BiographyBollywood

आशीष विद्यार्थी : कहानी उस विलेन की जो परदे पर 184 बार मरा

आशीष विद्यार्थी
बड़े पर्दे पर दहशत फैलाने वाले अभिनेता की कहानी

आशीष विद्यार्थी : हर वर्ष न जाने कितने ही ऐक्टर फिल्मों में अपनी किस्मत आजमाने आते रहते हैं, कुछ ख़्वाब के आसमान में पंख लगाये तो कुछ हक़ीक़त की ज़मीन पर एक एक क़दम चलते हुये। मगर मंज़िलें उन्हीं को हासिल होती हैं जिनमें हौसला हो, कुछ कर दिखाने का जुनून हो और इन सबसे ऊपर, कि औरों से थोड़ा अलग हो। 90 के दशक में एक ऐसे ही कामयाब ऐक्टर हुये जिन्होंने बाकायदा अभिनय को सीखकर फिल्मों में एंट्री ली और अपने मौलिक अभिनय और अलग अंदाज़ से अपनी एक अलग पहचान बनायी। उस ऐक्टर का नाम है आशीष विद्यार्थी।

आशीष विद्यार्थी बॉलीवुड और साउथ इंडियन फिल्मो के सबसे खतरनाक विलेन
आशीष विद्यार्थी

आशीष विद्यार्थी का जन्म 19 जून 1962 को दिल्ली के करोलबाग में हुआ था। उनके पिता का नाम गोविन्द विद्यार्थी है जो कि एक मलयाली थिएटर के जाने माने आर्टिस्ट हुआ करते थे। वे हिंदी और संस्कृत जैसी भाषाओं के सीखने के लिये केरल से आकर कई सालों तक प्रयाग और वाराणसी में रहे और यहीं के होकर रह गये। आशीष बताते हैं कि उन्होंने तो एक बार सन्यासी बनने का भी मन बना लिया था लेकिन हमेशा कुछ न कुछ नया सीखने की चाह रखने के कारण उनका मन बदल गया। उसके बाद वे दिल्ली आ गये और स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गये। उसी दौरान वे संगीत कला नाटक अकादमी में काम करने लगे जिसमें रहकर उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों के लोक संगीत के प्रचार-प्रसार के लिये उस क्षेत्र के तमाम संस्थानों में बढ़चढ़ कर सहयोग दिया।

आशीष की माँ रीबा विद्यार्थी एक कथक नृत्यांगना और कत्थक गुरु रह चुकी हैं वे एक बंगाली परिवार से थीं उनके पिता की अजमेर में बसे एक बंगाली गाँव में ज़मींदारी हुआ करती थी। एक चैनल को दिये इंटरव्यू में आशीष ने बताया था कि उनकी माँ  और बिरजू महाराज जी ने एक साथ कथक सीखा था और दिल्ली में रहकर उन्होंने आज के बड़े बड़े दिग्गजों को कत्थक के गुर सिखाये थे। हालाँकि उन्होंने प्रोफेशनली स्टेज परफार्मेंस नहीं दिये क्योंकि उन्होंने अपने पिता को इस बात का वचन दिया था कि वे नृत्य सीखेंगी और सिर्फ़ सीखाने का ही काम करेंगी।

दोस्तों आशीष विद्यार्थी जी के सरनेम के पीछे भी एक कहानी है। दरअसल उनके पिता गोविंद विद्यार्थी जी ने अपने नौजवानी के दिनों में फ्रीडम फाइटर गणेश शंकर विद्यार्थी पर लिखी एक किताब पढ़ी थी, जिसे पढ़कर वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपने नाम के आगे यही सरनेम लगा लिया जो बाद में आशीष जी का भी सरनेम बन गया।

आशीष का जन्म उनके माता-पिता के विवाह के कई सालों के बाद हुआ था, आशीष बताते हैं जब उनके किसी दोस्त ने अपने दादाजी से उन्हें मिलाया तो उन्हें इस बात से बहुत झटका लगा कि ये तो मेरे पिता की उम्र के हैं। आशीष उस समय हमेशा इस बात से डर जाते थे कि मैं अपने माता-पिता को जल्दी खो दूँगा। दोस्तों आशीष अपने माता-पिता की इकलौती संतान हैं और उन्हें इस बात का हमेशा मलाल रहता कि काश उनके भी कोई भाई-बहन होते। आशीष बताते हैं कि इस कमी को दूर करने के लिये वे जिससे भी दोस्ती करते हैं उसके पूरे परिवार से जुड़ते हैं जिससे उन्हें लगता है कि वे इतने लोगों के साथ हैं।

