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भानु अथैया : वो महिला जिसने भारत को पहला ऑस्कर दिलाया

भानु अथैया भारत के लिए पहला आस्कर लाने वाली महिला
भारत में आस्कर किसने लाया

भानु अथैया : 1913 में राजा हरिश्चंद्र फिल्म से शुरू हुआ भारतीय फिल्म इंडस्ट्री का सफर अपने 107 साल पुरे कर चुका है। और आज यह इंडस्ट्री दुनिया की सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री है। हर साल यहां सैंकड़ों फिल्में बनती है और रिलीज होती है। लेकिन इतना सबकुछ होने के बाद भी भारतीय फिल्म उद्योग फिल्म जगत में अपनी असली पहचान के लिए आज भी संघर्ष कर रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में कला और कलाकार को छोटे और बड़े में बांट दिया जाता है।

यह भारतीय फिल्म इंडस्ट्री का दुर्भाग्य है कि यहां गीतकारों,  डिजाइनरों को और किसी संगीतकार के नीचे काम करने वाले कलाकारों को छोटा समझा जाता है। लेकिन आज हम एक ऐसे कलाकार की बात करने वाले है  जिन्होंने भारतीय फिल्म इंडस्ट्री से आस्कर के सूखे को खत्म करने का काम किया और भारत को पहली बार फिल्म जगत के सबसे बड़े मंच पर खड़े होने का मौका दिया। एक ऐसी महिला जिसने अपनी सोच और अपनी कलाकारी से कई भारतीय फिल्मों को सजाने का काम किया।

और अपने बेहतरीन काम से भारत की कलाकारी को सिनेमा के सबसे बड़े मंच पर स्थान दिलाने का भी काम किया। आप समझ ही गए होंगे कि आज हम पहली भारतीय आस्कर  विजेता भानु अथैया जी के बारे में बात करने वाले है।

नमस्कार दोस्तों

भानुमती अन्ना साहेब राजोपाधाय ‌अथैया का जन्म 28 अप्रैल 1929 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर शहर में हुआ था। इनके पिता का नाम अन्ना साहेब राजोपाधाय और मां का नाम शांताबाई राजोपाधाय था। इनके पिता एक चित्रकार और फोटोग्राफर थे जो फिल्म निर्माता बाबूराव पेंटर के लिए काम करते थे।

भानू जी अपने पिता की सात संतानों में से तीसरी संतान थी। एक कला प्रेमी परिवार से ताल्लुक रखने के कारण भानु जी की रुचि भी कला की तरफ बहुत ही छोटी उम्र में हो गई थी। इसी रुचि को देखते हुए इनके पिता ने इनके लिए घर पर ही एक ड्रोइंग टीचर की व्यवस्था कर दी थी।

इसके बाद इनके पिता ने इनका दाखिला मुम्बई की जे जे स्कूल ओफ आर्टस में करवा दिया जहां इन्हें अपनी कला को निखारने का मौका मिला। भानु जी जब नौ साल की हुई तब इनके पिता का निधन हो गया लेकिन इतनी बड़ी क्षति के बाद भी इन्होंने अपने काम को जारी रखा और जे जे स्कूल ओफ आर्टस से गोल्ड मेडल और फैलोशिप प्राप्त किया। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद इन्होंने इव विकली नामक पत्रिका के लिए फैशन इलेस्ट्रेटर के तौर पर काम शुरू कर दिया।

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पत्रिकाओं के लिए काम करने के दौरान इन्होंने बूटिक में भी काम करना शुरू कर दिया था। यहां भानू जी को एडिटर्स नामक पत्रिका द्वारा अपना पहला डिजाइनिंग प्रोजेक्ट मिला। इस प्रोजेक्ट के चलते भानु जी का बुटिक भी बहुत मशहूर हो गया और मुम्बई में इसकी चर्चा होने लगी।

इस दौरान फिल्म अभिनेत्री कामिनी कौशल जी की नजर इन पर पड़ी जिन्हें भानू जी का काम बहुत पसंद आया। भानू जी के काम से खुश होकर कामिनी जी उन्हें अपनी पर्सनल कोस्ट्यूम डिजाइनर के तौर पर काम करने को कहा जिसे भानू जी ने स्वीकार कर लिया। आगे चलकर भानू जी को 1953 में आई फिल्म शहंशाह और 1954 में आई फिल्म चालिस बाबा एक चोर के लिए कामिनी जी के कपड़े डिजाइन करने का मौका मिला।

इन फिल्मों में अपने काम के लिए भानु जी को फिल्म जगत में भी पहचाना जाने लगा और जल्द ही इन्हें कोस्ट्यूम डिजाइनर के तौर पर अपनी पहली फिल्म CID मिली। जिसमें इन्होंनें देवानंद और वहीदा रहमान जैसे कलाकारों के लिए काम किया। इसके बाद भानू जी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। गुरुदत्त के साथ इन्होंने 1957 में आई फिल्म प्यासा,1959 में आई फिल्म कागज के फूल और 1960 की फिल्म चौदहवीं का चांद जैसी फिल्मों में काम कर अपने फिल्मी करियर को आगे बढ़ाया।

गुरुदत्त के अलावा भानु जी ने राज कपूर और यश चोपड़ा जैसे फिल्म निर्माताओं के साथ भी काम किया था। शर्मिला टैगोर और साधना जी के साथ वक्त फिल्म में काम करना इनके लिए मील का पत्थर साबित हुआ। भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में अपने बेहतरीन काम के कारण भानु जी को कोनार्ड रोक्स और रिचर्ड एटनबरो जैसे होलीवुड फिल्म निर्माताओं के साथ भी काम करने का मौका मिला। रिचर्ड एटनबरो के साथ इन्होंने 1982 में आई फिल्म गांधी में काम किया था।

