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बीच मैदान में हुई बल्लों की जाँच और फिर भारतीय बल्लेबाज़ टूट पड़ें। 

   क्रिकेट हो या कोई अन्य टीम गेम, देश को रिप्रेज़ेन्ट (का प्रतिनिधित्व) करने वाले चंद (कुछ) खिलाड़ियों पर ही करोड़ों आँखों के ख़्वाब टिके होते हैं। इन ख़्वाबों का बोझ ही होता है जो विश्व कप जैसे बड़े मंच पर हसन अली से आसान कैच छुड़वा देता है, बेन स्टोक्स से चार फुल लेंथ गेंदें पड़वा देता है और मिस्बाह को स्कूप शॉट खेलने पर मजबूर करता है। ये उदाहरण साफ़ इस बात की गवाही देते हैं कि विश्व कप का दबाव कितनी बड़ी ग़लतियाँ करवा सकता है।

एक ऐसा ही दबाव 2003 में थी, सौरव गाँगुली की कप्तानी वाली आल टाइम फ़ेवरेट भारतीय टीम। क्योंकि, हॉलैंड के विरुद्ध ढीली जीत और ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध करारी हार ने भारतीय क्रिकेट को जो झटका दिया था। उसने भारतीय फ़ैन्स का गुस्सा इतना बढ़ा दिया कि बात आगज़नी और पत्थरबाज़ी तक पहुँच गयी थी। इतना ही नहीं मीडिया ने भी हार का मातम मनाते हुए ‘कागज़ के शेर, सवा सौ पर ढेर’  जैसी शर्मसार करने वाली कई हेडलाइंस लिखी थी।

ऐसे में इस नेगेटिव माहौल का असर ज़िम्बाब्वे के विरुद्ध तीसरे मैच में दिखना लाज़मी था। वो मैच जिसने चंद प्लेयर को एक टीम बनाया था। वो मैच जिसने सौरव गांगुली समेत कई बड़े खिलाड़ियों को हौसला लौटाया था। वो मैच जो नारद टी.वी. की ख़ास श्रृंखला ‘रिवाइंड वर्ल्ड कप 2003’ का तीसरा एपिसोड है।

तो चलिये दोस्तों! बिना ज़्यादा भूमिका बनाये सीधे आपको लिये चलते हैं आज से ठीक 19 साल पहले हरारे के उस मैदान पर, जहाँ भारत अपनी साख अपने हाथों में लिये ज़िम्बाब्वे से मुकाबलें के लिये उतरा था।

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(India vs Zimbabwe) भारत बनाम ज़िम्बाब्वे 2003-

दोस्तों, भारत बनाम ज़िम्बाब्वे 2003 विश्व कप मैच ग्रुप ‘ए’ का आठवां और विश्व कप का कुल 17वां मुक़ाबला था। अभी तक हुए विश्व कप में विवादों और आश्चर्यजनक घटनाओं का ज़िक्र हम पिछले एपिसोड में कर चुके हैं। हालाँकि, विवादो का दौर यहीं नहीं थमा था। मगर, जैसे-जैसे विश्व कप आगे बढ़ता गया। वैसे-वैसे विवादों से ज़्यादा चर्चा क्रिकेट और बेहतरीन प्रदर्शनों की होने लगी। अभी तक हुए 2003 विश्व कप में स्कॉट स्टायरिस के श्रीलंका के विरुद्ध 141 रन, क्लूज़नर के केन्या के विरुद्ध 16 रन देकर 4 विकेट और क्रेग विशार्ट के नामीबिया के विरुद्ध 171 रन सबसे ख़ास थे।

