DharmikFactsHistory

दुर्योधन और उसके श्रापित जंघे का रहस्य

मित्रों, परिवार एक ऐसी सम्पत्ति है जो इस संसार की सारी सम्पत्तियों से कही बढ़कर है। मनुष्य चाहे जितना भी धन कमा ले, उस धन से करोड़ो की सम्पत्ति बना ले लेकिन अगर उसके मरने के बाद उन सम्पत्तियों का उपभोग उसके अपने न करें

 

तो ये उस मनुष्य के लिए किसी दुर्भाग्य से कम नहीं है। संसार का हर मनुष्य अपने से ज्यादा अपने परिवार के भरण पोषण के लिए हर दिन संघर्ष करता है, उन्हें हर प्रकार से सुखी रखने के लिए जीवन के कष्टों को सहता रहता है। और सबसे बड़ी बात यदि परिवार में शांति और सुख बना रहता है तो इससे बड़ा स्वर्ग किसी मनुष्य के लिए कुछ और हो ही नही सकता, और इसके लिये भी परिवार के हर सदस्यों को मानसिक रूप से शांत और सुलझे रहने की जरूरत होती है जिससे परिवार में आपसी सामंजस्य बना रहता है। लेकिन अगर परिवार का एक भी सदस्य ऐसा हो, जिसे केवल अपने स्वार्थ की चिंता हो, जो केवल अपनी विलासिता और अधिकार की जिद करे, तो ऐसे व्यक्ति के कारण परिवार में हमेशा कलह मची रहती है और एक समय ऐसा भी आता है जब ऐसे लोगों के कारण परिवार नष्ट होने के कगार पर आ जाता है, और कुछ ऐसा ही हुआ था महाभारत काल में। इस बात को सभी जानते हैं कि महाभारत के इस युद्ध की शुरुआत धृतराष्ट्र के बड़े पुत्र दुर्योधन की ही जिद का नतीजा था, जिसने एक अनावश्यक युद्ध को न्योता तो दिया ही साथ ही साथ अपने परिवार के नाश का कारण भी बना।

