फिल्म रिव्यु : India Lockdown- मधुर भंडारकर का हवस भरा लॉक डाउन
India Lockdown Movie Review Naarad TV Anurag Suryavanshi
24 मार्च 2020 | ये वो तारीख है जिसे शायद ही कोई भूल पायेगा | इसी दिन कोरोना के खतरे को देखते हुए भारत में लॉकडाउन लगा दिया गया था | लॉकडाउन…. ! जिसमें दुःख है, दर्द है, बेबसी है, बेकसी है, मजबूरी है | डायरेक्टर मधुर भंडारकर ने उसी लॉकडाउन के दर्द को पर्दे पर उभारने की कोशिश की है | लेकिन जब इन्सान किसी चीज के बारे में हद से ज्यादा सोचने लगता है तो वो चीज उसके दिलो दिमाग पर हावी हो जाती है | माधुर भंडारकर भी इसी का शिकार हो चुके लगते हैं | सोचिये जो आदमी लॉकडाउन में भी हवस और वासना जैसी चीज ढूंढ निकाले उसके दिमाग में क्या चल रहा होगा |
इस फिल्म का सत्तर फीसदी हिस्सा इसी हवस और वासना को समर्पित है | फिल्म में सुखविन्दर सिंह की आवाज में एक गाना भी है कैसी घोर भसड़ है रे बंधू….! बस यही गाना पूरी फिल्म को बयान करता है | मतलब वाकई में पूरी फिल्म एक भसड़ है | फिल्म में चार अलग अलग कहानियां हैं जो एक दूसरे के पैरलल चलती हैं | जहाँ एक पिता अपनी बेटी की डिलीवरी के लिए हैदराबाद जाने का प्लानिंग कर रहा है | वहीं वही बिहार से मुंबई आया माधव यानी प्रतीक बब्बर अपना बिजनेस जमाने में लगा हुआ है | ये तो हो गई दो कहानियां | लेकिन सारा गुड़ गोबर तो आगे की दो कहानियों ने किया है | एक सेक्स वर्कर की कहानी और दूसरे एक दूसरे की मोहब्बत में गले तक डूबे अपनी वर्जिनिटी खोने को बेताब दो युवा प्रेमी जोड़े की कहानी दोनों ने मिलकर फिल्म की लुटिया डुबोई है |
इसमें कोई दोराय नहीं कि लॉकडाउन में सेक्स वर्करों और एक दूसरे से दूर रह गये लवर्स की भी अपनी समस्याएं रही होंगी | लेकिन क्या ये समस्याएं सैकड़ों किमी पैदल चले रहे सड़कों की खाक छान रहे उन मजबूर मजदूरों के पैरों में पड़ आये फफोलों से भी ज्यादा दर्दनाक थीं? फिल्म में सेक्स का कितनी इम्पोर्टेंस दी गई है ये जानने के लिए इसका पोस्टर ही काफी है | इसके पोस्टर के सेण्टर में कोई और नहीं बल्कि सेक्स वर्कर ही है | यानी भंडारकर ये मानते हैं कि लॉकडाउन में किसी का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है तो वो सेक्स वर्कर ही है |
फिल्म का सब्जेक्ट बेहतरीन है | लेकिन जिस तरह से इसे ट्रीट किया गया है एक दर्शक उससे कभी कनेक्ट हो ही नहीं पाता | फिल्म में एक भी ऐसा सीन नहीं है जिसे देख आपकी आँखें नम हो जाएँ | सब कुछ बड़े ही सतही स्तर पर दिखाया गया है | जैसे ही लगता है कि अब कुछ बढ़िया होने वाला है तभी फिल्म कहीं और घूम जाती है | तब बिलकुल छू के भागने वाली फीलिंग आती है | कहीं कहीं लगता है कि मधुर का वही पुराना जादू चलने जा रहा है लेकिन अचानक वो किसी और दिशा में मुड़ लेते हैं |
