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Anand Raaj Anand: बिल्लो रानी और ओय राजू जैसी गानों से सबको नाचने वाले संगीतकार की कहानी

90 का दशक- वो दौर जो रोमांटिक फिल्मों के साथ-साथ कर्णप्रिय संगीत के लिये भी याद किया जाता है और जब नदीम श्रवण, आनंद मिलिंद और अनु मलिक जैसे संगीतकारों का वर्चस्व हुआ करता था। ऐसे में किसी नये संगीतकार का अपनी जगह बनाना बहुत ही मुश्किल काम था। लेकिन कहते हैं न हर राह आसान हो जाती है अगर दिल में जुनून हो।

और इसी बात को साबित करके दिखाया अपने पक्के जुनून और टैलेंट के दम पर एक अलग संगीत लेकर आये संगीतकार आनंद राज आनंद ने। जिनका संगीत आज भी उतना ही तरो ताज़ा सुनाई देता है जितना कि उस दौर में सुनाई देता था।

प्रारंभिक जीवन-

आनंद राज आनंद का जन्म 8 नवंबर 1961 को दिल्ली के एक संपन्न परिवार में हुआ था, इनका असली नाम राजेन्द्र आनंद है जिसे उन्होंने ख़ुद ही बदल दिया था। आनंद कुल 6 भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं। उनके पिता श्री बलदेव राज आनंद जी का दिल्ली में गहनों का व्यवसाय है। आनंद की माँ का नाम श्रीमती अजीत कौर आनंदी है जो कि एक गृहणी हैं। 

उनके पिता चाहते थे कि वे बड़े होकर उनके व्यवसाय को आगे बढ़ायें लेकिन आनंद दुकान में बैठकर भी गीत लिखने और उनकी धुन बनाने में लगे रहते, दोस्तों वे अपने स्कूल के दिनों से ही गाने के बेहद शौकीन हुआ करते थे। एक दिन स्कूल मे ख़ाली क्लास के दौरान आनंद अपने दोस्तों को एक गीत “खोया खोया चाँद खुला आसमान” गाकर सुना रहे थे तभी उनके एक टीचर पोछे से आ गये जिन्हें अचानक अपने पीछे खड़ा देख आनंद की हालत खराब हो गयी।

उनके टीचर ने कहा कि आज के बाद मेरे पीरियड में पढ़ाई तभी शुरू होगी जब तुम एक गाना सुनाओगे। अपने टीचर द्वारा मनोबल बढ़ाने के बाद आनंद स्कूल की प्रतियोगिताओं में भाग लेने लगे और इसके लिये उन्हें इनाम भी मिलने लगे।  

Anand Raaj Anand

परिवार

दोस्तों आनंद के पिताजी भी शौक़िया गीत गाया करते थे लेकिन आनंद अपने पिता के सामने कभी नहीं गाते थे। उन्हें अपने पिता के सामने गाने में एक झिझक सी होती थी। ऐसे में जब उनके पिता को दूसरों से आनंद के गानों की तारीफ़ सुनने को मिलती तो उन्हें बहुत ताज्जुब होता।

दोस्तों आनंद अक्सर दूरदर्शन पर आने वाले चित्रहार में नये गाने सुनते और जिस फिल्म के गाने उन्हें पसंद आते अगले दिन स्कूल के समय मॉर्निंग शो में जा के वो फिल्म देख लेते इसका एक कारण ये भी था कि मॉर्निंग शो की टिकेटें सस्ते में मिल जाती थीं। बहरहाल समय बीता और आनंद का दाखिला सिविल इंजीनियरिंग में हो गया।

एक दिन उन्होंने अपने पिता से कह दिया कि वे दुकान पर नहीं बैठेंगे बल्कि वे रियल स्टेट के क्षेत्र में ही कुछ काम करना चाहते हैं।

क्यों बनाया मुंबई जाने का मन

हालांकि उस काम में भी आनंद का ज़्यादा मन नहीं लगता था। इस बीच आनंद गीत लिखते और उसकी धुनें बनाते रहे जिन्हें सुनने की फरमाइश अक्सर उनके दोस्त करते रहते। दोस्तों द्वारा तारीफ़ मिलने से आनंद ने एक दिन निर्णय कर लिया कि वे मुंबई जाकर एक चांस तो ज़रूर लेंगे।

उसके बाद उन्होंने अपने बनाये कुछ गानों को एक ऑडियो कैसेट में रिकॉर्ड किया और अपने पिता से मुंबई जाने की इजाज़त माँगी इस वादे के साथ कि यदि 6 महीनों में उन्हें काम नहीं मिला तो वे वापस आकर दुकान संभाल लेंगे। दोस्तों जिस वक़्त आनंद ने मुंबई जाने का फैसला लिया उसके डेढ़ साल पहले ही उनकी शादी हुई थी और उनका एक बच्चा भी था लगभग 4-6 महीने का।