जबकि, भारतीय टीम अभी तक एक यादगार प्रदर्शन को तरस रही थी। ऐसे में अच्छे प्रदर्शन की आस लिये आज से ठीक 19 साल पहले 19 फ़रवरी 2003 के रोज़ भारतीय टीम ज़िम्बाब्वे के सामने उतरी। वो ज़िम्बाब्वे टीम जो आज की तरह कमज़ोर नहीं थी। बल्कि, उस दौर की ज़िम्बाब्वे टीम के सामने तो ऑस्ट्रेलिया जैसी टीम भी घबराया करती थी। क्योंकि, उस ज़िम्बाब्वे टीम में जहाँ ओपनिंग में विशार्ट और वर्मूलैन जैसे आक्रामक बल्लेबाज़ थे। तो, वहीं मिडिल ऑर्डर में एंडी फ्लॉवर, ग्रांट फ्लॉवर, डिओन इब्राहिम और एंडी बिगनौट जैसे अनुभव से भरे क्लासिकल बल्लेबाज़ों की फ़ौज थी। साथ ही गेंदबाज़ी में हीथ स्ट्रीक, ब्रायन मर्फी और डगलस होन्डो जैसे मशहूर नाम भी थे। हालाँकि, भारतीय टीम भी सचिन, द्रविड़, युवराज, गाँगुली, ज़हीर, हरभजन सरीखे सितारों से सजी हुई थी।

यह भी पढ़ें:- शर्मनाक हार, कैफ़ के घर पत्थरबाज़ी और सचिन के हाथ जोड़ने की कहानी।

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मैच रेफ़री क्लाइव लॉयड

मैच रेफ़री क्लाइव लॉयड खिलाड़ियों के बल्लों की जाँच-

ऐसे में मुक़ाबला रोमांचक होने के आसार बहुत ज़्यादा थे और इस उम्मीद के साथ ही क़रीब 6,000 दर्शक मैदान में मौजूद थे। मगर, टॉस से ठीक पहले दोनों टीमों के ड्रेसिंग रूम्स में हड़कम्प तब मच गया। जब मैच रेफ़री क्लाइव लॉयड खिलाड़ियों के बल्लों की जाँच करने पहुँच गये। वहाँ लॉयड ने दोनों टीमों के बहुत से बल्लों की चौड़ाई सवा चार इंच से ज़्यादा पाई। बल्लों की ये चौड़ाई उस दौर के आई.सी.सी. नियमों का उलंघन थी। इसलिये, लॉयड ने खिलाड़ियों से बल्ले एक्सचेंज करने को कहा और इस रैंडम इंस्पेक्शन (आकस्मिक जाँच) के बाद टॉस की अनुमति दी।

इस तरह एक सरप्राइज़ के साथ शुरू हुआ भारत के 2003 विश्व कप अभियान का तीसरा मैच। टॉस ज़िम्बाब्वे ने जीता और पिच की नमी का फ़ायदा उठाने के लिये पहले गेंदबाज़ी चुनी। जबकि, भारतीय टीम ने भी पिच की रफ़्तार और उछाल का फ़ायदा लेने के लिये अनुभवी अनिल कुंबले की जगह युवा आशीष नेहरा को टीम में शामिल किया।

   दोस्तों, टॉस जीतने के बाद जब ज़िम्बाब्वे ने भारतीय टीम को बल्लेबाज़ी के लिये बुलाया तो बहुत से क्रिकेट एक्सपर्ट्स ने इसे माइंड गेम बताया। क्योंकि, भारतीय बल्लेबाज़ पिछले कुछ मैचों में पहले बल्लेबाज़ी करते हुए बुरी तरह फ़्लॉप रहे थे। हालाँकि, इस मैच में भारत अलग स्ट्रेटेजी (प्लान) के साथ उतरा था। जिसका सबसे पहला नमूना हमें सलामी जोड़ी के रूप में मिला। क्योंकि, इस बार सचिन के साथ कप्तान गाँगुली की जगह विस्फ़ोटक वीरेन्द्र सहवाग ओपनिंग पर उतरे थे और सहवाग ने आते ही स्टाइलिश स्ट्रोक्स लगाने शुरू किये। जबकि, दूसरी तरफ़ से सचिन तेंदुलकर सेट होने में वक़्त ले रहे थे और जब एक बार सचिन की निगाहें जम गई तो फिर उन्होंने मैदान के हर कोने में शॉट्स खेले।