बॉलीवुड के 5 खतरनाक विलेन कहा है और क्या कर रहें है

बात करें उनकी शिक्षा की तो उन्होंने अपनी शुरूआती पढ़ाई दिल्ली के ही एक निजी स्कूल से की थी जहाँ बहुत कम बच्चे ही पढ़ा करते थे। बाद में आशीष ने भारतीय विद्या भवन में दाखिला लिया जहाँ उन्होंने पढ़ाई के साथ-साथ स्कूल के नाटकों में भी काम करना शुरू कर दिया था। जब वे 8वीं- नौवीं क्लास में थे उसी दौरान नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा यानि एनएसडी के चिल्ड्रेन्स प्ले ग्रुप से भी जुड़ गये थे। नाटकों में काम के साथ ही उन्होंने अपना स्नातक दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिन्दू कॉलेज से पूरा किया। इस दौरान उनके दोस्त बनें जाने माने निर्देशक और संगीतकार विशाल भारद्वाज और दिग्गज अभिनेता मनोज बाजपेयी। उन दिनों ये सभी कॉलेज के बाद अक्सर शाम को साथ ही रहा करते और नाटक और गीत संगीत की बातें हुआ करतीं।

आशीष विद्यार्थी

बहरहाल कॉलेज के दौरान ही आशीष दिल्ली के ‘संभव’ नाम के नाटक ग्रुप से जुड़ गये। आशीष बताते हैं कि उन लोगों के साथ काम करने के लिये वे नाटक के सेट का सामान भी ठेले पर ढोया करते थे। हालांकि आशीष बहुत दिनों तक उनके साथ नहीं रह सके, नाटकों और कलाकारों के अभिनय पर अपनी बेबाक टिप्पणियों और आलोचनाओं के कारण अक्सर उन्हें ग्रुप से निकाल दिया जाता था, एक दिन उन्होंने मन बना लिया कि अब वे नाटक छोड़ देंगे और फिल्म मेकिंग सीखेंगे। उसी दौरान उन्होंने मॉस कम्युनिकेशंस का कोर्स करने के लिये इंट्रेस्ट इक्ज़ाम दिया लेकिन वे इस इक्ज़ाम में फेल हो गये। उसके बाद उन्होंने एनएसडी में कोशिश किया जहाँ उनका दाखिला भी हो गया। एनएसडी से पढ़ाई पूरी करने के बाद वे कुछ दिनों तक दिल्ली में ही नाटक करते रहे।उन दिनों जहाँ उनके नाटकों का मंचन हुआ करता था, उसी के नज़दीक धारावाहिक ‘हमलोग’ की शूटिंग हुआ करती थी। आशीष अक्सर सोचते की काश उसके डायरेक्टर पी कुमार वासुदेव जी की उन पर नज़र पड़ जाये और वे उन्हें बुलाकर एक मौक़ा दे दें। एक दिन उनका यह सपना हक़ीक़त में बदल गया जब सच में वासुदेव जी ने उन्हें बुलवाकर एक रोल ऑफर कर दिया। बस फिर क्या था आशीष को लगा कि अब तो रास्ता आसान हो जायेगा और इस एक काम के सहारे उन्हें और भी काम मिल जायेंगे। उन्होंने अगले ही दिन 3 लेटर टाइप कर 3 दिग्गज निर्देशकों तक उन्हें पहुँचवा दिये, जिसमें यह लिखा था कि किस डेट को, किस सीन में वे नज़र आने वाले हैं जिसे वे ज़रूर देखें और काम पसंद आये तो एक मौक़ा ज़रूर दें। आख़िरकार शुटिंग का दिन आ ही गया और आशीष समय से सेट पर पहुँच गये लेकिन वहाँ जाकर उन्हें पता चला कि वासुदेव ने पहले जिस ऐक्टर को वह रोल दिया था वह वापस आ गया है इसलिए वो रोल अब वही करेगा। आशीष बताते हैं कि उस दिन वे बहुत रोये थे।