 यूँ अचानक मुंबई जाने की बात पर उनकी पत्नी को भी बड़ी हैरत हुई, उन्होंने आनंद से कहा कि ये आप किस काम में पड़ गये हैं मेरे घरवालों ने तो यही देखकर शादी की थी कि आप एक ज्वैलर के बेटे हैं? आनंद ने अपनी पत्नी को समझाया कि ये काम तो अपना है ही अगर मुंबई में कुछ न हो सका तो वापस आकर यही करना है।

Anand Raaj Anand

कब और किससे मिलने पहुंचे मुंबई

बहरहाल पत्नी को समझाने के बाद वर्ष 1995 में वे मुंबई के लिये रवाना हो गये। दोस्तों आनंद को ये भी नहीं पता था कि मुंबई पहुँचकर उन्हें जाना कहाँ है और मिलना किससे है? लेकिन इस सफर में उनके साथ कुछ ऐसा हुआ जैसे उनकी मंज़िल ख़ुद ब ख़ूद चलकर उनके पास आ गयी हो, वो भी मुंबई पहुँचने से पहले।

 दरअसल हुआ ये कि राजधानी एक्सप्रेस के जिस डब्बे में आनंद सफर कर रहे थे उसकी 72 में 70 सीटें देश भर के स्टिल फोटोग्राफर से भरी थीं जो मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में होने वाले किसी कॉन्फ़्रेंस में हिस्सा लेने जा रहे थे। सफर लम्बा था और धीरे-धीरे शाम हो गयी, आनंद अपनी ऊपर की सीट पर लेटे अपने ख़वाबों और ख़्यालों के ताने बाने बुनने में मशगूल थे तभी उनके कानों में बोतलों के ढक्कनों के खुलने की आवाज़ें सुनाई पड़ीं।

आनंद ने नीचे झांका तो देखा कि लोग ड्रिंक ले रहे हैं तभी उनमें से किसी ने कोई शेर सुनाया  शेर सुनकर आनंद से रहा नहीं गया और उन्होंने कहा कि मैं इसका जवाब देना चाहूँगा। आनंद नीचे आये और अपने कुछ शेर और गीत भी गाकर सुनाये। जिन्हें सुनकर सबने पूछा कि ये किस फिल्म का है तो उन्होंने बताया कि ये मैंने ही लिखा और कम्पोज किया है। इसके साथ ही उन्होंने मुंबई जाने का अपना मकसद भी बताया कि वे गायक बनना चाहते हैं।

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किसने उन्हें टीनू आनंद से मिलाया

उन्हीं में से एक व्यक्ति ने कहा कि “मैं तुम्हें कल ही निर्देशक टीनू आनंद जी से मिलवाता हूँ।” उस व्यक्ति ने बताया कि वे टीनू आनंद के  फैमिली फोटोग्राफर हैं और उनका नाम सुन्दर दीपक है। मुंबई पहुँचने पर सुन्दर दीपक ने आनंद से कहा कि वहाँ सबसे यही बताना कि तुम मेरे कजिन हो।

बहरहाल आनंद जी की मुलाक़ात टीनू जी से हुई और उन्होंने टीनू जी को अपने कुछ गीत सुनाये जो टीनू को पसंद आ गये और उन्होंने कहा कि ठीक है मैं एबीसीएल की फिल्म मेजर साहब में इन गानों के लिये अमिताभ बच्चन से बात करता हूँ अगर उन्होंने मंजूरी दे दी तो समझो बात बन गयी।

Anand Raj Anand Father

पार्टी में आनंद की मुलाक़ात कई और लोगों से भी हुई जिनमें निर्माता सत्येन पाल चौधरी भी थे। सत्येन जी ने आनंद को टाइम ऑडियो और वीडियो के परवीन शाह से मिलवाया उन्होंने आनंद को अपने ऑफिस में आने को कहा। इधर 10 दिन के अंदर आनंद को मेजर साब के लिये फाइनल कर लिया गया लेकिन अभी उस काम में वक़्त था।

इस बीच आनंद टाइम ऑडियो और वीडियो के ऑफिस के चक्कर काटने लगे लेकिन परवीन शाह की व्यस्तता के चलते कभी मुलाक़ात ही न हो पाती। बहरहाल 20-25 दिन के बाद जब मौक़ा मिला तो परवीन जी ने उनके गाने सुनकर पूछा कि किसने लिखा है गीत? आनंद ने कहा “जी मैंने।” परवीन जी ने फिर पूछा कि संगीत किसका है? आनंद ने फिर जवाब दिया कि “जी मेरा ही है।

“परवीन ने फिर पूछा कि और आवाज़ किसकी है? आनंद ने फिर जवाब दिया कि “जी वो भी मेरी ही है।”परवीन जी ने झल्लाकर कैसेट वापस करते हुए आनंद से कहा,

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कि पहले ये डिसाइड कर लो कि तुम्हें बनना क्या है? सिंगर, लिरिसिस्ट या कम्पोजर?? आनंद ने तुरंत कहा कि सर मुझे तो गायक ही बनना है, मैं चाहता हूँ कि मेरा ख़ुद का एक एलबम बन जाये। परवीन ने कहा गायक बनने का ख़्वाब तो भूल ही जाओ हाँ बतौर कम्पोजर तुम्हें काम मिल सकता है।

