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के के मेनन नाम ही काफी है।

दोस्तों जरा सोचिए एक ऐसे व्यक्ति के बारे में जो जन्म से एक ऐसे माहौल में रहा जहां आर्मी के हथियारों और युद्ध वगैरह की बातें होती हैं, एक लड़का जो अपने आसपास के माहौल से निकलकर विज्ञान को अपने जीवन की प्रगति का माध्यम चुनता है और इसी विषय की पढ़ाई करता है और फिर जब कोई काम चुनने की बात आती है तो वो एडवरटाइजिंग और शोर्ट फिल्मों की दुनिया में आ जाता है लेकिन इस माहौल में भी उसका मन नहीं लगता।

जरा सोचिए ऐसे इंसान की जिंदगी कैसी होगी जिसे कहीं कोई चीज अच्छी नहीं लग रही हो, आप में से बहुत से लोगों का मानना होगा कि ऐसा इंसान अपनी जिंदगी में असफल ही हो सकता है लेकिन अगर मैं आपसे कहुं कि ऐसा एक इंसान आज सफलता की बुलंदियों पर हैं तो आपको यकीन नहीं होगा लेकिन ये सच है।

हमारी फिल्म इंडस्ट्री के ‌सर्वश्रेष्ठ अभिनेताओं में से एक के के मेनन को‌ अपना पैशन अपना रास्ता भले ही देर से मिला था लेकिन जब से उन्होंने अपने रास्ते पर कदम बढ़ाए वो सफलताओं की सीढ़ियां चढ़ते चले गए और आज वो अपने काम में सबसे माहिर लोगों में से एक है।

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Kay Kay Menon

के के मेनन का जन्म और शिक्षा-

कृष्ण कुमार मेनन यानि हमारे के के मेनन ‌का जन्म केरल के एक हिंदू नायर आम भारतीय परिवार में 2 अक्टूबर साल 1966 को हुआ था।

के के मेनन के पिता का नाम केशियर मेनन बताया जाता है जो भारतीय आर्मी की हथियार बनाने वाली फैक्ट्री में काम करते थे और उनकी मां राधा एक गृहिणी थी।

के के के पिता को अपने काम के सिलसिले में समय समय पर एक शहर से दुसरे शहर में शिफ्ट होना पड़ता था इसलिए के के का शुरुआती जीवन अलग अलग स्थानों पर बीता था और उनकी पढ़ाई भी महाराष्ट्र के अलग-अलग शहरों में पुरी हुई थी।

मेनन की उम्र जब सिर्फ तीन से चार महीनों की थी तब उनका परिवार पुणे आ गया था जहां से इन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई पुरी की और साल 1981 में अपनी दसवीं कक्षा की परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हो गए।

मेनन जो अपने माता-पिता की इकलौती संतान थे वो पढ़ाई में शुरू से ही अच्छे थे और स्कूल में होने वाले नाटकों वगैरह गतिविधियों में भी हिस्सा लिया करते थे लेकिन घर पर मेनन एक शाई और तन्हाई पसंद करने वाला लड़का था जिसे अपने आसपास भीड़ भाड़ अच्छी नहीं लगती थी और  बचपन से अकेले अकेले अपने खिलौनों के साथ बड़े होने का असर उन पर आज भी नजर आता है जहां वो फिल्मी पार्टियों और अवार्ड शोज में बहुत कम नजर आते हैं।

स्कूली शिक्षा पुरी करने के बाद मेनन ने फिजिक्स के विषय में ग्रेजुएशन किया और फिर आगे की पढ़ाई के लिए पुणे की एक कोलेज में दाखिला ले लिया जहां से के के मेनन एमबीए की डिग्री हासिल करके निकले।

 किसी मंच और अदाकारी से उनकी पहली मुलाकात किसी नाटक में नौ साल की उम्र में हुई थी जहां मेनन एक सनफ्लावर बने नज़र आए थे और यह अनुभव उनके लिए बहुत ही अलग और अच्छा था, धीरे धीरे वो जब भी स्टेज पर परफॉर्म करने लगे तो वहां का वातावरण उनको पसंद आने लगा था लेकिन अब तक इस काम को अपना प्रोफेशन बनाने का विचार मेनन ने नहीं किया था।

एमबीए की डिग्री हासिल करने के बाद मेनन ने दादर में अपनी एक एडवरटाइजिंग कम्पनी की शुरुआत की जिसके पीछे इनका मकसद सिर्फ कुछ पैसे इकट्ठे करने तक का ही था, धीरे धीरे के के पास अपनी कम्पनी के जरिए एक अच्छी इनकम आना भी शुरू हो गया था वो सेल्फ डिपेंडेंट बन गए थे।