मित्रों, दुर्योधन एक ऐसा नाम है जिसे महाभारत जैसे भीषण युद्ध का मुख्य कारण कहा जाए तो गलत न होगा। या ये कहे कि इसके जन्म लेते ही कुरुवंश के विनाश का बीज हस्तिनापुर में अपने आप ही पड़ गया था। क्योंकि महाभारत के अनुसार- जिस समय और नक्षत्र में दुर्योधन का जन्म हुआ था, वो समय बहुत ही अशुभ था, अनेक प्रकार के अपशकुन होने लगे थे, गिद्ध, सियार, कुत्तों के रोने की आवाजें हस्तिनापुर के आस पास से आने लगी थी। और इन्ही सब घटनाओ को ध्यान में रखते हुए खुद महामंत्री विदुर ने महाराज धृतराष्ट्र को ये सलाह दी कि ये पुत्र आपके वंश के लिए कतई अच्छा नही होगा बल्कि भविष्य में इसके कारण आपका सारा वंश समाप्त हो जाएगा, इसलिए आपको चाहिए कि ऐसे पुत्र का त्याग कर दें। क्योंकि नीति ये कहती है कि यदि शरीर के किसी विशेष हिस्से में कोई ऐसी चोट लग गयी है जो नासूर हो चुकी हो और उससे विष फैलने का खतरा पूरे शरीर को हो, तो तुरंत ही उस चोटिल हुए शरीर के हिस्से को शरीर से अलग कर देंने में ही बुद्धिमानी है। लेकिन धृतराष्ट्र पुत्र मोह के कारण दुर्योधन का त्याग न कर सके, बल्कि इसके उल्टा ये हुआ की दुर्योधन अपने पिता का सबसे लाडला पुत्र हो गया। उसकी हर जिद को पूरी करना धृतराष्ट्र के लिए अनिवार्य हो चुका था और जिसके चलते वो अपना राज धर्म सही रूप से नही निभा पा रहे थे। दुर्योधन स्वभाव से ही दुष्ट प्रकृति का था, भाइयो का अपमान कर देना, अपने से बड़े बुजुर्गो को भरी सभा मे अपशब्द कह देना, ये सब दुर्योधन के लिए बहुत ही आम बात थी।
वैसे तो दुर्योधन के मूर्खता और दुष्टता भरे कार्य महाभारत में भरे पड़े हैं, उदाहरण के तौर पर बाल्यकाल में भीम को विषैली खीर खिलाकर मारने की कोशिश करना। हमेशा ही पांडवो से ईर्ष्या रखना और इसलिए उनके वध के लिए लक्ष्याग्रह का निर्माण करवाना, अपने मामा शकुनि की सहायता से पांडवो को द्यूत में हराना। ये सब कुछ ऐसी घटनाएं हैं जिनसे हम सभी वाकिफ हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि दुर्योधन को सही रास्ते लाने पर पितामह भीष्म औए महात्मा विदुर ने कुछ किआ नही। हस्तिनापुर के विनाश को ध्यान में रखते हुए इन दोनों महात्माओ ने दुर्योधन को समझाने का बहुत प्रयास किया साथ ही साथ इनके पिता धृतराष्ट्र को भी समझाने का भी बहुत प्रयास किया गया लेकिन दुर्योधन की दुष्ट बुद्धि ने इन सभी की बातों को अनसुना कर दिया।
इसी संदर्भ में एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रसंग महाभारत के वनपर्व में आता है। जिस समय पांडव अपनी पत्नी द्रौपदी समेत वन में निवास कर रहे थे , उन दिनों दुर्योधन अपने खास हितैषियों के साथ अपने भवन में बैठकर पांडवों के वध की योजना बना रहा था। दुर्योधन के साथ उसका छोटा भाई दुःशासन, शकुनि, और उसका प्रिय मित्र कर्ण वहां उपस्थित थे। वे सभी इस बात पर विचार कर रहे थे, की पांडव इस समय बिना किसी सेना के वन में अकेले होंगे। अगर हम सभी मिलकर पांडवो पर अचानक आक्रमण कर दें, तो उनका वध करना आसान हो जाएगा और हमारे रास्ते के ये पांच कांटे आराम से हट जायँगे। दुर्योधन की इस दुष्ट चाल का पता कोसों दूर बैठे महर्षि व्यास को पता चल गया, असल मे महर्षि व्यास त्रिकालदर्शी तो थे ही साथ ही अपने योग से किसी के भी मन की बातों को सुन सकते थे। इसलिए ऐसा सुनते ही वे मन की गति से तुरंत ही हस्तिनापुर पधारे। हस्तिनापुर में महाराज धृतराष्ट्र, पितामह भीष्म और महात्मा विदुर ने उनका भव्य स्वागत किया। इसके बाद महर्षि व्यास ने धृतराष्ट्र से कहा कि- हे महाराज! तुम्हारे रहते पांडवो के साथ बहुत अन्याय हुआ, आज वो वन वन भटक रहे हैं और तेरह वर्ष बीतने का इंतज़ार कर रहे हैं। लेकिन तेरह वर्ष बाद भी अगर तुम्हारे पुत्र दुर्योधन ने उनका राज्य वापस न किया तो ये समझ लो कि तुम्हारे कुल का नाश पूरी तरह निश्चित है। इसलिए अब भी समय है, अपने पुत्र को समझाओ की वो वन जाकर पांडवो से क्षमा मांग ले और हस्तिनापुर वापस ले आये।