दोस्तों इसमें कोई शक नहीं कि 90 के दशक में कुमार सानू, उदित नारायण और अभिजीत जैसे सफल गायकों के आगे किसी नई आवाज़ का आना बहुत ही कठिन था। सत्येन जी ने भी आनंद को समझाया कि “संगीतकार बन जाओ गायक तुम ख़ुद ही बन सकते हो बाद में।” आनंद जी को भी बात समझ आ गयी और उन्होंने हाँ कर दी। उसके बाद परवीन जी ने उन्हें ‘मासूम’ फिल्म दिलवाई।

 इसी दौरान उनके पिता ने जब उनसे बात की तो उन्होंने पिता से झूठ कह दिया कि टीनू जी ने उनके रहने और गाड़ी वगैरह का भी इंतजाम कर दिया है। आनंद जी ने इसी बीच अपनी पत्नी को भी मुंबई बुला लिया। धीरे-धीरे 6 महीने नज़दीक आ गये तब उनके पिताजी से नहीं रहा गया और उन्होंने एक दिन फोन करके उन्हें आनंद का वादा याद दिलाया।

आनंद ने तब एक उपाय सोचा, उन्होंने अपनी एक डायमंड की रिंग बेच दी और उससे जो रुपये मिले उनमें से कुछ अपने पास रखकर बाकी रुपयों का ड्राफ्ट बनवाकर अपने पिता के पास यह कहकर भेज दिया कि ये उनकी पहली कमाई है। 

Anand Raaj Anand Wife

सबसे पहला गाना कौन सा था

वर्ष 1995 में ही टाइम म्यूजिक पर उनका पहला प्राइवेट एल्बम  “बाबू टिपटॉप” आया। इस एल्बम में “झांझरिया ऐसे छनक गई” गीत भी शामिल था जिसे बाद में सुनील शेट्टी की फिल्म कृष्णा में भी इस्तेमाल किया गया था। हालांकि बहुत ताज्जुब की बात है कि फिल्म में इस गीत के लिये आनंद राज आनंद को कोई क्रेडिट नहीं दिया गया।

आज भी उसके संगीतकार में अनु मलिक का ही नाम दिखाया जाता है। बहरहाल एक वर्ष के बाद वो दिन भी आ गया जब आनंद की पहली फिल्म मासूम रिलीज़ होने वाली थी। एक इंटरव्यू में आनंद जी ने बताया था कि जिस रात इस फिल्म का पोस्टर लगने वाला था उस रात वे बहुत एक्साइटेड थे पोस्टर पर अपना नाम देखने के लिये।

जुलाई माह की उस रात बहुत ज़ोरों की बारिश हो रही थी लेकिन जैसे ही बारिश रुकी आनंद अपनी पत्नी के साथ अपने स्कूटर पर निकल पड़े अपनी फिल्म का पोस्टर देखने। जब पोस्टर पर अपना नाम देखा तो अपनी पत्नी से बोले, “देख सोनू मेरा नाम लिखा है संगीत- आनंद राज आनंद।” आनंद बताते हैं कि उस वक़्त उन दोनों की ही आंखों में आंसू थे।

इस फिल्म के बाद मेजर साहब के अलावा आनंद की कुछ और फिल्में भी रिलीज़ हुईं जिनमें से एक थी ‘काँटे’। दोस्तों आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि फिल्म काँटे में परदे पर कोई गीत नहीं रखा जाना था।

किस एक गाने की वजह से फिल्म में 6 गाने रखे गए

लेकिन एक रात जब आनंद ने ‘ईश्क समंदर दिल दे अंदर’ और ‘माही वे’ जैसे गीत सुनाये तो डायरेक्टर संजय गुप्ता और फिल्म के नायक संजय दत्त ने निर्णय लिया कि फिल्म में 6 गाने रखे जायेंगे। दोस्तों आनंद राज आनंद लगभग 100 से भी अधिक फिल्मों में संगीत निर्देशन के अलावा 40 से भी अधिक फिल्मों के गीत भी लिख चुके हैं, तथा 45 से भी अधिक फिल्मों के लिए पार्श्व गायन भी किया है। 

उनके सफल गानों की लिस्ट इतनी लम्बी है कि एक वीडियो में सबके नाम ले पाना नामुमकिन है। उन्होंने कई प्राइवेट एल्बमों के अलावा राष्ट्रमंडल खेल 2010 के लिए भी गाना बनाया था जिसे उद्घाटन समारोह में प्रदर्शन किया गया था।आनंद राज आनंद के दो बच्चे हैं बेटा यश राज आनंद और बेटी कारा आनंद। दोनों पढ़ाई कर रहे हैं।

बेटी कारा भी संगीत के क्षेत्र में ही कॅरियर बनाना चाहती हैं। आनंद के भाई हैरी आनंद भी एक गायक और संगीतकार हैं। हैरी आनंद रिमिक्स संगीत के क्षेत्र में एक बड़ा नाम हैं।

Harry Anand with Anand Raaj Anand
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Prabhath Shanker

Bollywood Content Writer For Naarad TV

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