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Kay Kay Menon

के के मेनन एक वेल सेटल्ड व्यक्ति से थियेटर का रुख-

मेनन की जिंदगी चल रही थी, उन्होंने अच्छी पढ़ाई कर ली थी उनके पास काम भी अच्छा था यानि वो समाज की तरफ से एक वेल सेटल्ड व्यक्ति बन‌ गए थे लेकिन कुछ समय बाद मेनन को उनकी यह जिंदगी परेशान करने लगी थी उनको यह लगने लगा था कि वो इस जगह और इस काम के लिए नहीं बने हैं।

शुरू से ही नाटक वगैरह में हिस्सा लेते आ रहे मेनन को फिर से वही दुनिया बुला रही थी और एक दिन मेनन ने अपनी कम्पनी को बंद करके और सबकुछ छोड़कर थियेटर की तरफ जाने का मन बना लिया।

थिएटर में जाने के बारे में सोच तो लिया लेकिन किस थिएटर ग्रुप में शामिल होना चाहिए कहां जाएं ये सबसे बड़ा सवाल था जिसके जवाब की तलाश में मेनन घूमते घूमते नसीरुद्दीन शाह के थिएटर ग्रुप मोटली में पहुंच गए जहां जूलेसिजर नाम के किसी नाटक की रिहर्सल हो रही थी।

मेनन नसीर साहब के पास पहुंचे और उनसे कहा मुझे थिएटर में काम करना है, इसके जवाब में नसीर साहब ने कहा कि वो तीन महीने से रिहर्सल कर रहे हैं इसलिए हर किरदार के लिए कलाकार फाइनल हो गया है।

मेनन ने कहा कि वो थिएटर की दुनिया और इसके रंग ढंग को सीखने के लिए यहां आए हैं इसलिए कुछ भी करने के लिए तैयार हैं, नसीर साहब मेनन की इच्छाशक्ति से बहुत प्रभावित हुए और उन्हें अपने साथ रखने के लिए जूलेसिजर में ही एक भीड़ के दृश्य में उनको खड़ा कर दिया जहां सत्तर लोग मौजूद थे।

इस तरह के के मेनन ने अपना सफर शुरू कर लिया था जहां से आगे की एक राह तय होने वाली थी। एक अच्छे खासे बिजनेस को छोड़कर थिएटर आए मेनन को यहां भले ही अपने काम का पैसा नहीं मिलता था लेकिन अपने काम से संतुष्टि मिल जाती थी जो किसी भी इंसान के लिए महत्वपूर्ण होती है।

थिएटर में पैसा नहीं था और मुम्बई में मेनन का अपना कोई घर भी नहीं था वो तो सबकुछ पीछे छोड़ आए थे इसलिए मुम्बई में जीवन बिताने के लिए मेनन चार पांच लोगों के साथ रेलवे कोलोनी की बगल में एक छोटे से कमरे में रहते थे जहां से हर तीन चार मिनट में एक रेल गुजरती थी।

अपने साथ रहने वाले उन लोगों की बात करते हुए मेनन बताते हैं कि उनमें से कुछ उनको एमबीए की पढ़ाई के समय से जानते थे तो कुछ पहले से वहीं रह रहे थे, इन सब लोगों में एक बात कोमन ये थी कि इन लोगों को लिटरेचर और आर्ट में बहुत दिलचस्पी थी और इसीलिए मेनन की भी इन लोगों के साथ अच्छी जमने लगी थी।

मेनन और उनके दोस्त अपनी दिलचस्पी के मुताबिक हर रात रसियन लिटरेचर की ग्रुप रीडिंग किया करते थे जिसमें कोई एक किताब पढ़ता और बाकि सब लोग उसे सुनते थे‌।

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Kay Kay Menon: Strugle

के के मेनन का संघर्ष भरा दिन-

इस तरह मेनन के दिन गुजर रहे थे और इसी दौरान उनकी मुलाकात मकरंद देशपांडे से हुई जो खुद किसी थिएटर ग्रुप का हिस्सा थे और मेनन बताते हैं कि मकरंद शुरू से ही उनको बहुत अच्छा अभिनेता मानते थे और अपनी जान पहचान के लोगों में मेनन को काम देने की बात किया करते थे, इसी दौरान उनकी मुलाकात सईद अख्तर मिर्जा से हुई जो उस समय अपनी फिल्म नसीम पर काम कर रहे थे।

मकरंद देशपांडे उनसे मिले और उनके सामने मेनन का जिक्र छेड़ते हुए बोले कि ये लड़का बहुत अच्छा कलाकार हैं आप इसे अपनी फिल्म में काम दीजिए, मिर्जा साहब ने देशपांडे की बात मानते हुए मेनन को अपनी फिल्म में एक छोटा सा किरदार दे दिया और इस तरह के के मेनन का फिल्मी सफर शुरू हो गया।

