत को गरुड़ देव ने अपने चोंच में उठाकर छिर सागर में रखा और सर्प राज बासुकी को उस पर्वत में लपेट कर रस्से का रूप दिया गया। मंथन में राक्षस गण बासुकी नाग के मुख (Mouth) की ओर और देवता पूंछ (Tail) की ओर थे परन्तु मंथन हो नहीं पा रहा था, क्योंकि मंदराचल पर्वत का आधार घूमने का नाम ही नहीं ले रहा था। ऐसे में भगवान विष्णु ने कच्छ अर्थात कछुवे (Turtle) का अवतार लेकर मंदराचल पर्वत को अपने पीठ पर रखा और इस प्रकार मंथन आरंभ हुआ। इस मंथन में बहुत सारे कीमती आभूषणों के साथ पहले हलाहल नामक तेज विष निकला, भगवान विष्णु को इस विष के बारे में पहले से ही पता था  परन्तु उन्होंने देवताओं को इस बारे में कुछ भी इसलिए नहीं बताया, क्योंकि वे जानते थे यदि उन्हें इसका पता पहले चल गया तो वे विष के कारण इस मंथन को करते ही नहीं, इसलिए उन्हें केवल अमृत के बारे में ही बताया। हलाहल विष के वेग से सभी मूर्छित (Unconscious) होने लगे थे, और संधि के नियमानुसार (As per rule) इसे आधा (Half) देवता तथा आधा असुरो को पीना था, परन्तु दोनों में हलाहल विष के इस तेज को सहने की शक्ति नहीं थी। इस पर भगवान शिव ने भगवान विष्णु के कहने पर विषपान किया परन्तु इस विष का तेज इतना अधिक था कि भोले नाथ का कंठ भी उसके जलन से प्रभावित (Affected) होने लगे, तभी शक्ति रूपी माता पार्वती ने उस विष को अपने हाथो से भोलेनाथ के गले में ही रोक दिया, इस विष के प्रभाव से भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया और तभी से भोलेनाथ का नाम नीलकंठ पड़ गया। हालांकि इस पूरो क्रिया और घटनाक्रम में विष की एक बून्द राक्षस कली में मुख में जा गिरी, जिससे कली का शरीर नष्ट (Destroyed) हो गया। जब मंथन फिर से प्रारंभ हुआ तो उसमे से कामधेनु गाय निकली जिसे ऋषियों ने रखा, उचेश्व अश्व को राजा बलि ने ग्रहण किया, ऐरावत हाथी को देवताओ के राजा इंद्रा ने ग्रहण किया, कौस्तुब मणि और शंख को भगवान विष्णु जी ने धारण किया, इसके बाद निकली संजीवनी बूटी इसे पृथ्वी पर एक सुरक्षित स्थान (Place) पर स्थापित (Establishment) किया गया। इसके बाद धन (Wealth) सम्पदा (Heritage) लेकर माता लक्ष्मी निकली, सभी देवता एवं राक्षस देवी लक्ष्मी को रखना चाहते थे परंतु लक्ष्मी जी ने खुद विष्णु जी को ग्रहण कर लिया , चन्द्रमा निकले तो भोलेनाथ ने ग्रहण किया , इसके बाद परीजाद बृक्ष और कल्प बृक्ष निकला जिसे स्वर्ग में स्थापित किया गया , फिर निकली रम्भा जिसे स्वर्ग अप्सरा बना कर स्वर्ग में रखा गया , इसके बाद निकली वारुणी देवी यानि सूरा देवी जिन्हे असुरो ने ले लिया और अंत में भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर निकले और इस अमृत को पाने के लिये ऐसी होड़ मची की छीना झपटी में कुछ बुँदे समुद्र में जा गिरी और उन्हीं की कुछ बुँदे कली पुरुष को भी मिल गई, जिससे वो फिर से जीवित (Alive) हो उठा। हालांकि वह जीवित तो हो गया परन्तु शरीर न होने से वह भौतिक रूप में न आ सका। इधर अमृत का बटवारा करने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप ले लिया और सारा अमृत देवताओ को पीला दिया परन्तु राहु और केतु दो राक्षसों ने देवताओ का रूप लेकर अमृत पी लिया जिस पर भगवान विष्णु ने उनका सर काट दिया, परन्तु अमृत पीने से वे अमर हो चुके थे इसलिए राहु और केतु अब भी पिंड यानि गृह रूप में जीवित है।

