दोस्तों कहा जाता है कि फैलियर हर इंसान की जिंदगी का एक निश्चित हिस्सा होता है और उसका सामना हर इंसान को अपने अपने तरीके से करना पड़ता है।
जिंदगी में कुछ बड़ा करने के लिए यह बहुत जरूरी है कि आप अपनी जिंदगी में आए फैलियर का सामना किस तरह से करते हैं।
आज के इस एपिसोड में हम एक ऐसे ही शख्स की बात करने वाले है जिन्होंने भारतीय क्रिकेट की सेवा की और जब वहां उनका समय खत्म हो गया तो उन्होंने हार मानने की बजाय एक नया रास्ता अख्तियार किया और आज उनका वही फैसला उस शख्स को हजारों लोगों की प्रेरणा बनाता है।
एक आम इंसान से बेहतरीन क्रिकेटर और फिर साउथ फिल्म इंडस्ट्री के सुपरस्टार बनने की इस कहानी के मुख्य पात्र का नाम है सदगोपन रमेश।
आज हम इसी शानदार क्रिकेटर और एक्टर की बात करने वाले है लेकिन उससे पहले
सदगोपन रमेश का जन्म 13 अक्टूबर 1975 को मद्रास पी सी सदगोपन के घर हुआ था।
एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे हर लड़के की ही तरह रमेश को भी पढ़ाई-लिखाई से कहीं अधिक खेलों में अधिक रुचि थी और यही वजह थी कि सदगोपन रमेश ने दस साल की उम्र से ही क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था।
सदगोपन रमेश को आज भले ही क्रिकेट प्रशंसक एक सलामी बल्लेबाज के तौर पर याद करते हैं लेकिन इस सफर की शुरुआत एक तेज गेंदबाज बनने के सपने से हुई थी।
सदगोपन रमेश दस साल की उम्र में बाकि बच्चों से अलग बल्लेबाजी से कहीं अधिक गेंद से प्यार करते थे और टेनिस बॉल से अपनी पेस बढ़ाने की कोशिश किया करते थे।
सदगोपन रमेश ने U13 के सलेक्शन के लिए खेले जाने वाले मैचों में एक तेज गेंदबाज के तौर पर अच्छा प्रदर्शन किया था लेकिन इसके बावजूद भी इनका सलेक्शन तमिलनाडु की U13 टीम में नहीं हुआ।
इससे परेशान होकर रमेश ने तेज गेंदबाजी को छोड़ दिया और खुद को एक स्पीन गेंदबाज के तौर पर तैयार करना शुरू कर दिया था।
तेज गेंदबाजी को छोड़ने के पीछे का कारण पूछने पर रमेश ने अपने एक इंटरव्यू बताया था कि तेज गेंदबाजी से होने वाली थकावट और अच्छे प्रदर्शन के बावजूद मिलने वाली निराशा के चलते उन्होंने यह फैसला लिया था।
सदगोपन रमेश ने एक ओफ स्पीन गेंदबाज के तौर पर अंडर 16 के लिए ट्रायल मैच खेले और यहां उनके प्रदर्शन को निराशा का मुंह नहीं देखना पड़ा और इस बार रमेश का सलेक्शन U16 टीम में हो गया।
सदगोपन रमेश ने अपना क्रिकेट करियर लोवर ओर्डर बैट्समैन के तौर पर शुरू किया था लेकिन जल्द बल्लेबाजी में इनकी काबिलियत को देखते हुए इन्हें मिडिल ओर्डर का एक रेगुलर बल्लेबाज बना दिया गया था।
यहां से रमेश U16 और क्लब मैचों में अपनी गेंदबाजी के साथ साथ बल्लेबाजी में भी अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे और यही वजह थी कि जब एक क्लब मैच के दौरान इनकी टीम का एक सलामी बल्लेबाज चोट के कारण मैदान पर नहीं उतर पाया तो टीम मैनेजमेंट ने रमेश को पहली बार टीम के लिए ओपनिंग करने के लिए भेज दिया।
इस तरह एक तेज गेंदबाज के तौर पर शुरू हुआ एक सफर कई टेढ़े मेढे रास्तों से होकर उस मंजिल तक पहुंच गया जहां से भारतीय टीम में शामिल होने का रास्ता रमेश के लिए आसान होने वाला था।