के के मेनन ने नसीरुद्दीन शाह के साथ उनके ग्रुप में कई नाटकों में काम किया था लेकिन जिस नाटक ने उन्हें पहचान दिलाने का काम किया उसका नाम महात्मा वर्सेज गांधी था जिसमें नसीर साहब ने महात्मा गांधी और मेनन ने उनके बेटे का किरदार निभाया था।

यह नाटक थिएटर और सिनेमा से जुड़े लगभग सभी लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गया और साथ ही ये लोग नसीर साहब के सामने एक नये कलाकार के काम को भी पसंद करने लगे थे।

यही वजह रही कि मेनन को थिएटर और फिल्मों के साथ साथ अब टेलीविजन की तरफ से भी ओफर आने लगे थे, मेनन ने इस दौरान स्टार बेस्ट सेलर में अनुराग कश्यप के साथ काम किया और साथ ही सेटरडे संस्पेंश, द लास्ट ट्रेन टू महाकाली और और प्रधानमंत्री जैसे शोज से अपनी पारी को आगे बढ़ाया।

प्रधानमंत्री शो में मेनन ने जहां एक युवा प्रधानमंत्री का किरदार निभाया तो वहीं एक दुसरे थ्रिलर मर्डर मिस्ट्री शो में मेनन को इरफान खान के साथ काम करने का मौका मिला था, जीनको वो आज भी सिनेमा का सबसे बड़ा कलाकार मानते हैं।

यहां आपको बता दें कि अपने थिएटर के दिनों के दौरान ही मेनन की मुलाकात निवेदिता भट्टाचार्य से हुई थी और इन दोनों ने आगे चलकर एक दुसरे को हमसफ़र चुन लिया था, निवेदिता से मेनन की पहली मुलाकात एक नाटक की रिहर्सल के दौरान हुई थी लेकिन किसीको भी पहली नजर वाला प्यार नहीं हुआ था, धीरे-धीरे मुलाक़ाते बढती गई और एक दिन दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया था।

खैर टेलीविजन इंडस्ट्री के बाद मेनन को एक बार फिर बोलीवुड में आने की जरूरत थी जिसमें उनकी मदद अनुराग कश्यप ने की जो खुद पहले एक एक्टर बनने आए थे लेकिन धीरे-धीरे उनका मन राइटिंग और डायरेक्शन की तरफ झुकने लगा और उन्होंने ‌पांच नाम से साल 2003 में एक फिल्म का निर्माण किया जिसमें मेनन को एक शख्त और शानदार किरदार दिया गया था।

फिल्म बन तो गई लेकिन सेंशर में अटक जाने के कारण कभी रीलीज नहीं हो पाई और आखिरकार थक हारकर अनुराग कश्यप ने इस फिल्म को कई सालों बाद युट्यूब और बाकि अलग अलग प्लेटफॉर्म्स पर अपलोड कर दिया था जहां यह फिल्म आज भी फिल्म प्रशंसकों के बीच काफी लोकप्रिय हुई और मेनन के काम को खूब पसंद भी किया गया था।

लेकिन मेनन का अब तक का फिल्मी सफर बोक्स ओफीस सक्सेस के मामले में अच्छा नहीं चल रहा था, पांच से पहले मेनन की पहली फिल्म भी उस तरह की कमाई नहीं कर पाई थी जिसकी आशा की जा रही थी और उसके बाद नसीर साहब के साथ भोपाल गैस त्रासदी पर आधारित फिल्म भोपाल एक्सप्रेस में मेनन ने अच्छा प्रदर्शन किया था लेकिन वो फिल्म कब रिलीज हुई पता ही नहीं चला।

एक निराशाजनक दौर के बाद फिल्म हजारों ख्वाहिशें ऐसी मेनन  के करियर में एक राहत बनकर आई जो आज एक कल्ट क्लासिक बन गई है।

के के मेनन का हिंदी फिल्म में शुरुआत-

इसके बाद के के मेनन एक बार फिर अपने पुराने दोस्त अनुराग कश्यप के डायरेक्शन में बनी फिल्म ब्लैक फ्राइडे में एक पुलिस इंस्पेक्टर के रोल में में नजर आए थे, एक सच्ची घटना पर आधारित इस फिल्म में मेनन द्वारा निभाया गया किरदार सच्चाई से जुड़ा हुआ नजर आता है जिसके पीछे का कारण इस कलाकार का बेहतरीन हुनर है जो पहले रोक बैंड आर्टिस्ट से सीधे पुलिस इंस्पेक्टर के रोल में काफी आसानी से ढल जाता है।