बहरहाल बाद में वर्ष 1992 में मुंबई चले आये जहाँ वे पृथ्वी थियेटर में परफॉर्म करने वाले एक प्ले ग्रुप से जुड़ गये। लेकिन पृथ्वी थियेटर में नये नाटकों के मंचन के लिये समय मिल पाना इतना आसान भी नहीं होता है, ऐसे में दो नाटकों के बीच के अंतराल में अलग बने एक प्लेटफार्म पर आशीष का प्ले होता।

बहरहाल मुंबई आने के बाद आशीष ऑडिशन देते रहे, कई फिल्में जिनमें उन्हें काम के ऑफर मिले थे वे बनी नहीं या शुरू होकर बंद हो गयीं। यहाँ तक कि जिस फिल्म के ऑफर पे वे मुंबई आये थे वो भी न बन सकी। बड़े परदे पर आशीष विद्यार्थी ने अपने करियर की शुरुआत कन्नड़ फिल्म ‘आनंद’ से की थी। और टेलीविज़न की बात की जाये तो इन्होंने दूरदर्शन पर प्रसारित हास्य धारावाहिक  “हम पंछी एक चाल के” में काम किया था।  हालांकि आशीष की एक हिंदी फिल्म ‘सरदार’ पूरी हो चुकी थी लेकिन अभी उसके रिलीज़ होने में वक़्त था। ख़ैर उसी दौरान उन्होंने विधू विनोद चोपड़ा की ‘1942 ए लव स्टोरी’ और महेश भट्ट की ‘नाजायज़’ जैसी फिल्मों के लिये ऑडिशन दिया और सेलेक्ट कर लिये गये। अपने उन ऑडिशन्स के बारे में आशीष बताते हैं कि, “मेरे लिये केतन मेहता और सईद अख्तर मिर्जा ने चिट्ठी लिखकर दी थी और मैंने ‘सरदार’ फिल्म में काम भी किया हुआ था। बावज़ूद इसके उस ऑडीशन के वक़्त मैं कांप रहा था।” ख़ैर उसके बाद आशीष ने नाजायज़ फिल्म में काम पाने के लिये महेश भट्ट को भी ऑडिशन दिया।

वर्ष 1994 में आशीष की तीन फिल्में रिलीज़ हुईं थीं सरदार, 1942 ए लव स्टोरी और द्रोहकाल। गोविंद निहलानी द्वारा निर्देशित फिल्म द्रोहकाल के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के रूप में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिला। दोस्तों इस सफलता के बाद आशीष के साथ एक बड़ा ही दिलचस्प वाकया हुआ। हुआ ये कि जब आशीष के नेशनल अवॉर्ड का अनाउंसमेंट हुआ तो गोविंद निहलानी जी ने उनसे पार्टी करने की बात कही। आशीष ने एक इंटरव्यू में बताया था कि पैसे कम होने के कारण उन्होंने मुंबई के एक पॉपुलर चाइनीज रेस्त्रां में जाकर सिर्फ तीन सीटें बुक कराई थीं। आशीष ने बताया था कि, “जब लोग आने शुरू हुए और रेस्त्रां की आधी जगह भर गई और मेरी चिंता बढ़ने लगी। लोग पार्टी एन्जॉय कर रहे थे और मैं एक कोने में माथा पकड़े बैठा हुआ था। पार्टी के अंत में मैं गोविंद जी के पास गये और बोले कि आज का पेमेंट आप कर दीजिये मैं धीरे-धीरे करके आपके पैसे चुका दूँगा।” गोविन्द जी ने उन्हें देखा और कहा- ‘तुमसे किसने कहा इस बारे चिंता करने के लिए। यह मेरी पार्टी है।’ गोविन्द जी की इस बात को सुनकर आशीष टेंशन फ्री हुये और तब कहीं जाकर उन्होंने भरपेट मन पसंद खाना खाया।