सदगोपन रमेश ने अपने फस्ट क्लास क्रिकेट करियर की शुरुआत साल 1995 में हैदराबाद के खिलाफ खेलते हुए की और पहली पारी में 59 और दुसरी पारी में 132 रनों की शानदार पारी खेलकर सबको आश्चर्यचकित कर दिया था।
सदगोपन रमेश ने यहां से अपनी बल्लेबाजी को निखारना शुरू कर दिया था जिसकी पहली चमक साल 1998-99 के रणजी ट्रॉफी सीज़न में देखने को मिली थी।
इस सीजन में सदगोपन रमेश ने 52 की औसत से रन बनाए थे जिनमें करेला की टीम के खिलाफ खेली गई 158 रनों की पारी भी शामिल है।
इस मैच में रमेश ने अपने साथी सलामी बल्लेबाज कृष्ण राज श्रीनाथ के साथ मिलकर पहले विकेट के लिए 329 की साझेदारी की थी।
नवजोत सिंह सिद्धू के अचानक संन्यास लेने के बाद जब भारतीय टीम में एक अच्छे ओपनिंग बल्लेबाज की जरूरत महसूस हुई तो सदगोपन रमेश के अच्छे प्रदर्शन को देखते हुए इन्हें भारतीय चयन समिति द्वारा चुने लिया गया और इस तरह सदगोपन रमेश का एक लम्बा इंतजार खत्म हो गया।
सदगोपन रमेश ने अपना पहला टेस्ट पाकिस्तान जैसी चीर प्रतिद्वंद्वी टीम के खिलाफ अपने होम ग्राउंड चेपोक में खेलने का मौका मिला था।
रमेश के सामने इस मैच में अपने होमग्राउंड पर वसीम अकरम, वकार युनूस, शोएब अख्तर और शक्लेन मुश्ताक जैसे दिग्गज गेंदबाजों का सामना करते हुए करोड़ों उम्मीदों का बोझ साथ लेकर खेलने का प्रेशर था जो किसी भी नये खिलाड़ी को तोड़ने के लिए काफी है।
लेकिन रमेश ने इस प्रेशर को एक मौके की तरह लिया और दिन के आखिरी सात ओवरों में जब रमेश को बल्लेबाजी करने का मौका मिला तो उन्होंने 22 गेंदों में 30 रनों की नाबाद और सनी हुई पारी खेली।
पारी भले ही छोटी थी लेकिन उस समय भारतीय टीम को मैच में बनाए रखने के लिए बहुत जरूरी थी और इसीलिए जब रमेश दिन का खेल खत्म होने के बाद ड्रेसिंग रूम में आए तो वहां भारतीय टीम के कप्तान ने उन्हें एक जोड़ी जूते भेंट करते हुए कहा कि उन्होंने आज तक किसी भी यंगस्टर को वकार और वसीम के सामने इस तरह खेलते हुए नहीं देखा।
इस सिरीज़ का अगला मैच दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान पर खेला जाने वाला था, इस मैच को अनिल कुंबले के उस करिश्माई स्पैल की बदौलत याद किया जाता है जिसमें उन्होंने पाकिस्तानी टीम के दस विकेट अपने नाम किए थे, लेकिन सदगोपन रमेश ने यहां भी अच्छा प्रदर्शन करते हुए भारतीय टीम को जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी।
इस मैच की पहली पारी में 67 और दुसरी पारी में रमेश के बल्ले से निकले 96 रनों की पारी की बदौलत भारतीय टीम ने पाकिस्तानी टीम को इस मैच में सिर उठाने का मौका भी नहीं दिया था।
इस मैच में एक मौके पर जब अनिल कुंबले नौ विकेट चटका चुके थे, वकार युनूस बल्लेबाजी कर रहे थे और गेंद श्रीनाथ के हाथों में थी तब सदगोपन रमेश के जानबूझकर छोड़े गए कैच की बदौलत ही अनिल कुंबले अपने दस विकेट पुरे कर पाएं थे।
तो इस तरह सदगोपन रमेश ने भारत को यह मैच जीताने के साथ साथ कुंबले के उस रिकॉर्ड के बनने में भी अपनी भूमिका निभाई थी।
रमेश ने अपने वनडे करियर का आगाज भी साल 1999 में श्रीलंका के खिलाफ खेलते हुए किया था।