ब्लैक फ्राइडे भी कुछ समय के इंतजार के बाद जाकर रीलीज हुई थी लेकिन इसके बाद मेनन लगातार लगभग हर साल हमें किसी न किसी रूप में नजर आते रहे हैं।

अमिताभ बच्चन के साथ फिल्म दीवार में काम करने के बाद साल 2005 में मेनन एक बार फिर बच्चन साहब के साथ फिल्म सरकार में नजर आए थे, यह फिल्म मेनन के करियर का टर्निंग प्वाइंट साबित हुई जिसके बारे में वो बताते हैं कि इस फिल्म के बाद उन्हें किसीको भी अपना परिचय देने की जरूरत नहीं पड़ती थी लोग उनको पहचानने लगे थे।

Film Sarkar NaaradTV1231
Film: Sarkar

फिल्म- सरकार

सरकार में मेनन के द्वारा निभाए गए विष्णु नागरे के रोल के लिए इनको फिल्मफेयर की तरफ से पहली बार बेस्ट परफॉर्मेंस इन नेगेटिव रोल के लिए नोमिनेट किया गया था।

सरकार के बाद यह कलाकार हमें कई तरह के अलग अलग मगर यादगार रोल्स में नजर आया फिर वो चाहे लाइफ इन ए मेट्रो का रंजीत हो या फिर शौर्य का ब्रिगेडियर रुद्र प्रताप सिंह, के के मेनन ने हर तरह के किरदार में अपनी आंखों और डायलॉग डिलीवरी के जरिए फिल्म प्रशंसकों को मंत्रमुग्ध करने का काम किया है।

शौर्य और गुलाल इन दोनों फिल्मों का नाम सामने आते ही सबसे पहले मेनन के वो दो सीन ही याद आते हैं जहां इस अभिनेता की शानदार संवाद अदायगी ने हर किसीको इनका कायल कर दिया था।

2013 में एनीबडी केन डांस और साल 2014 में राजा नटवरलाल में नजर आने वाले मेनन को अपनी जिंदगी का शायद सबसे शानदार किरदार विशाल भारद्वाज की फिल्म हेदर में मिला था, शेक्सपियर के लोकप्रिय नाटक हेमलेट के इस भारतीय एडेप्टेशन में मेनन ने खुर्रम मीर का यादगार किरदार निभाया था जिसकी बदौलत इन्हें इंटरनेशनल इंडियन फिल्म एकेडमी और फिल्मफेयर अवार्ड सहित दुनिया भर के फिल्म प्रशंसकों की तरफ से अनगिनत सराहनाए मिली थी।

Film Gulaal
Film: Gulaal

फिल्म-गुलाल

फिल्म गुलाल के उस पहले दृश्य की बात करते हुए मेनन बताते हैं कि उस दृश्य की शूटिंग रात के लगभग 2 बजे हुई थी और उस दृश्य को एक कट में पुरा करना जरुरी था इसलिए काफी मुश्किलों के बावजूद भी मेनन ने अपना पुरा हुनर उस एक दृश्य में अपनी संवाद अदायगी और फेसियल एक्सप्रेशन पर झोंक दिया जो उस दृश्य में नजर भी आता है।

अपने काम को लेकर बात करते हुए मेनन बताते हैं कि वो किसी फिल्म में किरदार से ज्यादा उस आदमी को निभाने की कोशिश करते हैं क्योंकि उनके अनुसार सिनेमा में किरदार गिने चुने ही है लेकिन इंसान बहुत प्रकार के होते हैं और अलग-अलग इंसानो को पर्दे पर लाने में बहुत मज़ा आता है।

Film Haider
Film: Haider

फिल्म- हैदर

फिल्म हैदर के बाद मेनन ने बोलीवुड की मेनस्ट्रीम ओडियंस तक अपनी पहचान बना ली थी जिसके चलते उन्हें हिंदी सिनेमा की कुछ बड़े बजट की फिल्मों में भी काम मिलने लगा जिसमें बेबी और ए फ्लाईंग जट जैसे नाम शामिल हैं।

के के मेनन फिल्मों से अलग वेब सीरीज की दुनिया में भी लगातार सक्रिय हैं जहां पिछले साल आई वेब सीरीज स्पेशल ओप्स में हिम्मत सिंह के किरदार ने इस कलाकार को आम लोगों के बीच बड़ी पहचान देने का काम किया है।

इस वेबसीरीज के दुसरे पार्ट के जरिए मेनन एक बार फिर इंटरनेट की दुनिया में अपने हुनर का जलवा बिखेर रहे हैं साथ ही उनके कई और प्रोजेक्ट्स भी भविष्य में आने वाले है इसी उम्मीद के साथ कि यह कलाकार यूं ही हमें अपने हुनर से इंटरटेन करता रहेगा।

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