इतना सुनने के बाद धृतराष्ट्र ने कहा- हे महर्षि! मेरा पुत्र बहुत हठी है , वो मेरी आज्ञा नही मानता। इसलिए आपसे निवेदन है कि आप ही उसे सही रास्ता दिखाने की कृपा करें।
इस पर महर्षि व्यास बोले कि- हे धृतराष्ट्र! अभी कुछ ही समय मे तुम्हारे भवन में महर्षि मैत्रेय पधारेंगे और मुझे ये भी पता चला है कि वे वन में पांडवो से भी मिल चुके हैं, इसलिए जब वो पधारे तो उनका खूब आवभगत करना और जैसा वो कहें वैसा ही करना।
इतना कहने के बाद महर्षि व्यास वहां से चले गए और कुछ ही देर बाद महर्षि मैत्रेय वहां आ पधारे।
मैत्रेय का हस्तिनापुर में पधारते ही धृतराष्ट्र और उनके पुत्रो ने विधिपूर्वक उनका स्वागत सत्कार किया, और एक विशेष भवन में उनके विश्राम की व्यवस्था बनाई। थोड़ी देर बाद धृतराष्ट्र ने पांडवो की कुशलता पूछी और कहा की कृपा करके कोई ऐसा मार्ग बताइये जिससे पांडव और कौरव दोनों में मेल मिलाप हो जाये। इन बातों को सुनकर महर्षि मैत्रेय बोले कि- हे महाराज! ये बहुत ही दुख का विषय है कि आपके होते हुए आपके अनुज पुत्रो के साथ घोर अन्याय हुआ, आपके पुत्रो ने अनायास ही जुए खेलकर पांडवो को तेरह साल के लिए नर्क में झोंक दिया है।
इसके बाद महर्षि ने दुर्योधन को अपने पास बुलाकर समझाते हुए कहा कि- हे पुत्र! अब भी समय है तुम पांडवो से बैर करना छोड़ दो, क्योंकि पूरे संसार मे उनके जैसा बलशाली कोई नही है और जब भी युद्ध होगा तो उनकी विजय निश्चित है इसलिए बिना किसी कारण हस्तिनापुर के नाश को निमंत्रण मत दो। उनके साथ भगवान श्रीकृष्ण हैं, और इसलिए भी उनकी विजय में किसी तरह का कोई संदेह नही है।
जब महर्षि इन बातों को दुर्योधन को समझा रहे थे तो दुर्योधन उनके तरफ से मुँह फेर कर बैठा हुआ था और अपनी जंघा पर हाथ रखकर उंगलिया कुरेद रहा था, उसकी इस तरह की उदण्डता और अनुशासन हीनता को देखकर महर्षि मैत्रेय को बड़ा क्रोध आया और फिर उन्हीने उसे शाप दे डाला और कहा की- इस समय तू मेरी किसी बातों को ध्यान से नही सुन रहा है, और मेरा अपमान किये जा रहा है इसलिये मैं तुझे शाप देता हूँ कि एक ऐसा समय आएगा कि तेरी जिद के चलते कौरवों और पांडवो में घोर युद्ध होगा जिसमें तेरे सारे भाई मारे जायँगे, और तू जिस जांघ पर अपनी उंगलियां रखे है उस जांघ को भीम अपनी गदा से तोड़कर तेरा वध कर डालेगा।
धृतराष्ट्र ने जब महर्षि के मुँह से ऐसा शाप सुना तो वो घबरा गए और उन्होंने महर्षि से क्षमा मांगी और उस शाप के मुक्त होने का उपाय पूछा तो महर्षि ने कहा कि अगर तुम्हारा पुत्र बैरभाव छोड़कर पांडवो से सन्धि कर लेगा तो मेरा ये शाप उसे नही लगेगा इसलिए कोशिश करो कि कौरवो और पांडवो में मित्रता हो जाये।
इतना कहने के बाद महर्षि मैत्रेय वहां से चले गए, और ये भी एक कारण था जिसके कारण दुर्योधन की मृत्यु उसकी जंघा टूटने के कारण हुई। जिसके विषय मे आज भी बहुत लोग अनजान हैं।
उम्मीद है आज की ये रोचक जानकारी आपको पसंद आयी होगी, आप अपनी राय हमें कमेंट बॉक्स के माध्यम से दे सकते हैं

https://youtu.be/7v8DQPxpJpQ

Show More

Related Articles

Back to top button