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                                                                                                                  Kalki avatar

कल्कि अवतार-
धार्मिक एवं पौराणिक मान्यता के अनुसार जब पृथ्वी पर पाप बहुत अधिक बढ़ जाएगा। तब दुष्टों के संहार के लिए विष्णु का यह अवतार यानी ‘कल्कि अवतार’ प्रकट होगा। भगवान का यह अवतार ” निष्कलंक भगवान ” के नाम से भी जाना जायेगा। आपको ये जानकर आश्चर्य होगा की भगवान श्री कल्कि ६४ कलाओं के पूर्ण निष्कलंक अवतार होंगे। कल्कि को विष्णु का भावी और अंतिम अवतार माना गया है। पुराणों के अनुसार (According) जब धरती पर चारों ओर पाप बढ़ जायेंगे तथा अत्याचार का बोलबाला होगा तब इस जगत का कल्याण करने के लिए भगवान विष्णु कल्कि के रूप में अवतार लेंगे। पुराणों में यह भी उल्लेख किया गया है कि कलियुग के अंत में भगवान कल्कि अवतरित होंगे, वे एक सफेद घोड़े पर बैठ कर आएंगे और राक्षसों का नाश कर देंगे। पौराणिक मान्यता के अनुसार कलियुग चार लाख बत्तीस हजार वर्ष का है जिसका अभी प्रथम चरण ही चल रहा है। कलियुग का प्रारंभ 3102 ईसा पूर्व से हुआ था, जब पांच ग्रह; मंगल, बुध, शुक्र, बृहस्‍पति और शनि, मेष राशि पर शून्य अंश अर्थात् ज़ीरो डिग्री पर हो गए थे। इसका तात्पर्य (Implication) है कलियुग के कुल 3102+2017= 5119 वर्ष बीत चुके हैं और 4 लाख 26 हजार 881 वर्ष अभी शेष हैं।
श्रीमद्भागवत पुराणऔर भविष्यपुराण में भी कलियुग के अंत का वर्णन (Description) मिलता है जिसमें भगवान कल्कि के अवतार की बात कही गयी है। श्रीमद भगवत गीता के 12वे स्कन्द में लिखा है की भगवान बिष्णु के 10वे अवतार कल्कि का जन्म कलयुग के अंत में और सतयुग के संधि काल में होगा। भगवान विष्णु का अवतार हर बार हर युग के अंत में ही होता है ,जैसे रामा अवतार त्रेतयुग के अंत में हुआ था और जैसे ही रामा अवतार की सदगति होती है वैसे ही द्वापर युग की शुरुवात होती है, ठीक वैसे ही द्वापर युग के अंत में कृष्णा अवतार हुआ और कृष्णा के सदगति होते ही कलयुग प्रारम्भ होता है, वैसे ही कलयुग के अंत में कल्कि अवतार होगा और अवतार का कार्य समाप्ति के बाद सतयुग का पुनः आगमन हो जायेगा।
युग परिवर्तनकारी भगवान श्री कल्कि के अवतार का प्रयोजन विश्वकल्याण बताया गया है। श्रीमद्भागवतमहापुराण में विष्णु के अवतारों की कथाएं विस्तार से वर्णित है। इसके बारहवें स्कन्ध के द्वितीय अध्याय में भगवान के कल्कि अवतार की कथा विस्तार से दी गई है जिसमें यह कहा गया है कि-

“सम्भलग्राममुख्यस्य ब्राह्मणस्य महात्मनः।
भवने विष्णुयशसः कल्किः प्रादुर्भविष्यति।।”