पाकिस्तान के खिलाफ भारतीय टीम ने अपने लगातार 8 मैचों की हार का सिलसिला तोड़ने के लिए शारजहां में खेले जाने वाले मैच में रमेश को टीम में शामिल किया जहां इन्होंने अपनी बल्ले से शानदार 82 रन बनाए थे।
इस मैच में राहुल द्रविड़ के साथ इनकी 166 रनों की साझेदारी ने भारत को एक शर्मनाक सिलसिले से निजात दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी।
साल 1999 के वल्डकप में सचिन तेंदुलकर वापस भारत आ जाने पर जिम्बाब्वे के खिलाफ सदगोपन रमेश को अपना पहला वल्डकप मैच खेलने का मौका मिला, रमेश ने यहां भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया और शानदार 52 रनों की पारी खेली।
कोका कोला कप के दौरान सौरव गांगुली पहली बार भारतीय टीम की कप्तानी कर रहे थे और भारत का पहला मैच वेस्टइंडीज के खिलाफ खेला था रहा था, इसी मैच के दौरान सौरव गांगुली ने अचानक रमेश को गेंदबाजी के लिए बुलाया, रमेश ने अपने वनडे करियर की पहली ही गेंद पर निक्सन मैक्लेन को मोहंती के हाथों कैच आउट करवाकर एक अविश्वसनीय रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया था।
रमेश भारतीय क्रिकेट के पहले ऐसे गेंदबाज बन गए थे जिसने अपने वनडे करियर की पहली गेंद पर विकेट लिया था, कई सालों बाद भुवनेश्वर कुमार ने इस रिकॉर्ड की बराबरी की थी।
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यह मैच ऐसे ही एक और इन्सीडेंट के लिए याद किया जाता है जिसमें वेस्टइंडीज के गेंदबाज वावेल हिंग्स ने अपने वनडे करियर की पहली गेंद पर msk प्रसाद को आउट कर दिया था।
साल1999 रमेश के करियर का एक यादगार साल रहा और उन्हें शानदार प्रदर्शन की बदौलत उस साल का इंडियन क्रिकेटर ओफ द इयर भी चुना गया था लेकिन इसके बाद इस खिलाड़ी को कभी भी उतने मौके नहीं मिले जिसमें रमेश भारतीय टीम में अपनी जगह पक्की कर सके।
अच्छे प्रदर्शन के बावजूद भी सदगोपन रमेश को 2 सितंबर 2001 के बाद कभी भी भारतीय टेस्ट टीम में जगह नहीं मिली और बात करें इनके वनडे करियर की तो सदगोपन रमेश का वनडे करियर चन्द महीनों में ही खत्म हो गया था।
मार्च 1999 में अपना पहला वनडे मैच खेलने वाले सदगोपन रमेश को अक्टुबर 1999 में आखिरी बार भारतीय टीम की रंगीन जर्सी में देखा गया था।
रमेश ने अपने करियर में कुल 19 टेस्ट और 24 वनडे मैच खेले थे जिनमें इनके रनों का आंकड़ा क्रमश 1367 और646 है।
30 और पचास के स्कोर को शतक तक ना पहुंच पाना ही रमेश के क्रिकेट करियर की नाकामी का सबसे बड़ा कारण माना जाता है।
क्रिकेट को अलविदा कहने के बाद सदगोपन रमेश ने एक कोमेंटेटर के तौर पर खुद को क्रिकेट से जोड़े रखा और फिर साल 2008 में साउथ फिल्म संतोष सुब्रमण्यम से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की और आज सदगोपन रमेश साउथ इंडस्ट्री का एक जाना पहचाना चेहरा होने के साथ साथ एक बिजनेस मैन भी है।
छोटे से करियर और कई निराशाओं के बाद इस तरह की जिंदगी के उदाहरण भारतीय क्रिकेट में बहुत कम देखने को मिलते हैं और यही बात रमेश को बाकि सभी लोगों से अलग बनाती है।
अब बात करें इनकी निजी जिंदगी के बारे में तो साल 2004 में रमेश की शादी अपर्णा से हुई थी जिनसे इन्हें एक बेटा और एक बेटी है।
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