प्रतीक बब्बर को फिल्म में सबसे ज्यादा स्पेस मिला है | कहीं कहीं पर उन्होंने अच्छा काम भी किया है लेकिन अपनी भूमिका के साथ वो पूरा न्याय नहीं कर पाए हैं | सबसे ज्यादा इरिटेट करता है उनका लहजा | फिल्म में भले ही उन्हें बिहारी दिखाया गया हो लेकिन पूरी फिल्म में उनका एक्सेंट कहीं से भी बिहारी नहीं लगता | अब इसे प्रतीक की कमजोरी कहा जाये या डायरेक्टर की सोच जिसने शायद इन जरूरी चीजों पर ध्यान दें जरूरी नहीं समझा | इसमें कोई दोराय नहीं कि पिछले कुछ सालों में प्रतीक ने अपनी एक्टिंग से लोगों का ध्यान खींचा है | बच्चन पांडे, मुंबई सागा, और मुल्क जैसी फिल्मों से उन्होंने अपनी एक्टिंग की छाप छोड़ी है | इंडिया लॉकडाउन में भी उन्हें किरदार और स्पेस बढ़िया मिला है | उनकी मेहनत भी दिखती है लेकिन फिर भी कुछ मिसिंग लगता है |
रेड लाइट एरिया से जुड़े सेक्स वर्कर्स के हालातों को बेहतर ढंग से दिखाया गया है | फिल्म के ट्रेलर में ही इसकी झलक मिल जाती है | ट्रेलर में कई जगह पर इसको दिखाया भी गया है | ट्रेलर का एंड भी एक ऐसे ही भद्दे दिखाने वाले डायलाग से होता है | इसीलिए फिल्म को A सर्टिफिकेट मिला है | यही नहीं सेंसर बोर्ड ने इस पर 12 कट लगाये हैं | सोचिये अगर वो 12 सीन भी फिल्म में होते तो फिल्म इस दर्जे की बनती |
मधुर भंडारकर एक नेशनल अवार्ड विनर डायरेक्टर हैं | उनकी फ़िल्में कहीं न कहीं समाज से जुडी होती हैं | चांदनी बार, फैशन, पेज 3, हिरोइन हो या कोई और फिल्म हर फिल्म में एक मैसेज है | चमक दमक के पीछे की अँधेरी काली सच्चाई है | मधुर को ऐसे सब्जेक्ट्स को परदे पर पेश करने में महारथ हासिल है | उनकी फिल्मों में सेक्स ने हमेशा एक अहम किरदार प्ले किया हो | अपनी फिल्मों में बेधड़क इसे दिखाते रहे हैं | लेकिन उन फिल्मो में ये खलते नहीं क्योंकि उनके सब्जेक्ट ही ऐसे थे | लेकिन लॉकडाउन जैसे सेंसेटिव मुद्दे पर बनी फिल्म में सेक्स घुसाना अखरता है | पूरी फिल्म में यही वो चीज है जिसे पूरी संजीदगी से दिखाने की कोशिश की गई है | बाकी तो थी लगता है कि मधुर को डुबकी लगाने का शौक तो है लेकिन लम्बी डुबकी लगाने से डरते भी हैं |
सोचने की बात ये है कि इतने संवेदनशील विषय पर बनी फिल्म में शायद ही कोई ऐसा मौका आता है जिसे देख आप भावुक हो जाएँ और आपका गला रुंध जाये | हाँ फिल्म में सभी कहानियां आखिर में आकर फिल्म जाती हैं | फिल्म ये जरूर बताती है कि इस सभी ने लॉक डाउन से जुड़े हालातों का सामना जैसे किया | वो कैसे लड़े और इस मुश्किल वक्त में भी कैसे जीते यही फिल्म का प्लस पॉइंट है | लेकिन शुरुआती आधे घंटे में फिल्म जिस गति से रेंगती है उसे देख आपको झपकी भी आ सकती है |
अगर हम भंडारकर की पिछली कुछ फिल्मों पर गौर करें तो दर्शकों पर उनकी पकड लगातार ढीली पड़ती जा रही है | 2017 में आई इंदु सरकार हो या इसी साल आई बबली बाउंसर दोनों का हाल बेहाल रहा | इस फिल्म को देखकर लगता है कि अच्छा ही रहा जो ये OTT पर रिलीज हुई |
फिल्म जी 5 पर स्ट्रीम हो रही है | अगर लॉकडाउन की कडवी यादें ताजा करना चाहते हों तो एक बार तो देखी ही जा सकती है |