अर्थात्, सम्भल ग्राम (Village) में विष्णुयश नाम के एक ब्राह्मण होंगे। उनका ह्रदय बड़ा उदार और भगवतभक्ति पूर्ण होगा। उन्हीं के घर कल्कि भगवान अवतार ग्रहण करेंगे। आगे यह भी वर्णित है कि वह देवदत्त नामक घोड़े पर आरूढ़ होकर अपनी तलवार से दुष्टों व पापियों का संहार करेंगे और तभी सतयुग का प्रारम्भ होगा। मान्यता है कि भगवान विष्णु के कल्कि अवतार का जन्म मुरादाबाद के सम्भल ग्राम में होगा इनकी माता का नाम सुमति होगा ,ये देवदत्त नामक सफेद घोड़े की सवारी करेंगे, इनके हाथ में 2 तलवारे होंगीं  और यह अवतार निष्कलंक (Spotless) अवतार होगा। मान्यता है कि भगवान राम में 12 गुण थे, कृष्ण में 16 गुण थे ,परन्तु कल्कि अवतार में कुल 64 गुण होंगे, भगवान विष्णु का यह अवतार इंसान को पुनः प्रकृति से जोड़ेगा, कहा जाता है की कलयुग के अंत में जब सारी नदिया सुख जाएँगी , इंसान का इंसान से विश्वाश समाप्त हो जायेगा और हर जगह पाप को बोलबाला होगा, तब इस धरती पर भगवान विष्णु कल्कि अवतार लेकर आएंगे और पुनः धर्म की स्थापना करेंगे।
कलियुग के अंत और भगवान कल्कि अवतार के संबंध में अन्य पुराणों में भी इसका वर्णन मिलता है।

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कल्कि पुराण-

                                   Kalki puran

कल्कि पुराण के अनुसार परशुराम, भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि के गुरु होंगे और उन्हें युद्ध की शिक्षा देंगे। वे ही कल्कि को भगवान शिव की तपस्या करके उनके दिव्यास्त्र को प्राप्त करने के लिये कहेंगे। कल्कि पुराण में ”कल्कि“ अवतार के जन्म व परिवार की कथा इस प्रकार कल्पित है- ”सम्भल नामक ग्राम में विष्णुयश नाम के एक ब्राह्मण निवास करेंगे, जो सुमति नामक स्त्री के साथ विवाह करेंगें दोनों ही धर्म-कर्म में दिन बिताएँगे। कल्कि उनके घर में पुत्र होकर जन्म लेंगे और अल्पायु (Short life) में ही वेदादि शास्त्रों का पाठ (Lesson) करके महापण्डित हो जाएँगे। बाद में वे जीवों के दुःख से कातर हो महादेव की उपासना करके अस्त्रविद्या प्राप्त करेंगे। उनका विवाह बृहद्रथ की पुत्री पद्मादेवी के साथ होगा।“ कल्कि पुराण के अनुसार भी यही सब बातें कही गयी हैं कि कल्कि अवतार कलियुग व सतयुग के संधिकाल में होगा। यह अवतार 64 कलाओं से युक्त होगा। कल्कि पुराण के अनुसार वह अवतार हाथ में चमचमाती हुई तलवार लिए सफेद घोड़े पर सवार होकर, युद्ध और विजय के लिए निकलेगा और पापियों का संहार कर सनातन राज्य स्थापित करेगा।

स्कंद पुराण व अग्नि पुराण-

स्कंद पुराण के दशम अध्याय में स्पष्ट वर्णित है कि कलियुग में भगवान श्रीविष्णु का अवतार श्रीकल्कि के रुप में सम्भल ग्राम में होगा। वहीं ‘अग्नि पुराण’ के सौलहवें अध्याय में कल्कि अवतार का चित्रण तीर-कमान धारण किए हुए एक घुड़सवार के रूप में किया हैं और लिखा गया है कि वे भविष्य में अवतरित होंगे। पुराणों की यह धारणा की कोई मुक्तिदाता भविष्य में होगा सभी धर्मों ने अपनाई।

हमें आशा है कि आपको भगवान कल्कि पर आधारित यह पोस्ट अवश्य पसंद आया होगा….

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