इस फिल्म के बाद आशीष की एक ऐसी फिल्म रिलीज़ हुई जिसके बाद तो उनके लिये फिल्मी दुनियाँ के सभी दरवाज़े खुल गये। यह फिल्म थी ‘इस रात की सुबह नहीं’ वर्ष 1996 में रिलीज़ हुई इस फिल्म में आशीष विद्यार्थी द्वारा निभाये रमन भाई के किरदार से उनकी ऐक्टिंग के सभी कायल हो गये। आशीष ख़ुद कहते हैं कि रमन भाई के किरदार ने उन्हें हिंदी सिनेमा में एक ऐसी पहचान दी, कि उसके बाद काम पाने के लिये उन्हें एक्टिंग करके दिखाने का सिलसिला बंद हो गया।’ इस फिल्म के बाद आशीष धीरे-धीरे व्यस्त होते चले गये और फिर एक ऐसा दौर भी आया जब फिल्मों में पहले से तय उनके दृश्यों की संख्या भी बढ़ायी जाने लगी।

दोस्तों अपने करियर में आशीष विद्यार्थी ने अब तक लगभग 234 से भी अधिक फिल्मों में काम किया है जिनमें ढेरों सफल हिंदी फिल्मों के साथ-साथ तमिल, कन्नड़, मलयालम, तेलुगू, बंगाली, अंग्रेजी, ओड़िया और मराठी आदि भाषाओं की फिल्में भी शामिल हैं। फिल्मों में आज भी लगातार सक्रिय रहने के साथ वह टेलीविजन शोज़ में भी समय समय पर नज़र आते रहें हैं जिनमें ट्रक धिनाधिन, दास्तान, ’24’ और कहानीबाज़ आदि प्रमुख हैं। ख़बर है कि जल्द ही वे कुछ वेब शोज़ में भी दिखाई देने वाले हैं।

फिल्म ‘बॉलीवुड डायरीज़’ की शूटिंग के दौरान आशीष के साथ एक रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना भी घटी थी जब वे मरने से बचे थे। यह बात है अक्टूबर 2014 की, जब छत्तीसगढ़ में दुर्ग के महमरा एनीकट नामक स्थान पर इस फिल्म की शूटिंग के दौरान आशीष विद्यार्थी और उनके एक साथी कलाकार को शूटिंग के लिए पानी में उतरना था, लेकिन कुछ ज्यादा ही गहरे पानी में चले जाने की वज़ह से वे डूबने लगे। तभी वहीं ड्यूटी पर तैनात विकास सिंह नाम के पुलिसकर्मी को कुछ गड़बड़ लगी और उन्होंने तुरंत पानी में छलांग लगा दी और आशीष तथा उनके दोस्त को डूबने से बचा लिया।

कहा जाता है कि ज्यादातर फिल्मों में विलेन की भूमिका निभाने की वजह से आशीष पर मौत के तकरीबन 180 से भी अधिक दृश्य फिल्माए जा चुके हैं। उनके डायरेक्टर भी परेशान हो जाते थे कि अब इस फिल्म में उन्हें किस नये तरीक़े से मारा जाये।

दोस्तों आशीष विद्यार्थी अभिनेता होने के अलावा एक मोटिवेशनल स्पीकर भी हैं। वो लगातार लोगों के बीच अपने तज़ुर्बे शेयर करते रहते हैं। वे कहते हैं कि, “मैं लोगों को यह बताना चाहता हूं कि एक अभिनेता, अभिनय के अलावा भी बहुत कुछ अच्छा दिखला और बता सकता है।”

आइये अब एक नज़र डाल लेते हैं आशीष जी के निजी जीवन पर। आशीष विद्यार्थी ने टेलीविजन अभिनेत्री राजोशी बरुआ जी से शादी की, जो बंगाली सिनेमा की पॉपुलर एक्ट्रेस रहीं शकुंतला बरुआ जी की बेटी हैं। राजोशी  ‘सुहानी सी एक लड़की’ जैसे शोज़ के अलावा सती, डायमंड रिंग और गुरुदक्षिणा जैसी फिल्मों में भी नज़र आ चुकी हैं। दोस्तों आशीष और राजोशी का एक बेटा है, जिसका नाम आर्थ विद्यार्थी है।

Show More

Related Articles

Back to top button