अभी तक फ़्लॉप चल रही भारतीय बल्लेबाज़ी के लिए सचिन-सहवाग ने संजीवनी बूटी का काम किया और पहले विकेट के लिए 99 रन जोड़े। ज़िम्बाब्वे को मैच का पहला विकेट तब मिला, जब फ़र्स्ट चेंज बॉलर गाय विटऑल की बॉल पर सहवाग सधे हुए 36 रन बनाकर तातेंदा ताईबु के हाथों कैच आउट हो गये। इसके बाद भारतीय टीम की बदली हुई स्ट्रैटेजी के अनुसार नम्बर तीन पर दिनेश मोंगिया बल्लेबाज़ी करने आये।

मगर, पिछले 2 मैचों में अच्छा प्रदर्शन करने वाले दिनेश मोंगिया ज़िम्बाब्वे की कसी हुई गेंदबाज़ी के सामने छटपटा रहे थे और 37 गेंदों में सिर्फ़ 12 रन बनाकर ग्रांट फ्लॉवर को अपना विकेट दे बैठे। मोंगिया के विकेट के दो गेंद बाद ही तेंदुलकर भी फ्लॉवर की फ्लाइट में फँसकर बोल्ड हो गये।

एक के बाद एक इन दो विकेटों के चलते मोमेंटम ज़िम्बाब्वे की तरफ़ शिफ़्ट होता दिख रहा था। जिसे भारत की ओर करने के लिये गाँगुली ने द्रविड़ के साथ मिलकर काउंटर अटैक शुरू किया। मगर, 38वें ओवर में गाँगुली और 39 वें ओवर में युवराज के विकेटों ने एक दम भारतीय पारी पटरी से उतार दी।

Rahul Dravid Naaradtv
Rahul Dravid

( Rahul Dravid ) राहुल द्रविड़ के नाबाद 43 रन-

अब ऐसा लग रहा था कि हॉलैंड वाले मैच की तरह आज भी भारतीय पारी सवा दो सौ के अंदर सिमट जायेगी। लेकिन, यहीं से द्रविड़ और कैफ़ पिच पर पाँव जमाकर खड़े हो गये। दोनों ने अपने स्वभाव के उलट स्ट्रोक्स खेलने शुरू किये और ज़िम्बाब्वे के गेंदबाज़ों पर दबाव बनाया। हालाँकि, कैफ़ ने सिर्फ़ 24 रन बनाये। मगर, इन तेज़ 24 रनों की वजह से ही भारत अटैकिंग मोड में आ गया था। जिसे द्रविड़ ने नाबाद 43 रनों की मदद से फिनिशिंग टच दिया और अंत मे भारत का स्कोर ढाई सौ के पार पहुँचाया।

Sachin and Zimbambwe 121
Sachin Tendulkar
(Sachin Tendulkar) सचिन तेंदुलकर ने सबसे ज्यादा 81 रन बनाये-

भारत की तरफ़ से सबसे अधिक  81 रन सचिन ने बनाये। जबकि, ज़िम्बाब्वे की तरफ़ से चोटिल होने से पहले 6 ओवर में 14 रन देकर दो विकेट लेने वाले ग्रांट फ्लॉवर सबसे सफ़ल गेंदबाज़ थे। इस तरह पहली पारी ख़त्म होने के बाद जब ज़िम्बाब्वे को 256 रनों के लक्ष्य मिला तो मैच भारत के पक्ष में था। मगर, ज़िम्बाब्वे की बल्लेबाज़ी इतनी कमज़ोर नहीं थी। इसलिये, भारतीय गेंदबाज़ों का शुरू से दबाव बनाना ज़रूरी थी।