इस फिल्म के बारे में बात करते हुए रिचर्ड एटनबरो ने कहा था कि ये फिल्म उनका ड्रीम प्रोजेक्ट थी जिसके लिए उन्होंने की वर्षों तक मेहनत की थी। कई साल उन्हें इस फिल्म के मुख्य अभिनेताओं  को चुनने में लगे लेकिन जब इस फिल्म के लिए कोस्ट्यूम डिजाइनिंग की बात आई तो उन्हें 15 मिनट भी सोचना नहीं पड़ा, क्योंकि भानु जी से अच्छा काम इस फिल्म में और कोई नहीं कर सकता था। ये वाक्य भानु जी की प्रतिभा का सबसे बड़ा सबूत है।

भानू जी ने भी रिचर्ड एटनबरो के विश्वास को कायम रखा और गांधी फिल्म में अपने शानदार काम के लिए 11 अप्रैल 1983 को जोन मोलो के साथ फिल्म जगत का सबसे बड़ा पुरस्कार ओस्कर  अपने नाम किया। गाइड, तीसरी मंजिल, राम तेरी गंगा मैली, लगान और द बर्निंग ट्रेन में अपने शानदार काम के लिए मशहूर भानु अथैया जी ने कुल 100 फिल्मों में काम किया है। भानू अथैया जी को अपने काम में भारतीय संस्कृति के वैभव को दिखाने के लिए जाना जाता है। भारतीय संस्कृति के प्रति उनका प्यार उनके काम में साफ दिखाई देता है।

भानू जी ने अपनी ड्रेसेज में महंगे आभूषणों का प्रयोग बहुत ही कम किया है। फिर चाहे हम बात करें लगान फिल्म की गौरी की या फिल्म चांदनी में श्रीदेवी की भानू जी के काम की चमक सोने से भी कहीं अधिक थी। और 1966 में आई फिल्म आम्रपाली में वैजन्ती माला की कोस्ट्यूम कौन भूल सकता है। वैजन्ती माला की इस कोस्ट्यूम के बारे में बात करते हुए भानू जी की बेटी राधिका गुप्ता ने कहा था कि उस कोस्ट्यूम के लिए भानु जी ने बहुत लम्बे समय तक रिसर्च की थी और साथ ही अजन्ता और एलोरा का भ्रमण भी किया था। अपने काम के प्रति इसी लगन के साथ भानु अथैया ने 60 सालों तक भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में काम किया था।

और अपने करियर के शुरुआती सालों में भानू जी भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में एकमात्र महिला कोस्ट्यूम डिजाइनर थी। भानु अथैया को आस्कर के अलावा भी बहुत से अवार्ड से सम्मानित किया गया था। जिनमें से लगान और लेकिन जैसी फिल्मों के लिए इन्हें नेशनल अवार्ड से भी नवाजा गया था। इसके अलावा 2009 में इन्हें फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड भी मिला है। 2014 में आए महाभारत सीरियल के लिए भी इन्हें बेस्ट कोस्ट्यूम डिजाइनर का अवार्ड दिया गया था।

2004 में आई फिल्म स्वदेश भानु जी के करियर की आखिरी बोलीवुड फिल्म थी। 2010 में इनकी कीताब द आर्ट ऑफ कोस्ट्यूम डिजाइन हार्पर कोलिंस द्वारा पब्लिश हुई थी जिसमें भानु जी ने अपने जीवन के कई अनसुने तथ्यों को सामने लाने का काम किया। भानू अथैया की शादी फिल्म गीतकार और कवि सत्येन्द्र अथैया से हुई। जिससे इनको एक बेटी हुई जिसका नाम राधिका गुप्ता है। लेकिन जल्द ही ये दोनों डिवोर्स लेकर अलग हो गए थे।

साल 2012 को भानु अथैया ब्रेन ट्यूमर के लक्षण दिखाई देने लगे थे जिसके चलते दिसंबर 2012 में उन्होंने अपना आस्कर अवार्ड यह कहते हुए वापस कर दिया था कि उनके निधन के बाद उनका परिवार उस अवार्ड का रखरखाव नहीं कर पाएगा। 2014 में आई मराठी फिल्म नागरिक भानु अथैया जी के करियर की आखिरी फिल्म थी जिसके बाद उन्होंने अपनी बीमारी के चलते काम छोड़ दिया। भानू अथैया जी को ताउम्र एक बात का पछतावा रहा कि आस्कर प्राप्त करने के बाद भी वो‌ कोस्ट्यूम डिजाइनिंग के काम को भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में उसका मुकाम नहीं दिला पाई।15 अक्टूबर 2020 को भारतीय फिल्म जगत की इस बेहतरीन कलाकार ने अपनी आखिरी सांस ली।लेकिन वो कहते है ना कि कलाकार कभी नहीं मरता, वो अपने काम के कारण हमेशा के लिए अमर हो जाता है।अपनी प्रतिभा से भारतीय फिल्म जगत को सुशोभित करने वाली भानु अथैया जी भी अपने काम की बदौलत अमर हो चुकी है।उनके 60 साल के करियर और अप्रतिम योगदान को शब्दों में ढालना मुमकिन नहीं है।

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