   दोस्तों, ज़िम्बाब्वे को 256 रनों तक पहुंचने के लिये एक अच्छी शुरुआत की सख़्त ज़रूरत थी। मगर, अनुभवी जवागल श्रीनाथ ने पहले तो पारी की छठी गेंद पर ही मार्क वेर्मूलैन को आउट किया। उसके बाद संभल रही ज़िम्बाब्वे को नौवें ओवर में क्रेग विशार्ट का विकेट लेकर और परेशानी में डाल दिया। हालाँकि, अब ज़िम्बाब्वे क्रिकेट इतिहास की सबसे सफ़ल एंडी और ग्रांट फ्लॉवर की जोड़ी क्रीज़ पर मौजूद थी। मगर, उस रोज़ एंडी फ्लॉवर स्ट्रगल करते दिख रहे थे और जब वो 54 गेंदों में 22 रन बनाकर हरभजन सिंह का शिकार हुए तो ज़िम्बाब्वे का स्कोर सिर्फ़ 48 रन था। इस ख़राब शुरुआत का नतीजा ये रहा कि 17 ओवरों के बाद ज़िम्बाब्वे ने सिसकते हुए 50 रनों का आँकड़ा हासिल किया।

यहाँ से ग्रांट फ्लॉवर और डियोन इब्राहिम ने पारी को सँभालने की कोशिश की। मगर, जब 24वें ओवर में ज़िम्बाब्वे का स्कोर 83 था। तो, लगातार दो गेंदों पर सौरव गाँगुली ने फ्लॉवर और इब्राहिम का विकेट लेकर ज़िम्बाब्वे की कमर तोड़ दी। इसके बाद अगले ही ओवर में गाँगुली ने बिगनौट का विकेट लेकर भारत के लिये जीत के रास्ते साफ़ कर दिये। ज़िम्बाब्वे के सारे बड़े 6 विकेट सौ रन के अंदर ही गिर गये थे और ज़िम्बाब्वे की हार साफ़ नज़र आ-रही थी। मगर, अब ज़िम्बाब्वे को रन रेट की चिंता थी। ऐसे में तातेंदा ताईबु, गाय विटऑल और हीथ स्ट्रीक ने थोड़े-थोड़े रन बनाकर ज़िम्बाब्वे को बेहतर स्थिति में पहुँचाया।

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भारत का प्रभावशाली जीत ज़िम्बाब्वे पर
भारत का प्रभावशाली जीत ज़िम्बाब्वे पर-

मगर, ये प्रयास इतने अच्छे नहीं थे कि ज़िम्बाब्वे की हार को टाल पाते। इस तरह अंत मे भारत ने प्रभावशाली अंदाज़ में 81 रनों से मैच जीत लिया। भारत की ओर से श्रीनाथ, हरभजन, और ज़हीर ने दो विकेट लिए। जबकि, गाँगुली ने सबको चौंकाते हुए सबसे ज़्यादा 3 विकेट हासिल किये।

वैसे उस रोज़ गाँगुली ने सिर्फ़ अपनी गेंदबाज़ी से ही नही, बल्कि अपने अप्रोच से भी सब को चौंका दिया था। क्योंकि, ऑस्ट्रेलिया से मिली करारी हार के बावजूद भारतीय खिलाड़ी कॉन्फिडेंट थे। हर विकेट के बाद हडल में जमा होकर एक दूसरे का हौसला बढ़ा रहे थे। जिसपर बात करते हुए गाँगुली ने बाद में कहा भी था “ऑस्ट्रेलिया से मिली हार ने हमें हिलाकर रख दिया था। इसलिये, हम बार-बार हडल में आ-रहे थे, एक-दूसरे की हौसला अफ़ज़ाई कर रहे थे। क्योंकि, एक खिलाड़ी के लिये उसकी टीम ही सबसे बड़ी सपोर्ट का काम करती है”।

   दोस्तों, भारत की ज़िम्बाब्वे में ही ज़िम्बाब्वे के विरुद्ध इस कंवेंसिंग जीत ने भारत में भी क्रिकेट फ़ैन्स को फिर से अच्छे प्रदर्शन का भरोसा दिलाया। भारतीय टीम अब रंग में दिख रही थी। मगर, एक सवाल अब भी सबके ज़हन में था कि गाँगुली, दिनेश और युवराज की फ़ॉर्म कब वापस आयेगी।

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